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गेहूं ख़रीद की लचर व्यवस्था : बड़े संकट में छोटे किसान

पूरे देश में कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन के दौरान गेहूं की खरीद के लिए लचर व्यवस्था, ऑनलाइन पंजीकरण, भुगतान की सही शर्तें न होने और दलालों व बिचौलियों का तंत्र हावी होने के कारण किसानों को घोषित दर पर अपनी उपज बेचने में दिक्कत आ रही है।
गेहूं
Image Courtesy: Scroll.in

कर्ज और गरीबी की जंजीरों से जकड़े किसानों की मुसीबतें कोरोना महामारी के चलते अपने चरम पर पहुंचती जा रही हैं। खासतौर पर छोटे और सीमांत किसान ज्यादा परेशान हैं। सरकार ने इस वर्ष गेहूं की खरीद के लिए 1925 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी घोषित किया है, लेकिन ऑनलाइन पंजीकरण व भुगतान की शर्तें, लचर व्यवस्था और दलालों व बिचौलियों का तंत्र हावी होने के कारण किसानों को घोषित दर पर अपनी उपज बेचने में दिक्कत पेश आ रही है।

मध्य प्रदेश में तो कुछ जगहों पर किसानों को पुलिस की लाठियां खानी पड़ी हैं। वहीं यूपी में भी छोटे किसान ऑनलाइन के पेंच में उलझ कर रह गए हैं, जिसके चलते वहां भी खरीद की रफ्तार बेहद धीमी है। हरियाणा में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है, जहां 27 अप्रैल तक पिछले साल के मुकाबले सिर्फ 24 फीसदी ही गेहूं की खरीद हुई है।

राज्य सरकार पिछले एक माह के दौरान गेहूं खरीद के नियमों कई बार बदलाव किए हैं। सरकार के रवैए और लेटलतीफी के चलते पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह को भी बयान देना पड़ा कि आढ़ती व किसान के साथ वार्ता कर एक घोषणापत्र जारी किया जाए ताकि खरीददारी तुरंत शुरू की जा सके।

महाराष्ट्र के पूर्व सांसद व किसान नेता राजू शेट्टी, किसान नेता बीएम सिंह, राजस्थान के किसान नेता अमराराम और यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू समेत अन्य कई लोगों का कहना है कि वर्तमान में जिस तरह का संकट है, उसमें किसानों के हाथ में तुरंत पैसा जाना चाहिए। उनकी उपज की बिक्री व उसका भुगतान जल्द से जल्द किया जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो अन्नदाता भुखमरी का शिकार होने लगेंगे और अपनी जमीनें पूंजीपतियों व साहूकारों को बेचने या गिरवीं रखने को मजबूर हो जाएंगे।

इन नेताओं का कहना है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह किसानों व कृषि को बचाए। बीएम सिंह व अमराराम के मुताबिक लाकडउन खत्म होने के बाद किसान संगठनों के नेता वर्तमान हालात पर विचार विमर्श कर आगे की रणनीति तय करेंगे। ध्यान रहे कि लाकडाउन के कारण विभिन्न राज्यों में बहुत से किसान अपनी फसल नहीं काट सके। बाद में सोशल डिस्टेंसिंग की शर्तों के साथ उन्हें थोड़ा ढील मिली, लेकिन इसी दौरान बारिश और ओलावृष्टि से काफी नुकसान हो गय़ा। कई जगह किसानों का गेंहू इसलिए भी रिजेक्ट किया जा रहा है, क्योंकि पानी में भीगने के कारण उसकी क्वालिटी खराब हो गई है।  

लल्लू का कहना है कि वर्तामान संकट को देखते हुए किसानों को ज्यादा से ज्यादा सहूलियतें देने की जरूरत है, लेकिन उन्हें तो घोषित एमएसपी पर भी अपनी उपज बेचने में मुश्किल हो रही है। यूपी में तो किसान को यदि अपना गेहूं बेचना है तो उसे ऑनलाइन पंजीकरण कराना होगा। कंप्यूटर में फार्म डाउनलोड कर हिंदी व अंग्रेजी में अपना व पिता का नाम, पता लिखने के साथ-साथ जमीन का पूरा विवरण, कंप्यूटराइज्ड खतौनी, आधार या फोटो पहचान पत्र, मोबाईल नंबर व बैंक पासबुक का फोटो कापी समेत अन्य कई जानकारियां देनी पड़ रही हैं। हद तो यह है कि बंटाई पर खेती करने वाले किसानों से भी खेत का पूरा विवरण मांगा जा रहा है। अब दूरदाराज गांवों में रहने वाले छोटे किसान इन औपचारिकताओं को कैसे पूरी कर पाएंगे?  जबकि उनके पास न तो एंड्रायड फोन होता है और न ही इन दिनों कोई साइबर कैफे खुल रहा हैं। खरीद केंद्र और किसानों के बीच गहरी खाई है, जिसका फाएदा बिचौलिए और दलाल उठा रहे हैं।

