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लखनऊ विश्वविद्यालय : छात्रों-शिक्षकों का प्रदर्शन, प्रशासन पर अधिकारों के हनन का आरोप

छात्रों और शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन का रवैया तानाशाही वाला है और उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है।
lucknow university

शिक्षक और छात्र दोनों इन दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं। छात्रों और शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन का रवैया तानाशाही वाला है और उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है।

विश्विद्यालय प्रशासन और शिक्षकों के बीच गतिरोध का कारण अवकाश में कटौती और मूल्यांकन के उपरांत भुगतान न होना है। जबकि छात्रों और विश्विद्यालय प्रशासन के बीच तनाव की वजह पुस्तकालय के बाहर धरना-प्रदर्शन करने वाले एक छात्र का निलंबन और 5 छात्रों को भेजा गया कारण बताओ नोटिस है।

लखनऊ यूनिवर्सिटी एसोसिएटेड कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (लुआक्टा) के बैनर तले हो रहे विरोध में लखनऊ के साथ लखीमपुर हरदोई, सीतापुर रायबरेली के शिक्षक भी शामिल हैं। उधर छात्रों के आंदोलन की कमान वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) के हाथों में है, जिनका कहना है विरोध करने पर निलंबन, विश्वविद्यालय प्रशासन के अलोकतांत्रिक रवैये को ज़ाहिर करता है।

फ़िलहाल ग्रीष्मकालीन अवकाश से पहले लखनऊ विश्वविद्यालय में तनाव का मौहोल देखने को मिल रहा है। रविवार को कुछ शिक्षकों द्वारा विश्वविद्यालय के “मूल्यांकन केंद्र” पर ज़बर्दस्ती घुसने की कोशिश की गई। वही आइसा, छात्र नेता निखिल कुमार के निलंबन वापस लेने की मांग पर अड़ा हुआ है।

शिक्षकों में रोष का कारण

लुआक्टा का विरोध 20 मई को विश्वविद्यालय की सरस्वती वाटिका, से शुरू हुआ। विश्वविद्यालय प्रशासन पर अपनी मांगों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए शिक्षक देर रात तक विरोध प्रदर्शन करते रहे। जो 21 मई, रविवार को भी जारी रहा।

शिक्षकों के नेता और लुआक्टा अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडेय ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि “ग्रीष्मकालीन अवकाश” इस समय बेहद अहम मुद्दा है। उनके अनुसार परिनियमावली की व्यवस्था के अनुसार लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षकों को 8 और कॉलेज के शिक्षकों को 10 सप्ताह का ग्रीष्मकालीन अवकाश मिलता था।

डॉ. मनोज पांडेय ने बताया कि इस बार सभी शिक्षकों को एक समान छह सप्ताह का अवकाश दिया जा रहा है, जो परिनियमावली के ख़िलाफ़ है। वह मानते हैं अवकाश में कटौती करनी भी है तो दोनों में दो-दो सप्ताह करनी चाहिए, न कि कॉलेज के शिक्षकों की सीधे चार सप्ताह की कटौती कर दी जाए। बता दें कि विश्वविद्यालय ने 4 जून से 16 जुलाई तक ग्रीष्मकालीन अवकाश घोषित कर रखा है।

रविवार को भी प्रदर्शन

शिक्षकों के क़रीब 24 घंटे के प्रदर्शन के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई जवाब नहीं आया। जिससे नाराज़ होकर, रविवार की दोपहर कुछ शिक्षक विश्वविद्यालय परिसर में बने मूल्यांकन केंद्र पर पहुंच गए और कार्य बंद कराने के लिए अंदर जाने की कोशिश करने लगे। हालांकि मूल्यांकन प्रभारी व प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया।

