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झारखंड : एचईसी को बचाने के लिए ग़ैर-भाजपा राजनीतिक दलों ने छेड़ी सियासी मुहिम

रांची से सटे हटिया क्षेत्र में स्थित एचईसी पूरे एशिया का एकमात्र ऐसा भारी इंजीनियरिंग उद्योग संस्थान है जहां एक ही परिसर में फोर्जिंग एवं कास्टिंग, भारी मशीन बिल्डिंग, भारी मशीन टूल्स, हेवी मशीन डिजायनिंग व ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट सहित कई अन्य किस्म के विभाग स्थित हैं। इसने देश के औद्योगिक विकास के लिए भिलाई, बोकारो, राउरकेला और विजाग जैसे स्टील प्लांटों को निर्मित किया है। 
HEC

कभी देश के औद्योगिक विकास में ‘मातृ उद्योग (मदर इंडस्ट्री) की पहचान और पूरे एशिया में भारत की औद्योगिक शान कहे जान वाला एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन), आज अपनी अंतिम सांसें गिनने को मजबूर हो गया है। इसे बचाने के लिए झारखंड की भाजपा इकाई को छोड़ शेष सभी राजनीतिक दलों ने भी अपनी मुहिम शुरू कर दी है।      

इसकी शुरुआत 10 दिसंबर को रांची में प्रदेश के वाम दल समेत सभी गैर भाजपा राजनीतिक दलों ने ‘राजभवन मार्च’ निकाला। इसके माध्यम से माननीय राज्यपाल महोदय को विशेष ज्ञापन सौंपकर मरणासन्न हाल में पहुंचा दिए गए एचईसी को बचाने के लिए तत्काल कारगर हस्तक्षेप की मांग की।

 मार्च के दौरान आयोजित सभा को संबोधित करते हुए सभी दलों ने खुलकर आरोप लगाया कि मोदी सरकार एक साज़िश के तहत एचईसी को “बीमार उद्योग” बना रही है ताकि मौका मिलने पर उसे “निजी कंपनी घरानों” के हाथों बेच सके। आरोप यह भी लगाया गया कि केंद्र सरकार की गिद्ध-दृष्टि एचईसी की विशाल ज़मीन और उसकी क़ीमती मशीनों पर लगी हुई है। इसलिए पिछले 13 महीनों से यहाँ के सभी मजदूरों का वेतन भुगतान नहीं किया जा रहा है। वहीं यहाँ कार्यरत सभी श्रेणी के इंजीनियर व अधिकारी भी अपने बकाया वेतन व एचईसी बचाने की मांग को लेकर पिछले कई दिनों से लगातार आन्दोलनरत हैं।

एचईसी के अधिकारी-इन्जिनियरों का आन्दोलन 38वें दिन भी जारी रहा। 10 दिसंबर को भी हर दिन की भांति ‘मातृ उद्योग एचईसी बचाओ’ का नारा लगते हुए ‘ताली-थाली’ बजाते हुए परिसर स्थित धुर्वा गोलचक्कर से विरोध मार्च निकालकर एचईसी मुख्यालय के समक्ष विरोध प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारी अधिकारी-इंजीनियरों ने कहा कि यदि ताली और थाली बजाने से कोरोना जैसी महामारी दूर हो सकती है, तो एचईसी को भी बचाया जा सकता है।

दूसरी ओर, इस ‘भारी उद्योग कारखाना’ के सभी श्रेणियों के मजदूर और उनकी यूनियनें भी एचईसी को बचाने व 13 महीनों के बकाया वेतन की मांग को लेकर लगातार संघर्षरत हैं। अब इन्हीं मांगों को लेकर इस वृहत उद्योग संस्थान के अधिकारी व इंजीनियरों का भी सड़क उतर जाना स्थिति की गंभीरता को दर्शा रहा है।

सनद रहे कि पिछले दिनों एचईसी के आन्दोलनकारी अधिकारी व इंजीनियरों के प्रतिनिधिमंडल ने एचईसी को बचाने की गुहार दिल्ली स्थित केन्द्रीय भारी उद्योग मंत्रालय के समक्ष भी लगायी। इस सन्दर्भ में मंत्रालय के केन्द्रीय सचिव से विशेष वार्ता भी की, लेकिन उसका कोई ठोस सकारात्मक निष्कर्ष नहीं निकला। वहां से लौटकर अपने आन्दोलन-धरना स्थल पर आयोजित विरोध सभाओं के माध्यम से ये ऐलान किया कि केंद्र सरकार व प्रबंधन के अड़ियल रवैये के खिलाफ हमारा आन्दोलन जारी रहेगा। उन्होंने मोदी सरकार पर स्पष्ट आरोप लगाते हुए कहा है कि- हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन अभी भयावह स्थितियों से गुजर रहा है। इसकी वजह है कि मौजूदा सरकार की सरकारी उद्योग विरोधी नीतियाँ, जो अभी इस उद्योग के पुनरुद्धार में मुख्य बाधक हैं। इसके चलते ही इस भारी उद्योग संस्थान के पास न वर्किंग कैपिटल है और न ही संस्थान का स्थायी निदेशक अभी तक बहाल किया जा सका है। इसलिए सरकार के हिडेन-एजेंडे को सफल बनाने के लिए ही यहाँ का मौजूदा प्रबंधन भी पूरी तरह से संस्थान को धीरे-धीरे मृत बनाने पर तुला हुआ है। 

