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तमिलनाडु: क्या राजकीय सम्मान प्रेरित करेगा अंगदान के लिए

यह शरीर भी एक मशीन की ही तरह काम करता है। जैसे मशीन की समय-समय पर मरम्मत की ज़रूरत पड़ती है, उसी तरह से शरीर की भी मरम्मत की ज़रूरत होती है। हमारे डॉक्टर एक तरह से हमारे शरीर के मैकेनिक ही हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : गूगल

जो भी इस धरती पर आता है, यहां ज्यादा से ज्यादा जीना चाहता है। हमारे भारतीय समाज में तो यह लालसा कुछ और ही ज्यादा है। इसीलिए जब आप किसी के पांव छूते हैं या प्रणाम करते हैं तो लोग शतायु होने का आशीर्वाद देते हैं। भारतीय माएं तो जब छोटे बच्चे को छींक भी आती है तो उसे शतायु होने का आशीर्वाद देती हैं। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि वर्तमान समय में सौ साल का जीवन बिरलों को ही नसीब होता है। किसी समय में जीवन को जब चार हिस्सों ( ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ) में बांटा गया था तब व्यक्ति की उम्र की कल्पना सौ साल की गई थी। हर हिस्से को 25-25 साल दिया गया था। लेकिन आज चिकित्सा विज्ञान में इतने विकास के बावजूद भारत में व्यक्ति की औसत आयु अभी भी सत्तर के आस-पास ही है। पश्चिम के कुछ देशों और जापान में जरूर यह अस्सी पार है। पहले तो भारत में औसत आयु और भी कम थी। गुलामी के दिनों में चालीस से भी कम थी। फिर बढ़कर पचास के करीब हुई, फिर साठ। इसीलिए रिटायर की उम्र तब 58 साल रखी गई थी। लेकिन जब औसत उम्र बढ़कर चौसठ साल हुई तो रिटायर की उम्र बढ़ाकर साठ साल कर दी गई। फिर 67 साल औसत उम्र हुई और अब 71 साल हो गई है।

इसमें से कुछ लोग अभी भी जितना जी रहे हैं, उससे ज्यादा जी सकते हैं। बशर्ते कि उनके शरीर के जो अंग खराब हुए हैं उन्हें बदल दिया जाए। यह शरीर भी एक मशीन की ही तरह काम करता है। जैसे मशीन की समय-समय पर मरम्मत की जरूरत पड़ती है, उसी तरह से शरीर की भी मरम्मत की जरूरत होती है। हमारे डॉक्टर एक तरह से हमारे शरीर के मैकेनिक ही हैं। जिस तरह से मशीन का कोई पुर्जा खराब होने पर उसे बदल दिया जाता है और मशीन पहले की ही तरह ठीक से काम करने लगती है और उसका जीवन भी बढ़ जाता है, वैसे ही मानव शरीर के साथ भी होता है। मानव शरीर के किसी अंग ने अगर काम करना बंद कर दिया तो आदमी बीमार पड़ा जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन उस अंग को बदल दिया जाए, प्रत्यारोपित कर दिया जाए तो व्यक्ति लंबे समय तक जीवित रहता है। लेकिन मुश्किल ये है कि उन अंगों को बदलने के लिए हमारे पास वो अंग नहीं होते क्योंकि अंग तब मिलेंगे जब हम खुद अपने अंगों का दान करेंगे। तमिलनाडु सरकार ने इन्हीं अंगों के दान के लिए एक योजना शुरू की है। वहां की एमके स्टालिन सरकार ने एलान किया है कि मृत्यु से पहले अंगदान करने वालों का राज्य सरकार पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करेगी। यह राज्य सरकार की बहुत बड़ी पहल है।

