केजरीवाल कहीं भाजपा की तरह का एक और राजनीतिक जाल तो नहीं!
सत्ता के संघर्ष को राजनीति कहते हैं। यहां पर सत्ता का मतलब विचार से लिया जाता है। यानी वह कौन से विचार होंगे जिनके मुताबिक समाज चलेगा। इन विचारों की व्याख्या हमारा संविधान करता है। लेकिन भाजपा वैसे विचार अपनाकर लोगों के बीच गोलबंदी करती हैं, जो संविधान सम्मत नहीं होते है। जिनके केंद्र में धार्मिक पहचान शामिल है। हिंदुत्व का भावुक, सतही और उन्मादी गुणगान कर लोगों की गोलबंदी शामिल है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सत्ता के इस स्वरूप को चुनौती नहीं दे रहे बल्कि इसे अपनाने की तरफ बढ़ रहे हैं। इस साल का बजट पेश करते हुए अरविंद केजरीवाल ने यह भी ऐलान किया कि वह दिल्ली के बुजुर्गों को अयोध्या की यात्रा करवाएंगे।
सबसे कमजोर लोगों की मदद करना ही सरकार का काम होता है। लेकिन यह भी जरूरी है कि सरकार मदद के तौर पर लोगो के सामने किस तरह का मदद पेश कर रही है। क्या संविधान में यह कहीं भी लिखा हुआ है कि भारत की चुनी हुई सरकार लोगों को जन कल्याण का दुहाई देते हुए उन्हें धार्मिक स्थल तक पहुंचाने का काम करेगी? अगर यह नहीं लिखा हुआ है संविधान ऐसे विचारों को सरकारों को अपनाने इजाजत नहीं देता है तो इसका मतलब है कि विपक्ष के तौर पर अरविंद केजरीवाल सत्ता को चुनौती नहीं दे रहे बल्कि सत्ता के खेमे में ही शामिल हो रहे हैं।
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