कानपुर: सरकारी शेल्टर होम में 7 गर्भवती बालिकाओं का मामला क्यों तूल पकड़ रहा है?
“…जांच के नाम पर सब कुछ दबा दिया जाता है लेकिन सरकारी बाल संरक्षण गृहों में बहुत ही अमानवीय घटनाएं घट रही हैं।”
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का ये पोस्ट सरकारी बालिका गृहों से सामने आ रही घटनाओं के संदर्भ में है। प्रियंका ने लिखा कि कानपुर के सरकारी बाल संरक्षण गृह में 57 बच्चियों की कोरोना जांच के बाद हैरान करने वाला तथ्य सामने आया है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के कानपुर में सरकारी बालिका गृह में रहने वाली 57 लड़कियों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है। जांच के दौरान सात लड़कियाँ गर्भवती भी पाई गईं जबकि एक एचआईवी संक्रमित बताई जा रही है। इस घटना के सामने आने के बाद एक ओर प्रशासन जहां विपक्ष पर अनावश्यक तूल देने की बात कर रहा है तो वहीं विपक्ष लगातार बालगृहों में गड़बड़ी की बातों को लेकर सरकार से सवाल कर रहा है।
क्या है पूरा मामला?
कानपुर शहर का स्परूपनगर बालिका संरक्षण गृह एकाएक 21 जून को सुर्खियों में आ गया। इसकी वजह एक साथ बड़ी संख्या में कोरोना मामलों की पुष्टि तो थी ही साथ में उन संक्रमितों में से कुछ के गर्भवती होने की खबर भी थी। मीडिया में जैसे ही ये खबर ब्रेक हुई हंगामा मच गया। कोरोना पॉजिटिव से बड़ा मामला लड़कियों के गर्भवती होने का बन गया। सोशल मीडिया पर बालगृहों को लेकर तरह-तरह की बातें लिखी जाने लगी, तो वहीं इस मामले को लेकर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ गए।
जानकारी के मुताबिक इस बालिका संरक्षण गृह में एक लड़की को बुखार आने के बाद 12 जून को पहली बार कोरोना की जांच की गई थी। जिसमें पांच में से चार लड़कियों की रिपोर्ट निगेटिव आई, जबकी एक कोरोना पॉज़िटिव निकली। इसके बाद यहां रह रही अन्य 97 लड़कियों के सैंपल भी लिए गए थे जिनमें अब 57 की रिपोर्ट पॉज़िटिव आई है।
इस संरक्षण गृह में लगभग 170 बालिकाएं इस समय मौजूद हैं, जिसमें 69 पॉक्सो मामले से सम्बन्धित पीड़िताएं हैं जो नाबालिग हैं। पॉक्सो मामले से ही संबंधित सात लड़कियों के गर्भवती होने की बात सामने आई है।
प्रशासन क्या कर रहा है?
सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले पर जिलाधिकारी से बात की है। तो वहीं राज्य महिला आयोग ने भी इस संबंध में संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी से रिपोर्ट तलब की है।
मामले के तूल पकड़ने के बाद रविवार, 21 जून को ही देर शाम कानपुर मंडल के आयुक्त डॉक्टर सुधीर बोबड़े और कानपुर नगर के ज़िलाधिकारी डॉक्टर ब्रह्मदेवराम तिवारी ने इस मामले में यह स्पष्टीकरण दिया कि लड़कियां यहां आने के पहले से ही गर्भवती थीं।
कानपुर के ज़िलाधिकारी डॉक्टर ब्रह्मदेवराम तिवारी ने मीडिया को बताया, "इस संरक्षण गृह में कुल 57 बालिकाएँ कोविड पॉज़िटिव पाई गई हैं। सात बालिकाएं गर्भवती पाई गईं जिनमें पांच कोरोना संक्रमित भी हैं जबकि दो में कोरोना संक्रमण नहीं है। जो पांच लड़कियां कोविड पॉज़िटिव हैं वो आगरा, एटा, कन्नौज, फ़िरोज़ाबाद और कानपुर नगर की बाल कल्याण समिति के संदर्भ से यहां आई थीं। सभी लड़कियां यहां आने से पहले ही गर्भवती थीं और इसकी पूरी जानकारी प्रशासन के पास मौजूद है।"
भ्रामक खबरों को न बढ़ावा दें- महिला आयोग
