लूला ने ब्राज़ील की राजनीति के केंद्र को कभी नहीं छोड़ा
ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति, लुइज़ इनासियो लूला डी सिल्वा, जिन्हें लूला के नाम से भी जाना जाता है, ने देश के राष्ट्रपति चुनाव में अपने दक्षिणपंथी प्रतिद्वंद्वी और मौजूदा राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के 49.10 प्रतिशत के मुकाबले 50.90 प्रतिशत मत हासिल किए हैं, जो उनकी जीत में अविश्वसनीय रूप से छोटा अंतर है।
जब लूला ने 2010 में राष्ट्रपति कार्यालय छोड़ा था, तो उन्हें उस वक़्त ब्राजील के 80 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल था। लूला कैसे अपना करिश्मा खो बैठे यह यह एक जटिल कहानी है। उन्होंने इसके लिए पूरी तरह से जमीनी हकीकत को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि वे किसी व्यक्ति से नहीं बल्कि ब्राजील के राज्य तंत्र से लड़ रहे थे। स्पष्ट रूप से, लूला का सबसे मजबूत समर्थन आधार- दो-तिहाई से अधिक वोट- ब्राजील के पूर्वोत्तर भाग में गरीब, ग्रामीण मतदाताओं के बीच मजबूत रहा है।
लूला एक आयामी आदमी के अलावा, कुछ भी हो सकते हैं। बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि वे ऐसे पहले लैटिन अमेरिकी नेता थे जिन्हें कैंप डेविड में आमंत्रित किया गया था- 2007 में उन्हें किसी और ने नहीं बल्कि खुद राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने आमंत्रित किया था। बुश ने कहा था, आप हमारे एक दोस्त हैं, और हम आपका एक दोस्त के रूप में स्वागत करते हैं, और हमारी चर्चा भी बहुत दोस्ताना होगी।”
मार्च 2009 में, व्हाइट हाउस के ओवल कार्यालय में लूला की अगवानी करने के बाद, बुश के उत्तराधिकारी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि वे ब्राजील के एक महान प्रशंसक हैं और साथ ही प्रगतिशील, अग्रगामी नेतृत्व के भी महान प्रशंसक हैं, जिसे राष्ट्रपति लूला ने न केवल लैटिन अमेरिका में बल्कि पूरी दुनिया को दिखाया है।
प्रशंसा असंभव रूप से समान थी। इसके कई कारण हैं, क्योंकि लूला की जीत अमेरिका के लिए बहुत मायने रखती है- इसमें व्यापार, लोकतंत्र, डोनाल्ड ट्रम्प और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे महत्व रखते हैं। लूला का नया और हरियाली समर्थक रुख अमेरिका को भा रहा है। अमेज़न वर्षावन का जलना बंद हो सकता है। लूला की व्यापार-हितैषी आर्थिक नीतियों के प्रति भी वाशिंगटन उत्साहित रहा है।
लूला दक्षिणपंथियों के मित्र भी हो सकते हैं और फिर भी वे एक प्रतिष्ठित प्रगतिशील नेता बने रह सकते हैं। उनका चुंबकत्व विविध मनों को आकर्षित करता है। राष्ट्रपति के रूप में लूला के तत्काल उत्तराधिकारी, जो एक समय में भूमिगत क्रांतिकारी आन्दोलन की हिस्सा थी, डिल्मा रूसेफ, इसे उनके ;तर्कसंगत मूल्यांकन और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को जिम्मेदार ठहराएंगी- जो व्यापक राजनीतिक स्पेस में मानव दिमागों से जुड़ने के लिए किसी प्रतिभाशाली राजनेता का गुप्त हथियार होता है।
अमेरिका और ब्राजील के बीच रिकॉर्ड व्यापार होता है- जिसमें विमान, पेट्रोलियम, लोहा और इस्पात शामिल है- और वे भी इसी तरह की वस्तुएं बनाते हैं। ब्राजील सोया और संतरे का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद अमेरिका का नंबर आता है, जबकि अमेरिकी मकई, बीफ, टर्की और चिकन उत्पादन में आगे हैं, और ब्राजील इनमें पीछे है। मंदी के समय बाजार की हिस्सेदारी को लेकर प्रतिस्पर्धा होगी।
