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लोकसभा चुनाव और जनता के मुद्दे

इस चुनाव में बहुत चालाकी से भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस ने मिलकर जनता की मांगों को भटका दिया है और सारा मुद्दा ‘चार सौ पार’ पर ला खड़ा किया है।
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बीजेपी भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश में लगी हुई है। इससे पहले वो ‘मोदी की गारंटी’ को मुख्य मुद्दा बनाना चाहती थी। लेकिन 15 लाख रुपये, दो करोड़ रोजगार, महंगाई जैसे पुरानी गांरटी को जब लोगों ने याद दिलाना शुरू किया तो वह इस मुख्य चुनावी मुद्दे की जगह भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया। उनका मुख्य नारा है-‘वो कहते हैं ‘भ्रष्टाचारी को बचाओ, मोदी जी कहते हैं भ्रष्टाचार हटाओ’ इस नारे के साथ केजरीवाल, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव का स्कैच किया हुआ चित्र लगा हुआ है।
नरेन्द्र मोदी ने 2014 में भी भ्रष्टाचार का बड़ा मुद्दा बनाया था और कहा था कि स्विस बैंक से काला धन लाएंगे, जिससे कि भारत के प्रत्येक नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये आ सकते हैं। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाकर सर्विस में ईमानदारी से टैक्स देने वाले लोगों को छूट देंगे। हम जानते हैं कि न तो स्विस बैंक से कोई पैसा आया और न ही लोगों के खाते में 15 लाख रुपये आये और न ही टैक्सपेयर को कोई गुणात्मक राहत मिल पाई।
2015 में भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत का स्थान 76वां था, जो 2023 में 93 वें स्थान हो गया है, यानी भ्रष्टाचार में बढोत्तरी हुई है। जिसका एक परिणाम है स्वतंत्र प्रेस पर हमला, ताकि कोई भी भ्रष्टाचार को उजागर करने में डरे। नोटबंदी के बाद साल 2022 में स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा 14 सालों के रिकॉर्ड स्तर तक बढ़कर 3.38 बिलियन स्विस फ्रैंक हो गया। नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह केवल कालेधन को सफेद करने का एक तरीका था। नोटबंदी से देश का जीडीपी नीचे गया और उसके बाद भ्रष्टाचार सूचकांक में भी भारत के स्थान में बढोत्तरी देखी गई। मोदी सरकार पर पहला आरोप 2015 में लगा, जब जे.पी. नड्डा स्वास्थ्य मंत्री थे। नड्डा ने यूपीए 2 के समय (मई 2010 से नवम्बर 2012) एम्स में हुए 7,000 करोड़ रुपये के घोटाले में हिमाचल कैडर के आईएएस अधिकारी विनीत चौधरी को दिल्ली उच्च न्यायालय में हलफनामा देकर क्लीन चिट दे दी। विनीत चौधरी के साथ जेपी नड्डा की पुराना परिचय रहा है। हिमाचल में जब जे.पी. नड्डा स्वास्थ्य मंत्री थे, उस समय विनीत चौधरी हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सचिव थे। एम्स के मुख्य सतर्कता आयुक्त संजीव चतुर्वेदी ने विनीत चौधरी और बीएस आनंद द्वारा शुरू की गई कई परियोजनाओं की जांच शुरू की, जिनके रिपोर्ट में एम्स के विकास के लिए दिए गए धन के दुरुपयोग के लिए दो शीर्ष अधिकारियों के बीच सांठ-गांठ को उजगार किया गया।