उनका आरोप यहां तक है कि खरीद केंद्र वाले एक क्विंटल पर 6-7 किलो अनाज काट ले रहे हैं, जो सरासर अन्याय है। इन हालात के चलते तमाम किसान अपनी उपज एमएसपी के कम कीमत पर व्यापारियों को बेचने को मजबूर हो रहे हैं।

इतना ही नहीं सब्जी पैदा करने वाले किसानों को भी लाकडाउन के दौरान भारी नुकसान हुआ है। पुलिस ने उनकी उपज को शहरों तक आने से रोक दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि उसे उन्हें स्थानीय स्तर पर औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा। लल्लू का कहना है कि सरकार बेमौसम हुई बारिश व ओलावृष्टि के चलते किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा दे। साथ ही उनके कर्ज और बिजली के बिल भी माफ किए जाएं।

राजस्थान में भी लाकडाउन के कारण गेहूं समेत जौ, चना व सरसों आदि की खरीददारी में दिक्कत आ रही है। इसके चलते किसानों को मजबूरन अपनी उपज एमएसपी से कम कीमत पर व्यापारियों को बेचनी पड़ रही है।

राज्य के किसान नेता आमराराम का कहना है कि छोटे किसान ताबाही के कगार पर हैं। एक तरफ उनकी उपज की सही कीमत नही मिल रही है तो दूसरी तरफ दूध व पशुपालन का भी काम भी बिल्कुल बैठ चुका है। राज्य में करीब 35 फीसदी किसान दूध व पशुपालन के कारोबार पर निर्भर हैं, लेकिन पिछले एक माह से सबकुछ बंद होने के कारण वे दूध की सप्लाई सरकारी डेयरी में भी नहीं कर पा रहे हैं। किसानों को यह सहूलित मिलनी चाहिए थी, जो नहीं दी गई। उनका कहना है कि बड़े किसान तो अपनी उपज कुछ दिन रोक कर उपयुक्त कीमत पर बेच लेते हैं, लेकिन छोटे किसान के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं है। वे तंगहाली का जीवन जी रहे हैं, इसलिए उन्हें जल्द से जल्द पैसों की जरूरत की जरूरत होती है। मंडी में व्यापारी जो भाव तय करते हैं, उसी के हिसाब से उन्हें अपना अनाज बेचना पड़ता है। सरसों के लिए 4425, चना- 4875 और जौ के लिए 1525 रुपये एमएसपी तय की गई है, लेकिन इसका फाएद छोटे किसानों को नहीं मिल पा रहा है।

आमराराम ने बताया कि पिछले कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि ग्रामीण पूंजीपति गरीब किसानों की जमीनें खरीद रहे हैं। इसके चलते भी भूमिहीन किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसमें प्राइवेट हास्पिटल, कोचिंग चलाने वाले, स्थानीय कारोबारी, माइनिंग माफिया व बिल्डर आदि शामिल हैं। वे खेती वाली जमीनें इसलिए भी खरीदते, ताकि अपनी मोटी कमाई को इंकमटैक्स विभाग के सामने कृषि आय के रूप में पेश कर सकें।

उधर मध्य प्रदेश में भी किसानों को एसएमएस भेजने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन खरीद की प्रक्रिया ढीली-ढाली चल रही है। श्योपुर व जबलपुर आदि जगहों से किसानों पर पुलिस दमन की खबरें है। श्योपुर के एक बिक्री केंद्र पर सिर्फ इसलिए हंगामा हो गया, क्योंकि एक किसान का गेहूं रिजेक्ट कर दिया गया था। इन घटनाओं पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने वर्तमान सरकार को मंदसौर गोलीकांड की याद दिलाई है।

राज्य में एक तरफ खरीददारी की रफ्तार धीमी है, तो बेमौसम बारिश भी मुसीबत बन गई है। यहां भी कई जगहों पर छोटे किसान व्यापारियों को एमएसपी कम कीमत पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हुए हैं, जबकि एमपी गेहूं काफी अच्छा माना जाता है और शहरों में इसकी कीमत 35 रुपये किलो है, जबकि आटा 40 रुपये किलो बिकता है।

इसी तरह हरियाणा की बात की जाए तो 27 अप्रैल तक सिर्फ 21.60 लाख मिट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई , जबकि पिछले वर्ष इस तारीख तक 91 लाख मिट्रिक टन की खरीद हो गई थी। राज्य के पूर्व मंत्री रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि पिछले एक माह में खट्टर सरकार ने आधा दर्जन बार नियमों बदलाव किया।

