Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

तिरछी नज़र: सुनो...सुनो...सुनो, बादशाह ने सच बोलने का मुक़ाबला रखा है

सारे रत्न अचरज से बादशाह को देखने लगे। बादशाह ने अपने सबसे अहम रत्न अलिफ़ की ओर समझाने का इशारा किया। रत्न अलिफ़ ने बाक़ी के रत्नों को समझाया कि...
King
तस्वीर प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार : गूगल

बादशाह रात के समय अपने महल‌ में आराम से बैठा चैन से माउथ आर्गन‌ बजा रहा था। माउथ आर्गन बजाने में पूरे मुल्क में ही नहीं, पूरी कायनात में उसका सानी नहीं था। ऐसा वह ही नहीं, पूरे मुल्क की  अवाम ही नहीं, पूरी की पूरी दुनिया मानती थी।

तभी बादशाह ने मुल्क में एक मुकाबला करवाने की सोची। सोचा इससे अपना मनोरंजन तो होगा ही अवाम भी अपने कुछ ग़म ग़लत कर सकेगी। अवाम को थोड़ी देर के लिए ही सही, पर अपनी परेशानियों से, महंगाई से, बेचारी और बेकारी से, मतलब सबसे निजात मिल सकेगी। बादशाह के निजाम में परेशानियों से निजात पाने का मतलब परेशानियां खत्म होना नहीं, उनको कुछ समय के लिए भूल जाना होता था। 

बादशाह अवाम की भलाई के लिए इस तरह के उत्सव करता रहता था जिससे कि अवाम अपनी चिंताएं भूली रहे। अभी छः महीने पहले ही बादशाह ने बहुत सारे मुल्कों के बादशाहों को अपने यहां बुलाया था जिससे अवाम ने अपने गमों को भुलाया था। उसके बाद एक और कार्यक्रम किया था जिससे अवाम और अधिक मजहब परस्त हो सके। पर किसी ने ठीक ही कहा है, 'भूखे भजन न होए गोपाला'। तो अवाम पर उस मजहबी प्रोग्राम का भी उतना असर नहीं हुआ जितना बादशाह चाहता था। चाहत सबकी कहां पूरी होती है, चाहे बादशाह हो या फकीर। इसी गम में बादशाह अपने को फकीर भी कहता था।

तो जब बादशाह के दिमाग में मुकाबला आयोजित करवाने की आई तो उसने अपने सभी रत्नों को बुलवा भेजा। रात का समय था फिर भी सभी रत्न अपने महलों से दौडे़- दौड़े आए। जिनका महल दूर था वे रथों में सवार होकर आए। मतलब सभी रत्न, जो आ सकते थे, आए। जब सभी रत्न अपने महलों से राजमहल में इकट्ठा हो गए तो बादशाह ने फरमाया, "हम एक मुकाबला आयोजित करना चाहते हैं"।

"वाह! सुभानअल्लाह! ऐसा तो पहले कभी किसी बादशाह ने नहीं किया"। सभी रत्न एक स्वर में बोले।

"जहांपनाह, क्यों न हम माउथ आर्गन बजाने का मुकाबला रखें। इस दुनिया जहान में जहांपनाह से अच्छा, जहांपनाह से सुरीला माउथ आर्गन तो कोई बजा ही नहीं सकता है", रत्न ते ने अर्ज़ किया।

ते को बोलता देख बे कैसे पीछे रहता, "हां जहांपनाह, आपने दस साल पहले कितनी मधुर धुन निकाली थी। शहजादा..., शहजादा...। सब उसके पीछे दीवाने हो गए थे"।

"और वह 'पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड', और 'विधवा' वाली धुनों ने भी तो रिकार्ड तोड़ा था"। किसी अन्य रत्न‌ ने पीछे से कहा।

"आजकल भी 'गारंटी' वाली धुन चार्ट में सबसे ऊपर चल रही है"। रत्न बे ने कहा। 

"नहीं, नहीं, माउथ आर्गन का मुकाबला नहीं। उसमें तो हमारी ही फतेह होगी। हम तो अवाम के लिए मुकाबला चाहते हैं। अवाम ही उसमें हिस्सा ले और अवाम ही जीते", बादशाह ने कहा।

"जहांपनाह हम एक मुकाबला झूठ बोलने का कर सकते हैं। जो सबसे अधिक, सबसे सच्चा झूठ बोले, उसे जीता हुआ घोषित कर सकते हैं", एक रत्न ने मशविरा दिया।

"हां, तो तुम खुद जीतना चाहते हो यह मुकाबला। लेकिन में तुम्हें जीतने नहीं दूंगा", बादशाह ने हंसी की। "हम ना तो माउथ आर्गन बजाने की प्रतियोगिता रखेंगे और न ही झूठ बोलने की। हम तो मुकाबला रखेंगे, सच बोलने का। प्रश्न पूछने का। आरटीआई से इन्फोर्मेशन निकालने का। झूठ की पोल खोलने का। बस इसी तरह के मुकाबले होंगे और उनमें फतह करने वाले का ऐलान किया जाएगा"। 

सारे रत्न अचरज से बादशाह को देखने लगे। रत्नों को अपनी ओर सवालिया निगाहों से ताकते देख बादशाह ने अपने सबसे अहम रत्न अलिफ की ओर समझाने का इशारा किया। रत्न अलिफ ने बाकी के रत्नों को समझाया, "जो जहांपनाह के माउथ आर्गन पर झूमता हो, हम सबका माउथ आर्गन पूरी लगन से सुनता है। हमारे सारे झूठ को सच मानता हो। बल्कि सच से भी अधिक सच मानता हो, उसको जानने की, पहचानने की तो कोई जरूरत ही नहीं है। पर जो सच बोलने की जिद करता है, प्रश्न पर प्रश्न पूछता है, फैक्ट फाइंडिंग करता है, उसे ही तो पहचानने की जरूरत है। बस उसे ही पहचानना है। उसे बस पहचान भर लो, तो बादशाह सलामत हैं। उन के रत्न सलामत हैं"।

"वाह, जहांपनाह, वाह। इसीलिए तो बादशाह बादशाह हैं", सारे रत्न एक स्वर में बोले।

बादशाह ने खजाने के रत्न, ते से कहा, "अब तुम इस मुकाबले के लिए खजाने का इंतजाम करो। देखो किस किस कारोबारी से कितनी उगाही की जा सकती है। उनको ईडी, सीबीआई और टैक्स का डर दिखाओ और उगाही करो। इस मुकाबले के लिए यही उगाही काम आएगी"।

बादशाह इसके बाद उठ कर अपने शयन कक्ष की और चले गए और‌ सारे रत्न भी आपस में बातें करते हुए अपने अपने महलों की ओर चल दिए। जिनके महल नजदीक थे, जो पैदल आए थे वे पैदल ही निकल पड़े और जो रथों पर आए थे वे रथों पर गए।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest