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व्याख्यान: गांधी के राम मनुष्य को जोड़ते हैं, तोड़ते नहीं

''गांधी ने भारतीय समाज के सबसे कमजोर आदमी को सशक्त करने के लिए राम की करुणा, प्रेम, त्याग और तपस्या को अपने जीवन का मूल्य बनाया था।'’
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गांधी के राम सौम्यता, सुंदरता और निश्छलता के प्रतीक हैं। सत्य के प्रति प्रतिबद्धता और करुणा, उन्हें महान बनाती हैं। गांधी की दृष्टि में सहानुभूति और करुणा धर्म के बुनियादी तत्व हैं। दूसरे की पीड़ा को समझना ही वैष्णव धर्म है। गांधी ने नारियों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा। उनका मानना था कि स्वतंत्रता आंदोलन को अगर अहिंसक बनाना है तो आंदोलन का नेतृत्व नारियों के हाथों में देना होगा और मुक़म्मल समाज का निर्माण तभी होगा जब धर्म दूसरे की पीड़ा ख़त्म करने का हेतु बनेगा। गांधी से चाहे जितनी नफ़रत करें किंतु इस देश को गांधी से विलग करके नहीं देखा जा सकता है। ये बातें हिंदी-विभाग एवं आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ(IQAC) वैशाली महिला महाविद्यालय, हाजीपुर के साझा प्रयास से आयोजित ‛गांधी के राम’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के महाविद्यालय निरीक्षक प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार ने कहीं।

हिंदी-विभाग एवं आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ वैशाली महिला महाविद्यालय,
 हाजीपुर द्वारा ‛गांधी के राम' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। 

वैशाली महिला महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर डॉ. अलका ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि गांधी ने भारतीय समाज के सबसे कमजोर आदमी को सशक्त करने के लिए राम की करुणा, प्रेम, त्याग और तपस्या को अपने जीवन का मूल्य बनाया था। भारतीय समाज को ऊंचाई तक विकसित करने के लिए उन्होंने रामराज्य की कल्पना की थी। गांधी का राम अहल्या के उद्धारक और सबरी का जूठा खाते हैं। गांधी के राम समाज को जोड़ने वाले हैं, तोड़ने वाले नहीं।

स्वागत वक्तव्य में डॉ. अनिशा ने कहा कि राम साहित्य के विषय रहे हैं। साहित्य ने राम को ऐसे गढ़ा है कि मिथकीय चरित्र के बावजूद हमें उनके ऐतिहासिक चरित्र होने का एहसास होता है। बाल्मीकि, भवभूति, तुलसीदास, निर्गुनिये संत कबीर और रैदास, केशवदास, कुलोतुंग, चीरामन, गिरधरदास, मैथिलीशरण गुप्त और निराला सहित सैकड़ों कवियों ने ‛राम’ शब्द में अपने-अपने ढंग से अपने-अपने रंग भरे हैं। राम न एक हैं, न किसी एक के हैं। इसलिए गांधी के भी अपने राम हैं। उनके राम पतितों के उद्धारक हैं। वे अल्लाह के रूप में भी हैं और ईश्वर के रूप में भी। गांधी के राम दो मज़हबों के बीच कोई दूरी नहीं रखते।

आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (IQAC) वैशाली महिला महाविद्यालय के समन्वयक डॉ. मो. इस्माईल ने भी विषय पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग की डॉ. कंचन कुमारी एवं धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. अंजु कुमारी ने किया। इस मौके पर वैशाली महिला महाविद्यालय की बर्सर डॉ. रेशमा सुल्ताना, सेवानिवृत प्राध्यापक प्रो. शंकर शर्मा, डॉ. रेखा झा, समता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. नारायण दास, डॉ. लता कादम्बिनी, डॉ. मनिता कुमारी यादव, डॉ. आभा द्विवेदी, रवि कुमार, डॉ.सिंगला प्रभा, डॉ. संघ्या कुमारी, डॉ. शबाना, डॉ. मुसर्रत जहाँ, डॉ. प्रीति कुमारी, शिवि सिन्हा के अतिरिक्त महाविद्यालय के अनेक प्राध्यापक, कर्मचारी एवं छात्राएं मौजूद थीं।


 

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