आज भी जब हम किसी का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होते देखते हैं तो हमारे मन में उस व्यक्ति के प्रति सम्मान की भावना जगती है। हमें महसूस होता है कि इस व्यक्ति ने देश और समाज के लिए अमूल्य योगदान दिया है, इसीलिए इसका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा है। अब यह अवसर तमिलनाडु में अंगदान करने वालों को भी मिलेगा, इसलिए इसमें कोई संशय नहीं कि लोग इससे प्रेरित होंगे और जरूरतमंद लोगों के लिए उनके अंग उपलब्ध हो सकेंगे।

वैसे भी थोड़ा भी समझदार व्यक्ति जानता है कि मृत्यु के बाद यह शरीर खाक में मिल जाना है। मृत्यु के बाद घर वाले भी शरीर को लंबे समय तक घर में नहीं रखना चाहते। ऐसे में व्यक्ति अपने जीते जी अपने अंगों को दान करने की पहल कर सकता है। वह अपने घर वालों को समझा भी सकता है कि मृत्यु के बाद भी उसका शरीर किसी और को जीवन दे सकता है। यह उसके और घर वालों के लिए त्याग और गर्व की अनुभूति करा सकता है। आप इस तर्क को थोड़ा अमानवीय कह सकते हैं पर सच यह है कि अंतिम संस्कार में भी आजकल बहुत पैसा खर्च होता है। देश की एक बड़ी आबादी तो अपने परिजनों का अंतिम संस्कार विधिवत नहीं कर पाती। वे या तो उनके शवों को बिना किसी धार्मिक विधि विधान के किसी नदी में बहा देते हैं या जमीन में दफना देते हैं। कोरोना काल में जो शव गंगा किनारे बालू में दफनाए गए या गंगा या और नदियों में प्रवाहित किये गए वे ऐसे ही थे। क्योंकि उनके परिवार वालों की माली हालत बहुत खराब हो चुकी थी। जो कुछ उनके पास पैसा था वे अपने परिजन को बचाने के लिए उसके इलाज में खर्च कर चुके थे। लेकिन आखिर में जब वह नहीं बचा तो उनके पास उन्हें बहाने या दफनाने के सिवा और कोई चारा नहीं था।

अंगदान और देहदान की कमी

अभी फिलहाल भारत में अंगदान बहुत कम होता है। देहदान तो उससे भी कम। देश में 63 हजार लोगों की रोज मृत्यु होती है लेकिन उनमें से केवल 0.001 प्रतिशत लोग ही अपने देहदान का इंतजाम करके जाते हैं।

देहदान से जुड़ी एक संस्था ऑर्गन इंडिया डॉट कॉम के अनुसार देश में करीब 50 हजार लोगों को हॉर्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत रहती है। लेकिन ये जरूरत तभी पूरी हो सकती है जब लोग अपनी देहदान करें।

बात अंगदान की करें तो देश में हर साल करीब पांच लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। लेकिन उनमें से बहुत कम लोग ही भाग्यशाली होते हैं जिनके अंगों का प्रत्यारोपण हो पाता है। जबकि देश में डेढ़ लाख लोगों के गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत है पर उपलब्ध हो पाते हैं महज पांच हजार। इसी तरह 50 हजार लोगों के दिल के प्रत्यरोपण की जरूरत है पर मिल पाते हैं बहुत कम। इसी तरह 50 हजार लोगों को लीवर प्रत्यारोपण का इंतजार है लेकिन मिलता है सिर्फ 700 लोगों को। औसतन अगर पांच हजार लोगों को अंग प्रत्यारोपण का इंतजार है तो उनमें से सिर्फ एक को मिल पाता है। अंग न मिलने के कारण दुनिया भर में पांच लाख लोगों की मौत हो जाती है। इनमें दो-दो लाख दिल और लीवर के मरीज होते हैं।

दिसंबर 2018 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से राज्य सभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी गई कि भारत में प्रति वर्ष करीब दो लाख गुर्दे, तीस हजार दिल और दस लाख आंख ( कॉर्निया ) की जरूरत है। जबकि केवल 340 दिल और एक लाख आंख उपलब्ध हैं।

