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प्रगतिशील साहित्य और हिन्द-पाक दोस्ती की बात करता लाहौर का फ़ैज़ फेस्टीवल

शायर और गीतकार जावेद अख़्तर के बयान के अलावा भी बहुत कुछ ख़ास रहा इस फ़ैज़ फेस्टीवल में। बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार शिव इंदर सिंह
faiz festival
फ़ोटो साभार: स्क्रीनशॉट/यूट्यूब

भारतीय मीडिया में ‘फ़ैज़ फेस्टीवल’ का ज़िक्र गीतकार जावेद अख़्तर के उस बयान से होता है जिसमें ‘फ़ैज़ फेस्टीवल 2023’ में भाग लेने गये गीतकार ने इस मेले में एक सैशन के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा कि 26/11 मुंबई हमले के आरोपी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं। जावेद के इसी बयान को भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से ने मसाला लगा कर दिखाना और छापना शुरू कर दिया कि ‘जावेद अख़्तर ने पाकिस्तान को खरी खरी सुनाई’ ‘घर में घुस कर मारा’ वगैरा वगैरा.... हालाँकि जावेद अख़्तर की बातों पर ‘फ़ैज़ फेस्टीवल’ में बैठे दर्शकों ने तालियाँ भी बजायीं।

जावेद ने भारत-पाक दोस्ती की बात करते हुए दोनों देशों को एक दूसरे को नजदीक से समझने का सुझाव दिया। जावेद ने एक भारतीय टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए भारत सरकार और भारतीय लोगों को यह भी कहा कि पाकिस्तान के हुक्मरानों से हमारे मतभेद हो सकते हैं पर पाकिस्तान की अवाम से किस बात की नाराजगी? पाकिस्तान की आम जनता भारत से दोस्ती चाहती है। जावेद ने यह भी कहा कि इस दौरे के दौरान पाकिस्तान के लोगों ने उन्हें बहुत प्यार दिया।

भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से द्वारा बचकाने ढंग से पेश की गई खबर ने लाहौर में 17 फरवरी से 19 फरवरी तक चले ‘फ़ैज़ फेस्टीवल 2023’ की खूबियों को आगे आने नहीं दिया। साहित्य, कला, संगीत और प्रगतिशील विचारों से जुड़ा ‘सातवां इंटरनेशनल फ़ैज़ फेस्टीवल 23’ फ़ैज़ फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा लाहौर आर्ट्स कौंसिल के सहयोग से अलहमरा आर्ट सेंटर माल रोड में सम्पन्न हुआ। जिसमें पाकिस्तान, भारत और दुनिया के अन्य देशों से कला, साहित्य, संगीत, फ़िल्मी दुनिया से जुड़ी हस्तियाँ और प्रगतिशील विचारों के चिंतक शामिल हुए। यह पाकिस्तान के साहित्यिक मेलों में से सबसे हरमन प्यारा मेला है। मेले की मुख्य प्रबंधक फ़ैज़ के परिवार से उनकी बेटियाँ सलीमा हाशमी और मुनीज़ा हाशमी हैं।

इस बार भारत से मशहूर गीतकार जावेद अख़्तर, मुंबई से साहित्यकार अतुल तिवारी और अमृतसर से अर्तिंदर सिंह ने फ़ैज़ मेले में विशेष रूप से शिरकत की। यह मेला अलहमरा आर्ट सेंटर के तीनों बड़े हालों में एक साथ सुबह 11 बजे से लेकर रात के 12 बजे तक तीन दिन तक चला, जिसमें फ़ैज़ की शायरी, पाकिस्तान में प्रगतिशील तहरीक पर चर्चा हुई। अलग-अलग सेशनों में विभिन्न क्षेत्रों से आयीं मशहूर हस्तियों से बातचीत हुई। संगीत सेशन चला जिसमें पाकिस्तान के मशहूर ‘लाल बैंड’ ने मेले में आये लोगों का दिल जीत लिया। उर्दू, अंग्रेजी और पंजाबी की नई किताबों का विमोचन हुआ और उन पर गंभीर चर्चाएँ हुईं। खासकर शायरी वाला सेशन सबको अपनी तरफ आकर्षित करता रहा।

