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कश्मीर में माँयें, अपने बेटों की एक झलक के लिए तरस रही हैं

न्यूज़क्लिक की ओर से कामरान यूसुफ ने ऐसी कुछ माँओं से भेंट की है, जिनकी आस अपने उन बेटों से मिलने पर टिकी हुई है, जिन्हें देश भर की तमाम जेलों में कहीं बहुत दूर ठूंस दिया गया है।

श्रीनगर : कई कश्मीरी माँयें अपने उन बेटों की वापसी की राह देख रही हैं, जिन्हें सशस्त्र बलों द्वारा 5 अगस्त की घोषणा, जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य की संवैधानिक स्थिति में रद्दोबदल करके रख दिया गया, से पहले ही उठा लिया गया था। गिरफ्तार किए गए लोगों को देश भर के विभिन्न राज्यों की दूर-दराज की जेलों में डाल दिया गया था।

जम्मू कश्मीर कोएलिशन ऑफ़ सिविल सोसायटी (जेकेसीसीएस-JKCCS) के अनुसार, 412 लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए-PSA) के तहत आरोपित किया गया था, जिसके तहत बिना किसी मुकदमे के इन्हें दो साल तक जेलों में बंद रखा जा सकता है। पिछले साल के 5 अगस्त के बाद से ये लोग गिरफ्तार हैं, और इनमें से ज्यादातर को घाटी के बाहर की जेलों में रखा गया है।
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जैना
बेटे का नाम: लतीफ़ अहमद दार
गिरफ्तारी की तारीख: 1 अगस्त
निवासी: बेल्लो, पुलवामा


80 वर्षीया ज़ैना कमरे में लड़खड़ाते हुए चलते हुए चुपचाप एक कोने में बैठ जाती हैं, और अपने बेटे की तस्वीर निकालकर उसे बिना पलकें झपकाये एक टक निहारती रहती हैं। थोड़ी देर के बाद एक कपड़े का टुकड़ा लेकर तस्वीर के चारों और लपेट देती हैं और तस्वीर को चूमते हुए, वापस अपने स्थान पर रख देती हैं।
वे विलाप करते हुए कहती हैं ''उन्होंने मेरे दिल को छलनी कर दिया है। मेरे दिल को चैन नहीं है। वो मेरी आँखों की रौशनी है। मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूँ ”। वे अपने बेटे को पिछले छह महीनों से नहीं देख पाई हैं, जबसे उसे सेना के जवानों ने उसके दक्षिणी कश्मीर स्थित बेल्लो गाँव से उठा लिया था।

“मेरे पास अब सिर्फ ख़ुदा के नाम का ही आसरा है। मुझे नहीं मालूम कि मुझे क्या करना चाहिए। मैं बेबस हूँ” वे कहती हैं।जिस समय उनके बेटे को सेना उसके घर से उठा रही थी, जो दक्षिणी कश्मीर के बेल्लो गाँव में स्थित है, उस समय वह घर पर मौजूद नहीं थीं।

अगली सुबह वह अपने घर पहुँची और वहाँ से सीधे राजपोरा पुलिस स्टेशन अपने बेटे को देखने दौड़ पड़ीं “जब मैंने उसे देखा, तो उसने जैसे सब ठीक-ठाक होने का नाटक किया। जबकि उसका चेहरा पीला पड़ चुका था और उसकी आवाज बता रही थी कि उसकी हालत ठीक नहीं थी। हमने शायद ही आपस में कोई बातचीत की हो। हम एक-दूसरे की सूरत को देखते रहे और रोते रहे ” वे बताती हैं।

वहाँ पर मौजूद पुलिस के अफसरों ने उसे आश्वस्त किया कि उसके बेटे को जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ।इसके बजाय पहले उसे सेंट्रल जेल और फिर आगरा स्थानांतरित कर दिया गया, “मैं सेंट्रल जेल गई, जहाँ पर हर तरह से मेरा मुआयना किया गया, करीब-करीब नंगा करने की कोशिश हुई। वे बताती हैं किस प्रकार से “उन्होंने मेरे कपड़ों के अंदर झाँककर देखा और मुझसे कहा कि मैं अपनी फेरन (घुटने तक की एक लंबी पोशाक जिसे कश्मीरी लोग सर्दियों के दौरान पहनते हैं) को उतार कर अलग रख दूँ। ये सब बेहद अपमानजनक था। मैंने अपने बच्चे की खातिर ये सब बर्दाश्त किया। अपने बच्चे की खातिर अगर ऐसा हजारों बार करने के लिए कहा जाएगा तो भी मैं संकोच नहीं करुँगी।”

