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साहित्‍य विमर्श : 'कविता की जमीन बनाम जमीन की कविताएं'

जनवादी लेखक संघ (जलेस) की बिहार इकाई द्वारा 'कविता की जमीन-4' (उत्तर प्रदेश) का आयोजन बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ सभागार, जमाल रोड, पटना में किया गया। इसमें साहित्‍य के विमर्श के साथ कवियों ने यथार्थवादी जमीनी स्‍तर की कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को मुग्‍ध किया।
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सर्वप्रथम, जलेस बिहार के उपाध्यक्ष और बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की पत्रिका 'प्राच्य प्रभा' के प्रधान संपादक विजय कुमार सिंह के संचालन में आगत अतिथि रचनाकारों को मंचासीन कराया गया।

इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश से आए सोलह रचनाकार शामिल हुए। पूरा कार्यक्रम दो सत्रों में सम्पन्न हुआ।

संगठन के दूसरे उपाध्यक्ष प्रो० अलख देव प्रसाद 'अचल' ने अपनी प्रकाशित पुस्तकें कविता-संग्रह 'मूर्दे हैं हम’, उपन्यास 'सियासत' और कहानी-संग्रह 'उछाल' साहित्यकारों को भेंट स्वरूप देकर सम्मानित किया। आरम्भ में ही युवा कवि डा० हरेराम सिंह के काव्य-संग्रह 'वैशाली की पूनो' का सामूहिक रूप से लोकार्पण किया गया।

जनवादी लेखक बिहार के अध्यक्ष डॉ० नीरज सिंह ने अपने सारगर्भित वक्तव्य के द्वारा अतिथि रचनाकारों का स्वागत करते हुए कहा " बिहार और उत्तर प्रदेश के बीच साझा सरोकार हैं। इन दोनों का हिन्दी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। आज उत्तर प्रदेश के मौजूदा दौर के निरंतर रचनाशील, स्थापित एवं युवा साहित्यकारों का पटना में स्वागत है।" उन्होंने बिहार के साहित्यिक अवदानों की चर्चा करते हुए कहा " यह संस्कृत के बाणभट्ट, विष्णु शर्मा, चाणक्य, अश्वघोष, वात्स्यायन सहित हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने वाले खड़ी बोली हिन्दी के पहले कवि महेश नारायण, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, देवकिनन्दन खत्री, फणीश्वरनाथ रेणु, रामधारी सिंह 'दिनकर' बाबा नागार्जुन, रामवृक्ष बेनीपुरी, गोपाल सिंह नेपाली, शाह अजीमाबादी सरीखे अनेकानेक साहित्यसेवियों की जन्मभूमि तथा उद्भट विद्वान राहुल सांकृत्यायन की कर्मभूमि है। " नीरज सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र के संयुक्त अभियानों की चर्चा करते हुए जगदीशपुर के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह तथा चम्पारण सत्याग्रह के कारण मोहनदास करमचंद गांधी से विकसित महात्मा गांधी की साझा संघर्ष में ऐतिहासिक भूमिका और वर्तमान संदर्भ में उनकी महत्ता को रेखांकित किया।

डॉ नीरज सिंह की अध्यक्षता और राज्य सचिव कुमार विनीताभ के संचालन में प्रथम सत्र शुरू किया गया, जिसमें जलेस, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ० नलिन रंजन सिंह ने 'हिन्दी कविता और उत्तर प्रदेश' विषय केन्द्रित व्याख्यान दिया। उन्होंने कार्यक्रम के महत्व की चर्चा करते हुए कहा "ऐसे आयोजनों से साहित्यिक संबंध प्रगाढ़ होंगे तथा समकालीन लेखन से परस्पर परिचय का विस्तार होगा।" नलिनी रंजन सिंह ने आगे बताया

" उत्तर प्रदेश में भाषा और साहित्य का समृद्ध और प्राचीन इतिहास रहा है। हिंदी, उर्दू, संस्कृत, हिंदुस्तानी, ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी, बुंदेली, कन्नौजी इत्यादि के रूप में उत्तर प्रदेश की भाषा संबंधी परंपराएं काफी पुरानी और समृद्ध हैं। कबीर, तुलसीदास, सूरदास केशवदास, भारतेंदु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, महादेवी वर्मा, श्रीकांत वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंशराय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत, महावीर प्रसाद द्विवेदी, उपेन्द्रनाथ अश्क, , हजारी प्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह, काशीनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह समेत अन्य गणमान्य साहित्यिक विभूतियों ने इसी प्रदेश की माटी में जन्म लेकर अपने लेखन से हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध किया। आज भी यह सिलसिला जारी है।

उर्दू शायरी और अदब की दुनिया के फ़िराक़ गोरखपुरी, जोश मलिहाबादी, अकबर प्रयागराजी, मजाज़ लखनवी, कैफ़ी आज़मी, अली सरदार जाफरी, शक़ील बदायूंनी  निदा फ़ाज़ली सरीखे कलमकारों ने इस प्रदेश को गंगा-जमुनी तहज़ीब का ख़िताब दिलाया।" उन्होंने अपने वक्तव्य के अंत में उत्तर प्रदेश से आये कवियों और कवयित्रियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया।

