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दिल्ली में काशिफ़ ने लगाई 'मोहब्बत की दुकान', दिया इंसानियत का पैग़ाम

सोशल मीडिया पर वायरल एक तस्वीर में एक शख़्स नवरात्रि और रमज़ान में 'फ्री फ्रूट सेवा' चलाते दिखाई दिए। उनके ठेले पर पहुंचे हिंदू और मुसलमान दोनों ने फ्री में व्रत और रोज़े का सामान लिया। सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा, “यही है असली हिंदुस्तान”
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ईस्ट दिल्ली के विनोद नगर में बीजेपी काउंसलर (Councillor) रविंदर सिंह नेगी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वे नवरात्रि के दिन मीट की दुकानों को बंद करने का 'आदेश' सुनाते दिख रहे हैं। इस वीडियो में वे मीट बेचने वाले दुकानदारों को तुंरत शटर बंद करने का आदेश दे रहें हैं। वे ऐसा क्यों कर रहे थे? क्या वे किसी सरकारी आदेश का पालन करवा रहे थे ?

गुज़ारिश या आदेश ?

रविंदर सिंह ऐसा क्यों कर रहे थे ये कोई पहेली नहीं है, लेकिन वीडियो वायरल होने के बाद The Hindu के साथ उनकी बातचीत में उन्होंने कहा कि किसी भी दुकान को ज़बरदस्ती बंद नहीं करवाया था बल्कि गुज़ारिश की थी। हालांकि उनकी 'गुज़ारिश' वाला वीडियो सोशल मीडिया पर मौजूद है जिसमें वे कह रहे हैं :

''नवरात्रों में दुकान बिल्कुल नहीं खुलेगी, नवरात्रों में दुकान बंद रहेगी आदेश है, शटर नीचे करो''

काशिफ़ क़ुरैशी की कोशिश

जिस वक़्त सोशल मीडिया पर रविंदर सिंह का वीडियो वायरल हो रहा था उसी दौरान एक और तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी, ये तस्वीर दिल्ली के वजीराबाद के संगम विहार की थी। जिसमें दो लोग एक ठेला लगाए दिखाई दे रहे थे और उस ठेले पर एक बैनर लगा था और उसपर लिखा था : 'ख़िदमत फॉर ऑल' की तरफ़ से ''नवरात्रि और रमादान (रमज़ान) पर फ्री फ्रूट सेवा''। साथ ही इसपर एक नाम और नंबर भी लिखा था। नाम था - काशिफ़ क़ुरैशी।

कोशिश पर फ़िदा हुए लोग

इस तस्वीर को शेयर करने वालों ने बहुत ही ख़ूबसूरत बातें लिखी। किसी ने लिखा :

''मोहब्बत ज़िंदाबाद, इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं''

तो किसी ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए राहत इंदौरी का ख़ूबसूरत शेर लिखा :

''मैं जब मर जाऊं मेरी एक अलग पहचान लिख देना 

लहू से पेशानी पर मेरी हिंदुस्तान लिख देना'' 

इस ख़ूबसूरत मिसाल को पेश करने वाले काशिफ़ का दावा है कि उन्हें पूरे भारत और भारत के बाहर से भी फोन आए और फोन करने वालों ने उन्हें शुक्रिया कहा।

काशिफ़ की इस कोशिश के पीछे क्या सोच थी ये जानने के लिए हमने उनसे बात की। उन्होंने बहुत सी बातें कहीं लेकिन जिस बात को बताते हुए वे बेहद उत्साहित लगे वो कुछ यू थी :

''जैसे घर पर हर तरह के लोग होते हैं वैसे ही हमारे देश में हर तरह के लोग हैं और नफ़रत फैलाने वाले लोग हमेशा से बहुत कम रहे हैं, लेकिन उनकी बातें जल्दी ही लोगों में फैल जाती हैं। जबकि मोहब्बत का पैग़ाम फैलाने वाले लोग बहुत ज़्यादा हैं, लेकिन वे ख़ामोश रहते हैं। पर यह बात भी सच है कि जो लोग हिम्मत जुटा कर आगे आते हैं, भले ही वे बहुत थोड़े कुछ लोग क्यों न हों उनका असर भी बहुत अच्छा और पॉज़िटिव दिखता है। देखिए, जैसे मैंने अकेले ये किया और पूरे भारत से मेरे पास कॉल आईं, मेरे पास तमिलनाडु से, आंध्र-प्रदेश से, उत्तराखंड से कॉल आईं। इसके अलावा व्हाट्सएप कॉल आईं, सोशल मीडिया पर बहुत ही अच्छा रिस्पॉन्स मिला, यहां तक की भारत के बाहर से भी मुझे रिस्पॉन्स मिल रहा है।''

आख़िर कौन हैं काशिफ़ क़ुरैशी और वे क्या करते हैं ?

काशिफ़ पुरानी दिल्ली में रहते हैं, बिज़नेस करते हैं और कोशिश करते हैं कि इंसानियत की राह पर चलते हुए लोगों की ख़िदमत करें। वे बताते हैं कि हर महीने वे अपनी कमाई का एक हिस्सा ज़रूरतमंद लोगों के लिए निकाल देते हैं। वे कभी अकेले तो कभी अपने दोस्तों के साथ मिलकर इंसानियत की ख़िदमत के काम करते ही रहते हैं, कभी गर्मियों में पीने के पानी का इंतज़ाम करते हैं तो कभी सर्द रातों में चाय का, कभी किसी ज़रूरतमंद के लिए राशन का इंतज़ाम करते हैं तो कभी किसी ज़रूरतमंद के लिए आगे आ जाते हैं। इसी कड़ी में जैसे ही उन्हें पता चला कि रमज़ान और नवरात्रि के शुरू होते ही फलों की कीमतों में ख़ासा इज़ाफ़ा हो गया है और लोगों को मुश्किल हो रही है तो उन्होंने कुछ करने का मन बना लिया। और इसी कोशिश की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।

thelaकाशिफ़ की 'फ्री फ्रूट सेवा'

हमने काशिफ़ से पूछा कि आख़िर क्या है इस वायरल तस्वीर की कहानी?

काशिफ़ का जवाब : ये तस्वीर संगम विहार, दिल्ली-84 (वजीराबाद) के मेन रोड की है। जैसे ही नवरात्रे और रमज़ान शुरू हुए तो मुझे पता चला कि फल की मंडी में फल महंगे हो गए हैं, तो अचानक ही मेरे दिमाग में बात आई कि उस इलाक़े में ज़्यादातर दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स किराए के घरों और पीजी में रहते हैं और स्टूडेंट्स में तो मुस्लिम और हिंदू दोनों ही हैं इसलिए उनके व्रत भी होंगे और रोज़े भी, तो उन्हें फल ख़रीदने में दिक्कत हो रही होगी इसलिए मैंने फ्रूट मार्केट में फलों के दाम के बारे में पता किया तो वाक़ई दाम बहुत ही बढ़े हुए थे।

काशिफ़ ने बताया कि उन्होंने बाज़ार में बढ़े फलों के दामों को देखते हुए एक ठेले वाले से बात की जिसने उन्हें कुछ डिस्काउंट दे दिया और पहले दिन उन्होंने 28 दर्जन केले बांटे। लेकिन बाद में उनके ठेले पर व्रत का सामान और खजूर भी दिखाई दिए।

सवाल: आपकी इस कोशिश का कैसा असर दिखा?

काशिफ़: शुरू में तो मुझे थोड़ी शर्म आ रही थी कि कैसे करूंगा फिर एक आइडिया आया कि बैनर लगा देता हूं उसे पढ़कर लोग आ जाएंगे, फिर सोचा कि हो सकता है कि कुछ लोग शर्म कर सकते हैं तो उनके लिए मैंने उस बैनर पर अपना फोन नंबर लिख दिया, ताकि अगर कोई शर्म या झिझक महसूस करे तो वे मुझे फोन कर सकते हैं जिसके बाद मैं उनके घर फल पहुंचा दूंगा। कुछ लोग बैनर देखकर ख़ुश हो रहे थे लेकिन कुछ लोग ख़ामोशी से चले जा रहे थे। जब मेरे पास एक शख़्स आए और जब उन्हें पता चला कि मैं नवरात्रे और रमज़ान में फ्री फल बांट रहा हूं तो सबसे पहले उनके चेहरे पर एक बहुत ही ख़ास स्माइल आई और फिर उन्होंने मेरी तरफ़ देखकर कहा कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। लोगों ने बहुत तारीफ़ की, बहुत से लोगों ने आशीर्वाद दिए। एक बुर्जुग महिला की बात मेरे ज़ेहन में अब भी रह गई, वे क़रीब 90 साल की होंगी, वो मेरे पास आईं और कहा कि वजीराबाद, संगम विहार में पूरी ज़िंदगी में मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा।

imageकाशिफ़ लोगों को व्रत और रोज़ा खोलने के लिए फ्री फल बांटते हुए

सवाल: एक तरफ़ रमज़ान में तरावीह (रमज़ान में रात के वक़्त पढ़ी जाने वाली लंबी नमाज़) नमाज़ पढ़ने को लेकर कुछ सियासत दिखी, वहीं दूसरी तरफ़ आपकी ये कोशिश इसे आप कैसे देखते हैं?

