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झारखण्ड : आदिवासी पुलिस अधिकारी रूपा तिर्की की मौत पर सरकार की चुप्पी, जनता में बढ़ता आक्रोश

“मामला पुलिस विभाग के अंदर का होने से पुलिस खुद एक पार्टी बन गयी है। इसलिए इसमें पुलिस जांच रिपोर्ट की कोई कानूनी वैधता नहीं बनती। सरकार को अविलंब स्वतंत्र न्यायिक जांच के आदेश दे कर इंसाफ के प्रयास करने चाहिए।”
झारखण्ड : आदिवासी पुलिस अधिकारी रूपा तिर्की की मौत पर सरकार की चुप्पी, जनता में बढ़ता आक्रोश

झारखण्ड प्रदेश में कोरोना माहामारी संक्रमण की रफ़्तार तो घट रही है लेकिन युवा आदिवासी पुलिस अधिकारी रूपा तिर्की की मौत के मामले पर हेमंत सोरेन सरकार की लगातार चुप्पी से बढ़ता जनाक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है।

प्रदेश कि सरकार द्वारा लॉकडाउन बंदी में थोड़ी ढिलाई की घोषणा होते ही ‘जस्टिस फॉर रूपा तिर्की’  का अभियान अब सड़कों पर बढ़ने लगा है। 

3 जून को राजधानी की हृदयस्थली अलबर्ट एक्का चौक पर ऐपवा व कई अन्य महिला संगठनों समेत दर्जनों आदिवासी सामाजिक जन संगठनों की महिलाओं और युवाओं ने ‘रूपा तिर्की को न्याय दो’ लिखे पोस्टरों के साथ रोषपूर्ण मानव श्रृंखला बनाकर प्रतिवाद प्रदर्शित किया।

इसके पहले 2 जून को भी वामपंथी महिला संगठन ऐपवा ने रूपा तिर्की की मौत को संस्थानिक हत्या काण्ड करार देते हुए मामले की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग को लेकर पूरे प्रदेश में प्रतिवाद दिवस मनाया। 

ऐपवा झारखण्ड प्रदेश अध्यक्ष गीता मंडल ने सरकार को प्रेषित ज्ञापन के जरिये इस मामले में हेमंत सोरेन सरकार की लगातार चुप्पी पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि रूपा तिर्की के इंसाफ का मुद्दा पूरे प्रदेश का एक गंभीर मसला बन गया है। सरकार की चुप्पी कांड के दोषियों को संरक्षण देने का काम कर रही है। राज्य महिला आयोग भी चुप बैठा हुआ है। ऐपवा का कहना है कि सरकार ज़ल्द से ज़ल्द इस संवेदनशील मसले पर त्वरित संज्ञान ले और न्यायिक जांच कराकर दोषियों को सज़ा दे ताकि रूपा तिर्की के परिजनों को इंसाफ मिल सके। 

3 जून को मानव श्रंखला में शामिल आदिवासी छात्र संघ समेत दर्जनों आदिवासी सामाजिक जन संगठनों के युवा इस बात से ज्यादा आक्रोशित हैं कि रूपा तिर्की हत्याकांड मामले के एक महीना बीत जाने के बाद भी प्रदेश के आदिवासी मुख्यमंत्री चुप हैं। हत्या कांड के दिन से ही मामले की सीबीआई जांच कराये जाने की मांग को लेकर रूपा तिर्की के परिजन और उनके इलाके के आदिवासी समेत पूरे प्रदेश के आदिवासी समाज के लोग इस कोरोना लॉकडाउन बंदी के बीच भी हर दिन सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर इंसाफ की गुहार लगा रहें हैं। 

अपनी होनहार बहादुर बेटी की अकाल मौत से आहत रूपा तिर्की का समूचा परिवार इस प्रकरण में मामले की जांच कर रही पुलिस की भूमिका पर शुरू से ही संदेह और सवाल उठाते हुए केस की लीपापोती कर असली गुनाहगारों को बचाने का आरोप लगा रहें हैं। इंसाफ के लिए सीबीआइ जाँच की मांग को लेकर झारखण्ड हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते हुए याचिका भी दायर कर रखी है। 

वरिष्ठ आन्दोलनकारी दयामनी बारला ने भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से रूपा तिर्की की मौत से पर्दा हटाने का आग्रह करते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है। झारखण्ड प्रदेश के आदिवासी समुदाय को न्याय पहलू पर ध्यान दिलाते हुए यह भी कहा है कि झारखण्ड अलग राज्य की लड़ाई लड़ते समय हम लोगों ने सपना देखा था कि राज्य बनेगा तो हमारी बहु-बेटियों को इज्जत व सम्मान से जीने का अवसर मिलेगा। लेकिन आज हमारे सपने तो हाशिये पर धकेल ही दिए गए हैं, बहु बेटियों पर चौतरफा हमला बढ़ गया है। जब रूपा तिर्की के परिजन अपनी बहादुर बेटी की मौत को आत्महत्या नहीं ह्त्या बता रहें हैं और सरकार से लगातार सीबीआई जाँच की मांग कर रहें तो सरकार की चुप्पी काफी दुखद है।