वे बताती हैं कि इसके बाद उनसे कहा गया कि उसे 15 अगस्त के बाद रिहा कर दिया जाएगा। "मैं उसकी वापसी की तैयारियों में जुट गई, लेकिन वह आजतक लौटकर नहीं आया है।"
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नसीमा
बेटे का नाम: मैमून पंडित,  उम्र: 18 साल
निवासी: करीमाबाद
गिरफ्तारी की तारीख: 4 अगस्त


56 वर्षीय नसीमा मायूस नजर आती हैं। वे थाने में अपने बेटे से मिलने की हिम्मत तक नहीं जुटा सकीं। वे कहती हैं कि 4 अगस्त को आर्मी उनके घर की दीवार फांदकर घर में घुस आई थी, "उन्होंने मुझको और मेरी बेटियों को एक कमरे के अंदर बंद कर दिया था, और मेरे बेटे के बारे में पूछताछ में लगी थी।"आखिरी बार उसने अपने 18 साल के बेटे को तब देखा था जब उसने उनका दरवाजा खोला था और उनकी सुरक्षा की गुहार लगाई थी, "उसके बाद से मैं उसे नहीं देख पाई हूँ''

वे कहती हैं कि जब भी उन्हें अपने बेटे की याद आती है तो उनका सिर भारी होने लगता है, दिल की धडकनें बढ़ जाती हैं  “नसों में तनाव आने लगता है और सर भारी होने लगता है। मैं दिन रात आंसुओं में डूबी रहती हूँ, और कोशिश करती हूँ कि इसका किसी को पता न चले। हकीकत तो ये है कि मेरे परिवार के सारे ही लोग चुपके-चुपके रोते हुए ही दिन गुज़ार रहे हैं।”

वे याद करते हुए कहती हैं कि मेरा बेटा किस प्रकार से नंगे फर्श पर सो रहा होगा, जेहन में यह ख्याल उन्हें रात भर जगाये रखता है। वे लगता है खुद से ही बात कर रही हों  '' एक माँ कैसे आरामदेह बिस्तर पर सोने का आनन्द ले सकती है, अगर उसके बच्चे को सोने के लिए फर्श नसीब हुई हो। और ये ख्याल मुझे रात भर जगाए रखता है।”

नसीमा का कहना है कि इससे पहले उसका बेटा एक दिन के लिए भी अपने घर से दूर नहीं रहा था। वे याद करते हुए कहती हैं कि “मेरे बिना वह एक दिन भी नहीं बिता सकता था। मेरे सिवाय उसकी पसंद-नापसंद के बारे में कोई नहीं जानता। इसके बारे में सोचकर ही मेरा कलेजा चाक-चाक हुआ जाता है ।”

दिन में तीन बार तो वह अपने कपड़े बदला करता था, “मैंने सुना है कि वहाँ पर उसे न तो अच्छा खाने को मिलता है और ना ही पहनने को कपड़े। वो वहाँ किस हाल में होगा ” वे पुकारती हैं, इस बात से बाखबर कि दूर जेल तक पहुँचने के लिए किया जाने वाला सफर उनके वश की बात नहीं है।
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अतिका
बेटा: फैसल असलम मीर
गिरफ्तारी की तारीख: 5 अगस्त
निवासी: मैसूमा, श्रीनगर


55 साल की अतीका अपने मिट्टी के बने घर के बरामदे में बैठी रहती है और उसकी टकटकी दरवाजे की ओर इस उम्मीद से लगी रहती है कि किसी दिन उसका बेटा आकर उसे खोलेगा और वहाँ से उसके सामने आकर खड़ा हो जायेगा। वे कहती हैं कि उनकी जिन्दगी में उनके बेटे के सिवाय कोई नहीं है। एक दशक पहले ही पति की मौत हो चुकी थी, और उनका जीवन अपने इस बेटे के साथ गुजर रहा था। वही एकमात्र सदस्य था जिसके बल पर घर की गुजर बसर हो रही थी।