फिर कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण कवियों का काव्य-पाठ प्रारम्भ हुआ। इस सत्र में वरिष्ठ कवि एवं जलेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष हरीश चन्द्र पांडे ने 'बुद्ध मुस्कराए हैं', 'कसाईबाड़े की ओर', 'पहाड़ में औरत', 'वेश्यालय में छापा' , डॉ० नलिन रंजन सिंह ने 'कोहरा और रंग', 'सीख', वरिष्ठ कवि राजेन्द्र वर्मा ने 'कागज की नाव', 'फटेहाल जिन्दगी', 'कौन सुने', डॉ० एम० पी० सिंह ने 'तबीयत से बोलो', 'फावड़ा', सुभाष राय ने 'जीत', 'आओ आर्यावर्त, तुम आओ', बसंत त्रिपाठी ने 'खेखसी,मेरी जान', 'गिरना', कुछ भी अलौकिक नहीं होता', 'यह रात है', विवेक निराला ने 'भाषा', 'पासवर्ड', 'मैं और तुम', 'हत्या', विशाल श्रीवास्तव ने 'डॉल्टनगंज में मुसलमान', 'पिता की चीजें', 'असफल आदमी' , महेश आलोक ने 'किसी दिन पत्थरों की सभा होगी', 'अस्सी के पिता और उनसे चार वर्ष छोटी माँ', ज्ञान प्रकाश चौबे ने 'हवा के खिलाफ चिड़िया', ' जंगल कथा', 'वे और दिन थे', आभा खरे ने 'युद्ध', 'तो क्या हुआ अगर दिल्ली अभी थोड़ी दूर है', शालिनी सिंह ने 'तुमसे विलग होकर', ' नवरातों में औरत', 'बीतना', सीमा सिंह ने 'इस हिन्दू होते समय में', 'बचपन की याद गली में', 'आश्वस्ति', तुम पर निगाह रखी जा रही है', 'टूटना', गरिमा सिंह ने 'चश्मा', ' मैं नदी हूं ', वेद प्रकाश ने 'कउड़ा', 'उसके खेलने से' तथा सलमान ख़याल ने 'प्रस्तावना', 'मेड्यूसा', 'लोकवृक्ष', 'दूसरी सफ़ का सिपाही' और 'आकार' शीर्षक कविताओं का पाठ कर उपस्थित श्रोताओं को विस्मित और प्रेरित किया। जलेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो० अली इमाम खान और जलेस बिहार कार्यकारिणी सदस्य जवाहर पांडे ने पठित कविताओं के संबंध में समीक्षात्मक वक्तव्य में कहा " आज पढ़ी गईं सभी कविताएं संवेदनशील, समसामयिक और सार्थक हैं। ये कविताएं सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ से परिचित कराती हैं। इनकी भाषा सहज और बोधगम्य है।"

हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ कवि अरुण कमल और माकपा विधायक दल के नेता अजय कुमार ने अपने उद्बोधनों से आगत अतिथि रचनाकारों का अभिनंदन करते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन अन्य जगहों पर भी कराये जाने की जरूरत है।

द्वितीय सत्र में वरिष्ठ कवि श्रीराम तिवारी की अध्यक्षता और जलेस बिहार के उपाध्यक्ष कृष्ण चन्द्र चौधरी 'कमल' के संचालन में बिहार के कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। इसमें कवयित्री चाहत अन्वी, भावना पांडे, कवि मार्कंडेय, विजय कुमार सिंह, प्रो० अलखदेव 'अचल', अरुण अभिषेक, हरेराम सिंह, राजेश कुमार, ओमप्रकाश मिश्र, चन्द्रबिन्द सिंह, पंकज कुमार, लायची हरि राही, उमेश कुंवर 'कवि', पृथ्वी राज पासवान, अवधेश कुमार, सुनील प्रिय, महेश ठाकुर 'चकोर', प्रभा कुमारी, साधना भगत, नताशा, रजनीश कुमार गौरव समेत अन्य कवि प्रमुख थे। 

जलेस बिहार के कोषाध्यक्ष कुलभूषण कुमार गोपाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

अंत में जनवादी लेखक संघ बक्सर इकाई के भूतपूर्व सचिव और किसान नेता साथी ज्योति प्रकाश के शहादत दिवस होने के कारण उनकी स्मृति में दो मिनट मौन श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।

उपस्थित सभी कवियों की सामूहिक फोटोग्राफी के साथ ही कार्यक्रम के समापन की घोषणा की गयी।

इस अवसर पर जलेस बिहार के उपाध्यक्ष शाह जफर इमाम, शंभू शरण सत्यार्थी, अनिल कुमार, रवीन्द्र प्रसाद सिन्हा, मुख्तार सिंह, अरुण कुमार मिश्र, सर्वोदय शर्मा, ललन चौधरी, मंजुल कुमार दास, के०वी० राय, अनीश अंकुर, इंजीनियर सुनील सिंह, जयप्रकाश, गजेन्द्र शर्मा, पुष्पराज, रूपम कुमारी, संजीव कुमार श्रीवास्तव, संजय कुमार, देवेन्द्र चौरसिया, विनोद कुमार झा, श्याम भारती, मनोज चन्द्रवंशी, किशोर कुमार, भुवनेश्वर सिंह, अनिता त्रिपाठी, संजय कुमार सिंह, अरविन्द कुमार सिन्हा, सरिता पांडे, गोपाल शर्मा, विश्वनाथ सिंह, सुवेश सिंह, नीलम देवी,समेत सैकड़ों साहित्यप्रेमी मौजूद थे।


 

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