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केदारनाथ पांडे : शिक्षा के लिए सदन से सड़कों तक लड़ने वाले योद्धा

स्मृति शेष : केदारनाथ पांडे ने माध्यमिक स्कूलों को निजी हाथों से मुक्त कराकर राजकीयकृत कराने में अहम भूमिका निभाई है। इन्होंने शिक्षक आंदोलन से अपनी राजनीति शुरू की और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने।
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बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदारनाथ पांडे नहीं रहे। दीपावली की सुबह दिल्ली के मेदांता अस्पताल में ह्रदयाघात से उनका निधन हो गया। वे 79 वर्ष के थे।

बिहार के शिक्षकों के सर्वमान्य नेता रहे केदारनाथ पांडे 2002 से लगातार सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद थे। 2020 में उन्होंने चौथी दफा जीत दर्ज की थी। बिहार विधान परिषद में उनका चार वर्षों का कार्यकाल अभी भी शेष था। विधान परिषद में शिक्षकों के हितों व संघर्षो के लिए किये जाने वाले उनके हस्तक्षेप को विपक्षी दल के पार्षद भी गौर से सुना करते थे। इस कम्युनिस्ट नेता का सम्मान करने वाले हर दल में मौजूद थे। दीवाली की छुटटी के बावजूद बड़ी संख्या में राज्य के कोने -कोने से लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़े। उनकी अंतयेष्टि में बिहार के लगभग हर प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं इकट्ठा हुए। तीव्र राजनीतिक ध्रुवीकरण वाले इस दौर में किसी नेता को ऐसा सम्मान मिलना एक दुर्लभ परिघटना की तरह है।

केदारनाथ पांडे ने माध्यमिक स्कूलों को निजी हाथों से मुक्त कराकर राजकीयकृत कराने में अहम भूमिका निभाई है। इन्होंने शिक्षक आंदोलन से अपनी राजनीति शुरू की और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। शिक्षक आंदोलन के अप्रतिम योद्धा व पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह के साथ उनकी जोड़ी न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में शिक्षा के लिए किये जाने वाले आंदोलन का पर्याय बन चुकी थी। बिहार में माध्यमिक शिक्षकों की स्थिति पूरे देश में सबसे बेहतर मानी जाती है उसकी प्रमुख वजह केदारनाथ पांडे और शत्रुघ्न प्रसाद सिंह के अनूठे नेतृत्व में चला वर्षों का संघर्ष माना जाता है।

इन दोनों के नेतृत्व में न सिर्फ माध्यमिक बल्कि प्राथमिक व नियोजित शिक्षकों ने कई बार प्रादेशिक हड़ताल का आयोजन किया। पिछले वर्ष फ़रवरी-मार्च महीनों शिक्षकों की ऐतिहासिक हड़ताल लगभग दो महीनों तक चली। 'समान काम के लिए समान वेतन' की लम्बी लड़ाई को माध्यमिक शिक्षक संघ द्वारा सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया गया। इस बेहद खर्चीली लड़ाई से हाईकोर्ट में जीत हासिल हुई लेकिन को अंततः सुप्रीम कोर्ट ने पलट डाला। न्यायालय के इस फैसले से शिक्षक आंदोलन को निराशा हाथ लगी। इस मुद्दे तथा समान शिक्षा प्रणाली को लागू कराने को लेकर बिहार सरकार से लम्बा संघर्ष चला।

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ जैसा माध्यमिक शिक्षकों का संगठन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में शिक्षक संगठनों के लिए दिलचस्पी का विषय रहा है। एक बार कनाडा से माध्यमिक शिक्षकों का एक समूह बिहार के माध्यमिक शिक्षकों के आंदोलन का अध्ययन भी करने आया था।

केदार नाथ पाण्डेय बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के कई बार महासचिव रहे और वर्तमान में उसके अध्यक्ष थे। शिक्षक संघ की पत्रिका ' प्राच्य प्रभा' के वर्षों तक सम्पादक रहे। उस पत्रिका का बिहार के शिक्षक आंदोलन को संगठित करने वे महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी वजह से माध्यमिक शिक्षक संघ का सभागार वाम -लोकतांत्रिक संगठनों के लिए कई दशकों से बिना शुल्क उपलब्ध रहा करता है। पटना सहित बिहार के बौद्धिक क्षेत्र के मानचित्र को लोकतान्त्रिक बनाये रखने में जमाल रोड स्थित संघ भवन का विशेष महत्व रहा है।

केदार नाथ पाण्डेय का जन्म यूपी के बलिया जिलान्तर्गत ' कोटवा नारायणपुर गांव में 1 जनवरी, 1943 को एक सामान्य परिवार में हुआ था। कोटवा नारायणपुर सामाजिक -राजनीतिक रूप से जागरूक गांव रहा है। प्रख्यात किसान नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती का इस गांव में नियमित आना जाना था।

कोटवा नारायणपुर में ही केदारनाथ का जुड़ाव नाटक मंडललियों से हुआ। कई नाटकों की न सिर्फ उन्होंने रचना की अपितु अभिनय भी किया। वे अपने जमाने में एक अच्छे अभिनेता भी माने जाते थे। उनके प्रमुख नाटकों में है शुरुआत ( भोजपुरी ), पृथ्वी राज चौहान, वीर शिवाजी, गुरु दक्षिणा, केकेयी आदि। उनके कुछ नाटक भोजपुरी के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। वे अंतिम समय में उस दौर के लिए भोजपुरी नाटकों का संकलन तैयार कर रहे थे।

केदार नाथ पांडे एक चर्चित लेखक भी थे। हिंदी में उनकी दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। 'बीते दौर के भी गीत गए जाएंगे' उनका आत्मकथात्मक उपन्यास है। उनकी अन्य पुस्तकों में प्रमुख है 'शिक्षा के सामाजिक सरोकार', ' ' शिक्षा को आंदोलन बनाना होगा', ' मैल धुले जाने के गीत' ' 'गाँव की ओर जाती सड़क' आदि।

सीपीआई द्वारा निकलने वाली साप्ताहिक 'जनशक्ति' में विविध विषयों पर लेख नियमित रूप से प्रकाशित हुआ करते थे। उनके विषयों का दायरा व्यापक था। भाजपा सरकार द्वारा लाई गई शिक्षा के निजीकरण व व्यावसायीकरण को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति के वे कटु आलोचक थे। इसे लेकर लगातार प्रतिरोध कार्यक्रम आयोजित करते रहे। देश में समान शिक्षा प्रणाली के लिए अभियानी की भूमिका में रहे। सदन से लेकर सभाओं और सड़कों पर वे निरंतर कमजोर वर्ग के पक्ष में बोलते रहे। बढ़ती उम्र के बावजूद राज्य के कोने -कोने में जाते रहे। हाल में पटना मेट्रो के नाम पर पहाड़ी पुर -रानी मौजे की जमीन लिए जाने के संघर्ष में वे शामिल हुए।

केदारनाथ पांडे की प्रतिष्ठा बिहार के नागरिक समाज से लेकर साहित्यिक -सांस्कृतिक जगत में रही है। प्रगतिशील लेखक संघ, जन नाट्य संघ (इप्टा ), इस्कफ, ऐप्सो सहित संगठनों से जुड़ाव रहा है।

सफ़ेद कुर्ता-पायजामा में उनका शिष्ट, सौम्य, आत्मीय और गरिमापूर्ण व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित करता था। केदारनाथ पांडे के असमय निधन से बिहार के वाम-जनवादी तथा शिक्षक आंदोलन को ऐसा धक्का लगा है जिसकी निकट भविष्य में भरपाई मुश्किल होगी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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