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सरकारी नौकरियों में लाखों ख़ाली पद और रोज़गार मेले का दावा, क्या मोदी सरकार की चुनावों से पहले डेटा मैनेजमेंट की है तैयारी?

"सरकार रोज़गार की मांग कर रहे युवाओं की आंखो में धूल झोंकने के लिए रोज़गार मेले की चालाकी दिखा रही है।"
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भारत में बेरोज़गारी बीते कुछ सालों में विकराल रूप ले चुकी है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम हर जगह बढ़ती बेरोज़गारी युवाओं का सबसे जरूरी मुद्दा है। हाल ही में राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्यमंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में कुल 9 लाख 79 हजार 327 पद खाली हैं यानी आसान भाषा में इसे राउंड ऑफ करके 10 लाख कहा जा सकता है।

इस डेटा के मुताबिक रेलवे में 2,93,943 पद खाली हैं, वहीं गृह मंत्रालय में 1,43,536 पद रिक्त हैं। डिफेंस की बात करें तो यहां 2,64,706 पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा लेबर एंड एंप्लॉयमेंट, माइन्स, पोस्ट्स, रेवेन्यू, स्टेटिस्टिक्स, हाउजिंग एंड अर्बन अफेयर्स, स्पेस और वाटर रिसोर्सेस में भी कई हजार पद खाली पड़े हैं। और ये आंकड़े मार्च 2021 के हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार इतने गंभीर मुद्दे पर दो साल पुराना आंकड़ा क्यों पेश कर रही है और लोक सभा चुनावों से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 10 लाख युवाओं को नौकरी देने की बात में कितनी सच्चाई है?

मौजूदा समय में बेरोज़गारी देश में कितना बड़ा मुद्दा है और सरकारी नौकरियों में खाली पड़े पदों को लेकर सरकारी आंकड़ों के गणित क्या समझाते हैं, साथ ही पीएम के रोज़गार मेले और बजट में बेरोज़गारी के सवाल को लेकर हमने देश के कुछ संगठनों और युवाओं से बातचीत की...

सरकार जानबूझकर चुनावों से पहले छुपा रही आंकड़े

युवा हल्ला बोल संगठन के संस्थापक और बेरोज़गारी के मुद्दे पर मुखर रहे अनुपम बताते हैं कि देश में बेरोज़गारी अब आपदा का रूप ले चुकी है और आए दिन युवा रोज़गार के लिए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, ऐसे में सरकार खाली पदों को लेकर दो साल पुराना डेटा पेश कर सबको गुमराह करने की कोशिश कर रही है। क्योंकि रिक्त पद जो 2021 में 10 लाख के करीब थे, अब उनकी संख्या 2023 में और अधिक बढ़ गई है। साथ ही अलग-अलग नोटिफिकेशन्स में भी ये बात सामने आती रही है कि सरकार लगातार तमाम विभागों के पदों में कटौती कर रही है। इसलिए ये 2024 लोकसभा चुनावों से पहले ये एक तरह से डेटा को मैनेज करने का तरीका है।

अनुपम कहते हैं, “विभागो में खाली पदों की जानकारी कोई रॉकेट साइंस या एनएसओ के सर्वेरक्षण जैसा जटिल काम तो है नहीं। फिर भी सरकार कोई नई जानकारी क्यों नहीं दे रही। इसका बहुत आसान जवाब है कि सरकार जानबूझकर इन आंकड़ों को छुपा रही है, जैसे 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले छुपा रही थी, जब 45 साल में सबसे अधिक रिकॉर्ड तोड़ बेरोज़गारी के आंकड़े सामने आए थे। तब तो सरकार ने अपने ही एनएसओ के आंकडें को झुठला दिया था।"

ज्ञात हो कि साल 2019 में ही देश में 45 साल की सबसे बड़ी बेरोज़गारी के आंकड़े सामने आए थे। उस साल आम चुनावों से पहले इन आंकड़ों के लीक होने पर काफ़ी विवाद हुआ था। ख़बरों के मुताबिक़, बाद में सरकार ने इसके आंकड़े ख़ुद जारी किए और माना कि भारत में बेरोज़गारी दर पिछले चार दशक में सबसे ज़्यादा हो गई है। सरकार ने पहले लीक हुई रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज किया था कि बेरोज़गारी के आंकड़ों को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है।

केंद्र सरकार की नौकरी के लिए 22 करोड़ आवेदन, महज़ 7 लाख नियुक्तियां

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और कई युवा आंदोलनों से जुड़े धनंजय सुग्गू सरकार से सवाल पूछते हैं कि आखिर बीते 45 सालों में आज सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी क्यों है? हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वादा करने वाले प्रधानमंत्री युवाओं को नौकरी क्यों नहीं दे पा रहे? उन्हें आवाज़ उठाने पर जेलों में क्यों ठूंसा जा रहा है? और सबसे जरूरी सवाल खाली पड़े पदों को समय से क्यों नहीं भरा जा रहा, चुनाव के पहले ही रोज़गार मेले की याद क्यों आई?

