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कश्मीर : सरकार छात्रों को “चारे” की तरह इस्तेमाल कर रही है

जम्मू-कश्मीर बोर्ड की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्णय घाटी में मौजूद भय और अनिश्चितता के माहौल को ध्यान में रखे बिना लिया गया है, फ़ैसले के मुताबिक़ परीक्षा 29 अक्टूबर से शुरू होनी है।
Kashmir: Students Allege
'प्रतीकात्मक तस्वीर' साभार: The Indian Express

यह थोड़ा अजीब सा लग सकता है, कि जम्मू-कश्मीर के स्कूल शिक्षा बोर्ड ने उच्चतर माध्यमिक स्तर तक की परीक्षाओं को अगले सप्ताह से शुरू करने की घोषणा कर दी है। इन परीक्षाओं को जारी रखने का निर्णय इस तथ्य के बावजूद लिया गया है कि 5 अगस्त की घोषणा के बाद से छात्रों ने कश्मीर में स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया हुआ है, जिस घोषणा के ज़रीये जम्मू-कश्मीर को हासिल विशेष संवैधानिक दर्जे को ख़त्म कर दिया गया था।

जब से सरकार ने परीक्षाओं के कार्यक्रम की घोषणा की है, "एक रहस्यमयी आग" ने दक्षिण कश्मीर के दो स्कूलों को जला कर राख में बदल दिया है। कुछ स्थानों पर निजी वाहनों की आवाजाही में सुधार के अलावा, पिछले अस्सी दिनों से इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, दुकान और अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठान बंद पड़े हैं, और सड़कों से सार्वजनिक परिवहन नदारद है।

भले ही सरकार ने घाटी की तालाबंदी होने के पहले महीने के भीतर ही स्कूल और कॉलेज खोलने की घोषणा की थी, लेकिन छात्र कॉलेज नहीं गए हैं। "भय और अनिश्चितता के इस माहौल" में परीक्षा आयोजित करने के निर्णय से छात्रों में यह विश्वास पैदा हो गया है कि सरकार उन्हें चारे के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है ताकि वे सामान्य स्थिति का नकली ढोल पीट सकें।

एक तरफ़ छात्र परीक्षाओं का राजनीतिकरण करने के लिए सरकारी अधिकारियों को दोषी ठहरा रहे हैं और दूसरी तरफ़ बच्चों के माता-पिता उनके जीवन को लेकर भयभीत हैं। 12वीं कक्षा के छात्र हादी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “स्थिति तनावपूर्ण और अप्रत्याशित है। कुछ भी हो सकता है। हम परीक्षा में बैठने से डरते हैं। वे हमें अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।"

हादी ने कहा, कि सुरक्षा के मुद्दे के अलावा घाटी के भीतर इंटरनेट सुविधाओं की कमी और सार्वजनिक परिवहन के न चलने सहित अन्य समस्याएं भी चिंता का बड़ा कारण हैं। उन्होंने कहा, ''इंटरनेट के अभाव में हम बहुत सारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हम इंटरनेट के इस्तेमाल से पढ़ सकते हैं, मन में बसे संदेह को दूर कर सकते हैं और यहां तक कि आसानी से पाठ को याद भी कर सकते हैं। दूसरी बड़ी बात यह है कि सार्वजनिक परिवहन अभी भी सड़कों से नदारद है। हम परीक्षा केंद्र तक कैसे पहुंचेंगे? हमने अपने सिलेबस का केवल 60 प्रतिशत हिस्सा ही पूरा किया है। सरकार को व्यावहारिक रूप से सोचना चाहिए और कम से कम परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम को कम करना चाहिए।"