शिक्षकों की अन्य मांगे

लुआक्टा अध्यक्ष ने बताया कि परीक्षा मूल्यांकन के बाद तुरंत भुगतान की व्यवस्था नहीं है। कई साल से परीक्षा से संबंधित भुगतान न करने से भी शिक्षक नाराज़ हैं। इसके अलावा लखीमपुर, रायबरेली सीतापुर, हरदोई के शिक्षकों को मूल्यांकन के समय ठहरने के लिए अलग “परीक्षा भवन” आवास बनाने की मांग भी शिक्षक कर रहे हैं।

डॉ. मनोज पांडेय ने आगे बताया कि महाविद्यालयों के सभी प्रोफेसर को परिनियम के अनुसार सभी अकादमिक समितियों का सदस्य बनाने, पीएचडी में प्रवेश के साथ शोधार्थियों को शोध निदेशक दिए जाने, अर्थशास्त्र विभाग द्वारा पीएचडी अध्यादेश के विपरीत सीटों का आवंट करने व शिक्षकों को ऑनलाइन कोर्स के न कराए जाने जैसे मामलों के हल के लिए कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन से बात की गई है लेकिन कोई सकारात्मक समाधान नहीं हो सका। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन के नकारात्मक रवैये से परेशान शिक्षकों को आंदोलन शुरू करना पड़ा है।

छात्रों को नोटिस-निलंबन

विश्वविद्यालय पुस्तकालय में छात्रों को आ रही तमाम समस्याओं को विरुद्ध 11 मई से छात्र संगठन आइसा द्वारा एक सप्ताह तक हस्ताक्षर अभियान चला कर पुस्तकालय गेट पर धरना-प्रदर्शन किया गया जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा सभी मांगें स्वीकार कर उन पर कार्यवाही करने का आश्वासन दिया गया।

निखिल का निलंबन पत्र

लेकिन अब आइसा का कहना है कि अब विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उसके सभी नेताओं को एक एक कर निशाना बनाया जा रहा है। जिसमें 5 छात्र-छात्राओं-समर, हर्ष, सुकीर्ति, ज्योति, अमन के नाम शामिल हैं। उनको 'कारण बताओ नोटिस' दिया गया जिसका जवाब 3 दिन में प्रॉक्टर ऑफिस में देना था।

लेकिन आइसा के अनुसार छात्र नेता निखिल को नोटिस देर से मिलने के कारण उसका जवाब समय पर नहीं दिया जा सका। जिस कारण विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपना तानाशाही फ़रमान जारी कर निखिल को अवधि तक विश्वविद्यालय से निलंबन कर दिया गया तथा उनका छात्रावास आवंटन निरस्त कर दिया। उलेखनीय है निखिल एम०ए० (राजनीतिशास्त्र) के छात्र है। लखनऊ विश्वविद्यालय के महमूदाबाद छात्रावास के वह कमरा नंबर-61 में रहते है।

निखिल पर आरोप

निखिल पर आरोप है कि उन्होंने 11 मई को लखनऊ विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर स्थित ऐतिहासिक “टैगोर पुस्तकालय” के साइबर हाल में अनाधिकृत रूप से स्टूल पर खड़े होकर भाषण दिया, जिससे सामान्य छात्र-छात्राओं का अध्ययन कार्य एवं विश्वविद्यालय संबंधी कार्य बाधित हुआ।

प्रॉक्टर राकेश द्विवेदी के कार्यालय से भेजे गये नोटिस में यह भी कहा गया है कि विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान निखिल ने परिसर की व्यवस्था प्रभावित करने का कुत्सित प्रयास किया। इसके अलावा नोटिस में कहा गया गया है कि उन्होंने 10 मई को विश्वविद्यालय भवनों में एवं दीवारों पर आइसा संगठन के प्रचार-प्रसार हेतु अनाधिकृत रूप से लिखावट कर परिसर को गंदा किया।

हालांकि निखिल के निलंबन की ख़बर मिलते ही निलंबन वापसी व छात्रावास आवंटन की पुनः बहाली को लेकर आइसा कार्यकर्ता व अन्य छात्र, छात्रावास गेट पर अनशन पर बैठ गये।

आइसा ने क्या कहा

जब न्यूज़क्लिक ने आइसा के प्रदेश अध्यक्ष आयुष श्रीवास्तव से विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों में बढ़ते गतिरोध पर बात कि तो उन्होंने कहा प्रॉक्टर विश्वविद्यालय को एक ऐसे परिसर में परिवर्तित करना चाहते हैं, जहां कोई भी अन्याय के ख़िलाफ़ नहीं बोल सके और वह अपने छात्र विरोधी एजेंडे (फीस बढ़ाना आदि) को लागू करने के लिए स्वतंत्र हों। उन्होंने कहा निखिल व अन्य छात्रों को भेजे गए नोटिस निराशाजनक है।

आयुष के अनुसार छात्र नेताओं ने केवल विरोध करके छात्रों को संगठित करने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग किया था। आइसा विश्वविद्यालय के छात्रों से अपील करता है कि वे इन प्रशासनिक धमकियों के सामने घुटने न टेके। आइसा की मांग है कि इन छह छात्रों को भेजे गए कारण बताओ नोटिस को तुरंत वापस लिया जाए और परिसर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बहाल किया जाए। आइसा नेता ने कहा जब तक निखिल की निलंबन वापसी व छात्रावास आवंटन की पुनः बहाली नहीं होगी तब तक विरोध करते रहेंगे।

क्यों हुआ था छात्रों का प्रदर्शन

पुस्तकालय की समस्याओं और मांगो को लेकर आइसा ने कैंपस में छात्रों के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया था। जिसके तहत आइसा ने पुस्तकालय का समय 24 घंटे कराने, पुस्तकालय में नेटवर्क समस्याओं को दुरस्त करने, फोटो कॉपी की क़ीमत 0.50 पैसा करने, पुस्तकालय में शुद्ध पानी एवं शौचालय की स्वच्छ व्यवस्था को लेकर पूरा एक हफ्ते अभियान चलाया था।

हस्ताक्षर अभियान में सैकड़ों की संख्या में छात्रों ने हस्ताक्षर किया और समस्याओं पर जल्द ही कार्रवाई करने की मांग की। हालांकि हस्ताक्षर अभियान के शुरुआती समय में विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस अभियान को रोकने की कोशिश की जिसको लेकर छात्रों ने नाराजगी जताई थी।

छात्र नेता निखिल ने बताया कि आख़िर में प्रशासन ने आइसा की मांगो को संज्ञान में लेते हुए कहा है कि एक हफ्ते के पश्चात पुस्तकालय के समय को सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक कर दिया जाएगा। शौचालय एवं शुद्ध पानी की व्यवस्था को जल्द से जल्द दुरुस्त कर दिया जाएगा। साइबर पुस्तकालय की नेटवर्क की समस्या जल्द ही दुरुस्त कर दिया जाएगा और फोटो स्टेट की क़ीमत 0.50 पैसे कर दी जाएगी।

विश्वविद्यालय की तरफ़ से न्यूज़क्लिक से बात करते हुए डॉ दुर्गेश श्रीवास्तव ने कहा कि अवकाश में कटौती इसलिए की गई है की कोविड-19 की तालाबंदी के दौरान जो शैक्षिक सत्र अनियमित हुए थे उसको नियमित किया जा सके।

डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव ने कहा कि “मूल्यांकन स्थल” जो कि “गोपनीय” होता है, वहां कुछ शिक्षकों ने जबर्दस्ती घुसने का प्रयास किया जो शिक्षक मर्यादा के विपरीत है। हालांकि इनको अंदर जाने से मूल्यांकन प्रभारी ने रोक दिया। छात्रों के विरोध पर डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव ने कहा कि जांच चल रही है। जांच के बाद नियमानुसार निर्णय लिया जायेगा।

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