केरल : अदालत में यौन हिंसा के लिए कपड़ों को दोषी ठहराना, पुरुषवादी सोच दर्शाता है
शायद आपको याद हो, साल 2019 में बेल्जियम के ब्रसल्स में एक प्रदर्शनी लगी थी। इसमें यौन शोषण और दुष्कर्म पीड़िताओं के कपड़ों को प्रदर्शित किया गया था। जिस संस्था ने ये प्रदर्शिनी लगाई थी, वो ये बताना चाहती थी कि असल में रेप का कपड़ों से कोई संबंध नहीं है। इसी मानसिकता से लड़ने के लिए “What were you wearing?” का कैंपेन चलाया गया था। ये वो कपड़े थे जो लड़कियों ने तब पहने थे जब उनके साथ रेप किया गया था। इन कपड़ों में पैजामा, ट्रैक सूट, बच्ची की टीशर्ट जैसे आम पहनावे शामिल थे। ये सभी कपड़े पूरे थे और इनका तथाकथित भड़काऊ होने से कोई संबंध नहीं था। विदेश की बात छोड़ दीजिए भारत में ही सालभर की बच्ची का जब रेप होता है तो क्या उसके कपड़ों को देखकर होता है? अगर होता तो साड़ी-सूट और घुंघट वाली महिलाएं कभी इसका शिकार नहीं होतीं।
हालही में यौन हिंसा को लेकर आया केरल सेशन कोर्ट का एक फैसला सुर्खियों में है। इस फैसले में कोर्ट ने आरोपी को ज़मानत देते हुए हिंसा के लिए महिला के कपड़ों को ज़िम्मेदार माना है। कोर्ट का कहना है कि अभियुक्त की ओर से ज़मानत याचिका के साथ पेश किए गए फोटो से पता चलता है कि शिकायतकर्ता पीड़ित महिला ने जो कपड़े पहने, वो यौन उत्तेजक थे।
विक्टिम ब्लेमिंग आरोपी को बचाने का जरिया
यौन उत्तेजक की ये टिप्पणी किसी और की नहीं बल्कि केरल में कोझीकोड सेशन कोर्ट के जज एस कृष्ण कुमार की है। मीलॉर्ड ने यौन उत्पीड़न के एक मामले में पीड़ित महिला के कपड़ों पर ही सवाल उठाते हुए आरोपी को ज़मानत दे दी। हालांकि जज साहब ने इस केस में 'यौन उत्तेजक' यानी 'भड़काऊ' कपड़ों को गुनहगार तो बता दिया लेकिन ये नहीं बताया कि एक छोटी बच्ची, एक युवा लड़की और एक बुजुर्ग महिला आखिर ऐसा क्या पहने कि उसके साथ यौन शोषण ना हो और ये तय करने का अधिकार किसको है। और क्या छोटे या भड़काऊ कपड़े पहनने वाली महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने की छूट है?
अक्सर विक्टिम ब्लेमिंग के नाम पर महिलाओं को छोटे और बड़े ड्रेस कोड के आस-पास समेट दिया जाता है, उनके आने-जाने के समय पर कई सवाल खड़े कर दिए जातेे हैं। लेकिन ये तमाम कुतर्क तब और गंभीर हो जाते हैं, जब ये न्याय की चौखट पर हों। अदालत वह जगह मानी जाती है जहां निडर होकर महिलाएं अपने लिए न्याय की उम्मीद करती हैं, ऐसे में ये पीड़िता के कपड़ों को दूसरों के लिए यौन उत्तेजक करार देनी वाली ये 'पुरुष वर्चस्ववाद' की टिप्पणी निश्चित ही उन्हें निराश करती है।
क्या है पूरा मामला?