उनकी बात का समर्थन करते हुए 10वीं कक्षा के छात्र रियान फ़िरदौस ने न्यूज़क्लिक को बताया कि परीक्षाओं के लिए "माहौल अनुकूल नहीं है" और "छात्र इम्तिहान के लिए मानसिक रूप से तैयार भी नहीं हैं।" इन्हें भी अधूरे सिलेबस को लेकर चिंता खाए जा रही है। उन्होंने कहा, “अधिकारियों को कम से कम पाठ्यक्रम को कम कर देना चाहिए क्योंकि दसवीं कक्षा एक महत्वपूर्ण परीक्षा होती है। हमारा पूरा का पूरा भविष्य 10वीं कक्षा में हमारे प्रदर्शन पर निर्भर करता है।'' उन्होंने आगे कहा, ''स्कूलों ने सिर्फ़ हमें अध्ययन सामग्री सौंपी है और बाक़ी सब कुछ हमारे ऊपर छोड़ दिया है। उन्होंने हमें कुछ भी नहीं सिखाया है और न ही सिलेबस से जुड़ी हमारी शंकाओं को दूर किया है। मुझे अपनी शंकाएँ दूर करने के लिए ट्यूशन कक्षाओं में जाना पड़ा।”

बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन के ताज़ातरीन आंकड़ों के अनुसार, क़रीब 1.6 लाख छात्र 1,502 केंद्रों में आने वाले इम्तिहान में बैठेंगे। कक्षा 10वीं की परीक्षाएं 29 अक्टूबर से शुरू होंगी, जिसमें 65,000 उम्मीदवार 413 केंद्रों पर उपस्थित होंगे, जबकि कक्षा 12वीं की परीक्षाएं 30 अक्टूबर से शुरू होंगी, जिसमें 633 केंद्रों पर 48,000 छात्र परीक्षा देंगे। कक्षा 11वीं के लिए परीक्षाएं 10 नवंबर से आयोजित की जाएंगी, जिसमें 456 केंद्रों पर 47,000 उम्मीदवार परीक्षा देंगे।

ये केवल छात्र ही नहीं हैं जो इस दुविधा का सामना कर रहे हैं, बल्कि उनके माता-पिता भी समान रूप से इन हालात के लिए चिंतित हैं। रसूल, जो एक पिता हैं ने एक स्थानीय दैनिक अख़बार से कहा, "वे (सरकार)एक या दो महीने के लिए इन परीक्षाओं को टाल सकते थे। वे इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं। हमें अपने बच्चों के जीवन की चिंता है और हमें उनकी जान का डर सताता है लेकिन हमारे पास कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है। अधिकारी छात्रों को परीक्षा में बैठने के लिए मजबूर कर रहे हैं। यदि छात्र परीक्षा में बैठने से इनकार करते हैं, तो उनका एक साल बर्बाद हो जाएगा।”

हालांकि पुलिस ने दावा किया है कि वे सुरक्षा का माहौल सुनिश्चित करेंगे, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि परीक्षा केंद्रों के आसपास सुरक्षा बलों की तैनाती से छात्रों के भीतर डर बढ़ेगा। पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने 23 अक्टूबर को श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा, “हम बच्चों के उत्पीड़न के लिए नहीं हैं, हम निश्चित रूप से उनका समर्थन करना चाहते हें ताकि कोई भी उनमें भय पैदा करने की कोशिश न करे। हम सभी चाहते हैं कि परीक्षाएं सुचारू रूप से संपन्न हो और जहां ज़रूरत है वहाँ पुलिस की मदद की जाएगी। परीक्षाएँ छात्रों के हित में हैं, और छात्रों के माता-पिता के हित में भी हैं। हम बच्चों को बताना चाहते हैं कि उन्हें अपना साल बर्बाद नहीं करना चाहिए और उनसे परीक्षा केन्द्रों पर पहुंचने का अनुरोध करना चाहिए।”

लेकिन, परीक्षा के दिन तक स्थिति सामान्य हो जाएगी छात्र इस संभावना से इनकार कर रहे हैं, और वे ख़ुद भी डर के साए में जी रहे हैं।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आपने नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Kashmir: Students Allege Govt of Using Them as ‘Cannon Fodder’

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