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देहरादून में छाए इंद्रधनुषी रंग, प्यार और बराबरी की मांग को लेकर प्राइड वॉक में झूमे लोग

“इस समय समाज में हमारी स्वीकार्यता पहले की तुलना में अब बढ़ रही है। हमारे समुदाय की एक महत्वपूर्ण मांग समलैंगिक विवाह को लेकर है। हम चाहते हैं कि कानूनी तौर पर हमारे विवाह को मान्यता दी जाए। इससे हमें सामाजिक सुरक्षा भी मिलेगी”।
Same Sex Marriages
देहरादून में प्राइड परेड

देहरादून शहर के बीचोंबीच परेड ग्राउंड में इतवार की दोपहर करीब ढाई-तीन बजे से युवाओं के जुटने का सिलसिला शुरू हुआ। तेज़ धूप के बीच इसी समय आसमान में बादल भी जुटने लगे थे। इन युवाओं में ज्यादातर क्वियर (एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय से ताल्लुक रखने वाले) थे। इन्हें समर्थन देने के लिए आम लोग भी जुट रहे थे।

एलजीबीटीक्यूआईए+ (LGBTQIA+) समुदाय यानी ऐसा समुदाय जो हमारे समाज में स्त्री–पुरुष की परंपरागत या स्थापित पहचानों से अलग अपनी पहचान देखता और बताता है। L- लेस्बियन (समलैंगिक महिला), G- गे (समलैंगिक पुरुष), B- बाइसेक्सुअल (उभयलिंगी), T- ट्रांसजेंडर (जननांग से पुरुष लेकिन मन से स्त्री या जननांग से स्त्री लेकिन मन से पुरुष), Q- क्वियर (जो अपनी स्थापित पहचान को क्योश्चन कर रहा है)। I- इंटरसेक्स, A- एसेक्सयुल (जिसको किसी से भी सेक्सुअल फीलिंग न हो।) और + का मतलब है कि इसमें अभी और भी नई पहचान जुड़ती जा रही हैं।

देहरादून शहर का ये तीसरा गर्वोत्सव यानी प्राइड वॉक था। LGBTQIA+ समुदाय के लोग अपनी पहचान को सेलिब्रेट करने, जागरुकता लाने, बराबरी की मांग और खुद के साथ होने वाले भेदभाव के प्रतिरोध के रूप में देशभर में इस तरह की प्राइड वॉक का आयोजन करते हैं।

देहरादून की संस्था परियोजन कल्याण समिति और क्वियर कलेक्टिव ने इस प्राइड परेड का आयोजन किया। परियोजन संस्था से जुड़ी नताशा नेगी कहती हैं “देशभर से खूबसूरत चेहरे यहां जुटे हैं। हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि हम भी इसी समाज का हिस्सा हैं। हमारी सेक्सुएलिटी (लैंगिकता) और जेंडर (लिंग) पर हमें गर्व है”।

LGBTQIA+ समुदाय की पहचान का सेलिब्रेशन है गर्वोत्सव

आजीविका के अवसरों की मांग

नताशा आगे कहती हैं कि नौकरी या आजीविका का साधन हासिल करना ट्रांसजेंडर समाज की बड़ी चुनौतियों में से एक है। “हमारे बीच के बहुत से लोग फैशन, टेक्स्टाइल समेत कई क्षेत्रों में बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और समाज में अपना योगदान दे रहे हैं। मैं ऐसे लोगों को भी जानती हूं जो सरकारी नौकरियों में हैं लेकिन अपनी पहचान छिपाकर जी रहे हैं। एक समय था जब ट्रांसजेडंर के लिए भीख मांगना या सेक्स वर्क करने जैसे ही विकल्प थे लेकिन अब बदलाव आ रहा है। हमें सरकार के सपोर्ट की जरूरत है। हमें नहीं पता कि हम किसी कार्यस्थल पर जाएंगे तो वहां मौजूद लोग हमें कितनी सहजता से लेंगे। क्या उनका जेंडर सेंसेटाइजेशन किया गया है।”

देहरादून क्वियर कलेक्टिव संस्था के संस्थापक हरदीप सिंह समुदाय के अधिकारों के लिए नौकरी में समान अधिकार, समलैंगिक विवाह, शिशु गोद लेने जैसे कानूनी अधिकार की मांग करते हैं।

क्वियर कलेक्टिव संस्था के हरदीप सिंह इसी बात को आगे बढ़ाते हैं। “कार्यस्थल पर विविधता लाने के लिए सरकार को नीति बनानी पड़ेगी। ताकि निजी कंपनियां नौकरियों में स्त्री-पुरुष और क्वियर सभी को शामिल करें। हमारे जैसी संस्थाओं का दायरा इतना बड़ा नहीं है कि पूरे समाज को बदल सकें। लेकिन सरकार LGBTQIA+ समुदाय के लिए कानून और नीतियां लाएगी तो नौकरियों में इस समुदाय को लाना और कार्यस्थल पर उनके लिए सुविधाएं जुटाना संभव हो सकेगा”।

हरदीप कहते हैं कि देहरादून में हो रहे इस प्राइड वॉक का उद्देश्य हमारी पहचान को सेलिब्रेट करने के साथ ही समाज में अपना प्रतिरोध दर्ज कराना भी है। “हम जैसे हैं वैसे ही खुद पर गर्व करते हैं। सभी सोचते हैं कि हमारे साथ कुछ गड़बड़ी है। लेकिन हमारे साथ कोई गड़बड़ी नहीं है। हम अपने लिए कानूनी तौर पर बराबरी की मांग करते हैं। समलैंगिक विवाह और शिशु गोद लेने का कानूनी अधिकार चाहते हैं।”

प्राइड परेड में समलैंगिक विवाह के कानूनी अधिकार की मांग की गई।

समलैंगिक विवाह के कानूनी अधिकार की मांग

प्राइड परेड में शामिल होने आए चेहरों पर इंद्रधनुषी रंग उकेरे जा रहे थे। गुब्बारों, बहुरंगी छतरियों, बैनर, पोस्टर्स, प्रतीकों, संदेशों और खूबसूरत मेकअप से लकदक चेहरों ने माहौल में उत्सव के रंग भर दिए। तेज़ धूप की जगह नर्म हवाओं ने ले ली थी। LGBTQIA+ युवा भी अपने जीवन की कठिन राहों को आसान बनाने के लिए कानूनी अधिकार की छांव मांग रहे थे।

परियोजन कल्याण संस्था के सागर डोगरा कहते हैं “इस समय समाज में हमारी स्वीकार्यता पहले की तुलना में अब बढ़ रही है। हमारे समुदाय की एक महत्वपूर्ण मांग समलैंगिक विवाह को लेकर है। बहुत से LGBTQIA+ लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। समलैंगिक महिला या समलैंगिक पुरुष एक साथ रह रहे हैं लेकिन वे शादी नहीं कर सकते। वे चाहते हैं कि कानूनी तौर पर उनके विवाह को मान्यता दी जाए। इससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी मिलेगी”।

“देवभूमि उत्तराखंड में गर्वोत्सव अच्छा नहीं लगेगा”, सागर बताते हैं कि देहरादून में इस गर्वोत्सव यानी प्राइड वॉक के आयोजन की अनुमति के लिए इस तरह की बातें भी सुननी पड़ी। “हम कुदरती तौर पर ऐसे हैं। स्त्री के शरीर में पुरुष या पुरुष के शरीर में स्त्री। आप बताइये एक स्त्री कितने दिनों तक पुरुष होने का अभिनय कर सकती है या एक पुरुष कितने दिनों तक स्त्री होने का अभिनय कर सकता है। हमारी पूरी ज़िंदगी इस फेर में है। पुरुष शरीर के भीतर जी रही स्त्री को स्त्री की तरह जीने का अधिकार और सामाजिक स्वीकार्यता चाहिए। पढ़े-लिखे लोग फिर भी समझ रहे हैं लेकिन पहाड़ के गांवों में लोगों को जानकारी नहीं है। इसलिए वहां मुश्किलें अधिक हैं”।

सागर चाहते हैं कि स्कूल-कॉलेज में पाठ्यक्रमों में स्त्री-पुरुष के साथ ट्रांसजेंडर, समलैंगिक पुरुष, समलैंगिक महिलाओं के बारे में जानकारी दी जाए।

LGBTQIA+ समुदाय के गर्वोत्सव को देहरादून के अन्य लोगों ने भी दिया समर्थन।

एचआईवी का ख़तरा!

शबाना मलिक ट्रांसजेंडर समुदाय के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर पिछले 3 वर्ष से शोध कार्य कर रही हैं। यहां भी वे समुदाय के युवाओं से बातचीत करती मिलीं। वह कहती हैं “ट्रांसजेंडर युवाओं में एचआईवी का बड़ा खतरा है। बहुत से युवा सेक्स वर्क से भी जुड़े हैं, जिसके चलते इस बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। एचआईवी के इलाज के लिए सरकार की तरफ से निशुल्क व्यवस्था है लेकिन युवाओं को इसकी जानकारी नहीं है”।

शबाना कहती हैं कि सारी समस्याएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इन बच्चों को जब उनका अपना ही परिवार स्वीकार नहीं करता तो वे घर छोड़ देते हैं। उनके सामने आजीविका का संकट होता है। काम नहीं मिलने से वे सेक्स वर्क में आ जाते हैं। प्रतिबंधित दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए बदलाव की शुरुआत परिवार से ही करनी होगी।

