Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

तमिलनाडु की स्वास्थ्य शिविरों में पारदर्शिता की कमी: स्वास्थ्य विशेषज्ञ

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा, लोगों के स्वास्थ्य की ज़रूरतें और इससे संबंधित विचार नीति निर्माताओं तक नहीं पहुंचाए जाते हैं।
health
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

तमिलनाडु सरकार लगातार दूसरे वर्ष संबंधित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सूचकांको को बढ़ाने के लिए ज़िला स्तरीय स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन कर रही है। वर्ष 2022-23 के लिए 38 में से 16 ज़िले चयनित किए गए हैं। इन सभाओं का उद्देश्य समाज की सहभागिता और पारदर्शिता को बढ़ाना है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह स्वागत योग्य कार्य है पर इसके ‘सीमित’ कार्यान्वयन को इसकी कमी बताया।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले सोशल ऑडिट कंसल्टेंट एम. करुणा ने कहा, “स्वास्थ्य सभाओं का यदि ठीक से कार्यान्वयन किया जाए तो यह लोगों की सहभागिता बढाने में बहुत ही सशक्त तंत्र साबित होगा और स्वास्थ्य प्रणाली में बहुत सुधार होगा साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र अधिक उत्तरदायी होगा।

डॉक्टर सुंदररमन ने कहा, “ यह एक ऐसा उदाहरण है जिसे अन्य राज्यों को भी अपनाना चाहिए। बेशक यह अच्छी भावना है पर राज्यों को इसे रोज़मर्रा के किए जाने वाले कार्यों की तरह नहीं लेना चाहिए। उन्हें इसे समाज की भूमिका को और अधिक समझ के साथ करने की आवश्यकता है।

ये शिविर विश्व बैंक द्वारा उल्लिखित आठ बिंदुओं से जुड़े संकेतकों (डीएलआई) में से एक है। लक्ष्य प्राप्त होने पर बैंक धनराशी प्रदान करता है।

पृष्ठभूमि

ये शिविर स्वास्थ्य प्रणाली सुधार कार्यक्रम का हिस्सा हैं। इसकी घोषणा एडाप्पडी के. पलानिस्वामी के नेतृत्व वाली AIADMK सरकार ने की थी। इसकी परिचालन योजना विश्व बैंक टास्क टीम के साथ 2019-20 में हुई चर्चा में विकसित की गई थी।

हालांकि लॉक डाउन की वजह से इन शिविरों का कार्यान्वयन मार्च 2022 में हुआ था। पहली शिविर का उद्घाटन मुख्यमंत्री एमके स्टॅलिन ने किया था। वर्ष 2021-22 में ज़्यादातर शिविरों का आयोजन ऑनलाइन हुआ था। ब्लॉक और ज़िला स्वास्थ्य शिविर कब और कहां आयोजित की जाती हैं इसकी सूचना सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। स्वास्थ्य स्वच्छता समिति के अंतर्गत गांव स्तर की मीटिंग आयोजित की जाती हैं। इस मीटिंग के बाद ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर को प्रस्ताव पारित किए जाते हैं कुछ का समाधान यहां हो जाता है और बाक़ी ज़िले को भेज दिए जाते हैं।

अपनाए गए प्रस्तावों को ज़िला स्वास्थ्य शिविरों में रखा जाता है जिनमें 150-200 लोग सहभागिता करते हैं जिनमें प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता, चुने गए प्रतिनिधि और आमजन भी शामिल होते हैं।

समाधान के रास्ते

हालांकि जबाबदेही और पारदर्शिता ग़ायब है। करुणा पूछते हैं, “ हर ज़िले में सैकड़ों प्रस्ताव होते हैं, पर उन में से सिर्फ़ 5 या 10 सरकार तक पहुंचते हैं और इन्हीं को संबोधित करते हुए शासनादेश जारी किए जाते हैं लेकिन अन्य प्रस्तावों का क्या?”

