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कुकी समुदाय का प्रदर्शन: क्या मणिपुर में 'अलग प्रशासन' ही एकमात्र समाधान है?

दिल्ली के जंतर-मंतर पर शुक्रवार को कुकी समुदाय ने एक शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर मणिपुर में अलग प्रशासन की मांग की। सवाल है कि क्या फिर से ये दोनों समुदाय पहले के जैसे पड़ोसी की तरह रह पाएंगे?
jantar mantar protest

पिछले तीन महीने से मणिपुर जल रहा है लेकिन उसकी तपिश का अंदाज़ा दुनिया को उस वक़्त हुआ जब एक वायरल वीडियो ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया।

देश-विदेश में भले ही मणिपुर के हालात पर चर्चा हो रही है लेकिन हमारी संसद में इस पर कब गंभीर चर्चा होगी इसका इंतज़ार किया जा रहा है। इस इंतज़ार के बीच संसद से महज़ कुछ दूरी पर जंतर-मंतर पर 'कुकी-ज़ो वूमेन्स फोरम' की तरफ से एक शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट का आयोजन किया जिसमें भारी संख्या में कुकी समुदाय से जुड़े लोग पहुंचे, साथ ही उनके समर्थन में दिल्ली से भी लोग पहुंचे।

इस प्रोटेस्ट की ख़ास बात थी कि यहां लगा पोस्टर और साथ ही वो ख़ास टी-शर्ट जिसे ज़्यादातर लोगों ने पहन रखा था और जिस पर लिखा था 'अलग प्रशासन ही एकमात्र समाधान है'...इस प्रोटेस्ट की साफ मांग थी - 'अलग प्रशासन'

अलग प्रशासन की मांग वाली टी-शर्ट पहने प्रदर्शनकारी

तो क्या वाकई अब मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच सुलह-समझौते की कोई आस नहीं बची है? क्या फिर से ये दोनों समुदाय पहले की तरह पड़ोसी की तरह रह पाएंगे? ऐसे ही कुछ सवाल हमने 'कुकी-ज़ो वूमेन्स फोरम' की सह संयोजक Nu Hoinu Touthang से पूछे, उन्होंने कहा कि "हमें अलग प्रशासन इसलिए चाहिए क्योंकि उन्होंने पहले से ही हमें अलग कर दिया है। दूसरा, कोई भी सुविधा आती है वो पहले वैली के पास आती है और फिर हिल्स में (जहां कुकी की जनसंख्या ज़्यादा है) ऐसा क्यों? साथ ही जो भी सुविधाएं हैं जैसे स्कूल, कॉलेज, ऑफिस सब वैली में हैं जिसके लिए हमें अपने घरों को छोड़कर वैली में आना पड़ता है।"

प्रदर्शनकारियों ने आदिवासी गांवों पर हो रहे हमलों को रोकने और समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार के आरोपियों को मौत की सज़ा देने की मांग की।

जामिया मिलिया इस्लामिया के सहायक प्राध्यापक और आयोजनकर्ताओं में से एक लाल्हमिंगमावी गंगते ने कहा, "यह (आदिवासी समुदाय की) सर्वाइवल का मामला है। हम अहिंसा के साथ लड़ाई का प्रयास कर रहे हैं। हमें कुचला जा सकता है, लेकिन हमारा जज़्बा अडिग है। अब राज्य सरकार से अपील करने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि हमें पता है वह इसमें कुछ नहीं करेगी।"

एक अन्य आयोजनकर्ता ने आरोप लगाया कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने आदिवासी समुदाय के मौलिक अधिकारों को छीन लिया है।

प्रदर्शन के दौरान मौन प्रार्थना करती एक प्रदर्शनकारी

चोचोंग हाओकिप नाम के एक शख्स ने सभा से कहा, "इस हिंसा के पीछे मणिपुर की पुलिस और राज्य सरकार मुख्य रूप से दोषी है। हम अपने धर्म का पालन करने का अधिकार मांगते हैं।"