नताशा और वेंकटेश। कोलकाता से वेंकटेश देहरादून की प्राइड परेड में शामिल होने के लिए आए।

लंबे संघर्ष का सफ़र है प्राइड परेड

लंबी कद-काठी के वेंकटेश माथे पर बिंदी लगाए, नाक में नथ, लंबी स्कर्ट पहने और हाथ में बहुरंगी छतरी लिए आए तो बहुत सारे युवा उन्हें गले लगाने दौड़ पड़े। उनकी टीशर्ट पर कई प्राइड परेड के बैज लगे थे।

वेंकटेश कोलकाता से देहरादून प्राइड परेड में शामिल होने आए। वह अब तक देशभर के 58 प्राइड परेड में शामिल हो चुके हैं।

“LGBTQIA+ समुदाय के समर्थन में जुटे लोगों को देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। हालांकि वर्ष 2022 में भी हम प्यार और बराबरी की जितनी भी बात कर रहे हैं लेकिन समाज की मानसिकता अब भी बहुत रुढ़िवादी है। मेरी तरह कोई लड़का नेलपॉलिश लगाता है, स्कर्ट पहनता है या नाक में नथ पहनता है तो इन आधार पर लोग उसके बारे में अपनी राय बनाते हैं। हमारे सामने अब भी कई चुनौतियां हैं। हमारा देश अब भी हमें समलैंगिक विवाह का कानूनी अधिकार नहीं देता है”।

15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट से पास हुआ नालसा जजमेंट ट्रांसजेंडर की दशा सुधारने का ऐतिहासिक फैसला था। जिसमें पहली बार उन्हें तीसरे जेंडर के तौर पर पहचान मिली। लैंगिक समानता की दिशा में ये फैसला महत्वपूर्ण माना जाता है।

वेंकटेश ऐतिहासिक नालसा फैसले का ज़िक्र करते हुए कहते हैं “नालसा जजमेंट को अब 8 साल हो चुके हैं। लेकिन अब भी ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों को बहुत सी जगहों जैसे शैक्षिक संस्थान, विद्यालय, अस्पताल में स्वीकार नहीं किया जा रहा है। कोविड महामारी के समय में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कहीं भी अलग वार्ड नहीं बनाए गए। आइसोलेशन सेंटर्स में ट्रांसजेंडर्स के लिए बेड नहीं थे। हमारा ये प्राइड परेड एक दिन का नहीं है। हम पूरे साल समुदाय से जुड़े मुद्दों पर कार्य करते हैं”।

देशभर के प्राइड परेड के अपने अनुभव से वेंकेटेश कहते हैं “मैं महानगरों के अलावा छोटे शहरों और गांवों में भी जाता हूं और देखता हूं कि छोटे शहरों में चुनौतियां अधिक बड़ी हैं। महानगरों में कई संस्थाएं हैं जिनसे हम जुड़ सकते हैं, अपनी बात कर सकते हैं, लेकिन छोटे शहर-गांवों में अब भी क्वियर लोग खुलकर नहीं जी सकते”।

वह आगे कहते हैं, “आज की प्राइड वॉक मोहब्बत और बराबरी को सेलिब्रेट करने के लिए है। मैं उम्मीद करता हूं कि देहरादून पर ये इंद्रधनुषी रंग और गहराएगा”।

देहरादून की सड़कों पर बराबरी और अधिकार की मांग करता हुआ निकला कारवां।

गर्वोत्सव

माहौल में संगीत घुलने लगा था। ढोल की थाप पर स्त्री, पुरुष, क्वियर सभी थिरक रहे थे। झूम रहे थे। ट्रांसजेंडर के साथ इनमें युवा समलैंगिक स्त्री और पुरुषों के जोड़े भी थे। जो अपने साथी का हाथ पकड़कर नृत्य कर रहे थे। आसमान में छाए बादल अब इतने घने हो चुके थे कि बारिश में उतरने के सिवा कोई चारा नहीं बचा था। सदियों की उपेक्षा झेल रहे ट्रांसजेंडर भी बारिश की तरह बरस रहे थे। शुरू में कुछ सकुचाए समलैंगिक चेहरे भी दिखे थे। लेकिन अब सिर्फ गर्वोत्सव दिख रहा था। बारिश की तेज़ बौछारों के बीच देवभूमि की मुख्य सड़कों पर मोहब्बत और बराबरी की मांग को लेकर उतरा काफिला झूमता-गाता बढ़ चला था।

सभी तस्वीरें- वर्षा सिंह

(देहरादून स्थित लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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