संजीव चतुर्वेदी की रिपोर्ट के आधार पर उस समय के स्वास्थ्य मंत्री गुलाब नबी आजाद ने जनवरी 2014 में सीबीआई के विनीत चौधरी और बीएस आनंद के खिलाफ मामला दर्ज करने को कहा। मोदी सरकार ने जिन लोगों पर आरोप लगाये, वे कुछ दिन बाद एनडीए गठबंधन में आ गये या बीजेपी पार्टी के सदस्य बन गये, जिसमें प्रमुख नाम महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले में अजीत पवार हों या आदर्श घोटला के अशोक चौव्हाण, एक उप मुख्यमंत्री तो दूसरे राज्य सभा सांसद बनाए जा चुके हैं। इसी तरह के बीजेपी में शामिल होने वाले अनगिनत नाम मिल जायेंगे-सुवेंदु अधिकारी से लेकर हिमंत विस्वा सरमा तक जिनको मुख्यमंत्री तक बीजेपी ने बनाया है। भाजपा का भ्रष्टाचार यहीं तक नहीं रुकता है। प्रधानमंत्री द्वारा खुद जिन योजनाओं को बहुत जोर-शोर से प्रचारित किया गया, उसमें भी भ्रष्टाचार देखने को मिला है, जैसे कि ‘आयुष्मान भारत योजना’, जिसका ढोल स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा बहुत पीटा गया है। इसमें कैग ने सितम्बर 2018 से मार्च 2021 तक का मूल्यांकन किया है, जिसमें कई तरह की अनियमिततायें पाई गई हैं- 2.5 लाख रुपये की ‘सर्जरी’ की तारीख डिस्चार्ज की तारीख के बाद दिखाई गई है; 45,864 केसों में डिस्चार्ज की तारीख दाखिले की तारीख से पहले की है। 7.5 लाख लाभार्थियों का एक ही मोबाइल नम्बर 9999999999 है और 1.4 लाख लाभार्थीं 8888888888 नम्बर पर पंजीकृत हैं। इस तरह के घोटाले का कौन जवाबदेह है?
संसद भवन से 5 कि.मी. और सुप्रीम कोर्ट से 500 मीटर दूरी पर बना 777 करोड़ के टनल का उद्घाटन 19 जून, 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। इस टनल के उद्घाटन में प्रधानमंत्री प्लास्टिक बोतल उठाते हुए दिखे थे, यानी उनका संदेश था कि देश स्वच्छ हो। 18 माह में ही यह टनल बदहाल स्थित में हो गई, पहली बारिश में ही इसमें जल जमाव हो गया। ‘द हिन्दू’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक प्रगति मैदान टनल मरम्मत से परे हैं, इसमें बड़े बदलाव की जरूरत है। यह संरचना यात्रियों के लिए सुरक्षित नहीं है। इस तरह के भ्रष्टाचार की सफाई प्रधानमंत्री नहीं कर पाये, बल्कि कहा जाये तो उनके नाक के नीचे भ्रष्टाचार होने लगा। इस बात का संकेत अपने इंटरव्यू में भूतपूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी दे चुके हैं। मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार कम नहीं होना और दुबारा भ्रष्टाचार के नाम पर वोट मांगना यह छलावा के अलावा कुछ नहीं है।
विपक्ष ‘लोकतंत्र’ बचाने के नाम पर वोट मांग रहा है। 31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में ‘लोकतंत्र बचाओ’ के नाम पर इंडिया गठबंधन की रैली हुई। भारत की आजादी के बाद लोकतंत्र का स्वाद आम जनमानस वोट देने तक ही रहा है, वह भी आधे-अधूरे तरीके से। भारत में जब कोई आम आदमी किसी दफ्तर या थाने में अपनी समस्याओं को लेकर जाता है तो उसे दुत्कार कर भागा दिया जाता है। ट्रेनों में जनरल बोगी की भीड़ शौचालय के अन्दर तक बैठने का ही अधिकार यह लोकतंत्र आजतक उनको दे पाया है। मजदूरी के बाद उनको पूरा पैसा मिल जाये, वह इसी को लोकतंत्र समझता है।
राइट टू एजुकेशन के तहत 14 साल तक के बच्चों की  शिक्षा अनिवार्य है, लेकिन आज भी उन गरीब बच्चों को दिल्ली के अन्दर दाखिला नहीं मिल पाता, जिसके आधार कार्ड दिल्ली के बाहर के हैं। आम जन का लोकतंत्र आज भी पिंजड़े में बंद है। आज तक लोकतंत्र के नाम पर उनके पीठ पर तंत्र के डंडे ही पड़ते रहे हैं। आज भी बहुत सारे ऐसे परिवार हैं, जिनकी पहली पीढ़ी स्कूलों तक जाने के लिए सोच रही है। उच्च शिक्षा की महंगी होती फीस और अच्छा इलाज तो मध्यम वर्ग के लिए भी आने वाले समय में सपनों जैसा लगने लगा है।