गौरतलब है कि इस मामले में सबसे खतरनाक पहलू यह है कि विगत 11 नवम्बर को ही केंद्र सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय ने बिलकुल साफ़ लहजे में ये कह दिया था कि गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहे एचईसी को बचाने के लिए कोई आर्थिक सहयोग नहीं करेगा। मंत्रालय ने इसके निदेशकों को अपने संसाधन से ही कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करने और अपने कर्मियों को वेतन भुगतान करने को कहा है। साथ ही इस संस्थान को भविष्य में चलाने का रोड मैप भी देने को कह दिया है। 

एचईसी को बचाने की मुहिम शुरू करने वाले सभी वामपंथी दलों समेत सभी गैर भाजपा दलों ने एक स्वर से यह भी कहा है कि एचईसी झारखंड ही नहीं इस देश का गौरव है जिसे ख़त्म करने पर आमादा केंद्र की मोदी सरकार की कोई भी चाल नहीं कामयाब होने दी जाएगी। जो एक ओर, तो अरबपति कॉर्पोरेट घरानों के करोड़ों करोड़ के कर्जे माफ़ कर उन्हीं के हाथों देश के सभी सरकारी उपक्रमों को बेचने को आतुर है। तो दूसरी ओर, ऐसी ही नीतियाँ बना रही है कि जिससे देश के सभी सरकारी उपक्रम व उद्योग धीरे-धीरे मृत प्राय हो जाएं। ताकि आसानी से उन्हें निजी-कॉर्पोरेट कंपनियों के हवाले कर दिया जाए।

देखा जाए तो झारखंड की राजधानी रांची से सटे हटिया क्षेत्र में अवस्थित एचईसी आज भी पूरे एशिया का एकमात्र ऐसा भारी इंजीनियरिंग उद्योग संस्थान है जहां एक ही परिसर में फोर्जिंग एवं कास्टिंग, भारी मशीन बिल्डिंग, भारी मशीन टूल्स, हेवी मशीन डिजायनिंग व ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट सहित कई अन्य किस्म के विभाग स्थित हैं। इसने देश के औद्योगिक विकास के लिए भिलाई, बोकारो, राउरकेला और विजाग जैसे स्टील प्लांटों को निर्मित किया है। कोयला खनन क्षेत्र में 75% उपकरणों का निर्माण से लेकर अन्तरिक्ष विज्ञान केंद्र इसरो के लिए लौन्चिंग पैड, देश के परमाणु उर्जा, रेलवे वैगन, भारी विद्युत ऊर्जा क्षेत्र की मशीनें तथा रक्षा क्षेत्र के उपकरणों का निर्माण कर विदेशी मुद्रा की लगातार बचत की है। 

कैसी विडंबना है कि हाल के विगत चुनावों में भाजपा ने अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए इस वृहत औद्योगिक संस्थान के पुनरुद्धार की हमेशा ही दुहाई देकर यहाँ के बहुसंख्य कामगारों से भारी संख्या में वोट लिए हैं। इसके बूते उसने रांची संसदीय क्षेत्र और हटिया विधानसभा क्षेत्र से अपने उम्मीदवारों को जीता लिया। आज उसी पार्टी की केंद्र में बैठी सरकार यहाँ के मजदूरों से छल करते हुए अपनी जवाबदेही से साफ़ मुकर रही है। अब वो यहाँ के मतदाताओं से कह रही है कि हम आपके हैं कौन?

ये सही प्रतीत हो रह है कि एचईसी को बचाने का सवाल अब इस संस्थान के सभी मजदूर और अधिकारी इंजीनियरों तक ही नहीं सीमित रह गया है, बल्कि अब यह इस क्षेत्र के व्यापक लोगों का भी अपना मुद्दा बनता जा रहा है। इसलिए संस्थान के बाहर भी ‘मातृ उद्योग HEC करे यही पुकार, मुझे बचाओ भारत सरकार और HEC को बचाना है, भारत को आत्मनिर्भर बनाना है... जैसे नारों का शोर व्यापक होकर ये संकेत दे रहा है कि आने वाले दिनों में केंद्र में काबिज़ सरकार के ‘सरकारी उद्योग-उपक्रम विरोधी नीतियों और रवैये’ के खिलाफ एक बड़ा जन विक्षोभ तैयार हो रहा है। 

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