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कानपुर देहात:  बुलडोज़र का डर, मां-बेटी की जलकर मौत और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

एक ओर अपने घर को बचाने की जुगत में महिला और उसकी बेटी की जान चली गई, तो दूसरी ओर नेताओं के अनर्गल बयान उनकी सोच को साफ़ कर रहे हैं।
kanpur
फ़ोटो साभार: PTI

बुलडोज़र प्रेमी उत्तर प्रदेश सरकार को शायद अब तो समझ आ ही गया होगा, कि लोकतंत्र में जोड़ने वाले उपकरण कामयाब हैं, तोड़ने वाले नहीं। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बुलडोज़र से मुहब्बत आम जनता पर इतनी भारी पड़ती जा रही है, कि लोग अपने परिवार को सदस्यों को खोते जा रहे हैं।

कानपुर देहात में हुआ अग्निकांड तो ताज़ा उदाहरण के तौर पर सबके सामने है ही, जहां आतिक्रमण के नाम पर एक परिवार की झुग्गी ढहाने के लिए बुलडोज़र रवाना तो कर दिया गया, लेकिन इसके और क्या नतीजे हो सकते हैं, ये नहीं सोचा गया। आख़िरकार घर की महिला और उसकी बेटी को आग की लपटों ने राख का ढेर बनाकर रख दिया।

इस अग्निकांड के बाद जहां पूरा उत्तर प्रदेश सहमा हुआ है, तो कानपुर देहात के मड़ौली गांव में  घटना को इतने दिन बीत जाने के बाद भी मातम ख़त्म ही नहीं हो रहा।

इस घटना में क्या हुआ क्या नहीं इस बारे में बात करने से पहले ये ढाई मिनट का वीडियो ज़रूर देखिए... जो उस ट्वीटर हैंडल से शेयर किया गया, जिसे हिंदू राष्ट्र सपोर्ट के नाम से चलाया जा रहा है, साथ ही योगी आदित्यनाथ का भी नाम लिखा गया है, इसके बावजूद अपनी पोस्ट में योगी आदित्यनाथ के लिए लिखना कि-  ‘’आपको इंसान तो माफ कर देगा लेकिन ऊपर वाला कभी माफ नहीं करेगा’’ बताता है कि घटना कितनी वीभत्स थी।

(नोट: इस तरह के ट्विटर हैंडल को हम प्रमोट नहीं करते, लेकिन इसे यहां लगाने का उद्देश्य यही बताना है कि कैसे योगी आदित्यनाथ और उनके बुलडोज़र के सपोर्टर भी इस घटना को लेकर उनके ख़िलाफ़ हो गए हैं। साथ ही यह इस तरह के समर्थकों के दोहरे रुख़ को भी साफ़ करता है। जो अब तक दलितों-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो रहे बुलडोज़र के इस्तेमाल पर ख़ुशियां मनाते रहे हैं: संपादक)

इस ढाई मिनट के वीडियो को देखकर एक बात तो साफ है, कि अगर वहां मौजूद प्रशासन के लोग इस महिला को बचाना चाहते तो बहुत आराम से बचाया जा सकता था, लेकिन ये सवाल सबको कठघरे में खड़ा कर रहा है कि इतनी बड़ी टीम मौजूद होने के बाद भी उस महिला की कैसे जलकर मौत हो गई।

इस वीभत्स घटना के बाद भी सरकार कितनी संवेदशील है, इस बात का अंदाज़ा ऐसे लगाइए... उत्तर प्रदेश की सरकार में प्रतिभा शुक्ला राज्य मंत्री हैं, और उनके पति अनिल शुक्ला वारसी पूर्व सांसद हैं। जो कह रहे हैं कि मामले में पूरी ग़लती पीड़ित परिवार की ही थी, तभी दोनों की मृत्यु हो गई। हालांकि ये कम है, अनिल शुक्ला तो ये भी कह रहे हैं कि औरतों की टेंडेंसी ही आग लगाने की होती है, और एक बार नहीं यही बात कई बार दोहरा रहे हैं, आप भी सुन लीजिए इनका ज्ञान...

वाकई भाजपा के भीतर बैठे नेता कमाल हैं, ये कभी कपड़ों से उनका धर्म पता कर लेते हैं, चाल-ढाल देखकर जान लेते हैं कि मनचला है या नहीं, और महिलाओं को तो आग लगाने वाला घोषित कर ही दिया है।

वैसे इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप और राजनीति ने भी खूब जगह बना ली है, इसके कई कारण है, एक तो ये परिवार ब्राह्मण है, दूसरा इस परिवार का बड़ा बेटा बजरंग दल में सह संयोजक है।

घटना बहुत दुखद और वीभत्स है इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन उच्च कही जाने वाली जाति और बजरंग दल की जुगलबंदी इस बात के लिए काफी है कि मामले में कार्रवाई बहुत तेज़ी से हो। वरना आपने पहले भी उत्तर प्रदेश में बुलडोज़र के जरिए घरों को गिरते और परिवारों को बिलखते तो देखा ही होगा।

एक बात जो जानकारी के लिए यहां बता देनी ज़रूरी है, कि मृतक महिला प्रमिला दीक्षित का बेटा जो बजरंग दल का सह संयोजक भी है, उसपर ग्राम समाज की ज़मीन पर कब्ज़ा करने का गंभीर आरोप है। इस बात की शिकायत परिवार के ही एक सदस्य ने की थी, जिसके बाद एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद के नेतृत्व में ज़िला प्रशासन की टीम वहां अतिक्रमण हटाने पहुंची थी।

