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झारखंड : ‘पत्थलगड़ी' विवाद फिर बना सियासी मुद्दा 

झारखंड राज्य में सत्ता समीकरण बदल चुका है और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा है। गत 19 जनवरी को पश्चिमी सिंहभूम के बुरुगुलिकेरा गाँव में हुए नरसंहार कांड को पत्थलगड़ी से जोड़कर अबकी बार भाजपा ने ही इस मुद्दे को फिर से सरगर्म बना दिया है।
Jharkhand

रघुवर दास शासन काल में ‘ पत्थलगड़ी विवाद ’ झारखंड के सर्वाधिक चर्चित मुद्दों में शुमार रहा था। इस मुद्दे पर संवाद की बजाय दमनकारी रवैया अपनाए जाने के कारण भाजपा और तत्कालीन रघुवर दास सरकार को व्यापक आदिवासी समुदाय के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन अब जबकि राज्य में सत्ता समीकरण बदल चुका है और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा है। गत 19 जनवरी को पश्चिमी सिंहभूम के बुरुगुलिकेरा गाँव में हुए नरसंहार कांड को पत्थलगड़ी से जोड़कर अबकी बार भाजपा ने ही इस मुद्दे को फिर से सरगर्म बना दिया है।

पार्टी की प्रदेश इकाई से लेकर केंद्रीय आलाकमान तक सभी एक स्वर से हेमंत सोरेन सरकार को घेरते हुए आदिवासी विरोधी करार दे रहें हैं। हमेशा की भांति गोदी मीडिया भी इसी सुर में सुर मिलाकर अपना काम कर रही है।  जिसने 22 जनवरी इस कांड की खबर प्रकाशित करते हुए यह निष्कर्ष भी दे दिया कि यह नृशंस कांड पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा अंजाम दिया गया है।    
 
11 फरवरी को प्रदेश की राज्यपाल महोदया का बुरुगुलिकेरा दौरा कार्यक्रम को ताज़ा कड़ी के बतौर ही माना जा रहा है । क्योंकि झारखंड गठन के 19 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है जब प्रदेश के किसी राज्यपाल ने आदिवासी समाज के दर्द को जानने के लिए घटनास्थल का दौरा किया हो । इसे उनकी औपचारिक संवेदनशीलता भी समझी जा सकती है अथवा जिस पार्टी ने उन्हें राज्यपाल नियुक्त किया है उसके निर्देश से प्रदेश की गैर भाजपा सरकार पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की एक कवायद भी माना जा सकता है। क्योंकि पिछली भाजपा शासन में जब आदिवासी समाज के लोगों ने सैकड़ों बार राजभवन पर धरना- प्रदर्शन और लिखित ज्ञापन देकर आदिवासी राज्यपाल महोदया से गुहार लगाई थी तो उन्हें आश्वासन के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ था।  

सियासत के जानकारों की नज़र में राज्यपाल जी का अचानक से सक्रिय होकर बुरुगुलिकेरा गाँव पहुँचकर नरसंहार कांड के पीड़ित परिवारों से मिलना , अनायास नहीं है। जबकि उक्त कांड की खबर प्रकाशित होने के दूसरे दिन ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घटनास्थल पर पहुँचकर मामले की पूरी जांच के लिए एसआईटी की विशेष टीम गठित कर दोषियों को कड़ी सज़ा देने की घोषणा कर दी थी । एसआईटी जांच रिपोर्ट अभी आनी बाकी है लेकिन 11 फरवरी को महज कुछ घंटों के गाँव दौरा में ही राज्यपाल महोदया ने भी घोषित कर दिया कि पत्थलगड़ी समर्थकों ने विरोध करनेवालों को भेड़-बकरियों की तरह काटा है।

इसके पूर्व बुरुगुलिकेरा नरसंहार कांड की खबर आते ही भाजपा केंद्रीय आलाकमान ने आनन फानन अपने आदिवासी सांसदों कि जांच टीम गठित कर घटनास्थल पर दौड़ा दिया थ। जो इलाके में उत्पन्न तनाव और निषेधाज्ञा लागू होने के कारण घटनास्थल पर नहीं जा सकी। तब भी घटनास्थल पर गए बिना उस टीम ने पूरी जांच रिपोर्ट बनाकर न सिर्फ मीडिया के माध्यम से फटाफट जारी कर दिया बल्कि उसे सीधे देश के गृहमंत्री को भी सौंप दिया।  इसी को आधार बनाकर प्रधान मंत्री ने संसद में अपना गहरा दुख जताया तो कई भाजपा सांसदों ने सदन में तख्तियाँ लेकर झारखंड सरकार को आदिवासियों की हत्यारी करार देकर निंदा की थी।