पिछले कुछ वर्षों में मैंने लूला पर जो सबसे बेहतरीन लेख पढ़ा था, वह था लंदन रिव्यू ऑफ बुक्स में प्रोफेसर और लेखक पेरी एंडरसन (जो तारिक अली के साथ न्यू लेफ्ट रिव्यू के संपादकीय बोर्ड में बैठते हैं) द्वारा 2011 में लिखा गया एक निर्णायक निबंध था। उस 22000 शब्दों के निबंध में जिसका शीर्षक लूला का ब्राज़ील है, एंडरसन ने 2003 से 2010 तक राष्ट्रपति के रूप में, दो पूर्ण कार्यकालों के लूला के विपरीत और फिर भी परस्पर पहलुओं की जांच की थी।
लूला को पहला कार्यकाल देश में मौजूद भ्रष्टाचार के खुलाफ़ मुहिम चलाने से मिला था, और वह ही 2006 में लगभग दूसरी बार जीत का कारण बना था। लेकिन लूला के पास दो संपत्तियां थीं। पहली, उनकी नवउदारवादी आर्थिक नीतियों ने निरंतर आर्थिक विकास किया, और दूसरा, जैसे-जैसे व्यापार और नौकरियों में वृद्धि हुई, न केवल देश में मूड बदल गया, बल्कि सरकार के खजाने भी बड़े राजस्व से भर गए थे। संक्षेप में कहें तो, हालांकि लूला गरीबों की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन सत्ता में रहते हुए काफी पहले ही यह भी महसूस कर लिया था कि अमीरों और शक्तिशाली लोगों का साथ लेना जरूरी होगा, क्योंकि केवल बड़े राजस्व के साथ ही, वे उस कार्यक्रम को शुरू कर सकते हैं जो अब उनके साथ अमिट रूप से जुड़ा गया था, यानि बोल्सा फ़मिलिया, जो सबसे कम आय वर्ग की माताओं को मासिक नकद हस्तांतरण मुहैया करता है, जो इस बात की तसदीक है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेज पाएं और समय रहते अपने स्वास्थ्य की जांच करवा पाएं।
नकद हस्तांतरण करीब 1 करोड़ 20 लाख से अधिक घरों, जो आबादी का एक चौथाई हिस्सा है, तक पहुँच रहा था, यह संदेश देता है कि लूला वंचितों और दबे-कुचले लोगों के सामाजिक अधिकारों की चिंता करते हैं। एंडरसन ने लिखा कि इसस बदलाव से लूला की लोकप्रिय पहचान उनकी सबसे मजबूत राजनीतिक संपत्ति बन गई।
इसके बाद न्यूनतम वेतन में वृद्धि का क्रम चलता रहा। इन सशर्त नकद हस्तांतरण, उच्च न्यूनतम मजदूरी और ऋण की नई पहुंच ने लोकप्रिय खपत को बंद कर दिया, जिससे घरेलू बाजार का विस्तार हुआ जिसने अंततः अधिक रोजगार पैदा करना शुरू कर दिया था।
एंडरसन के मुताबिक, इसके ज़रिए तेज आर्थिक विकास और व्यापक सामाजिक हस्तांतरण ने ब्राजील के इतिहास में गरीबी को सबसे अधिक कम किया। कुछ अनुमानों के अनुसार, छह वर्षों के अंतराल में गरीबों की संख्या लगभग 5 करोड़ से घटकर 3 करोड़ रह गई थी, और निराश्रितों की संख्या में 50 प्रतिशत की कमी आई थी। 2005 के बाद से, शिक्षा पर सरकारी खर्च तिगुना हो गया और बेहतर जीवन की उम्मीद को बड़ी लोकप्रिय सफलता मिली थी। लूला की विदेशी प्रशंसा भी कम प्रभावशाली नहीं थी। लूला ने इस बात पर ध्यान दिया कि वाशिंगटन से नहीं टकराना है, बल्कि उसने क्षेत्रीय एकजुटता को अधिक प्राथमिकता दी, दक्षिण में पड़ोसियों के साथ मर्कोसुर को बढ़ावा दिया, और उत्तर में क्यूबा और वेनेजुएला को ठंडे बस्ते में डालने से इनकार कर दिया था। लूला ने फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दी और ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों का विरोध किया। निस्संदेह, एक आर्थिक शक्ति के रूप में ब्राजील के बढ़ते वजन और युग के सबसे लोकप्रिय शासक के रूप में उनकी अपनी आभा ने लूला को इसमें कामयाबी दिलाने में मदद की। उन्होंने ब्राजील के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो स्थिति हासिल की, वह 2009 में ब्रिक चौकड़ी के गठन ने उसे दी थी, जो वस्तुतः पश्चिम से राजनयिक स्वतंत्रता की घोषणा थी।