धनंजय के मुताबिक, “केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया है कि 2014 से लेकर अब तक कुल 22 करोड़ 5 लाख लोगों ने केंद्र सरकार में नौकरी के लिए आवेदन दिया है लेकिन नौकरी महज़ 7 लाख लोगों को ही मिली। ऐसे में इस खबर का सकारात्मक पहलू सिर्फ इतना है कि 22 करोड़ 5 लाख लोगों ने देश के विकास में सीधे तौर पर 500-1000 रुपए फॉर्म भरने के फीस के रूप में योगदान दिया। साफ है सरकार अपनी जवाबदेही से बचना चाहती है और लोगों को 'सब चंगा सी' का चश्मा पहनाना चाहती है।

बता दें कि बीते साल केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि अप्रैल 2014 से मार्च 2022 के बीच आठ साल में केंद्र सरकार के विभागों में स्थायी नौकरी पाने के लिए क़रीब 22 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था। इस दौरान केंद्र सरकार में महज़ 7.22 लाख लोगों को स्थायी नौकरी मिली। आसान शब्दों में कहें तो जितने लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया, उसमें से केवल 0.32 प्रतिशत लोगों को नौकरी मिली। इस मुद्दे पर ख़ुद बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाया था। उन्होंने एक ट्वीट कर सरकार से सवाल किया था, "जब देश में लगभग एक करोड़ स्वीकृत पद ख़ाली हैं, तब इस स्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है?"

साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सत्ता में आए, तो उन्होंने युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया था। स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना का खूब प्रचार-प्रसार भी हुआ। हालांकि युवाओं की मानें तो इनमें से किसी भी प्रयास से अभी तक न उत्पादन बढ़ा है और न ही रोज़गार के मौके। अब 2024 चुनावों से पहले सरकार साल 2023 के अंत तक 10 लाख़ युवाओं को नौकरी देने की बात कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद बीते साल 22 अक्टूबर यानी धनतेरस के दिन 'रोज़गार मेला' नाम से इसकी शुरुआत की और 75,000 युवाओं को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपे। हालांकि इस रोज़गार मेले के वादे और दावे पर भी युवा सवाल ही उठा रहे हैं।

रोज़गार मेले का दावा हास्यास्पद

दिल्ली में क्रांतिकारी युवा संगठन के राज्य समिति सदस्य भीम कुमार कहते हैं कि सरकार सिर्फ झूठा आश्वासन देती है। अगर वाकई इनकी मंशा रोज़गार देने की होती तो इस बजट में कोई ठोस कदम उठाए गए होते, समयबद्ध भर्तियों की योजना होती लेकिन नहीं, सरकार बस आने वाले दिनों में कौशल विकास केंद्रों के सहारे युवाओं को कुशल बनाने का ऐलान कर चुप हो गई।

भीम बताते है कि सरकार रोजगार की मांग कर रहे युवाओं की आंखो में धूल झोंकने के लिए रोज़गार मेले की चालाकी दिखा रही है। जबकि हकीकत यह कि आज चपरासी जैसे कम-योग्यता वाली नौकरियों के लिए भी पीएचडी धारक जैसे उच्च-योग्यता वाले युवा आवेदन कर रहे हैं। और उसके बावजूद कभी भर्ती में सालों लग जाते हैं, तो कभी नए नियम और घोटाले सामने आ जाते हैं। इस फर्जी वादे को भी बीते संदर्भों में ही देखा जाना चाहिए, जो आम जनता को मूर्ख बनाने के लिए किए गए थे।

रोज़गार मेले के दावों को अनुपम हास्यास्पद मानते हुए कहते हैं कि ये तमाशा है करोड़ों युवाओं की आंखों में धूल झोंकने का, ये पूरी तरह से इवेंटबाज़ी है, जैसे परीक्षा पर चर्चा होती है, बिना पेपर लिखे, वैसे ही रोज़गार मेला है, बिना रोज़गार के। मोदी सरकार पिछले आठ साल में आठ लाख नौकरियां तो दे नहीं पाई, अब एक साल में 10 लाख नौकरियां कैसे देगी। और अगर इसमें कुछ दे भी देगी तो उनका सवाल है कि ये कौन सी नौकरियां होंगी, उनकी भर्ती कब निकली और आवेदन कब किया गया।

