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झारखंडः एंबुलेंस की ख़रीद में लापरवाही, साल भर पहले शुरू हुई प्रक्रिया अब तक नहीं हुई पूरी

क़रीब एक साल पहले सरकार ने 206 एंबुलेंस खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी जो आज तक पूरी नहीं हो पाई है।
ambulance
Image courtesy : Hindustan

झारखंड में एंबुलेंस की कमी एक बड़ी समस्या है। खासकर ग्रामीण क्षेत्र में परेशानी काफी ज्यादा है। राज्य के लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल समय समय पर खुलती रहती है। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जब समय पर एंबुलेेंस ने मिलने से मरीजों की मौत हो जाती है। वहीं एंबुलेंस न मिलने के चलते परिजनों द्वारा अपने मरीज को खाट पर या किसी अन्य साधन से या कंधों पर अस्पताल पहुंचाने का भी मामला समय-समय पर सामने आता रहता है। प्रदेश में मरीजों को त्वरित स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने और रेफरल सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए करीब एक साल पहले सरकार ने 206 एंबुलेंस खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी जो आज तक पूरी नहीं हो पाई है।

हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में फिलहाल 108 इमरजेंसी सर्विस के तहत 337 एंबुलेंस संचालित हैं। 2011 की जनगणना के आधार पर एक लाख की आबादी के लिए एक एंबुलेंस की सुविधा दी गई है। दूर-दराज के क्षेत्रों में बड़ी गाड़ियों के लिए सही सड़क नहीं होने के कारण मरीजों को एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पा रही है।

पिछले साल कोरोना की तीसरी लहर आने से पहले मरीजों को त्वरित स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने एवं रेफरल सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने 89 एंबुलेंस खरीदने का निर्णय लिया था। इसके तहत अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस एएलएस (एडवांस लाइफ सपोर्ट) टाईप की 25, बीएलएस (बेसिक लाइफ सपोर्ट) टाईप की 40 एवं बच्चों के लिए एडवांस लाइफ सपोर्ट की 24 एंबुलेंस खरीदने का निर्णय लिया गया था। इसके लिए बीते साल सितंबर में ही 28 करोड़ रुपए आवंटित भी कर दिए थे। खरीदने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को दी गई थी। इसके तहत एडवांस लाइफ सपोर्ट की एक एंबुलेंस 35 लाख, एएलएस की एक नियोनेटल एंबुलेंस 31 लाख में जबकि बेसिक लाइफ सपोर्ट की एक एंबुलेंस 26 लाख में खरीदी जानी है।

उक्त 89 एंबुलेंस के अलावा वित्तीय वर्ष 2020-21 में स्वास्थ्य विभाग द्वारा अन्य 117 एंबुलेंस खरीदने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसमें बेसिक लाइफ सपोर्ट की 91 एवं एडवांस लाइफ सपोर्ट की 26 एंबुलेंस खरीदी जानी है। इसके लिए 29.4454 करोड़ रुपये पहले ही आवंटित किए जा चुके हैं। बताया जाता है कि पिछले दो वर्षों से 117 एंबुलेंस खरीदने की प्रक्रिया चल ही रही है। इसकी भी जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को दी गई है।

राज्य की राजधानी के बड़े-बड़े अस्पतालों के पास बमुश्किल से एक या दो ही एंबुलेंस हैं। वहीं रिम्स में करीब 22 एंबुलेंस और शव वाहन हैं। इनमें चार कार्डियक एंबुलेंस हैं, जिसमें वेंटिलेटर समेत सभी अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसमें दो कार्डियक एंबुलेंस एशियन गेम्स के दौरान रिम्स को दी गयी थी।

रिपोर्ट के अनुसार राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के लिए इन दिनों दो एंबुलेंस का उपयोग हो रहा है। करीब एक साल से जब भी वह रांची से बाहर अपने क्षेत्र में होते हैं तो एक एंबुलेंस उनके साथ होता है। रिम्स में एंबुलेंस का इस्तेमाल मरीजों के लिए ने होकर इसका इस्तेमाल वीवीआईपी मूवमेंट के लिए किया जाता है। वीआईपी मूवमेंट के बहाने एंबुलेंसों के मेंटेनेंस के नाम पर लाखों रुपए खर्च होते हैं। लेकिन मरीजों को उसका लाभ नहीं मिल पाता है।

विशेष परिस्थिति में बिरहोर, लाल कार्डधारी या किसी पैरवी वाले मरीजों की मौत के बाद प्रबंधन की अनुमति पर शव वाहन उपलब्ध कराया जाता है। सामान्य लोगों को शुल्क अदा कर शव वाहन लेने के लिए भी प्रबंधन की अनुमति लेनी पड़ती है तो शाम पांच बजे के बाद संभव नहीं हो पाता है।

पिछले साल सितंबर महीने में साह‍िबगंज ज‍िले में मरीज को एंबुलेंस उपलब्ध न कराए जाने का मामला सामने आया था। यहां परिजनों ने खटिया पर 12 किलोमीटर पैदल चलकर मरीज को अस्पताल पहुंचाया था। परिजनों का आरोप था कि जब उन्होंने 108 नंबर पर फोन कर एंबुलेंस की मांग की तो वाहन उपलब्ध नहीं होने का बहाना बनाकर एंबुलेंस देने से मना कर दिया गया था।

करीब दो वर्ष पहले गुमला के सदर अस्पताल में भर्ती एक 48 वर्षीय महिला ने एंबुलेंस नहीं मिलने की वजह से दम तोड़ दिया था। महिला की गंभीर स्थिति को देखते हुए डॉक्टर ने उसे रिम्स रेफर किया था। पर समय पर एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं हो पाने की वजह से महिला की जान चली गई। परिजनों का आरोप था कि वो लगातार तीन घंटे तक एंबुलेंस के लिए अस्पताल प्रबंधन से गुहार लगाते रहे लेकिन प्रबंधन की ओर से एंबुलेंस का इंतेजाम नहीं किया जा सका था।

साल 2020 में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया जब एक लाचार पिता अपने नवजात बच्चे के शव को वाहन न मिलने के चलते प्लास्टिक की थैली में लेकर घर गया था। पिता का कहना था कि जब उन्होंने अस्पताल प्रशासन से एंबुलेंस की गुहार लगाई तो प्रशासन ने कुछ घंटों बाद देने की बात कही थी।

साल 2019 के सितंबर महीने में घाटशिला में सबर आदिम जनजाति की एक महिला की मौत एंबुलेंस न मिलने के चलते हो गई थी। इतना ही नहीं जब शव वाहन नहीं मिला तो परिजन शव को साइकिल से घर ले गए थे। इसी साल अक्टूबर महीने में साहिबगंज में एक गर्भवती महिला को बांस पर लादकर अस्पताल पहुंचाया गया था। अक्टूबर में ही सारंडा में एक गर्भवती महिला की मौत एंबुलेंस न मिलने के चलते हो गई थी। 

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