काशिफ़: मेरा मानना है कि एक घर में जब लोग रहते हैं तो ग़लतफ़हमियां हो जाती हैं, हम भारत में रहते हैं और यहां हर मज़हब के लोग हैं और गंदी सियासत की वजह से किसी ना किसी बात पर ग़लतफ़हमी हो जाती है, मेरा मानना है कि कुछ कमी मुसलमानों की तरफ़ से भी रह जाती है क्योंकि वे इस ग़लतफ़हमी को दूर करने की कोशिश नहीं कर पाते। बातचीत से सब ठीक हो जाता है लेकिन बातचीत बहस में उलझ जाती है जो ग़लत है।

सवाल: क्या आपको लगता है कि ये दौर मुसलमानों के लिए मुश्किल है?

काशिफ़: मुझे नहीं लगता कि ये मुश्किल वक़्त है। हम गर्मी में पानी की व्यवस्था करते हैं (कम से कम हफ़्ते में एक बार) और हर धर्म के लोग आकर पानी पीते हैं, सर्दियों में हम सड़क पर चाय की व्यवस्था करते हैं, इस तरह की कोशिश हमने गुरुद्वारे में की है, मंदिरों में की है, और चर्च में भी की लेकिन हमें कहीं से भी नेगेटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला, बल्कि लोग हमें बिठाते हैं, हमारे साथ बैठते हैं, चाहे पुजारी जी हों या गुरुद्वारे के हों, यहां तक की बजरंग दल के लोग भी जब सामने से गुज़रते हैं तो तारीफ़ कर के ही जाते हैं।

आज नवरात्रे ख़त्म हो गए, लेकिन काशिफ़ की ख़िदमत का सिलसिला अब भी जारी रहेगा, उन्होंने बताया कि अब वे ज़रूरतमंद रोज़ेदारों के घर राशन पहुंचाने का काम करेंगे।

काशिफ़ की बातें कई मायने में बहुत ही ख़ास हैं, जैसा कि हम सबने देखा था कि रमज़ान शुरू होते ही उत्तर-प्रदेश के मुरादाबाद में तरावीह पढ़ने को लेकर बजरंग दल ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद दिल्ली से सटे नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी दो सोसाइटी में नमाज़ पढ़ने को लेकर विवाद हो गया था। आज भी अब तक कुछ एक जगह से ऐसी ख़बरें आ चुकी हैं। ऐसे माहौल में भी काशिफ़ को लगता है कि उम्मीद अब भी बची हुई हैं। शायद ही ऐसा कोई दिन गुज़रता होगा जब मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा की ख़बर न आती हो। मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा में कौन सा राज्य आगे है और कौन सा पीछे ये आकंड़ों की पड़ताल का विषय हो सकता है लेकिन हर दिन जिस तरह की ख़बरें आती हैं उन्हें देखकर तो साफ है कि ज़्यादातर मामलों में शिकार (पीड़ित) मुसलमान और दलित ही होते हैं। 

इसे भी पढ़ें: हेट स्पीच रोकने में नाकाम सरकारों को सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा

इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट की हेट स्पीच के मद्देनज़र की गई टिप्पणी बहुत अहम है। कोर्ट ने कहा कि बयान दिए जाते हैं कि ''पाकिस्तान चले जाओ...लेकिन सच्चाई यह है कि उन्होंने इस देश को चुना''

जिन्हें कहा जाता है कि ''पाकिस्तान चले जाओ उन्होंने इस देश को चुना'' लेकिन आज उनके साथ जो सलूक किया जा रहा है वो चिंताजनक है। हम सब जानते हैं कि ये सारी नफ़रत सियासत की भट्टी का वे ईंधन है जिसकी मौजूदा दौर में मांग बढ़ गई है लेकिन काशिफ़ को सिर्फ़ अपने फर्ज से मतलब है उनकी इस कोशिश को देखकर जिगर मुरादाबादी का शेर याद आता है जिसमें उन्होंने कहा था:

उन का जो फ़र्ज़ है वे अहल-ए-सियासत जानें

मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे

काशिफ़ बहुत ख़ास हैं, उनकी कोशिश बहुत शानदार है और उससे भी ज़रूरी उनकी वे सोच है जो मानती है कि गिलास हमेशा आधा भरा होता है। ऐसा लगता है इस माहौल में काशिफ़ जैसे लोग ही हैं जो दावा कर सकते हैं कि वे मोहब्बत की दुकान लगाए बैठे हैं। 

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