भारत में अंगदान दूसरे देशों की तुलना में बहुत ही कम होता है। यहां प्रति दस लाख लोगों में अंगदान करने वालों की संख्या एक से भी कम है। जबकि इसके मुकाबले दुनिया के बाकी देशों में यह औसत काफी अच्छा है। आकार और आबादी के हिसाब से स्पेन, क्रोएशिया, इटली और ऑस्ट्रिया जैसे देश भारत से काफी आगे हैं। प्रति दस लाख आबादी पर अंगदान करने वालों की संख्या भारत में 0.34 है जबकि स्पेन में 34, क्रोएशिया में 33.5, फ्रांस में 25, अमेरिका में 24, ऑस्ट्रिया में 23, इटली में 20, जर्मनी में 16 और अर्जेंटीना में 12 है।

अंगदान के मामले में भारत के दक्षिणी और पश्चिमी राज्य ज्यादा बेहतर हैं। सबसे आगे तमिलनाडु, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश हैं। 2018 में तेलंगाना में प्रति दस लाख में से 167 लोगों ने अंगदान किया। जबकि तमिलनाडु में 137, महाराष्ट्र में 132, आंध्र प्रदेश में 45 और चंडीगढ़ में 35 लोगों ने अंगदान किया। तमिलनाडु ने पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है। यहां प्रति वर्ष करीब 80 हजार कॉर्निया का अंगदान हुआ है। 2020 में अंगदान तथा प्रत्यारोपण के मामले में महाराष्ट्र ने तमिलनाडु और तेलंगाना को पीछे छोड़ दिया।

ज़्यादा अंगदान क्यों नहीं

भारत में ज्यादा अंगदान न होने के तीन प्रमुख कारण हैं। पहला, जागरूकता की कमी और अज्ञानता, दूसरा, हमारी सामाजिक मान्यताएं और तीसरा आधारभूत संरचना की कमी। हमारा देश मूल रूप से आस्तिकों का देश है। देश की 80 प्रतिशत आबादी हिंदू है और हिंदुओं में व्यावहारिक रूप से गीता का वेदों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान है। ये बात लगभग हर किसी को पता है कि यह शरीर नश्वर है। इसके लिए मोह नहीं करना चाहिए। गीता में कहा भी गया है कि शरीर नश्वर है। आत्मा तो अजर-अमर है। यह शरीर आत्मा का वस्त्र है। जिस तरह से मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है उसी तरह से यह आत्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। लोग पुराने वस्त्र तो बदल देते हैं, उन्हें गरीब लोगों को दान भी कर देते हैं लेकिन शरीर के अंगों के मामले में ये दृष्टिकोण नहीं अपनाते। वे इस मामले में दकियानूसी सोच के शिकार हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि ईश्वर ने जिस शरीर को जिस रूप में दिया है उसे उसी रूप में उन्हें लौटा देना चाहिए। इसीलिए वे इस शरीर के चीर-फाड़ के खिलाफ होते हैं। कुछ लोगों के घर वाले तो पोस्टमार्टम के भी खिलाफ होते हैं। मजबूरी और बेबसी में ही पोस्टमार्टम कराने को तैयार होते हैं। इसीलिए वे अंगदान के बारे में भी तैयार नहीं होते। कई बार यह देखा जाता है कि दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले अंग विफतला से पीड़ित लोगों को अंगदान और अंग प्रत्यारोपण जैसी प्रणाली के बारे में पता ही नहीं होता है। अगर उन्हें पता हो कि इन अंगों के प्रत्यारोपण से उनकी जान बच सकती है तो वे कुछ हद तक उनके परिजन अंगदान को भी तैयार हो सकते हैं।

देश के ज्यादातर अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण की व्यवस्था नहीं है। 2017 के आंकड़ों के अनुसार देश में 301 अस्पताल ऐसे हैं जहां अंग प्रत्यारोपण जैसे उपकरण मौजूद हैं। इसमें भी केवल 250 अस्पताल ही राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन ( एन ओ टी टी ओ ) के साथ पंजीकृत हैं। इससे पता चलता है कि करीब 43 लाख लोगों के बीच सिर्फ एक अस्पताल है जहां अंग प्रत्यारोपण के उपकरण मौजूद हैं। उनमें भी बहुतायत कॉरपोरेट अस्पतालों की है।