प्रगतिशील और मध्यम वर्ग का एक तबका चुनावी बांड पर हुए खुलासे को लेकर खुश है, जिसको मोदी जी टीवी को दिए एक साक्षात्कार में नाचना कहते हैं। उनका यह मानना है कि जनता की नजरों में मोदी सरकार भ्रष्ट हो चुकी है। वह यह भूल जाते हैं कि भ्रष्टाचार, पूंजीवाद एक ही सिक्के दो पहलू हैं। पूंजीवाद में भ्रष्टाचार होना तय है, उसका रूप अलग-अलग हो सकता है। सबसे बड़ा भ्रष्टाचार श्रम की चोरी है, जिससे पूंजी दिन दूना-रात चौगुनी इक्ट्ठा की जाती है और जिसके बल पर भारत के पूंजीपति दुनिया के दस स्थानों में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो चुके हैं। इस भ्रष्टाचार को कानूनी जामा पहनाने के लिए मोदी ‘श्रम कोड’ ला रहे हैं, जिस पर देशभक्ति का तड़का एन आर नारायणमूर्ति जैसे पूंजीपति लगा रहे हैं। श्रमिकों को कह रहे हैं कि देश को आगे बढ़ाने के लिए हफ्ते में 70 घंटे काम करें। नारयणमूर्ति अपने चार माह के पोते को 240 करोड़ रुपये का शेयर गिफ्ट करते हैं। चुनावी बांड जिन कम्पनियों ने खरीदा है उनमें अधिकतर भ्रष्टाचारी हैं। भारत की जनता से भ्रष्टाचार करके कमाई हुई सम्पत्ति में से 5-10 प्रतिशत इन चुनावबाज पार्टियों को दे दिया है, जिसमें ज्यादा पैसा उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को दिया है। चंदे के धंधे में सभी पार्टियां शामिल हैं।
इस चुनाव में बहुत चालाकी से भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस ने मिलकर जनता की मांगों को भटका दिया है और सारा मुद्दा ‘चार सौ पार’ पर ला खड़ा किया है। लम्बे समय से जो किसान संगठन, एमएसपी की मांग रहे हैं और उसके लिए जो आन्दोलन कर रहे हैं, उसको भाजपा और आरएसएस मिलकर बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। 15-17 मार्च, 2024 के आरएसएस ने नागपुर की अपनी बैठक में किसान आन्दोलन पर कहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले आरजकता फैलाने की कोशिश हो रही है।
जरूरत है जनता को चेतनशील होकर रोजगार-महंगाई, महंगी होती शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और मजदूरों-किसानों की सामाजिक सुरक्षा, उचित मजदूरी और फसलों की मांग को उठाना चाहिए। इन सभी मुद्दों में मोदी सरकार फेल हो चुकी है उनके आने के बाद शिक्षा-स्वास्थ्य महंगा हुआ है। गैरकानूनी कहकर देश भर में लाखों घरों को तोड़ दिया गया है। कोरोना काल के बाद से फैक्ट्री एक्सीडेंट बढ गया है, चुनाव घोषणा होने के बाद से देश भर में कई बड़े-बड़े फैक्ट्री एक्सीडेंट हुआ है, जिसमें सैकड़ों मजदूरों की जानें गई हैं। 750 से अधिक किसान आन्दोलन करते हुए अपनी जान की आहुती दे चुके हैं। नौजवानों को नौकरी नहीं मिल रही है, अग्निवीर जैसी योजनाओं ने गरीब परिवार के नौजवानों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। इन सबका स्थायी हल तब निकलेगा, जब पूंजीवादी शोषण का खात्मा होगा। 
 
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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