अनुपम स्पष्ट तौर पर कहते हैं, “जब चुनाव नजदीक हैं और इन्हें युवाओं का आक्रोश दिखाई दे रहा है, तो अब सरकार ठीक चुनावों से पहले एक साल में 10 लाख नौकरियों का वादा कर रही है। ऐसे में ये समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है कि इस रोज़गार मेले की क्या सच्चाई होगी। फिर भी अगर ये कुछ नौकरियां दे भी देते हैं, तो उसमें देखना होगा कि ये कौन सी नौकरियां हैं। 2019 में रेलवे और एनटीपीसी की भर्ती निकली थी, ये लगभग 1 लाख 38 पदों के लिए है। इन भर्तियों को चार साल होने को हैं और अभी तक पूरी नहीं हुईं। अब सरकार अगर उन भर्तियों को लोकसभा चुनावों से पहले पूरा कर उनकी गिनती भी कर लेती है तो ये पीछे की भर्तियां होंगी, अब की नहीं। इसके अलावा अग्निवीरों को इन भर्तियों के तहत जोड़ कर अपनी पीठ थपथपा सकती है, जो एक तरह से कॉन्ट्रैक्ट का काम है। वैसे इन तमाम तिकड़म के बावजूद भी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखकर लगता नहीं कि ये 10 लाख का आंकड़ा पूरा कर पाएगी।

ध्यान हो कि केंद्र सरकार की ओर से कुछ ही दिन पहले संसद में बजट पेश किया गया। इस दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे अमृतकाल का पहला बजट कहा तो वहीं पीएम मोदी इसे 'ऐतिहासिक बजट' कहते नज़र आए। लेकिन इस बजट में कहीं भी युवाओं को तरज़ीह नहीं मिली, न बेरोज़गारी की चर्चा हुई और न ही रोज़गार का रोड मैप दिखा।

धनंजय बताते हैं कि बेरोजगारी के आंकड़े आसमान छू रहे है, देश पर कर्ज बढ़ रहा है। विकास योजनाएं हवा हवाई और उद्योगपतियों को फायदा पंहुचाने वाली हैं। केंद्र सरकार पर 2014 में 56 लाख करोड़ कर्ज़ था, जो मार्च 2023 तक 156 लाख करोड़ हो जाएगा, देश को कर्ज़ में डुबोया जा रहा है। पहले 'रोजी रोटी दे न सके जो, वो सरकार निकम्मी है' का नारा एक सशक्त संदेश हुआ करता था, लोक की ओर से तंत्र को। लेकिन ये सरकार सीसीटीवी में उठी हुई मुट्ठियों की पहचान करके उलटा उन्हीं पर कार्रवाई कर, अपनी जवाबदेही से बचना चाहती है। ये लोगों को 'सब चंगा सी' का चश्मा पहनाना चाहती है।

सरकारी नौकरियां घट रहीं, बेरोज़गारी बढ़ रही

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस के भगत सिंह छात्र मोर्चा के सचिव अनुपम कुमार कहते हैं, भारत युवाओं का देश है लेकिन श्रम मंत्रालय की मानें तो वर्तमान में बेरोजगारों का देश बना हुआ है। बेरोजगारी अपने चरम पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़े बताते हैं कि बीते दिसंबर में बेरोजगारी दर एक बार फिर बढ़कर 8.3 फीसदी पर पहुंच गई, जो पिछले 16 महीने में सबसे ज्यादा थी। वहीं शहरी बेरोज़गारी दर 10.09 प्रतिशत और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 7.44 प्रतिशत रही। ये सब सामने होने के बाद भी बजट में इसे नियंत्रित करने की योजना सामने नहीं आई। चुनावों से पहले ये जरूर मुद्दा बनता है, लेकिन क्रियान्वयन गायब होता है। इसका बढ़िया उदाहरण हाल ही में युवाओं को रोजगार देने के नाम पर आयोजित किया गया 'रोजगार मेले' है। बजट में इसे लेकर कोई साफ विजन नहीं नज़र आया।