झारखंड प्रदेश के सियासी जगत में प्रतिक्रिया हुई कि कल तक जो लोग सत्ता में बैठकर पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े निर्दोष ग्रामीणों और आदिवासी बुद्धिजीवियों को देशद्रोही बता रहे थे,अब वे विपक्ष बैठकर प्रदेश की गैर भाजपा सरकार को ही पत्थलगड़ी समर्थक घोषित कर रहें हैं।कुलमिलाकर बुरुगुलिकेरा कांड से पत्थलगड़ी - विवाद एकबार फिर से सत्ता सियासत के पटल पर आ गया है। झारखंड की राज्यपाल महोदया ये बयान देतीं हैं कि पत्थलगड़ी समर्थक किसके निर्देश पर ऐसा कर रहें हैं , जांच का विषय है,तो उन्हें राज्यपाल बनानेवाली पार्टी व उसके नेतागण हेमंत सरकार पर पत्थलगड़ी देशद्रोहियों का मनोबल बढ़ाने का आरोप मढ़कर आदिवासियों का हत्यारा करार दे रहें हैं । जिसे हवा देने में गोदी मीडिया भी कोर कसर नहीं छोड़ रही है।
 
इस प्रकरण की प्रतिक्रिया सोशल मीडिया में भी काफी दीख रही है । जिसमें आदिवासी बुद्धिजीवियों और युवाओं की अच्छी ख़ासी संख्या सक्रिय दीख रही हैं। आदिवासी मुद्दों पर सतत सक्रिय रहनेवाले वरिष्ठ आदिवासी बुद्धिजीवी वाल्टर कंडुलना ने अपने पोस्ट में सवाल उठाया है कि कहीं पत्थलगड़ी आंदोलन ‘एसी भारत कुटुंब परिवार प्रायोजित आंदोलन तो नहीं ?
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आदिवासी युवाओं के पोस्ट में कहा जा रहा है कि वर्तमान के आंदोलन से आदिवासी समाज का हित नहीं हो सकता। हम शांत आदिवासियों में फूट डालने के लिए ही इस तरह का षड्यंत्र रचा जा रहा है।  नरसंहार कांड ‘नागपुर के विषखोपड़ों’ का योजनाबद्ध काम है जिसके फंडर उद्योगपति हैं।  मुस्लिम और दलितों के बाद अब आदिवासियों के लिए गुजरात मॉडल आदिवासी खड़े किए जा रहें हैं इत्यादि।

10 फरवारी को ही राजधानी के कई सामाजिक जन संगठनों के प्रतिनिधियों व सामाजिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा प्रस्तुत बुरुगुलीकेरा नरसंहार कांड की विस्तृत जांच रिपोर्ट ने ‘ पत्थलगड़ी विवाद ’ के कई अदृश्य आयाम सामने ला दिया है । जिसमें भाजपा के साथ साथ मीडिया पर इस कांड की आड़ में आदिवासियों के खिलाफ सुनियोजित पक्षपात करने आरोप लगाया गया है कि - इस कांड को पत्थलगड़ी के समर्थकों की हिंसक कार्रवाई प्रचारित किया जाना निरधार और झूठ है ।

रिपोर्ट में बुरुगुलिकेरा कांड को झारखंड में गुजरात से आयातीत सतिपति पंथ के बढ़ते प्रभाव की देन बताते हुए कहा गया है कि झारखंड के आदिवासियों की पत्थलगड़ी परंपरा से इसका कोई लेना देना नहीं है । जांच रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अभी का पत्थलगड़ी आंदोलन सीधे तौर पर सतिपति पंथ से प्रेरित -  प्रभावित है । जिसका मूल कारण यहाँ के आदिवासी समाज का निरंतर शोषण का होना तथा उनके जंगल-ज़मीन और प्रकृतिक संसाधनों पर किया जा रहा हमला है। उनकी पारंपरिक स्वशासन प्रणाली को कमजोर कर अब तक की सभी सरकारों द्वारा उन्हें विकास की मुख्य धारा से काटकर लगातार वंचित और उपेक्षित बनाए रखना भी शामिल है।

 गौर तलब है कि रघुवर शासन काल में ही पिछले एक वर्ष से गुजरात के सतिपति पंथ के लोगों द्वारा गाँव गाँव पत्थलगड़ी कर सरकार की योजनाओं का बहिष्कार करने का आह्वान कर सबसे वोटर आईडी राशन आधार कार्ड इत्यादी वापस कराने का वृहत अभियान चलाया गया था । प्रभावित आदिवासियों को यह समझाया गया कि वे भारत के असली मालिक हैं और वास्तविक भारत सरकार हैं। जिन्हें वर्तमान सरकारों के किसी भी विकास से कोई मतलब नहीं है । इस प्रक्रिया से बुरुगुलीकेरा गाँव के अधिकांश मुंडा आदिवासियों को सतिपति पंथ का कट्टर समर्थक बना दिया गया। इस अभियान का विरोध करनेवालों को आदिवासी समाज का दुश्मन करार दिया गया । बुरुगुलीकेरा कांड विरोधियों को सबक सिखाने की ही परिणति घटना है.
 
सामाजिक संगठनों की जांच रिपोर्ट के वायरल होते ही इस चर्चा ने भी काफी तूल पकड़ लिया है कि जब गुजरात में भी भाजपा का शासन है और झारखंड में उसी के शासन काल में सतिपति पांथ ने गुजरात से आकर यहाँ के आदिवासियों में अपना प्रभाव फैलाया तो दोनों ही प्रदेशों की सरकारें क्यों नहीं खामोश रहीं ? झारखंड के आदिवासी समाज में भी सतिपति पंथ की कारगुजारियों को लेकर अब बहसें तेज हो रहीं हैं।  

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