सनद रहे कि पुलिस महकमा और एसआई रूपा तिर्की के कार्यक्षेत्र साहेबगंज पुलिस अपनी जांच रिपोर्ट में पुरे मामले को प्रेम-प्रसंग से जुड़ी आत्महत्या करार दे रही है। प्रदेश के आईजी ने भी साहेबगंज पुलिस के स्टैंड को ही सही ठहराया है। 

रूपा तिर्की के परिजन समेत कई आदिवासी संगठनों के लोग रूपा तिर्की के शव और मौत वाले कमरे की वायरल तस्वीरों को अहम् साक्ष्य मानकर पुलिस जांच रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर रहें हैं।

ऑल इंडिया पीपल्स फोरम समेत कई नागरिक अधिकार संगठन के प्रतिनिधियों का भी कहना है कि मामला पुलिस विभाग के अन्दर का होने से पुलिस खुद एक पार्टी बन गयी है। इसलिए इसमें पुलिस जांच रिपोर्ट की कोई कानूनी वैधता नहीं बनती। सरकार को अविलंब स्वतंत्र न्यायिक जांच के आदेश दे कर इंसाफ के प्रयास करने चाहिए। 

यह मामला अब सियासी रंग लेकर सत्ता और विपक्ष के बीच जारी आरोप प्रत्यारोपों की जुबानी तकरार बन गया है। विपक्षी दल प्रदेश भाजपा इसे सर्वप्रधान मुद्दा बनाकर सरकार को लगातार घेरते हुए कांड के आरोपी सत्ताधारी दल झामुमो के स्थानीय रसूखदार विधायक प्रतिनिधि को बचाने का आरोप लगा रही है। नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी समेत अपने सभी आदिवासी नेताओं व कार्यकर्ताओं को इस जंग में उतार दिया है।

सत्ता पक्ष के नेताओं का आरोप है कि कोरोना महामारी में अपनी केंद्र सरकार की विफलताओं और झारखण्ड सरकार के साथ उपेक्षापूर्ण रवैये से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ही यह विरोध प्रपंच किया जा रहा है। रूपा तिर्की को इंसाफ का नारा लगाने वाले यही भाजपा के लोग जब पिछले दिनों ओरमांझी जंगल से एक युवती की नग्न लाश मिली तो झारखण्ड की बेटी को इंसाफ दो का नारा लगाते हुए मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला बोला था। लेकिन जैसे ही यह सच सामने आया कि उक्त मृतिका एक मुस्लिम है तो इनका सारा उग्र विरोध तुरंत गायब हो गया। 

3 जून को सत्ताधारी दल झामुमो प्रवक्ता ने बयान दिया है कि रूपा तिर्की मौत मामले पर एसआईटी जांच चल रही है, यदि ज़रूरत हुई तो हम सीबीआई जांच के लिए भी जायेंगे। 

आदिवासी मामलों के कई जानकारों के अनुसार रूपा तिर्की के इंसाफ के सवाल पर पूरे प्रदेश के आदिवासी समुदाय में बढ़ते विरोध का एक बड़ा कारण यह भी है कि हेमंत सोरेन सरकार के काम काज से उनकी उम्मीदें अब टूट रहीं हैं। हेमंत है तो हिम्मत है का नारा उनके विश्वासों पर खरा नहीं उतर पा रहा है क्योंकि सरकार ने अभी तक ऐसा कोई ज़मीनी काम नहीं किया है जो राज्य गठन से लेकर आज तक अपने ही प्रदेश में हाशिये पर धकेल दिए गए आदिवासी समुदाय के लोगों की सम्मानजनक हैसियत को बहाल कर सके। यह भी आरोप है कि पिछली भाजपा सरकार ने जो आदिवासी विरोधी ‘लैंड बैंक’ कानून बनाया था उसे निरस्त करने की बजाय इस सरकार ने आदिवासी विरोधी ‘लैंडपुल’ नीति थोप दी है।    

कहा जाए तो उक्त सन्दर्भों में आज रूपा तिर्की के इंसाफ का सवाल, जो इस कोरोना महामारी की आपद स्थिति में भी दिनों-दिन व्यापक जन विरोध का रूप लेता जा रहा है। अब यह और ज़रुरी हो गया है कि समय रहते हेमंत सोरेन आदिवासियों का भरोसा टूटने न दें। 

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