केरल सेशंस अदालत के संबंधित मामले में सिविक चंद्रन जोकि केरल में एक जाने माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वो आरोपी थे। उन पर एक नहीं बल्कि दो महिलाओं ने अलग अलग मौकों पर उनका यौन शोषण करने का आरोप लगाया है। शिकायतकर्ताओं में से एक महिला दलित समुदाय से आती हैं। और उन्होंने आरोप लगाया था कि अप्रैल में एक किताब विमोचन कार्यक्रम के दौरान चंद्रन ने जबरदस्ती उन्हें चूमने की कोशिश की थी। दूसरी महिला का आरोप है कि एक और कार्यक्रम के दौरान चंद्रन ने उन्हें गलत तरीके से छुआ और उनका यौन शोषण किया।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पहले वाले मामले में शिकायतकर्ता ने 16 जुलाई 2022 को शिकायत दर्ज करवाई। इसमें आरोपी कुट्टन के बारे में कहा गया कि ''ऊंची जाति के इस अभियुक्त ने शिकायत करने वाली महिला से प्यार का इज़हार किया और अचानक उनकी गर्दन के निचले हिस्से को चूम लिया।''
अभियुक्त के वकील ने इस आरोप को 'निहायती अविश्वसनीय' करार देते हुए तर्क दिया कि ''अभियुक्त 74 साल के हैं, जबकि पीड़िता 42 साल की हैं। विभिन्न बैठकों की तस्वीरों को देखकर पता चलता है कि अभियुक्त बिना किसी सहायता के खड़े नहीं हो सकते। वहीं आरोप लगाने वाली महिला अभियुक्त से क़द में लंबी भी है। इसलिए अभियुक्त की उम्र और ख़राब सेहत को देखते हुए यह यक़ीन नहीं किया जा सकता कि बिना सहमति के वे आरोप लगाने वाली महिला की पीठ चूम सकते हैं।''
अदालत में कुछ तस्वीरें पेश कर दावा किया गया कि महिला और अभियुक्त के बीच क़रीबी संबंध थे और उनके बीच आरोप लगाने वाली महिला की रचना के प्रकाशन को लेकर कुछ विवाद था। इस मामले में अदालत ने फ़ैसले में कहा था, ''पीड़िता ने आरोपी पर उसकी जाति जानकर जो छूने के जो आरोप लगाए हैं, उसे मानना बहुत अविश्वसनीय है। अभियुक्त सुधारवादी हैं और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े हैं। वे जाति व्यवस्था के खि़लाफ़ हैं। वे जातिमुक्त समाज के लिए लिखते और लड़ते आए हैं।''
दो महिलाओं ने लगाए उत्पीड़न के आरोप
चंद्रन के खिलाफ दूसरा मामला 29 जुलाई, 2022 को दर्ज किया गया था। शिकायत के अनुसार 8 फरवरी, 2020 को नंदी बीच पर एक कैंप लगाया था। जब प्रतिभागी कार्यक्रम से लौट रहे थे तो आरोपी ने 30 वर्षीय शिकायतकर्ता का हाथ पकड़ा और ज़बरदस्ती उन्हें एकांत में ले गया। आरोप लगाया गया कि ''अभियुक्त ने वहां शिकायतकर्ता को अपनी गोद में लेटने को कहा। उसके बाद उन्होंने उनकी छाती दबाई और उनका शील भंग करने की कोशिश की।''
इस मामले में अदालत को यह भी बताया गया कि अभियुक्त की बड़ी बेटी सरकार में एक अहम पद पर है जबकि दूसरी बेटी असिस्टेंट प्रोफेसर है। अभियुक्त के वकील ने तर्क दिया, ''यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि 30 साल की महिला ने उस शख़्स पर आरोप लगाए हैं जिनकी समाज में काफ़ी इज़्ज़त है।''
दूसरी ओर अभियुक्त की ज़मानत का विरोध करते हुए आरोप लगाने वाली महिला के वकील ने कहा, ''अभियुक्त का कवयित्रियों का उत्पीड़न करने की आदत रही है और अभियुक्त के खि़लाफ़ यह दूसरा मामला है। कई और लोग अभियुक्त के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराने को तैयार हैं।''
