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केरल चुनाव: कांग्रेस-आईयूएमएल-भाजपा गठबंधन पर उठते सवाल

2016 में यूडीएफ़ के उम्मीदवार, सुरेंद्रन पिल्लई ने स्वीकार किया था कि 2016 में कांग्रेस और भाजपा के बीच नीमोम में सौदा हुआ था और उन्होंने कांग्रेस पर भाजपा के साथ मिलकर वोट का सौदा करने का आरोप लगाया था।
केरल चुनाव: कांग्रेस-आईयूएमएल-भाजपा गठबंधन पर उठते सवाल
प्रतीकात्मक फ़ोटो:साभार: द इंडियन एक्सप्रेस

चूंकि केरल विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं इसलिए राजनीतिक मोर्चों ने 140 निर्वाचन क्षेत्रों में से अधिकतम सीटों पर अपनी जीत सुनिश्चित करने को लेकर अपना अभियान तेज़ कर दिया है।

इन सबके बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की अगुवाई वाले लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट (LDF) ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट (UDF) पर बीजेपी के साथ राज्य भर में विभिन्न क्षेत्रों में चुनावी गठबंधन को लेकर बातचीत करने का आरोप लगाया है। तीन भाजपा उम्मीदवारों के नामांकन का ख़ारिज किया जाना, वह भी उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां भाजपा के पास अच्छी ख़ासी वोटों की हिस्सेदारी है, यह दिखाता है कि एलडीएफ़ के इन आरोपों में दम है।

कथित तौर पर गुरुवयूर, थालास्सेरी और देवीकुलम में तीन भाजपा उम्मीदवारों के नामांकन ख़ारिज कर दिये गये हैं। गुरुवयूर निर्वाचन क्षेत्र में महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष निवेदिता सुब्रमण्यम भाजपा की उम्मीदवार थीं और उनका नामांकन इस आधार पर ख़ारिज कर दिया गया है कि जमा किये गये फ़ॉर्म पर भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के हस्ताक्षर नहीं थे।

थालास्सेरी निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के कन्नूर के अध्यक्ष, एन हरिदास उम्मीदवार थे और उनके नामांकन को भी इसी आधार पर ख़ारिज कर दिया गया है। इडुक्की के देवीकुलम में एआईएडीएमके उम्मीदवार धनलक्ष्मी एनडीए का प्रतिनिधित्व कर रही थीं और अधूरा पर्चा जमा करने के चलते उनका नामांकन भी ख़ारिज कर दिया गया है।

हालांकि, एनडीए और इससे जुड़े उम्मीदवारों ने अपने नामांकन के ख़ारिज किये जाने के एक दिन बाद, यानी 21 मार्च को केरल उच्च न्यायालय का रुख़ किया था लेकिन संविधान के अनुच्छेद 329B के अनुसार चुनाव आयोग ने अपने हलफ़नामे में कहा था कि चुनाव की अधिसूचना के बाद चुनाव से सम्बन्धित किसी भी मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप नहीं हो सकता है।

ख़ारिज किये जाने के बाद देवीकुलम निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा ने कांग्रेस के बाग़ी उम्मीदवार को एनडीए के उम्मीदवार रूप में समर्थन किये जाने का फ़ैसला किया है। हालांकि, थालास्सेरी और गुरुवयुर निर्वाचन क्षेत्रों में एनडीए अपने खेमे में किसी को नहीं ला सका और इस तरह मोर्चे से इस मैदान में कोई उम्मीदवार नहीं रह गया है।

पहले हुए चुनावों से दिखाई देता है कि इन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के पास निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रभावित करने वाले वोटों की एक अच्छी ख़ासी हिस्सेदारी रही है। हालांकि, इन तीनों सीटों पर जो मौजूदा विधायक हैं, वे सबके सब माकपा के हैं, लेकिन थालास्सेरी सीट पर भाजपा की कथित तौर पर नज़र वर्षों से है।