राज्य स्वास्थ शिविर का आयोजन मार्च 2023 में किया जाएगा। उन्होंने कहा, “सभी प्रस्तावों को सूचीबद्ध किया जाना चाहिए और उनकी सार्वजनिक सूचना प्रबंधन प्रणाली (MIS) में प्रविष्टि करा देनी चाहिए। हर प्रस्ताव का व्यक्तिगत जवाब दिया जाना चाहिए और उसे सार्वजनिक रूप में भी उपलब्ध करना चाहिए।“

MIS एक व्यवस्थित प्रणाली है जो सूचनाओं के रूप में डेटा को एकत्रित, संग्रहित और प्रसारित करती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर चिंता व्यक्त करते हैं कि शिविरों में उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए जो धनराशी आवंटित की जाती है वह बहुत सीमित होती है। उन्हें लगता है कि शिविरों की मदद के लिए एक निश्चित धनराशि निर्धारित हो जिसे राज्य के बजट में समाहित किया जाए।

मुख्य उद्देश्य पूरा नहीं होता

शिविरों के माध्यम से लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं उनके विचारों को चर्चा और विमर्शों के माध्यम से नीति निर्माताओं तक पहुंचना चाहिए। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ये उद्देश्य पूरा नहीं होता।

जन स्वास्थ्य मुहिम के पूर्व वैश्विक समन्वयक डॉ. टी. सुंदररमन कहते हैं, “ शिविरों का मुख्य उद्देश्य अभी भी पूरा नहीं हुआ है। ये आंतरिक विभाग की समीक्षा मीटिंग जैसी हो गई हैं।“ वे आगे कहते हैं, “ इन शिविरों में अधिक ग़ैर-सरकारी संगठन शामिल नहीं हैं। कुछ सेवा प्रदाता संगठन जुड़े हैं। पर अधिकार संगठनों और कमज़ोर वर्गों के जन प्रतिनिधियों को इनमें समाहित किया जाना चाहिए।“

सरकार का नियंत्रण

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि इन शिविरों में व्यापक विषयों की चर्चा जिसमें आंगनवाड़ी, जल, सड़क और अन्य सुविधाओं की चर्चा शामिल है, की जा सकती है, पर इन शिविरों में भागीदारी करने वालों को यह समझ नहीं है।

सुंदररमन कहते हैं कि भागीदारों की चिंताएं बुनियादी ढांचे की कमियों तक सीमित हैं जैसे कि शौचालय, चहारदीवारी और मौजूदा चयनित सेवाएं। पर स्वास्थ्य स्थितियों की व्यापक श्रेणी जैसे मानव संसाधन की कमी, कमज़ोर आपातकालीन सेवाएं आदि सामने नहीं आती हैं या उन पर चर्चा नहीं होती है।“

उन्होंने राज्य सरकारों और स्वास्थ्य विभागों द्वारा किए जाने वाले अनौपचारिक नियंत्रणों के बारे भी चिंता व्यक्त की जो इन शिविरों के उद्देश्यों को कमज़ोर करती हैं।

करुणा ने कहा –“स्टाफ की कमी होना बड़ा मुद्दा है पर भागीदारों से कहा जाता है कि सभी पद भर दिए गए हैं अब कोई वैकेंसी नहीं है और इस मुद्दे को नहीं उठाने को कहा जाता है।“

वे ज़ोर देकर कहते हैं कि, “ विभाग को स्वीकृत और भरे गए पदों का विवरण देना चाहिए। उन्हें यह भी साझा करना चाहिए स्वीकृत पद भारतीय जन स्वास्थ्य मानकों का अनुपालन करते हैं या नहीं।“

उन्होंने कहा कि-“स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के बड़े परिणाम हो सकते हैं। अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों जैसे आंगनवाड़ी कर्मचारी और नर्सों की कमी से कुपोषण बढेगा, रोग प्रतिरोधक दर कम होगी और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पडेगा।“

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Experts Question ‘Lack’ of Transparency in Tamil Nadu Health Assemblies

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest