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केदारनाथ : सोने-तांबे का विवाद सरकार के प्रति कम होते भरोसे को दर्शाता है

लोगों को लगता है कि सरकार वही करती है जो वह चाहती है, इसलिए सोने की परत चढ़ाने के विवाद को लेकर दिए गए स्पष्टीकरण पर लोगों को भरोसा नहीं है।
kedarnath
फ़ोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह पर लगी सोने की परत के कथित तौर पर गायब होने का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। 125 करोड़ रुपए के सोने की 'धोखाधड़ी' के आरोप तब सामने आए जब सोशल मीडिया यूजर्स ने धार्मिक हस्तियों और अन्य लोगों को व्यापक रूप से प्रसारित वीडियो में यह दावा करते हुए पाया कि उत्तराखंड के मंदिर शहर में सोने की जगह पीतल ने ले ली है।

बढ़ते आक्रोश ने पर्यटन राज्य मंत्री सतपाल महाराज को "लापता सोने" की समयबद्ध जांच का आदेश देने पर मजबूर कर दिया है। इन आरोपों से कई सवाल खड़े होते हैं कि राज्य सरकार केदारनाथ मंदिर और उसके आसपास के इलाके का किस तरह विकास कर रही है।

केदारनाथ मंदिर में तीन हजार पुजारी विभिन्न तरह की इबादतें करते हैं। इन पुजारियों में से अधिकांश ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उम्मीदवार, अजय अजेंद्र की अध्यक्षता वाली बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के पिछले साल लिए गए फैसलों का विरोध किया था, जिसमें केदारनाथ मंदिर की दीवारों पर चांदी की प्लेटों को सोने की प्लेटों से बदलने का निर्णय लिया गया था। उन्होंने कहा था कि यह उन तपस्वी परंपराओं के खिलाफ है जिनका भगवान शिव प्रतीक हैं।

चार धाम महापंचायत के उपाध्यक्ष संतोष त्रिवेदी कहते हैं कि, “हमारी आपत्तियों को खारिज कर दिया गया और बीकेटीसी ने दीवारों पर सोना की परत चढ़ा दी। आश्चर्य की बात यह है  कि 2022 में मंदिर के दरवाजे बंद होने से ठीक एक दिन पहले यह काम किया गया था। इसलिए, अधिकांश पुजारियों को यह देखने का भी मौका नहीं मिला कि वास्तव में किया क्या   गया था।” 

जनता को बताया गया कि सोना चढ़ाने की लागत 125 करोड़ रुपये है। त्रिवेदी कहते हैं, "हमें इस बारे में बहुत कम जानकारी थी कि [इस पैसे का] दानकर्ता कौन था क्योंकि वह गुमनाम रहना चाहता था।"

16 जून को, त्रिवेदी ने चेताया कि जब वे मंदिर में दाखिल हुए, तो उन्होंने पाया कि सोना पीतल में बदलचुका था। सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित हुए एक वीडियो में उन्होंने आरोप लगाया कि, "रातोंरात, 125 करोड़ रुपये का सोना पीतल में कैसे बदल गया।" उन्होंने "गायब सोने" की जिम्मेदारी बीकेटीसी पर डाल दी है।

त्रिवेदी की शिकायत अन्य पुजारियों और कई केदारनाथ और बद्रीनाथ निवासियों के गुस्से को दर्शाती है, जो कहते हैं कि उन्हें अपने शहरों में घट रही घटनाओं के बारे में जानकारी नहीं है। कस्बों को स्पष्ट रूप से "आध्यात्मिक स्मार्ट शहरों" में बदल दिया गया है, लेकिन इस प्रक्रिया में विश्वास की आधारशिला टूट गई है।

एक अन्य वरिष्ठ पुजारी, जिन्हें शुक्लाजी के नाम से जाना जाता है, पुनर्विकास कार्य से नाराज हैं, उनका कहना है कि यह सब केंद्र सरकार के इशारे पर हो रहा है।

शुक्लाजी कहते हैं कि, ''केदारनाथ की गरिमा नष्ट हो गई है।'' उनके मुताबिक तीर्थयात्रा के दरवाजे सभी के लिए खोलने की परंपरा खत्म हो रही है। उदाहरण के लिए, शहर की पुरानी धर्मशालाएं आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए स्वच्छ और सस्ते आवास उपलब्ध कराती थीं। “उन्हें तोड़ दिया गया है और उनकी जगह पांच मंजिला होटल बनाए जा रहे हैं जो प्रति रात 20,000 रुपये तक चार्ज करते हैं।” वे वह कहते कि सरकार ने सरस्वती नदी के किनारे 850 फुट की एक विशाल त्रि-स्तरीय दीवार और मंदाकिनी नदी के किनारे 350 फुट की एक और दीवार भी बनाई है। शुक्लाजी कहते हैं कि, ''यह सरकार इतनी मूर्ख है कि जो मान लेती है कि  दीवार बाढ़ या हिमनद भूस्खलन का सामना कर सकती है।''

वे इस बात से भयभीत थे कि कैसे मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के संगम पर एक घाट पहले बनाया गया, फिर तोड़ दिया गया, लेकिन अधिकारियों ने इसे फिर से बनाना शुरू कर दियाहै। शुक्लाजी कहते हैं कि, ''प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत रूप से इस पुनर्विकास कार्य की निगरानी कर रहे हैं, पैसा पानी की तरह बह रहा है।''

अलकनंदा नदी के दोनों किनारों पर बने घाटों को तोड़ा जा रहा है, और जैसे ही इलाके में भारी बारिश होगी, निवासियों को डर है कि नदी अपने किनारों को तोड़ देगी और शहर में बाढ़ ला देगी।

शुक्लाजी कहते हैं कि, “इस शहर पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है क्योंकि यह ऐसे भूवैज्ञानिक बिंदु पर स्थित है जो इसे बहुत अधिक भूस्खलन के प्रति संवेदनशील बनाता है। इसके बजाय, चेतक हेलीकॉप्टरों के ज़रिए बुलडोजर लाए गए हैं, जो मंदिर के ऊपर की भूमि को समतल करने के लिए चौबीसों घंटे काम करते हैं। क्या सरकार डीजल के धुएं के प्रति अंधी है, जो केवल हिमनदों के पिघलने को तेज करेगा?”

बीकेटीसी के चेयरपर्सन अजेंद्र अजय ने स्पष्ट किया है कि मंदिर को सजाने के लिए लगभग 14.38 करोड़ रुपये मूल्य का केवल 23 किलोग्राम सोना इस्तेमाल किया गया था। सोने को तांबे की चादरों पर लगाया गया था, जिसकी कीमत 29 लाख रुपये थी और इसका वजन 1,001 किलोग्राम था। अजेंद्र ने बताया कि आईआईटी रूड़की के सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट की देखरेख में सोना चढ़ाया गया था।

सच तो यह है कि किसी ने भी उनके इन स्पष्टीकरणों पर विश्वास नहीं किया है। अब राज्य सरकार की जांच से ही सच्चाई सामने आएगी। चूंकि ऐसा कहा जा रहा है कि मंदिर का निर्माण 1050 ईस्वी के आसपास हुआ था और यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की देखरेख में है, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने खुद को शर्मनाक स्थिति में पाते हुए दावा किया है कि मंदिर पर सोने की परत चढ़ी हुई थी जिस पर एएसआई की सहमति थी। लेकिन एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उन्हें सोना चढ़ाने की योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करण महरा ने भी यही आरोप लगाया जब उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बीकेटीसी एएसआई के पीछे छिपकर अपने "नाजायज कार्यों" को छिपाने की कोशिश कर रहा है। महरा कहते हैं कि, ''सरकार को यह स्पष्ट करने की ज़रूरत है कि मंदिर में सोने की परत चढ़ाने से पहले किसी विशेषज्ञ संस्था ने सोने की जांच की थी या नहीं।''

बद्रीनाथ के पुनर्विकास ने भी निवासियों को परेशान कर दिया है, जिनमें से अधिकांश दुकानदार हैं जिन्हें गर्मियों में पर्यटकों की ज़रूरत होती है। साठ वर्षीय दुकानदार दिनेश चंद्र डिमरी उन कई दुकानदारों में से एक हैं जिन्होंने बद्रीनाथ में दुकानों के विध्वंस को दिखाने के लिए वीडियो पोस्ट किए हैं। वे और उनके छह भाई, जो सभी बद्रीनाथ मंदिर के बगल में धार्मिक सामान बेचते थे, उनकी दुकानें बिना किसी पूर्व सूचना के ध्वस्त कर दी गईं हैं।

दोनों धार्मिक शहरों में पुनर्विकास कार्य के लिए अहमदाबाद स्थित वास्तुशिल्प फर्म, आईएनआई डिज़ाइन स्टूडियो को काम पर रखा गया है। उन्होंने बद्रीनाथ के लिए एक नया मास्टर प्लान तैयार किया है, जिसमें, अनुमानतः, इन तीर्थस्थलों में पर्यटकों की आमद में उछाल को देखते हुए, मंदिर के चारों ओर जगह बनाने, पार्क और बेहतर पार्किंग स्थान प्रदान करने की जरूरत है।

जबकि बद्रीनाथ निवासी शहर के पुनर्विकास की जरूरत पर सवाल नहीं उठाते हैं, उनका मानना है कि उन्हें मास्टर प्लान की एक प्रति दी जानी चाहिए थी और "बात न सुनने के बजाय"  आपत्तियां उठाने की अनुमति दी जानी चाहिए थी।

पड़ोसी जोशीमठ शहर की तरह, बद्रीनाथ के नाराज़ निवासियों का एक समुदाय एकजुट हुआ है,  ताकि वे सरकार के समक्ष अपनी मांगें उठा सकें, जिसने लगातार उनकी बात सुनने से इनकार कर दिया है। बद्रीनाथ संघर्ष समिति के प्रमुख जमना प्रसाद रेवानी का कहना है कि जब वाराणसी के निवासियों को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए मोदी के लोकसभा क्षेत्र में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास के घरों को ध्वस्त कर दिया गया था, तो उन्हें मुआवजा दिया गया था। कई मामलों में, वह मुआवज़ा उनके घरों के बाज़ार मूल्य से कहीं अधिक था।

रेवानी कहते हैं कि, “लेकिन बद्रीनाथ में, मालिकों की अनुमति के बिना भी घरों को ध्वस्त कर दिया गया है। न ही उन्हें उचित मुआवज़ा दिया गया है।” वे कंक्रीट पर अत्यधिक निर्भरता के कारण अपने शहर में इस्तेमाल की जाने वाली निर्माण विधियों के बारे में आशंकित है। उन्हें डर है कि, ''बद्रीनाथ पहले से ही भूस्खलन के खतरे का सामना कर रहा है, और हम जल्द ही जोशीमठ की राह पर चलने लगेंगे।''

यह कोई निराधार चिंता या रेवानी का भ्रम नहीं है। रामचौरी में वानिकी महाविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग के भूविज्ञानी डॉ. एसपी सती ने चेतावनी दी है कि भारी मशीनरी और पहाड़ों की व्यापक कटाई से भूस्खलन में तेजी आएगी। “बद्रीनाथ शहर ढीले हिमनदों पर खड़ा है जो ढीले और अस्थिर हैं। सती के मुताबिक, दरअसल, मानसून की शुरुआत से स्थिति और खराब हो जाएगी।'' 

इस दृष्टिकोण में वे अकेले नहीं हैं। देश भर के वैज्ञानिकों ने विकृत विकास मॉडल के खिलाफ चेतावनी दी है जो जलवायु परिवर्तन से खराब हुई स्थिति के बावजूद हिमालय की नाजुकता को नजरअंदाज करता है।

निवासियों का कहना है कि उनके कस्बों में अंतहीन उत्खनन से स्थानीय परिदृश्य का अभिन्न अंग प्राकृतिक झरने सूख गए हैं। केदारनाथ के आसपास के गांवों में सुशीला भंडारी और अन्य समर्पित पर्यावरणविद् इस बात से व्याकुल हैं कि झरने और गैर-हिमनद नदियाँ तेजी से सूख रही हैं।

भंडारी कहती हैं कि, "हमें इन झरनों से पानी मिलता था, लेकिन बड़े पैमाने पर निर्माण और अवैज्ञानिक उत्खनन ने जल स्रोत सुख गए हैं, जिन पर लोगों की आजीविका निर्भर है।"

जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान ने पुष्टि की है कि राज्य भर में असमान विकास के कारण 50 प्रतिशत गांवों ने अपने पारंपरिक जल स्रोत खो दिए हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, चंडी प्रसाद भट्ट ने धामों में पुनर्निर्माण और "सौंदर्यीकरण" कार्य पर आशंका व्यक्त की है। बद्रीनाथ के निवासियों का कहना है कि पांच 'पंच धाराओं' में से दो, कूर्म धारा और प्रह्लाद धारा का जल प्रवाह सूख गया है, जिनका अत्यधिक धार्मिक महत्व है। उन्हें डर है कि यही हश्र अन्य धाराओं का भी होगा।

लेखिका एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार निजी हैं। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Kedarnath Gold-to-Copper Controversy Shows Waning Trust in Govt

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