कुछ गंभीर सत्रों ने लोगों का ध्यान खींचा, जैसे कि: ‘मौजूदा समय में बाल साहित्य’, पाकिस्तान राजनीति में औरत की हिस्सेदारी’, ‘ द पॉलिटिक्स ऑफ़ इकोनॉमिक्स इन पाकिस्तान: एन अल्टरनेटिव पर्सपेक्टिव’, ‘पाकिस्तानी सिनेमा में औरतों की भूमिका’, ‘पाकिस्तान के फिल्म अभिनेता और डायरेक्टर सरमद सुल्तान खूसट (पाकिस्तान में मंटो पर बनी फिल्म के डायरेक्टर और अभिनेता)’। इसी के साथ ही खाने-पीने के विभिन्न व्यंजनों ने लोगों को मोहित किया। इस मेले में भारत-पाकिस्तान दोस्ती की बात भी खुलकर हुई।

मेले की मुख्य प्रबन्धक और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की बेटी सलीमा हाशमी ने हमसे फोन पर बात करते हुए बताया, “यह दुनिया के प्रगतिशील शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की याद में लगा सातवाँ मेला था। कोरोना के कारण पिछले सालों में मेला आयोजित नहीं हो पाया था। अगर मुझे साधारण शब्दों में कहना हो तो यह दुनियाभर में फैले फ़ैज़ को प्यार करने वालों का मेला है। इसमें इल्म की बात होती है, अदब की बात होती है, संगीत और शायरी की बात होती है, जनसरोकारों व जनपक्षीय सियासत की बात होती है। और मेरा मानना है कि यह मेला भारत-पाकिस्तान की दोस्ती में अहम भूमिका निभा सकता है। हमारी कोशिश होती है कि हर मेले में भारत से कोई प्रतिनिधिमंडल पहुंचे, जैसे कि अबकी बार जावेद अख़्तर आये थे, पिछले मेलों में शबाना आज़मी, नसीरूद्दीन शाह जैसी हस्तियाँ भी आ चुकी हैं। आज भी दोनों मुल्कों में फ़ैज़ की शायरी हरमन प्यारी है। फ़ैज़ की शायरी लूट-खसूट, अन्याय और शोषण के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देती है इसीलिए दोनों मुल्कों के नौजवान अन्याय के खिलाफ ‘हम देखेंगे’ की आवाज़ बुलंद करते हैं। मेरा मानना है कि यदि दुनिया के अन्य बहुत देश अपने मतभेद भुलाकर शांति और भाईचारे से रह सकते हैं तो फिर हम क्यों नहीं? हमारा तो साझा ही बहुत कुछ है। भाषा हमारी साझी, संस्कृति हमारी साझी, दुःख-सुख हमारे साझे.... ।”

पाकिस्तान के लाहौर में बसने वाले नौजवान पंजाबी कहानीकार अली उस्मान बाजवा फ़ैज़ मेले बारे अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “यह मेला मूलतः वामपंथी विचारधारा से दिशा लेकर चलने वाला पाकिस्तान का अहम मेला है लेकिन मेले में किसी भी विचारधारा का व्यक्ति आ सकता है और आते भी हैं। इसमें साहित्य और कला के अलावा यह मंथन भी होता है कि पाकिस्तान में वामपंथी विचारधारा का क्या भविष्य हो और कैसे हो। फ़ैज़ उर्दू के साथ-साथ पंजाबी के भी शायर थे, उन्होंने कुछ नज्में अपनी माँ बोली पंजाबी में भी लिखी हैं इसीलिए पंजाबी कविता का सेशन सबसे दिलकश होता है।”

2019 में भारतीय पंजाब के पंजाबी साहित्यकार सुकीरत ने फ़ैज़ मेले में शिरकत की थी, वे मेले को याद करते हुए कहते हैं, “यह मेला बहुत प्रभावशाली था। भारत में भी इस तरह के साहित्यिक मेले बहुत कम देखने को मिलते हैं। इस मेले में एक ओर विचारचर्चा चलती है दूसरी ओर संगीत चलता है तो तीसरी ओर आपको नौजवान लोगों को सियासी तौर पर चेतन करते हुए भी नज़र आते हैं, वे अपने सियासी पम्फलेट बांटते हैं और साथ ही इंकलाबी नारे गूंजते हैं। जब मैं उस समय गया था तो बलूचिस्तान में एक लड़के के अगवा होने की खबर पाकिस्तानी मीडिया में थी तो इस मेले में भी प्रगतिशील नौजवान इस मुद्दे पर लोगों को जागरूक करते हुए नज़र आ रहे थे। आप मानकर चलो कि जिस तरह मेले में तरह-तरह की बानगी होती हैं उसी तरह इस मेले में भी तरह-तरह के रंग आपको दिखाई देते हैं और इसमें हजारों की गिनती में लोग शिरकत करते हैं।”

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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