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लखीमपुर ग्राउंड रिपोर्ट : माँ को इंतज़ार है बेटियों के लौटने का...परिवार ने की न्याय की मांग

रुँधे गले से पीड़ित बच्चियों के पिता कहते हैं, "हमें भी पता चला है कि मुख्यमंत्री जी ने हमें क्या क्या देने की घोषणा की है लेकिन हमें पैसों से ज़्यादा न्याय का इंतज़ार है।"
Lakhimpur
पीड़ित परिवार

लखीमपुर जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर लालपुर ग्राम पंचायत के तहत आने वाले निघासन कोतवाली क्षेत्र का तमोलीन पुरवा गाँव इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ। इसी गाँव की थीं वे दोनों सगी दलित नाबालिग बहनें, एक की उम्र 17 साल थी और एक की 15, जिनकी रेप के बाद हत्या कर दी गई (पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट में हुआ खुलासा) और पेड़ से लटका दिया गया। इस घटना के बाद सरकार की तरफ से पीड़ित परिवार को 25 लाख की आर्थिक मदद, घर, सरकारी नौकरी आदि कुछ देने के साथ मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में करके जल्द से जल्द न्याय दिलाने की भी घोषणा की गई है।

सरकार की इन घोषणाओं से पीड़ित परिवार कितना संतुष्ट है, घटना वाले दिन आख़िर हुआ क्या था, और पुलिस की थ्योरी पर उनके क्या सवाल हैं आदि इन सवालों के जवाब तलाशने जब यह रिपोर्टर पीड़ित परिवार के गाँव पहुँची तो एक अजीब सी खामोशी पसरी थी ग्रामीणों के बीच। हर कोई इस दर्दनाक घटना से आहत था, भयभीत था। यह भय उनके चेहरे साफ बयाँ कर रहे थे। गाँव के हर शख्स की जुबाँ पर केवल एक ही बात थी कि दोषी कोई भी हो जिन्होंने इतना जघन्य अपराध किया है उन्हें फांसी से कम सजा नहीं होनी चाहिए।

गाँव के कुछ लोग हमें पीड़ित परिवार के घर ले गए जो गाँव के अन्य घरों से थोड़ा अलग हटकर उत्तर दिशा की ओर गन्नों के खेत के पास था।

तमोलीन पुरवा गाँव

बेहद ग़रीब परिवार, मज़दूरी से चलता है घर...

दोनों बहनें बेहद गरीब परिवार से थीं। बमुश्किल एक बीघा जमीन थी उनके पास जिसपर खाने भर के लिए भी मुश्किल से अनाज पैदा हो पाता था। दोनों बहनों के अलावा उनके दो भाई, उत्तम, उमेश, माता और पिता थे परिवार में। 6 लोगों का परिवार चलाने के लिए पिता रामपाल मजदूरी करते थे।

घर की आर्थिक हालत सुधारने के लिए दोनों भाईयों ने भी पढ़ाई छोड़ दी थी और कुछ महीने पहले ही मजदूरी करने दिल्ली चले गए थे। बड़ी बेटी भी पढाई छोड़ चुकी थी और सिलाई का काम करती जबकि छोटी बहन की अभी पढ़ाई जारी थी।

तमोलीन पुरवां दलित बहुल आबादी का गांव है जिसमें छिटपुट अति पिछड़ी जातियों के भी लोग रहते हैं। पीड़ित परिवार भी दलित है। गांव की ज्यादातर आबादी दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर है। पीड़ित परिवार गांव की आबादी से अलग कुछ दूर हटकर दो कमरे के मकान में रहता है। यह मकान उन्हें अखिलेश यादव के शासन में लोहिया आवास योजना के तहत मिला था।

बेटियों के आने के इंतज़ार में रहती है माँ...

दरवाजे पर ही बैठी रहती है माया देवी बेटियों के इंतज़ार में... घर में दिलासा देने आने वाले हर किसी से वह बस एक ही बात कहतीं हैं, "हमार बिटिया को ले आओ भईया..." कभी रोते रोते अचेत गिर जाती हैं तो कभी मुख्य द्वार की तरफ एक टक देखने लगती हैं इस आस से कि उनकी दोनों बेटियाँ आ जायेंगी। जो भी इस माँ की हालत देखता है आँसू बरबस निकल आते हैं लेकिन फिर घर परिवार, अड़ोस पड़ोस के लोग माया देवी को संभालने लगते हैं। जैसे ही हम मृतक बहनों के घर पहुँचे, माया देवी हमसे भी हाथ जोड़ यही विनती करने लगी कि उनकी दोनों बेटियों को खोज कर ला दो और इतना कहते कहते वह चुप हो गई। लगता था मानो अब उनके गले से शब्दों का निकलना भी मुश्किल होता जा रहा है। पिता राम पाल का भी अमूमन यही हाल है लेकिन वे पिता हैं तो काफी हद तक खुद को संभाले हुए हैं वे कहते हैं बहुत रोने का मन होता है लेकिन यदि मैं ही टूट गया तो इसको (पत्नी) को कौन संभालेगा।

राम पाल के घर और घर के आस पास 8- 10 पुलिस कर्मी हमेशा तैनात रहते हैं। रामपाल कहते हैं, "इनकी तैनाती से हमें कोई परेशानी नहीं, सरकार ने हमारी ही सुरक्षा के लिए लगाए होंगे, यह तो ठीक है लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि हमें और हमारी मासूम बेटियों को जल्दी इंसाफ मिले इसकी गारंटी भी सरकार करे ताकि अन्य बेटियों को बचाया जा सके और किसी के साथ इतना बड़ा जघन्य अपराध न हो।" रुँधे गले से वह कहते हैं, "हमें भी पता चला है कि मुख्यमंत्री जी ने हमें क्या क्या देने की घोषणा की है लेकिन हमें पैसों से ज़्यादा न्याय का इंतज़ार है।"

उस दिन की कहानी, माँ की ज़बानी

आँसू पूछती हुई माँ माया देवी बताती हैं, "जो लड़के मेरी लड़कियों को मोटरसाइकिल पर उठाकर ले गए थे उन्हें वह पहचानती है वह पडोस के ही गांव लालपुर के मुस्लिम लड़के हैं। वे अक्सर उनके पड़ोस के छोटू के घर में आते जाते रहते थे। घटना वाले दिन वे तीनों लड़के सफेद रंग की मोटरसाइकिल पर आए थे और जब वह मेरी लड़कियों को घसीट कर ले जाने लगे तो मैं बेटियों को पकड़कर अपनी तरफ खीचने की कोशिश करने लगी।"

माया देवी के मुताबिक वे लड़के जब जबरदस्ती उनकी बेटियों को मोटरसाईकिल से घसीट कर ले जा रहे थे तो उसने अपनी एक बेटी का पैर पकड़ लिया वह भी काफी दूर तक गई, उसके कपड़े भी फट गए थे लेकिन लड़के मोटरसाईकिल पर थे तो वे ज्यादा दूर नहीं जा पाई और चिल्लाने लगी। उन लड़कों ने माया देवी को धक्का देकर गिरा दिया और दूर निकल गए। उस समय माया देवी के पति घास काटने गए हुए थे और बगल के घर में भी कोई नहीं था। वह कहती हैं, "मेरे में शोर मचाने पर गांव के लोग इकट्ठा हुए। गांव के लोगों ने मेरी बेटियों की तलाश शुरू की इसी बीच वह थाने में जब सूचना देने पहुची तो वहाँ मौजूद महिला सिपाही ने उसे थप्पड़ मार कर चुप करा दिया।" माया देवी के मुताबिक थाने में उनकी बात सुनने के बजाए उल्टे एक महिला पुलिस कर्मी ने उन्हें पीटा तो उधर काफी खोजबीन के बाद गांव वालों को दोनों बेटियों की लाश घर से आधा किलोमीटर दूर गन्ने के खेत मे खैर के पेड़ से लटकती हुई मिली।

बहन की शादी के लिए जोड़ रहे थे पैसे...

उत्तम और उमेश भी अभी तक सदमे से उभर नहीं पाए हैं। उभरना मुश्किल भी है। कुछ दिन पहले जिन बहनों ने कलाई में राखी बाँधी थी आज उनकी अर्थी को कंधा देना पड़ गया। उत्तम कहते हैं, "घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं, पिता की भी उम्र होती जा रही थी फिर दो बेटियों की शादी की चिंता उन्हें परेशान करती रहती थी। घर के हालात और माता पिता की चिंता ने दोनों भाईयों को भी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर कर दिया।"

पीड़ित महिलाओं के भाई बताते हैं कि उन्होंने कुछ दिन हिमाचल में काम किया फिर दिल्ली आ गए मजदूरी करने। अभी दिल्ली में कुछ ही महीने हुए थे काम में लगे। आँख में आँसू भर उत्तम कहते हैं, "हम दोनों भाई दिल्ली में कड़ी मेहनत कर रहे थे और एक एक पैसा जोड़ रहे थे ताकि बड़ी बहन की शादी में कोई अड़चन न आये और माता पिता को भी राहत मिल सके लेकिन जो हमारे साथ हुआ उसकी कल्पना भी नहीं की थी।" वे बताते हैं घटना वाले दिन शाम पांच बजे उनके पास गाँव के एक व्यक्ति ने फोन कर सारी घटना की जानकारी दी, एक पल तो विश्वास नहीं हुआ लेकिन यह सच है, इसे मानने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था। "हम दोनों भाईयों के पास गाँव आने का पैसा भी नहीं था । किसी तरह टिकट तक के पैसों का इंतज़ाम करके तब अपने गाँव पहुँचे। अब दिल्ली जाकर क्या करेंगे, बहनें तो चली गईं अब किसके लिए पैसा जोड़ें। अब यहीं गाँव में रहना है यहीं कुछ मेहनत मजदूरी कर लेंगे।"

"क्या वे लोग पुलिस की कार्रवाई से संतुष्ट हैं?" इस सवाल पर वे कहते हैं, "एक दिन के भीतर गिरफ्तारियां तो हुईं और सही गिरफ्तारियां भी हुई लेकिन पुलिस का यह कहना कि उनकी बहनें अपनी सहमति से उन लड़कों के साथ गईं थी क्योंकि उनका उनसे प्रेम प्रसंग था तो अगर ऐसा है तब तो हत्या होनी ही नहीं चाहिए थी। पता नहीं पुलिस ने ऐसा क्यों कहा क्योंकि अगर बात सहमति की थी तो हत्या फिर क्यों हुई। पुलिस तो पहले यह भी मानने को तैयार नहीं थी कि रेप हुआ है और यह हत्या है वे तो इसे आत्महत्या कह रही थी लेकिन पोस्ट मार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की बात को पलट दिया और यह साबित हुआ कि रेप के बाद हत्या करके फंदे पर लटकाया गया है। हमें पोस्ट मार्टम रिपोर्ट तक अभी नहीं दी गई है।

उत्तम कहते हैं कि अब तो उनके परिवार को तभी चैन आयेगा जब सभी बलात्कारियों और हत्यारों को फाँसी की सजा मिलेगी और वे इस सजा से कम कुछ नहीं चाहते फिर चाहे सरकार की ओर से उन्हें पैसा, घर, जमीन मिले न मिले।

ऐपवा और माले की जाँच टीम पहुँची गाँव और घटना स्थल

इस घटना की जांच के लिए अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन और भाकपा माले की एक संयुक्त जांच टीम का गठन किया गया। इस जांच दल में ऐपवा की प्रदेश अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी, ऐपवा राष्ट्रीय और राज्य कार्यकारिणी सदस्य सरोजनी, ऐपवा जिला सचिव तपेश्वरी देवी, ऐपवा जिला उपाध्यक्ष सावित्री, भाकपा माले जिला कमेटी सदस्य रामजीवन, मैनेजर व रामप्रसाद, गुलाब, राकेश और रामकेवल शामिल थे। जांच दल ने दिनांक 17 सितम्बर को घटनास्थल का दौरा किया औऱ पीड़ित पक्ष से मुलाकात कर  घटना के बारे में जानकारी ली।

कृष्णा अधिकारी से जब इस बाबत बात हुई तो उन्होंने घटना को बेहद दिल दहला देने वाला बताया। वे कहती हैं, "योगीराज के दूसरे कार्यकाल में भी महिलाओं खासकर नाबालिग लड़कियों की हत्या बदस्तूर जारी है। नाबालिग लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा में पूरी तरह विफल यह सरकार हत्या और बलात्कार की जघन्यतम घटनाओं की बारीकी से जांच करने के बजाय जल्दबाजी में अपनी राजनीतिक दिशा के मुताबिक घटना को पेश कर इंसाफ कर देने की घोषणा कर देती है।"

उनके मुताबिक जांच दल ने यह पाया कि पुलिस भले ही 6 अभियुक्तगणों को 2 दिनों में गिरफ्तार कर अपनी पीठ थपथपा रही हो लेकिन पुलिस की थ्योरी लड़कियों की मां के बयान से बिल्कुल विपरीत होने के कारण पुलिस की विवेचना पर गहरा सन्देह पैदा होता है इसलिए ऐपवा दोनों दलित नाबालिग लड़कियों की हत्या और बलात्कार की इस जघन्यतम अपराध की उच्चस्तरीय जांच की मांग करता है।

वे कहती हैं, "सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पुलिस अभियुक्तगणों के पुलिस के सामने दिए गए बयान (जिसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती) के आधार पर ही  कार्यवाही को आगे बढ़ा रही है यानी कि आरोपियों के ही इकबालिया बयान पर ही ज्यादा जोर दे रही है और घटना की गहन विवेचना से बच रही है।"

अभी इस घटना का शोर थमा भी नहीं था कि ठीक इसके तीन दिन बाद लखीमपुर खीरी के ही भीरा थाना क्षेत्र से आई एक और घटना ने सन्न कर दिया जहाँ दुष्कर्म में विफल होने पर शोहदों के हमले में घायल एक युवती की मौत की खबर आती है तो वहीं बदायूँ से भी खबर मिलती है कि फैज़गंज बेहटा थाना क्षेत्र मेंं रात को एक मानसिक मंदित किशोरी की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। 

घटनाओं की फेहरिस्त लंबी हैं लेकिन महिला हिंसा पर अंकुश लगाने के दावे छोटे पड़ते जा रहे हैं। बलात्कारियों के हौसले बुलंद है और बेटियाँ  डर के साये में जी रही हैं। जिस तरह से बेताहशा बलात्कार और हत्याओं की घटनाएं सामने आ रही हैं उसके आगे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, नारे की चमक धूमिल पड़ती जा रही है।

आज सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने बेटियों को बचाने की है क्योंकि जब बचेंगी बेटियाँ तभी तो पढ़ेंगी और बढ़ेंगी बेटियाँ।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार है।)

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