राज्य महिला आयोग ने इस घटना के संबंध में जानकारी साझा करते हुए कहा कि राजकीय समप्रेक्षण गृह, बालगृह में कोई भी प्रवेश न्यायालय, मजिस्टेट एंव सीडब्लूसी के आदेशों के अनुसार ही किया जाता है। साथ ही प्रवेश के समय मेडिकल परीक्षण भी जरूरी होता है। ऐसे में आयोग ने विपक्ष और अन्य सभी लोगों से गलत तथ्यों और खबरों को न बढ़ावा देने की अपील की है।
इस पूरे मामले अपना पक्ष रखते हुए उत्तर प्रदेश महिला आयोग की उपाध्यक्ष सुषमा सिंह ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “स्वरूप नगर बालिका गृह में जितनी भी गर्भवती बालिकाएं हैं ये पॉक्सो मामले से संबंधित बाल कल्याण समिति (सीडब्लूसी) के आदेशानुसार आगरा, कन्नौज, फिरोजाबाद, एटा, कानपुर नगर से आई हैं। लड़कियां शेल्टर होम आने से पहले ही गर्भवती थीं। ये जहां से आई हैं, वहां अभियुक्तों के ख़िलाफ़ केस भी दर्ज होंगे। ऐसे किसी भी मामले में पूरे रिकॉर्ड के बाद ही उन्हें किसी भी बालगृह में रखा जाता है। जल्द ही उनके रिकॉर्ड संबंधी सभी कागज़ातों को हासिल कर लिया जाएगा, जिसके बाद सभी को सही और सटीक जानकारी दी जा सकेगी। फिर अपने आप दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”
सुषमा सिंह ने आगे बताया कि राज्य के सभी सरकारी बालगृहों में समय-समय पर जांच की जाती है। इसलिए किसी तरह की गलत अटकलें लगाना या भ्रामक खबरें फैलाना ठीक नहीं है। प्रदेश के तमाम जिलों में संचालित महिला और बालिका गृहों में ज्यादातर वो लड़कियां रखी जाती हैं जो किसी न किसी मामले में कानूनी तौर पर संलग्न होती है। उनका कोर्ट में केस चल रहा होता है, बलात्कार पीड़ित, मानव तस्करी में छुड़ाई गई लड़कियां या किसी अन्य मामलों के तहत उन्हें सजा या राहत के तौर पर यहां रखा गया होता है। ऐसे मामलों में सेंटर के पास सभी रिकॉर्ड होते हैं लेकिन ये सब कॉफिडेंशियल होते हैं।
एडवा की मांग- संरक्षण गृह के प्रबंधकों को हटाया जाए
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) उत्तर प्रदेश ईकाई की अध्यक्ष नीलम तिवारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली ने इस मामले में एसएसपी कानपुर ने मुलाकात कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए संरक्षण गृह के प्रबंधकों को तत्काल हटाने की बात कही है।
एडवा की उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली के अनुसार, “कानपुर के संवासिनी गृह में कई कोरोना के मामलों का मिलना अपने-आप में बद इंतजामी का प्रमाण है। खबरों के मुताबिक संक्रमितों में नाबालिग गर्भवती बच्चियां भी शामिल हैं, इसमें एक एचआईवी और एक हेपेटाइटिस सी से ग्रसित है। प्रशासन के लोगों को इस बारे में कुछ नहीं पता कि आखिर लड़कियां कब से संरक्षण गृह में हैं। ये लापरवाही नहीं अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए हमारी मांग है कि लड़कियों का बयान तुरंत दर्ज किया जाए। अगर कोई बलात्कार जैसी घटना सामने आती है तो कार्रवाई हो साथ ही प्रबंधक की गतिविधियों की जांच हो और अधीक्षक को उसके पद से हटाया जाए।”
“बाल गृहों में बच्चियों का संरक्षण नहीं, भक्षण किया जाता है”
इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी की नेता ऋचा सिंह ने कहा कि ऐसे बाल संरक्षण गृहों को बंद कर देना चाहिए, जहां बच्चियों का संरक्षण नहीं बल्कि उन्हें बंधक बनाकर उनका भक्षण किया जाता है।
ऋचा के अनुसार उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों भी बालिका संरक्षण गृहों के नाम पर रैकेट चलाने वालों का खुलासा हुआ था और अब कानपुर की घटना सामने आई है। ये संगठित हैवानियत है।