इससे पहले भी आपको याद होगा कि जब साल 2022 के जून महीने में प्रायागराज में जावेद अहमद के घर को हिंसा का आरोपी बताते हुए गिरा दिया गया था, जबकि यह मकान जावेद अहमद के नाम पर था ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी परवीन फातिमा को पिता की संपत्ति के रूप में मिला था।

ऐसे ही और न जाने कितनी बार गैर ज़िम्मेदार तरीकों से बुलडोज़र के ज़रिए उन लोगों के आशियाने ढहा दिए गए, जो निर्दोष थे या तब तक जिनके आरोप साबित भी नहीं हुए थे।

हालांकि कानपुर बुलडोज़र और अग्निकांड में भी सरकार ने कैसे अपनी ग़लतियों को प्रशासन पर ढकेल कर पल्ला झाड़ दिया, समझने वाली बात है। एक एसडीएम, चार राजस्व अधिकारियों और एक दर्जन से ज़्यादा पुलिस कर्मचारियों समेत 39 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। आईजी प्रशांत कुमार ने बताया कि इस मामले में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को भी निलंबित कर दिया गया है।

इस मामले में जांच के लिए दो सदस्यीय एसआईटी गठित की गई है, इसमें कानपुर मंडल आयुक्त राजशेखर और एडीजी कानपुर जोन आलोक सिंह शामिल हैं। अब यह एसआईटी एक हफ्ते के अंदर मामले पर अपनी पूरी रिपोर्ट शासन को सौंपेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

ख़ैर... कानपुर देहात कांड में इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, कि सरकार पर पीड़ित परिवार का ब्राह्मण होना भारी पड़ गया है, जिसके कारण भाजपा का वोट बैंक भी प्रभावित हो सकता है। क्योंकि इस घटना के बाद देखने को मिला है कि ख़ुद भाजपा और योगी आदित्यनाथ के सहयोगी भी इनके ख़िलाफ होने शुरू हो गए हैं। और इससे पहले भी यूपी में ठाकुर बनाम ब्राह्मण लॉबी की जंग जारी थी।

इस मसले पर जब हमने समाजवादी पार्टी प्रवक्ता प्रोफेसर धर्मेंद्र यादव से सवाल किया- कि क्या उस महिला ने ख़ुद को आग लगाई थी?

उनका जवाब था कि कोई भी ख़ुद को जलाना नहीं चाहता और ये जांच का विषय है, लेकिन सवाल ये है कि अगर उसने ख़ुद को जलाया भी तो वहां मौजूद प्रशासन ने उसे बचाया क्यों नहीं?

प्रोफेसर धर्मेंद्र यादव ने कहा कि बुलडोज़र कभी भी न्यायपालिका नहीं हो सकता है, ये हमेशा न्यायालय को बाईपास कर इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि कोई अपराधी भी होता है तो सीधे उसे मारते नहीं है, जैसा प्रशासन वहां करने पहुंचा था, उससे बात करते हैं, जानकारी लेते हैं।  

अब एक नज़र पूरे मामले पर भी डाल लेते हैं...

कानपुर देहात ज़िला मुख्यालय से क़रीब 25 किलोमीटर दूर मड़ौली गांव में 13 फ़रवरी की दोपहर क़रीब तीन बजे एसडीएम मैथा ज्ञानेश्वर प्रसाद, रूरा एसओ दिनेश कुमार गौतम, क़ानूनगो, लेखपाल अशोक चौहान और पुलिस की टीम अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोज़र लेकर कृष्ण गोपाल दीक्षित की झोपड़ी गिराने पहुंचे थे। कृष्ण गोपाल दीक्षित का परिवार इसका विरोध कर रहा था, और कह रहा था कि अभी इस ज़मीन का मामला कोर्ट में चल रहा है, इसपर अधिकारियों और परिवार के सदस्यों के बीच काफ़ी विवाद हुआ।

बाद में बात इतनी बढ़ गई कि मां और बेटी आग की लपटों में जलने लगीं जिनकी चीखें उस भीड़ में किसी को सुनाई नहीं पड़ीं और कुछ ही देर में सब कुछ जलकर राख हो गया।

घटना के 24 घंटे बीत जाने के बाद जब लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा था, उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने महिला के बेटे शिवम दीक्षित से वीडियो कॉल पर बात की, और संभव मदद देने का वादा किया।

फिलहाल पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये मुआवजे का एलान किया गया है।

दूसरी ओर इस पूरे मामले में राजनीति भी तेज़ हो गई है, क्योंकि सभी राजनीतिक दलों को पता है कि अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में विपक्षी दल इस पूरे मामले को ब्राह्मण विरोधी भाजपा का रूप दे रहे हैं।

अगर इतिहास पर नज़र जालें तो बुलडोज़र के डर से शायद ही किसी महिला और उसकी बेटी की जलकर मौत हुई होगी, लेकिन आज के वक्त में ऐसी घटना शासन-प्रशासन पर सीधे सवाल खड़े करती हैं, और उन्हें ये सोचने के लिए विवश करती है, कि आप किसी का घर गिराकर एक सदस्य को सज़ा नहीं देते, बल्कि उसके पूरे परिवार को सज़ा देते हैं, उनकी पूरी दुनिया उजाड़ देते हैं।

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