प्रगतिशील महिला संगठन, दिल्ली की महासचिव पूनम कौशिक भी इस प्रोटेस्ट को समर्थन देने पहुंची। उन्होंने कहा कि "अलग प्रशासन की बात करें तो संविधान में ऐसे प्रावधान हैं, और हम समझते हैं कि अगर स्थाई शांति के लिए यही एक रास्ता बचता है कि अलग प्रशासन हो तो केंद्र सरकार को बग़ैर देरी किए इसपर ध्यान देना चाहिए और इसपर बातचीत कर समाधान निकालना चाहिए"

अपनी बात जारी रखते हुए कौशिक कहती हैं, "प्रधानमंत्री जी के ख़िलाफ़ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है...तो ये स्थिति हो गई है कि अब उनके लिए अविश्वास प्रस्ताव पारित करना पड़ रहा है महज़ एक स्टेटमेंट के लिए। इनकी (बीजेपी) महिला मंत्री जो दूसरे प्रदेशों - जहां इनकी सरकार नहीं हैं - में बहुत मुखर होती हैं तो ये दिखाता है कि इनका महिला उत्पीड़न विरोध कितना खोखला है जिसकी हम कड़ी निंदा करते हैं।"

प्रदर्शन के दौरान प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया, जिनके साथ नाइंसाफी हुई उनके लिए मौन रखा गया और साथ ही उम्मीद भरे गाने भी गाए गए। इसके साथ ही जल्द से जल्द अलग प्रशासन बनाने की मांग की गई। इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में युवा पहुंचे थे। एक कुकी लड़की से हमने बात की जो दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रही है, उसने हमसे कहा, "हमें अलग प्रशासन इसलिए चाहिए क्योंकि हमें वैली में जाने नहीं दिया जा रहा, अगर हम वहां एक कदम भी रखेंगे तो हमें मार दिया जाएगा। उन्होंने हमारे घरों को जला दिया हमारी संपत्ति को लूट लिया, औरतों के साथ रेप किया तो अगर हम वापस गए तो हमारे साथ फिर से वही सब होगा, इसलिए हम वापस नहीं जाएंगे।"...कुछ देर ठहर कर इस लड़की ने कहा, "हम जा ही नहीं पाएंगे, हमारा वहां बहुत कुछ है, अगर हम जाना भी चाहें तो नहीं जा पाएंगे और ऐसे हालात के बाद तो हम ख़ुद ही नहीं जाना चाहते।"

वहीं एक प्रदर्शनकारी ने कहा, "हमने पहले अलग प्रशासन नहीं मांगा था, आपको याद होगा 3 मई को बहुत ही शांतिपूर्वक रैली हुई थी लेकिन जब हमारे ऊपर हमले हुए, हमें कत्ल किया गया तो फिर हम कैसे उनके साथ फिर से रह पाएंगे, हमारी तो स्टेट की सरकार भी उनका समर्थन कर रही है, ऐसे में मुझे भविष्य में उनके साथ दोबारा रहने की कोई सूरत नज़र नहीं आती है।"

इस प्रदर्शन के दौरान कई लोगों ने उन घटनाओं को याद किया जो उनके साथ या आस-पड़ोसियों या फिर रिश्तेदारों के साथ हुई। वहां मौजूद कांपते हुए एक लड़के ने उस वीडियो का ज़िक्र किया जिसमें महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न हो रहा था। उस लड़के ने कहा, "मैं उस वीडियो को देख ही नहीं पाया और उसे देखते ही जो बात मेरे ज़ेहन में घूम रही थी वो ये कि ये मेरी मां भी हो सकती थी, ये मेरी बहन भी हो सकती थी।"

मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान हिंसा भड़कने के बाद से राज्य में अब तक 160 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं तथा कई अन्य घायल हुए हैं।

राज्य में मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे अधिकतर पर्वतीय जिलों में रहते हैं।

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इस प्रदर्शन में बहुत से ऐसे लोग भी थे जो अपनी कहानी बयां करने की हिम्मत नहीं रखते, उन्होंने जो झेला उसे बयां करना उनके लिए दोबारा उन्हीं हालात में पहुंच जाने जैसा था। कोई रोते हुए तो कोई सिसकते हुए उन कहानियों को बता रहा था जो पिछले तीन महीने से मणिपुर झेल रहा है। ऐसा लगता है कि पूर्वोत्तर का एक राज्य, जो दिल्ली से बहुत दूर है, उसे और दूर कर दिया गया गया हो।

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