आपको बता दें कि इससे पहले बिहार के मुजफ़्फ़रपुर शेल्टर होम का भयानक सच सबके सामने आया था, जिससे पूरा देश हिल गया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश में देवरिया, आगरा समेत कई शेल्टर होम, बालिका संरक्षण गृहों में संचालन की गड़बड़ी, अनियमितता और यौन शोषण की खबरें आ चुकी हैं। जिसे लेकर लोगों में पहले ही डर और गस्से का माहौल बना हुआ है।
बालगृहों से लगातार आ रही गड़बड़ियों के सवाल पर सुषमा सिंह कहती हैं, “प्रदेश में संचालित सभी बालगृह सरकारी नहीं हैं, कई गैर सरकारी संगठनों द्वारा भी संचालित होते हैं। ऐसे में सभी का निरीक्षण संभव नहीं है। जहां से हमें कोई भी शिकायत मिलती है, हम उस पर तुरंत कार्रवाई करते हैं। बालिका गृहों में पहले से ही जगह के अपेक्षा अधिक लड़कियां रह रही हैं। हम उनके रहने के बेहतर इंतजामों में रात दिन लगे हुए हैं। आयोग बच्चियों की बेहतर देख-रेख के लिए प्रतिबद्ध है। हम समय-समय पर बालगृहों का दौरा भी करते हैं। सभी खामियों को दूर करने की हमारी कोशिश लगातार जारी है।”
विपक्ष ने क्या कहा?
कानपुर का मामला सामने आने के बाद प्रियंका गांधी ने फेसबुक पर एक पोस्ट के माध्यम से प्रदेश सरकार पर निशाना साधा। प्रियंका ने लिखा, “मुजफ्फरपुर (बिहार) के बालिका गृह का पूरा किस्सा देश के सामने है। यूपी में भी देवरिया से ऐसा मामला सामने आ चुका है। ऐसे में पुनः इस तरह की घटना सामने आना दिखाता है कि जांच के नाम पर सब कुछ दबा दिया जाता है लेकिन सरकारी बाल संरक्षण गृहों में बहुत ही अमानवीय घटनाएं घट रही हैं।
वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस पूरे मामले पर जांच की मांग की है।
अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, “कानपुर के सरकारी बाल संरक्षण गृह से आई खबर से उत्तर प्रदेश में आक्रोश फैल गया है। कुछ नाबालिग लड़कियों के गर्भवती होने का गंभीर खुलासा हुआ है। इनमें 57 कोरोना व एक एड्स ग्रसित भी पाई गई हैं। इनका तत्काल इलाज हो। सरकार शारीरिक शोषण करने वालों के खिलाफ तुरंत जांच बैठाए।
चिंनताजनक है प्रदेश के अनाथालयों और बालगृहों की स्थिति
गौरतलब है कि ये किसी से छुपा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में अनाथालयों, बालगृहों की हालत खस्ता है। 2018 में जारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के आकंड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में केवल 34.7 प्रतिशत ही बाल देखभाल संस्थान जेजे एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत हैं। वहीं, मात्र 39.41 प्रतिशत बाल गृहों में ही बच्चों के दाखिले के विवरण की जानकारी मौजूद है।
बच्चों के अधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संस्था क्राई के प्रमोद ने न्यूज़क्लिक को बताया, “हमारा मुख्य उद्देश्य सरकार के समक्ष ऐसे अनाथालयों, बालगृहों को उजागर करना है, जो जेजे एक्ट के तहत पंजीकृत नही हैं और निश्चित ही उत्तर प्रदेश के आंकड़े निराश करने वाले हैं। इसके चलते अनियमितता भी ज्यादा है।”
एक आकलन के मुताबिक उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के माध्यम से प्रदेशभर में 58 राजकीय संरक्षण गृह संचालित होते हैं, जबकि निजी संस्थाओं के जरिए 175 संरक्षण गृह चल रहे हैं। इनमें से कुछ संरक्षण गृह बंद भी हो चुके हैं। तो वहीं कई बाल गृह ऐसे भी हैं जो जुवेलाइन जस्टिस एक्ट 2015 के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं।
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