देवीकुलम में सीपीआई (M) के एस.राजेंद्रन ने 2016 में कांग्रेस के एके मोनी के ख़िलाफ़ 6, 232 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी, जबकि एआईएडीएमके की आरएम धनलक्ष्मी ने एनडीए के लिए 11, 632 वोट हासिल किये थे। 2016 में बीजेपी का वोट शेयर जीत के अंतर से बहुत ज़्यादा था और अगर यह वोट यूडीएफ़ के वोट में बदल जाते हैं, तो यह इस बार के चुनाव परिणामों को ये वोट प्रभावित करेंगे। इस बार सीपीआई (M) के ए राजा एलडीएफ़ की तरफ़ से और कांग्रेस के डी कुमार यूडीएफ़ की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, एनडीए ने यहां एक निर्दलीय उम्मीदवार जी गणेशन का समर्थन किया है, लेकिन एलडीएफ़ कांग्रेस पर इस निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के साथ एक समझौता करने का आरोप लगा रहा है।

थालास्सेरी में सीपीआई (M) के एएन शमसेर ने 2016 में 34, 113 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस को 36, 324 और भाजपा को 22, 125 वोट मिले थे। हालांकि, 2016 में एलडीएफ़ की जीत का अंतर बीजेपी के वोट शेयर के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा था। यहां भी एलडीएफ़ को हराने के लिए कांग्रेस और बीजेपी के बीच समझौते के आरोप लगे हैं। मौजूदा विधायक, एएन शमसेर इस बार भी एलडीएफ़ का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

वामपंथियों को हराने को लेकर भाजपा-कांग्रेस के बीच इस समझौते की आलोचना करते हुए मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा है कि 2016 के विधानसभा चुनावों के दौरान नीमोम निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा की जीत इस सौदे की अभिव्यक्ति थी।

विजयन ने कहा है, “सौदा यह था कि कांग्रेस पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्रों में यूडीएफ़ के उम्मीदवारों को इसी तरह की सहायता के बदले भाजपा को नीमोम से जीतने में मदद करेगी। यूडीएफ़ के वोट के इस सौदे के शिकार वी उरेंद्रन पिल्लई द्वारा किये गए ख़ुलासे ने इस समझौते को साबित कर दिया है।"

2016 में बीजेपी के ओ राजगोपाल ने तिरुवनंतपुरम में नीमोम सीट जीत ली थी और केरल विधानसभा में भाजपा की यह पहली एंट्री थी।

2006 से 2016 तक निमोम विधानसभा का नतीजा

स्रोत: https://resultuniversity.com/election/nemom-kerala-assembly-constituency

नीमॉम में 2006 में जहां कांग्रेस को 60, 884 वोट मिले थे, वहीं 2016 में उनका वोट शेयर घटकर मात्र 13, 860 रह गया था। हालांकि, 2006 में कांग्रेस के एन शक्ति ने यह सीट जीत ली थी, बाद में 2011 और 2016 में यह सीट यूडीएफ़ के घटक दलों को दे दी गयी थी। 2016 में जनता दल (यूनाइटेड) के वी सुरेंद्र पिल्लई ने यूडीएफ़ की तरफ़ से चुनाव लड़ा था।

2016 के यूडीएफ़ उम्मीदवार सुरेंद्र पिल्लई ने ख़ुद ही 2016 में निमोम में हुए कांग्रेस और भाजपा के बीच के सौदे को स्वीकार किया था। उन्होंने कांग्रेस पर भाजपा के साथ वोट का सौदा करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि नेतृत्व को इस वोट सौदे के बारे में पता था और उन्हें मतदान से दो दिन पहले उस वोट सौदे के बारे में जानकारी मिल गयी थी।