5 अगस्त के दिन अतिका ने उसे मैसूमा बाजार में किसी काम के सिलसिले में भेजा था, लेकिन वहाँ से वह वापिस लौटकर नहीं आ सका। इसके बजाय अपने घर और बाजार के ही बीच कहीं पर फैसल को पुलिस उठा कर ले गई थी। वे कहती हैं "वह मेरे लिए दवा खरीदने के लिए बाहर निकला था, लेकिन रास्ते में ही केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने उसे उठा लिया था,"'

उसके बेटे पर बेहद क्रूर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। 30 साल के फैसल असलम मीर का अपना खुद का व्यवसाय था।उसकी माँ के अनुसार उसे तीन दिनों के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन में हिरासत में रखा गया था और उसके बाद उसे 21 अगस्त तक के लिए श्रीनगर सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था, और वहाँ से उसे उत्तर प्रदेश के आगरा की जेल में डाल दिया गया।आँखों में आंसुओं के साथ वे कहती हैं कि “मैं जिन्दा हूँ तो सिर्फ अपने बेटे की खातिर। वर्ना मेरे जीने की कोई वजह नहीं बची है.”
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सारा बानो
बेटा: फैयाज अहमद,  उम्र: 26
निवासी: पाहू, पुलवामा
गिरफ्तारी की तारीख: 4 अगस्त
 

पुलवामा शहर के दक्षिणी हिस्से से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रहने वाली सारा बानो, जो अपनी उम्र के 40 के दशक के अंतिम पड़ाव पर हैं, बेहद शोकाकुल हालत में मिलीं। वे आर्तनाद करते हुए कह कर रही हैं “मैं तुम्हारे दूर चले जाने को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूँ, कृपा करके घर वापस आ जाओ। मैं अंदर ही अंदर से अपनी मौत मर रही हूँ। मैं किसी को नहीं बताती लेकिन मैं खेतों में सूखी घास के ढेर के पीछे, बाथरूम में और तुम्हारे कमरे में बैठकर चुपचाप रोती रहती हूँ।“ जिन सैकड़ों लोगों को पीएसए के तहत आरोपित किया गया है उनमें से एक 26 वर्षीय फैयाज भी है, जिसे उसकी फाइल के अनुसार ‘पत्थर-बाजी’ के आरोप में यूपी की बरेली में स्थानांतरित कर दिया गया था।

फैयाज़ कश्मीर विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद अरबी में अपनी पीएचडी को पूरा करने में लगा हुआ था।सारा बानो का कहना है कि फ़ैयाज़ को पहले से चले आ रहे आरोपों के तहत गलत तरीके से फांसा गया था, “वह तो खुद को व्यस्त रखने के लिए ट्रैक्टर के साथ लगा रहता था, जो कि उसका पार्ट-टाइम काम था।

आज इस बात को छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन तबसे वह एक बार भी अपने बेटे से नहीं मिल सकी हैं। वे आगे बताती हैं कि “पिछले छह महीनों से मेरा बेटा ना तो कोई काम और न ही अपनी पढाई कर सका है। और उसके जेल में होने के कारण हमारी आर्थिक स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है।”
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रूबीना
बेटा: मुन्नर-उल-इस्लाम
निवासी: करीमाबाद, पुलवामा
गिरफ्तारी की तारीख: 4 अगस्त


45 साल की रुबीना अपने बेटे की आखिरी झलक को याद करती हैं जब उसे सेना के लोग उसके पुलवामा के करीमाबाद इलाके के घर से ले जा रहे थे। “मुझे उसके चेहरे की सिर्फ आधी झलक ही देखने को मिल सकी थी। मुझे आज भी याद है कि डर के मारे उसके चेहरे की रंगत काली पड़ चुकी थी। वो चेहरा अभी भी मेरी आँखों के सामने तैरता रहता है” वे कहती हैं। वह उसके पीछे भागी-भागी गई भी, लेकिन सेना के जवानों ने उसे डरा कर दूर कर दिया था।

