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MSP कमेटी के नाम पर सरकार ने की धोखाधड़ी, किस दिशा में जाएगा किसान-आंदोलन!

बताया जा रहा है कि कमेटी में कृषि और सहकारिता क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हैं। सच्चाई यह है कि कमेटी के सदस्यों में भाजपा के सदस्य, RSS से जुड़े लोग, संघ के अनुषांगिक किसान संगठन के पदाधिकारी, कृषि कानूनों के घोषित समर्थक बुद्धिजीवी, किसान नेता और सरकारी नौकरशाह शामिल हैं।
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फ़ोटो साभार : ट्विटर

सरकार ने मानसून सत्र के पहले दिन अचानक MSP पर बहुप्रतीक्षित कमेटी का ऐलान कर दिया। दरअसल, मोदी जी किसानों के साथ खुल कर राजनीति करने पर उतर आए हैं। उन्होंने पहले एक जाट नेता का उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन कराया। फिर संसद सत्र शुरू के पहले दिन, जब उधर संसद शुरू हो रही थी, इधर किसानों का सरकार की वायदाखिलाफी के विरुद्ध आंदोलन का अगला चरण शुरू हो रहा था, उन्होंने MSP पर बहुप्रतीक्षित कमेटी का एलान करवा दिया। सब कुछ तय तो पहले ही हो गया था, लेकिन घोषणा इस खास दिन 18 जुलाई के लिए रोक रखी गई थी।

जाहिर है, इस घोषणा द्वारा संसद के अंदर और बाहर MSP की कानूनी गारंटी पर बहस की धार कुंद करने की कोशिश है। उधर जाट उपराष्ट्रपति बनाकर किसान-आंदोलन की बड़ी ताकत रहे जाट किसानों को बरगलाने और उनके बीच विभाजन पैदा करने की धूर्त रणनीति है।

यह कितना बड़ा मजाक है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए गठित इस 29 सदस्य वाली कमेटी में कुल 21 लोग विभिन्न सरकारी संस्थाओं के पदाधिकारी हैं जो कृषि कानूनों को बनाने की प्रक्रिया में शामिल थे और 5 वे किसान नेता/बुद्धिजीवी हैं जो किसान-विरोधी कृषि बिलों के समर्थक हैं। जिस आंदोलन के साथ समझौते में यह कमेटी बन रही है, 29 में उस संयुक्त किसान मोर्चा के मात्र 3 सदस्य होंगे, जिनके लिए जगह खाली छोड़ी गई है।

बताया जा रहा है कि कमेटी में कृषि और सहकारिता क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हैं। सच्चाई यह है कि कमेटी के सदस्यों में भाजपा के सदस्य, RSS से जुड़े लोग, संघ के अनुषांगिक किसान संगठन के पदाधिकारी, कृषि कानूनों के घोषित समर्थक बुद्धिजीवी, किसान नेता एवम सरकारी नौकरशाह शामिल हैं।

कमेटी के अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल बनाये गए हैं, जिनके समय 3 कृषि कानून बने। कमेटी में किसान विरोधी कानूनों की ड्राफ्टिंग करने वाले नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद भी हैं।

बहरहाल इस कमेटी के एजेंडे में MSP कानून का मुद्दा है ही नहीं, जिसके लिखित वायदे के आधार पर सरकार

ने किसान आंदोलन वापस कराया था। किसानों की आंख में धूल झोंकने के लिए MSP को प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए सुझाव की बात गोलमटोल ढंग से जरूर शामिल कर दी गयी है। पर यह कमेटी का exclusive

केंद्रित एजेंडा नहीं है। सबसे खतरनाक यह कि MSP पर कमेटी की आड़ में कृषि विपणन को फिर एजेंडा बना दिया गया है- " यह कमेटी कृषि मार्केटिंग सिस्टम को मजबूत करने की व्यवस्था करेगी, ताकि देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार घरेलू और एक्सपोर्ट के अवसरों का लाभ उठाते हुए किसानों के लिए उनकी उपज की लाभकारी कीमत सुनिश्चित की जा सके।"