इसी मामले में सेशन कोर्ट के जज एस कृष्ण कुमार का यह फै़सला 12 अगस्त को आया, जिसके दस्तावेज़ बुधवार, 17 अगस्त को सार्वजनिक किए गए। अदालत के फै़सले में कहा गया, ''अभियुक्त की ओर से ज़मानत याचिका के साथ पेश किए गए फोटो से पता चलता है कि शिकायतकर्ता ने जो कपड़े पहने, वो यौन उत्तेजक थे।''
इसी आधार पर जज ने माना है कि अभियुक्त सिविक चंद्रन उर्फ सीवी कुट्टन के ख़िलाफ़ पहली नज़र में आईपीसी की धारा 354 ए के तहत यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनता। अदालत ने ये भी कहा कि यह स्वीकार करते हुए कि उनके बीच कोई शारीरिक संपर्क नहीं हुआ, ऐसा मानना संभव नहीं है कि 74 साल की उम्र का और शारीरिक रूप से कमज़ोर कोई आदमी, शिकायतकर्ता को ज़बरदस्ती अपनी गोद में बिठा सकता है और उनकी छाती को छू सकता है। हालांकि यहां कोर्ट ने ये सवाल आरोपी सिविक चंद्रन से नहीं पूछा कि आखिर 74 साल की इस उम्र में उनके पास महिला की कथित उत्तेजक कपड़ों वाली तस्वीरें क्या कह रही हैं? और क्या छोटे कपड़े पहनने वाली महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने की छूट है?
बता दें कि इस फै़सले के 10 दिन पहले भी चंद्रन को इन्हीं जज एस कृष्ण कुमार ने 42 साल की एक महिला के यौन उत्पीड़न के दूसरे आरोप में ज़मानत दे दी थी। उस केस के फै़सले में जज ने कहा था, ''यह मानना विश्वास से बिल्कुल परे है कि अभियुक्त ने यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि पीड़िता दलित है, उन्हें छुआ होगा।''
जमानत से ज्यादा हैरानी और आपत्ति अदालत की कपड़ों को लेकर की गई टिप्पणी से है
कुल मिलाकर देखें तो कोर्ट के जमानत देने के फैसले से कई गुना ज्यादा हैरानी और आपत्ति पड़िता के कपड़ों को लेकर की गई टिप्पणी से है। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर भी बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है। ट्विटर पर लोगों ने कानूनी तौर पर विक्टिम ब्लेमिंग को लेकर सवाल उठाया है।
... and who will decide the dress is sexually provocative or not?
You might find a Saaree as sexually provocative, too!
The courts should limit them to the law of land,
Don't mix up your personal opinion with judgement.— Swapnil Naik (@ssnaik84) August 17, 2022
What is wrong with our courts? So can similar arguments be made for rich people being attacked for flashing their wealth or a scholar for showing of his intellect ??& Who will define what is sexually provacative 🤔.isn't that subjective ? A saree could be sexually provacative.
— Nandita Sen (@nandita_sen) August 17, 2022
गौरतलब है कि महिला अधिकार कार्यकर्ता दशकों से इस बात पर ज़ोर आए हैं कि यौन शोषण का पीड़िता के कपड़ों से कोई लेना देना नहीं है। अगर ऐसा होता तो छोटी छोटी बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं का बलात्कार और यौन शोषण नहीं होता। निर्भया कांड के बाद कई कानून बदले, यौन उत्पीड़न की परिभाषा का दायरा बढ़ाया गया लेकिन जब तक अदालतें खुद ही पितृसत्तात्मक सोच की गिरफ्त में रहेंगी तब तक किताबों में बंद कानून महिलाओं की क्या मदद कर पाएगा। कानून की विवेचना सही हो और महिलाओं को न्याय मिले यह अदालतों की बड़ी जिम्मेदारी है. उन्हें यह समझना ही होगा।
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