अंगदान बढ़ाने की कोशिशें

पिछले साल सरकार ने संसद में बताया था कि पिछले वर्ष देशभर में अंगदान बढ़ा है। लेकिन यह मांग की तुलना में अभी भी बहुत कम है। देश में कोरोना के दौर में साल 2020 में अंगदान कमोबेश खत्म हो गया था। उस वर्ष 7519 अंगदान ही हुए। लेकिन उसके बाद के दो सालों में इसमें कुछ तेजी आई है। 2021 में देशभर में 12,387 अंग मृत्यु के बाद या जिंदा लोगों द्वारा दान किये गए। 2021 में हुए कुल अंगदान में 85 प्रतिशत योगदान पांच राज्यों का था। ये राज्य हैं-तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और दिल्ली। इसका श्रेय इन राज्यों में मेडिकल हब और अनुभवी तथा योग्य डॉक्टरों को दिया जा सकता है। हाल के वर्षों में सबसे ज्यादा अंगदान 2019 में हुआ। इस वर्ष 12,746 लोगों ने अंगदान किया। ज्यादातर अंगदान उन लोगों के किए गए जिनका या तो ब्रेन डेड हो गया था या फिर हृदय गति रुकने से मौत हुई थी।

केंद्र सरकार ने अंगदान को बढ़ावा देने और अंग प्रत्यारोपण में गलत प्रवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए 1994 में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम बनाया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य चिकित्सकीय प्रयोजनों के लिए मानव अंगों के निष्कासन, भंडारण और प्रत्यारोपण को विनयमित बनाना था। इसका यह भी उद्देश्य था कि मानव अंगों का वाणिज्यिक प्रयोग न किया जा सके। इस अधिनियम के तहत माता-पिता, सगे भाई-बहन, पति-पत्नी ही प्रत्यारोपण के लिए अंगदान कर सकते थे। बाकी किसी के अंग का प्रत्यारोपण गैर कानूनी घोषित किया गया। 1999 में इस अधिनियम में संशोधन करके इसमें चाचा-चाची, मौसा-मौसी और बुआ आदि को भी जोड़ दिया गया। 2011 में उन लोगों को भी अंग प्रत्यारोपण की अनुमति दी गई जिनका मरीज से भावनात्मक लगाव हो। 2014 में मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 2014 लाया गया जिसमें अंगदान के कार्य को सहज, सरल और पारदर्शी बनाया गया। साथ ही नियमों की गलत व्याख्या रोकने का भी प्रावधान किया गया। यदि अंगदान हासिल करने वाला विदेशी नागरिक हो और दानदाता भारतीय तो बगैर निकट रिश्तेदारी के प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं मिलेगी और इस बारे में निर्णय प्राधिकार समिति द्वारा लिया जाएगा। अब इसी कड़ी में तमिलनाडु सरकार ने मृत्यु से पहले अंगदान करने वाले राज्य के लोगों का राजकीय ढंग से अंतिम संस्कार करने का एलान करके बड़ी और सार्थक पहल की है।

हालांकि प्रत्यारोपण की प्रक्रिया जटिल और काफी खर्चीली है। आम तौर पर अंग प्रत्यारोपण पर पांच लाख से 25 लाख तक का खर्चा आता है। इसलिए गरीब और मध्य वर्ग के बूते का तो यह है नहीं। सिर्फ धनी-मानी वर्ग ही अंग प्रत्यारोपण करा पाते हैं। शायद अंगदान ज्यादा न होने के कारणों में यह भी एक कारण है। अगर अंग प्रत्यारोपण का खर्च कम हो तो गरीब और मध्य वर्ग भी इसका लाभ उठा सकता है। तब शायद इस वर्ग के लोग भी ज्यादा संख्या में अंगदान के बारे में सोचें। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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