अनुपम कुमार के मुताबिक आए दिन सरकारी नौकरियां खत्म हो रही हैं। एसससी और रेलवे जैसे सेक्टर्स में हर साल लाखों युवाओं को रोजगार मिलता था। लेकिन बीते सालों में सरकारी नौकरियों की वैकेंसी में भारी कटौती देखी जा रही है। साल 2014-15 में नियुक्तियां 1.3 लाख से लगातार घटकर 2018-19 में लगभग 38,000 पर रह गई, लेकिन चुनावी साल 2019-20 में नियुक्तियां सबसे ज्यादा 1.47 लाख हुईं इसके बाद साल 2021-22 में फिर से केवल 38,000 लोगों को ही रोज़गार मिला। इसे देखकर ऐसा लगता है कि भर्तियां चुनावों को देखकर ही की जाती हैं। इसलिए सरकार चाहे जो भी वादे कर ले 10 लाख या 20 लाख नौकरियों का लेकिन जब तक वो दे नहीं देती वो जुमला ही माना जायेगा। जैसा 2014 में मोदी सरकार ने प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियों की बात की थी लेकिन आज तक 9 सालों में सरकार ने वादा पूरा नहीं किया है। उल्टा नौकरियों में कटौती कर दी गई।

भीम कुमार का कहना है कि बेरोज़गारी का संकट इतना विकराल है कि आज किसी भी नौकरी के महज़ 100-200 पदों के लिए भी लाखों-करोड़ों आवेदन आ रहे हैं। इस देश की बोरज़गारी का ये आलम है और सरकार सब चंगा सी कहकर इसकी दूसरी तस्वीर पेंट करने में लगी है। आज भारत की करीब 20 करोड़ जनता नौकरी मांग रही है, लेकिन इस बजट में वित्तमंत्री द्वारा कोई ठोस योजना तैयार नहीं की गई।

बेरोज़गारी के चलते आत्महत्या के मामलों में वृद्धि

युवा हल्ला बोल के अनुपम बजट को लेकर कहते हैं कि किसी भी सरकार का जब बजट पेश हो रहा हो, तो उस वक्त की सबसे बड़ी समस्या को एड्रेस करना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज के समय में देश के अंदर सबसे बड़ी समस्या बेरोज़गारी की है, इसके पर्याप्त आंकड़े हैं। कई कहानियां है, आत्महत्याएं हो रही हैं। ऐसे में बेरोज़गारी की समस्या पर फोकस न करके सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच रही है। अगर सरकार चार अन्य चीजों की जगह एक सिर्फ बेरोज़गारी के लिए स्पष्ट समाधान लाती तो भी इसकी वाहवाही होती। लेकिन ऐसे समय में भी जब ये बेरोज़गारी राष्ट्रीय आपदा का रूप ले चुकी है, इस पूरे बजट में रोज़गार को लेकर कुछ नहीं है।

यहां बताते चलें कि बीते साल राज्यसभा में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि बेरोज़गारी की वजह से 2018 से 2020 तक 9,140 लोगों ने आत्महत्या की है। साल 2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2020 में बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

अनुपम के मुताबिक बजट में एक भी ऐसी घोषणा नहीं है, जिससे ये समझा जा सके कि ये सरकार रोज़गार सृजन करना चाहती है। सरकार रोज़गार को लेकर गंभीर ही नहीं है। वरना बजट में इन सभी खाली पदों को भरने को लेकर कोई योजना होती, कुछ ठोस कदम उठाए जाते। रोज़गार गारंटी को लेकर कोई बात नहीं है, युवा अर्बन एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट की मांग कर रहा था, लेकिन उस पर कुछ नहीं हुआ। ऊपर से मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना को लेकर बजट में कटौती कर दी गई। इस सरकार का ओरिएंटेशन ही उल्टा है, ये मानना ही नहीं चाहती कि देश में बेरोज़गारी की गंभीर समस्या है।

गौरतलब है कि यहां जिन 10 लाख खाली पदों की बात हो रही है, ये केवल केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों की रिक्तियां हैं। विभिन्न स्वायत्त निकायों और सरकार के अन्य अंगों की रिक्तियां इसमें शामिल नहीं हैं, इसके अलावा राज्य सरकार के खाली पदों की संख्या इससे अलग हैं। यानी देश में बढ़ती बेरोज़गारी सरकार की अनदेखी का नतीज़ा है। सरकार ने अब तक कोई मुकम्मल रोजगार नीति नहीं बनाई और ना ही खाली पड़े पदों को भरने के लिए कोई ठोस प्लान सामने रखा है। ऐसे में इस साल के अंत तक 10 लाख लोगों को नौकरी दे पाना सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी।

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