पिल्लई ने कहा था, “कांग्रेस की यह परंपरा रही है कि यह अपने सहयोगियों को सीटें देती है और फिर अपने ख़िलाफ़ खड़ी पार्टी को अपना वोट दे देती है। ऐसा ही 2011 में नीमोम में भी तब हुआ था जब चारुपारा रवि ने चुनाव लड़ा था। केपीसीसी के पूर्व अध्यक्ष, वी.एम. सुधीरन एकमात्र ऐसे नेता थे, जो इस मुद्दे से ईमानदारी से निपटे थे। मेरे हारने के बाद हमने इसकी जांच की मांग उठायी थी। जांच रिपोर्ट में पांच कांग्रेस नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सिफ़ारिश की गयी थी, लेकिन यह सिफ़ारिश कभी भी अमल में नहीं लायी गयी। अब नीमोम से जीत दर्ज करने वाले बीजेपी नेता ओ राजगोपाल ने भी इस सौदे की पुष्टि कर दी है।” 

दिलचस्प बात तो यह है कि पिछले ही हफ़्ते विधानसभा में भाजपा के एकलौते सदस्य ओ राजगोपाल ने कहा है कि कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) का भाजपा के साथ तालमेल पहले भी रहा है। कांग्रेस-आईयूएमएल-बीजेपी के बीच के समझौते को संक्षेप में CoLiBe गठबंधन के रूप में जाना जाता है। लेफ़्ट के ख़िलाफ़ यह CoLiBe गठबंधन कथित तौर पर 1991 में शुरू हुआ था। 

1991 के चुनावों में इस तरह के राजनीतिक प्रयोग की शुरुआत कथित तौर पर बेय्पोरे राज्य विधानसभा और वाटकरा लोकसभा क्षेत्रों में वाम मोर्चे के ख़िलाफ़ की गयी थी। बेय्पोरे में मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य, दिवंगत के. माधवनकुट्टी सीपीआई (M) के टीके हमज़ा के ख़िलाफ़ गठबंधन के स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़े थे। लेकिन सीपीआई (M) इस गठबंधन के ख़िलाफ़ चुनाव जीतने में कामयाब रही थी। वाटकरा में पूर्व महाधिवक्ता दिवंगत एम.रत्न सिंह इस “गठबंधन” के स्वतंत्र उम्मीदवार थे, लेकिन वे केपी उन्नीकृष्णन से हार गये थे। 2014 में रत्न सिंह ने वाम दलों के ख़िलाफ़ उस गठबंधन की बात स्वीकार की थी जो 1991 में हुआ था।

एक मलयालम न्यूज़ चैनल, एशियानेट न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार के दौरान राजगोपाल ने कहा था, “जहां हम लड़ नहीं सकते, वहां अगर हमें किसी अन्य पार्टी से समर्थन मिल रहा है तो हम इस तरह के तालमेल करेंगे। क्या वह सौदा नहीं है? क्या इससे यह तय नहीं होता है कि राजनीति किस तरह से काम करती है? हालांकि, दूसरे पक्ष को भी यह महसूस करना चाहिए कि यह तालेमल उनके लिए फ़ायदेमंद होगा।”

राजगोपाल के मुताबिक़, इस तरह के तालमेल स्थानीय स्तर पर राज्य के नेतृत्व की मंज़ूदरी के बाद और उनकी पूरी जानकारी में ही होते हैं। वह आगे कहते हैं, “ऐसी स्थानीय स्तर की समझ अतीत में भी बनी है। भाजपा ऐसे चुनावों के दौरान अपना वोट शेयर बढ़ाने में सफल भी रही है।” 

हालांकि, रिपोर्टों के मुताबिक़, यह नीमोम मॉडल प्रयोग को वत्तियूर्कावु सहित उन चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों में दोहराया जाना है, जहां मौजूदा विधायक एलडीएफ के वीके प्रशांत ने दावा किया है कि इस तरह के प्रयास जारी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Kerala Elections: Questions Raised Over Alleged Congress-IUML-BJP Alliance

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