ये विरोधाभास आज सामूहिक रूप से पश्चिम और मॉस्को और बीजिंग से लूला की सफलता को बधाई देने वाले संदेशों में दिखाई दे रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का बधाई संदेश इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे ब्राजील भू-राजनीति में एक उच्च दांव वाला मैदान बन गया है। वास्तव में, ब्राजील में एक प्रतिकारी आर्थिक शक्ति के रूप में चीन का रुख एक सम्मोहक वास्तविकता है। 2021 में, चीन ब्राजील में नंबर एक निवेशक था।
लैटिन अमेरिका में वामपंथियों में टकराव है। कुल मिलाकर, यह समूह बेहद मिश्रित है, आर्थिक नीति और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता पर भिन्न राय है, लेकिन वे अमेरिकी आधिपत्य के प्रतिरोध में एकजुट हैं। वामपंथी सरकारों के बीच आगामी एकजुटता, के मामले में लूला का ब्राजील एक मेहमाननवाज़ी का पालना बन सकता है। बदले में, लूला शासन - बोलीविया, वेनेजुएला, इक्वाडोर – को सुरक्षात्मक मित्रता देगा- जो लूला से अधिक क्रांतिकारी हैं, जबकि लूला का उन पर एक मध्यम मार्गी प्रभाव रहेगा। यह सुनिश्चित है कि, लूला के आने से ब्रिक्स एजेंडे में गंभीरता आ गई है।
इसे भी पढ़ें: https://hindi.newsclick.in/Brazil-Lula-victory-has-deep-meaning
अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण उनके दिल में बहुत गहरा है। वह ब्रिक्स के एकमात्र नेता हैं जो समूह को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक काउंटरपॉइंट के रूप में प्रेरित कर सकते हैं। हालांकि, पिछले 12 साल की अवधि में विश्व राजनीति में अभूतपूर्व बदलाव आया है। ब्रिक्स खुद बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। राष्ट्रपति के रूप में उनके दो कार्यकालों के दौरान, अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ ब्राजील के लिए सौम्य था क्योंकि वाशिंगटन ने गोलार्ध में महाद्वीपीय अपने आधिपत्य की पकड़ खो दी थी और अब आतंक के खिलाफ युद्ध अमेरिकी वैश्विक रणनीति की मुख्य मुद्दा बन गया है। लेकिन नए शीत युद्ध की स्थितियों में, वाशिंगटन के आधिपत्य जमाने का पारंपरिक तंत्र लगभग निश्चित रूप से लैटिन अमेरिका में लौट आएगा, खासकर तब, जब बाइडेन को यूक्रेन पर कुछ कठिन निर्णय लेने होंगे, जिसमें नाटो परियोजना का एक बड़ा पतन होगा।
यह वह जगह है जहां राष्ट्रपति चुनाव में लूला का मतों का अंतर राजनीतिक अर्थव्यवस्था में चिंताजनक है जहां बेरोजगारी व्यापक है, उच्च मुद्रास्फीति है, और संपत्ति असमानता चौंका देने वाली है तथा मतदाता अत्यधिक ध्रुवीकृत हैं। वाशिंगटन ऐसे अंतर्विरोधों का फायदा उठाने में बहुत माहिर है। हालांकि, एक कारक जो बाइडेन प्रशासन को नियंत्रित कर सकता है, वह है गोलार्ध की बड़ी तस्वीर, जो यह है कि लैटिन अमेरिका के लिए बाएं बनाम दाएं में आज कोई अति सूक्ष्म अंतर
नहीं है। सोमवार को लूला को बाइडेन का फोन एक असाधारण इशारा है जो अमेरिकी क्षेत्रीय रणनीति और घरेलू राजनीति दोनों में ब्राजील के बड़े महत्व को रेखांकित करता है जहां लातीनी मतदाता बहुत मायने रखते हैं। ट्रम्पवाद का मुकाबला करने के लिए, बाइडेन, लूला को अपने पक्ष में करने के लिए काफी रोमांचित हो रहे होंगे।
(एम॰के॰ भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।