26 मार्च को राज्य सरकार ने कहा कि किसानों को प्रति क्विंटल 50-125 रुपये बोनस दिया जाएगा, लेकिन अभी तक किसी को फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है। फिर 13 अप्रैल को आढ़तियों को ऑनलाइन पेमेंट करने व सात प्राइवेट बैंकों में खाते खोलेने का फरमान जारी हुआ, लेकिन बाद में यह फैसला भी बदल दिया गया और कहा गया कि पहले वाले नियमों के तहत खरीद की जाएगी। इसके बाद 21 अप्रैल को कहा गया कि आढ़तियों के बजाए पंचायतों के जरिए गेहूं की खरीद की जाएगी, लेकिन इस आदेश को भी वापस ले लिया गया।

फिर 24 अप्रैल को मोदी सरकार द्वारा डायरेक्ट ऑनलाइन पेमेंट का आदेश जारी होने के बाद 27 तारीख को खट्टर सरकार ने भी फरमान जारी किया कि गेहू खरीद के सारे पैसे का भुगतान ऑनलाइन किया जाएगा, लेकिन अब कहा जा रहा है कि गेहूं की खरीद किसी खरीद केंद्र या अनाज मंडी में नहीं होगी। सवाल उठता है कि ऐसी सूरत में दूरदराज गावों में रहने वाला किसान आखिर, करे तो क्या करे?

ध्यान रहे कि इस वर्ष सरकार ने देशभर से 4.07 करोड़ टन गेहूं खरीदने का दावा किया है, लेकिन उपरोक्त बड़े राज्यों में खरीद केंद्रों पर जो स्थिति नजर आ रही है, उसमें तय समय के भीतर इस लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल लग रहा है।  

मौजूदा संकट पर जब राजू शेट्टी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि किसानों व कृषि को बचाने के लिए सरकार को कम ब्याज वाले ऋण का दाएरा बढ़ाना चाहिए। इसके लिए सरकार चाहे तो बैंकों में धनी लोगों का जो पैसा डिपाजिट है, उस पर ब्याज की दरें कुछ घटा दे, क्योंकि उन्होंने तो इसीलिए अपना धन डिपाजिट कर रखा है, क्योंकि उनके पास ज्यादा है।

शेट्टी ने कहा कि किसान जीतोड़ मेहनत कर फसल पैदा करता है, लेकिन उसकी वाजिब कीमत उसे नहीं मिलती है। अनाज हो या सब्जी, उससे कम दाम में खरीद ली जाती है और वही चीज शहर में आम उपभोक्ताओं को मंहगे दर पर बेची जाती है। यदि गेहूं का ही उदाहरण लिया जाए तो इस वर्ष किसानों से इसे 19.25 रुपये प्रति किलो खरीदा जा रहा है, लेकिन बाजार में यह 30 रुपये या उससे ऊपर में बिकेगा। सवाल उठता है कि किसान के पास से मार्केट में आने तक इसकी कीमत में 10.75 रुपये प्रति किलो की बढ़ोत्तरी कैसे हो जा रही है? साथ ही उन्होंने कहा कि अक्सर यह देखा गया है कि कर्ज या तंगहाली के कारण छोटे किसान मजबूरन अपना खेत या तो गिरवी रख देते हैं या बेच देते हैं। इस लाकडाउन के दौरान कुछ लोगों ने जिस तरह से जमकर मुनाफाखोरी की है, उससे आने वाले दिनों में काले धन की एक समानांतर अर्थव्यवस्था पैदा हो सकती है। यह भी संभव है कि यह काला धन जमीनें खरीदकर खपाया जाए।

वहीं बीएम सिंह का भी कहना है कि देश को चलाना है तो किसानों को बचाना होगा। इंडस्ट्री तभी चलेगी जब गावों से मांग पैदा होगी और यह तभी होगा, जब किसानों, मजदूरों और गांव की गरीब जनता के हाथों में पैसा आएगा। सरकार को इस बात की गारंटी करनी होगी कि किसानों को एमएसपी मिले। यह अजीब बात है कि किसान खाद, बीज व डीजल आदि तय कीमत पर खरीदता है, लेकिन उसकी उपज के लिए जो एमएसपी तय की जाती है, वह उसे नहीं मिल पाती है? लाकडाउन के दौरान लोगों से तालियां बजवाई गई, लेकिन किसान तो ताली और थाली तभी बजाएगा, जब उसे उसका हक मिलेगा।

उन्होंने कहा कि छोटे किसान ज्यादातर दूध पर निर्भर हैं, लेकिन पिछले एक माह से चाय व मिठाई की दुकानों समेत सब कुछ बंद है। दूध की बिक्री हो नहीं पा रही है, जबकि सरकार को इसकी व्यवस्था करनी चहिए थी। वर्तमान में हालत यह है कि छोटे किसान बेहद मुश्किल से अपना परिवार चला पा रहे हैं।

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