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MANUU में 16 छात्र हॉस्टल से सस्पेंड, मेस के शुल्क में बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की सज़ा

"यहां पढ़ने वाले ज़्यादातर छात्रों को घर से तीन से साढ़े तीन हज़ार रुपये तक ही महीने के खर्च के रूप में मिलता है, जिसमे 2 हज़ार हॉस्टल के मेस में चला जाया करता था, अब अचानक से उसमे 700 रुपये की बढ़ोतरी से छात्र काफी नाराज़ हो उठे थे।”

MANUU

मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) में बीते दिनों भोजनालय के शुल्क में हुई बढ़ोतरी का विरोध प्रदर्शन करना वहां के कुछ छात्रों पर काफी भारी पड़ गया है। इसमें विश्विद्यालय प्रशासन द्वारा 16 छात्रों के ऊपर कार्यवाही करते हुए उन्हें हॉस्टल से सस्पेंड कर दिया गया। साथ हीउनके ऊपर साल तक किसी भी दूसरे कोर्स में एडमिशन लेने पर रोक और हज़ार रुपये तक का जुर्माना लगाया गया है। वहां के छात्रों में इस बात पर खासा रोष देखने को मिल रहा है।

मामला और जून का है जब बढ़े शुल्क के विरोध में लगभग 500 छात्रों ने विश्वविद्यालय का मुख्य दरवाज़ा बंद कर दिया था। इस मामले में जांच के लिए एक कमिटी बनाई गई थी, जिसकी रिपोर्ट 16 अगस्त को वाइस चांसलर के सामने पेश की गई।

प्रशासन का कहना है कि इस दौरान टीचिंग स्टाफ और दूसरे अधिकारियों को विश्विद्यालय में जाने से रोका गया जोकि अनुशासनहीनता थी। वहीं छात्रों की राय इस मामले पर थोड़ी अलग है। उनके अनुसार, 6 जून को रात बजे से बजे और फिर अगले दिन सुबह कुछ घंटों के लिए ही दरवाज़ा बंद किया गया थाऔर स्टाफ वगैरा इस दौरान आराम से आवा-जाही कर रहे थे।

मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट यूनियन के उपाध्यक्ष मो. अबुहमज़ा ने बताया कि मामला कुछ और नहीं बल्कि छात्रों के साथ हुई एक सरासर नाइंसाफी है। वो कहते हैं, "यहां पढ़ने वाले ज़्यादातर छात्रों को घर से तीन से साढ़े तीन हज़ार रुपये तक ही महीने के खर्च के रूप में मिलता हैजिसमे हज़ार हॉस्टल के मेस में चला जाया करता थाअब अचानक से उसमें 700 रुपये की बढ़ोतरी से छात्र काफी नाराज़ हो उठे थे।

अबुहमज़ा आगे बताते हैं, "इसी गुस्से की वजह से सैकड़ों छात्रों ने और जून को प्रदर्शन किया और मांग की कि बढ़ाई हुई रकम को कम किया जाए।" अबुहमज़ा ने स्वीकार किया कि इसी प्रदर्शन के क्रम में विश्वविद्यालय छात्रों द्वारा मुख्य दरवाज़ा को बंद किया गया था लेकिन साथ ही ये भी बताया कि यूनिवर्सिटी के स्टाफ की ज़रूरी आवाजाही फिर भी जारी थी। "अगर बच्चे प्रदर्शन नहीं करते तो क्या करतेउनके ऊपर पैसों का बोझ बढ़ा दिया गया था।"

वहीं विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर मोहम्मद अब्दुल अज़ीम ने बताया कि और जून को कुछ छात्रों द्वारा किए गए अनुशासनहीनता के खिलाफ उनके ऊपर कार्यवाही की गई है। "ये फैसला एक स्वतंत्र फैक्ट फाइंडिंग कमिटी द्वारा जारी निष्कर्ष के बाद ही लिया गया है। मानू स्टूडेंट्स कंडक्ट और डिसिप्लिन रूल, 2014 के तहत उनके ऊपर अनुशासनहीनता और दुराचार फैलाने का आरोप है।" 

अब्दुल अज़ीम ने बताया कि बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्हें यूनिवर्सिटी से नही निकाला गयाबल्कि मात्र कुछ रकम का जुर्माना और माफीनामा जमा करने के साथ स्टूडेंट चुनाव में भाग लेने और तीन साल तक आगे किसी भी कोर्स में प्रवेश लेने से रोका गया है। 

उन्होंने इस सज़ा को छात्रों द्वारा लगातार रद्द किए जाने की मांग पर किए प्रश्न पर टिप्पणी करी कि इसका जवाब देने का उनके पास प्राधिकार नही है। 

इधर अबुहमज़ा जानकारी देते हैं कि इस कार्यवाही की वजह से अंतिम वर्ष के कई ऐसे छात्र हैं जिनके परीक्षाफल को भी रुकवा दिया गया है। "अंतिम वर्ष में पढ़ रहे जिन छात्रों ने नौकरी ले रखी हैउनके परिणामों को रुकवाकर सीधा उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।"  

अबुहमज़ा ने फैक्ट फाइंडिंग कमिटी के काम करने के तरीके पर भी आपत्ति जताईवो कहते हैं कि जांच के नाम पर फाइनल सेमेस्टर के परिक्षा के दौरान छात्रों को घंटो घंटो तक पूछताछ कर एक तरह से मानसिक प्रताड़ना दी गई थी।

इसके अलावाअबुहमज़ा ने विश्विद्यालय प्रशासन पर अपनी बात से मुकरने का भी आरोप लगाया हैउनके अनुसारजब प्रदर्शन के बाद छात्रों की मीटिंग प्रो वाइस चांसलर से हुई थी तो उन्होंने यकीन दिलवाया था कि किसी भी छात्र पर कोई कार्यवाही नहीं होगी। "उस समय छात्रों ने गेट बंद किए जाने पर प्रो वाइस चांसलर के सामने अपनी गलती मानी थी और वजह बताई थी की बढ़े हुए भोजनालय के शुल्क को लेकर प्रदर्शन करने के अलावा उनके पास और कोई दूसरा रास्ता नही था।" अबुहमज़ा ने बताया।

बता दें कि आम छात्रों के साथ साथ स्टूडेंट यूनियन पर भी विश्विद्यालय प्रशासन की गाज गिरती हुई नज़र आ रही है। अबतक कई बार खुद अबुहमज़ा को भी रूम खाली करने की बात कही जा चुकी है। 

अबुहमज़ा के मुताबिक "ये सारा फैसला तब लिया गया है जब विश्विद्यालय के ज़्यादातर छात्र परीक्षा देकर अपने-अपने घरों की तरफ लौट चुके हैंजिसकी वजह से इस अन्याय के विरोध में प्रदर्शन भी नही कर सकते हैं।" उन्होंने कहा कि "अगर विश्विद्यालय ने जल्द ही अपने फैसले पर पुनर्विचार और रुके हुए बच्चों के परीक्षा परिणाम जारी नहीं किए तो हम भूख हड़ताल पर जाने का इरादा रख रहे हैं।"

(लेखक दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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