जाहिर है यह कॉरपोरेट परस्त सुधारों को चोर दरवाजे से फिर लागू करने की रणनीति है।

कमेटी के विचार के अन्य विषय इस प्रकार हैं :

a-कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने की व्यवहार्यता तथा और अधिक वैज्ञानिक बनाने के उपाय।

b-यह कमेटी प्राकृतिक खेती को लेकर भी काम करेगी। किसान संस्थाओं को शामिल कर, वैल्यू चेन डेवलपमेंट और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए रिसर्च के माध्यम से भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के क्षेत्र विस्तार का सुझाव देगी।

c-यह कमेटी रिसर्च एवं डेवलपमेंट संस्थानों सहित कृषि विज्ञान केंद्र को ज्ञान केंद्र बनाने, विश्वविद्यालयों एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों में प्राकृतिक खेती प्रणाली पाठ्यक्रम के लिए कार्यनीतियों पर सुझाव देगी।

d-प्राकृतिक खेती से उत्पादित उत्पादों के जैविक प्रमाणीकरण के लिए प्रयोगशालाओं के विकास पर भी यह कमेटी काम करेगी।

e-जल संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण फसल विविधीकरण एक अहम मुद्दा है। यह कमेटी मौजूदा फसल प्रणाली की मैपिंग करेगी. देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार फसल पद्धति में परिवर्तन के लिए सुझाव देगी।

f-नई फसलों की बिक्री के लिए लाभकारी मूल्य मिलने के लिए व्यवस्था और सूक्ष्म सिंचाई योजना की समीक्षा और सुझाव देगी।

इस तरह अनेक विषय उठाकर जिनमें से कई के लिए पहले से कमेटी बनी हैं, MSP की कानूनी गारंटी के मूल मुद्दे को पूरी तरह dilute कर दिया गया है। कमेटी की कोई समय सीमा भी नहीं है।

जाहिर है यह सब किसानों के हाथ में झुनझुना पकड़ाकर 2024 के आम चुनाव तक किसान आंदोलन के पुनः उभार को रोकने के लिए पेशबंदी है, साथ ही वातावरण अनुकूल होते ही कारपोरेट के बहुप्रतीक्षित कृषि सुधारों को लागू करने की कवायद है। यह सर्वविदित है कि अडानी के साइलो अभी भी बदस्तूर खड़े हैं।

प्रचारित किया जा रहा है कि संयुक्त किसान मोर्चा से सरकार ने कमेटी के लिए 3 नाम मांगे थे जिसे आपसी विवाद के कारण मोर्चा अब तक नहीं दे सका। इसीलिए लंबे इंतजार के बाद अब सरकार ने उनके लिए 3 स्थान खाली छोड़ कर कमेटी का एलान कर दिया है। जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है।

दरअसल, कमेटी में शामिल होने के पहले संयुक्त किसान मोर्चा यह जानना चाहता था कि कमेटी का composition क्या होगा और इसका एजेंडा, इसके terms of refrence क्या हैं, क्योंकि उन्हें पहले से सरकार के इरादों को लेकर आशंका थी। अब कमेटी के एलान ने किसान नेताओं की बदतरीन आशंकाओं को सही साबित कर दिया है।

इसी बीच संयुक्त किसान मोर्चे के अंदर तोड़फोड़ की साजिशें जारी हैं।

तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए हुए आंदोलन के एक नेता और संयुक्त किसान मोर्चा की 9 सदस्यीय कमेटी के सदस्य शिवकुमार कक्का ने हाल ही में कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ अनाप-शनाप बयानबाजी करते हुए आरोप लगाया कि आंदोलन पर कम्युनिस्टों ने कब्जा कर लिया है। ज्ञातव्य है कि कक्का स्वयं RSS से जुड़े राष्ट्रीय किसान संघ के पूर्व पदाधिकारी हैं।

जाहिर है यह सब किसान आंदोलन के पुनर्जीवन को रोकने की किसी बड़े डिज़ाइन का हिस्सा है।

आज जब किसानी का संकट गहराता जा रहा है, सरकार ने MSP कमेटी के नाम पर किसानों के साथ जो धोखाधड़ी की है वह आग में घी डालने का काम करेगी। उम्मीद है किसान आंदोलन फिर अपनी राख से जी उठने की आज जो जद्दोजहद कर रहा है, उसे इससे नया आवेग मिलेगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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