“उन्होंने दरवाजे पर कुछ गोलियां दागीं थीं। मैं सहमकर रह गई थी। वे उसे मुझसे दूर लेकर चले गए” वे कहती हैं।रुबीना के आर्थिक हालात ऐसे नहीं हैं कि वो उससे मुलाक़ात करने की सोच सके। वे कहती हैं “मैं गरीब हूँ, और यात्रा कर सकने के बोझ उठाने की हालत में नहीं हूँ।” वे आगे जोड़ते हुए कहती हैं “मेरे पास जो भी जमा-पूंजी थी, वो खत्म हो चुकी है।"

पिछले चार दिनों से रुबीना अपने बेटे से मुलाक़ात कर पाने की उम्मीद में हर जगह से पैसा इकट्ठा करने के लिए चक्कर काट रही हैं। वे कहती हैं कि “मेरी गाय बीमार पड़ी है और मेरी हालत ऐसी है कि उसके इलाज तक के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। सिवाय अल्लाह के नाम के मेरे पास कुछ नहीं बचा है।"
 
उनका विश्वास है कि उसके बेटे को सेना वाले इसलिये उठाकर ले गए होंगे क्योंकि वो लम्बे बाल रखा करता था। “उसके बाल चाकू से काटे गए थे। भला उसके बालों से उन्हें कैसे नुकसान पहुँच सकता था? ” वे पूछती हैं, और साथ में जोडती हुई कहिती हैं कि “वो बेकसूर हैं। आखिर उसे गिरफ्तार करके सरकार को क्या हासिल होने जा रहा है?”
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जाना
बेटा: बिलाल अहमद दार
गिरफ्तारी का स्थान: करीमाबाद

75 वर्षीय जाना का कहना है कि उनके पास अपने बेटे की वापसी का इंतजार करने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं बचा है। वे कहती हैं कि “अगर मैं उससे जेल मिलना भी चाहूँ तो भी मेरी सेहत मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं देती। मुझे पीठ और घुटनों की तकलीफ है।"
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गुलशन
बेटा: शमीम अहमद,  उम्र: 32 वर्ष।
गिरफ्तारी:  4 अगस्त को रत्नीपोरा, पुलवामा के अपने घर से।


70 वर्षीया गुलशन को कई बीमारियों ने जकड़ रखा है, जिसके चलते वे घर से बाहर नहीं निकल पातीं। वे कहती हैं “मैंने अपने बेटे को पिछले छह महीने से नहीं देखा है। मुझे पीठ और घुटनों की तकलीफ है, जिसके कारण मैं लंबी दूरी की यात्रा नहीं कर सकती।“

अपने बेटे की गैरमौजूदगी को लेकर वे कहती हैं कि वे अंदर ही अंदर मौत मर रही हैं, और जब कभी अकेले में होती हैं तो रोती रहती हैं। वे कहती हैं “मेरे पास खुदा से मदद की गुजारिश के अलावा कोई चारा नहीं है। जब भी उसकी याद आती है मैं रो लेती हूँ।“ वे सवाल करती हैं “आखिर सरकार हमारे बेटों को हमसे क्यों छीन रही है? क्या उसे पता नहीं कि किसी परिवार के लिए उसका बेटा कितना मायने रखता है?”

गुलशन कहती हैं कि उन्हें समझ नहीं आता कि वे अपनी 5 साल की पोती को क्या जवाब दे, जो यह पूछती रहती है कि उसके पिता कहाँ हैं। “मेरे पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं है। और मुझे यकीन है कि सरकार के पास भी इसका कोई जवाब नहीं होगा“ वे बोल पडती हैं।

ख़राब स्वास्थ्य के अलावा जो एक और चीज है जो उन्हें अपने बेटे से मिलने से दूर रखती है, वह है उनके परिवार की आर्थिक स्थिति। वे कहती हैं कि “एक यात्रा का खर्चा ही कम से कम 10,000-20,000 रुपये तक का होगा। इतना पैसा मैं कहाँ से जुटा पाऊँगी? एक वही तो था जिसके सहारे ये घर चलता था।“सभी माँओं ने सरकार से गुजारिश की है कि वह तत्काल उनके बेटों को रिहा करे, क्योंकि वे बूढी और लाचार हैं और इस हालत में नहीं हैं कि उनकी सिर्फ एक झलक पाने के लिए इतनी लंबी दूरी तय कर पायें।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

In Kashmir, Mothers Long for a Glimpse of Their Sons

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