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एमपी : डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे 490 सरकारी अस्पताल

फ़िलहाल भारत में प्रति 1404 लोगों पर 1 डॉक्टर है। जबकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मानक के मुताबिक प्रति 1100 लोगों पर 1 डॉक्टर होना चाहिए।
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फोटो साभार : दैनिक भास्कर

बीजेपी शासित मध्यप्रदेश के तहसील तथा ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। स्थिति यह है कि राज्य के करीब 490 सीएचसी और पीएचसी में डॉक्टर नहीं हैं जिसके चलते लोगों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है और उन्हें इधर उधर भटकना पड़ता है। डॉक्टरों की कमी का बोझ जिला अस्पतालाें और संभाग स्तर के बड़े अस्पतालों पर पड़ रहा है।

स्वास्थ्य विभाग के हवाले से दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 44 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) तथा 446 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में डॉक्टर नहीं हैं। इसके चलते इन अस्पतालों में कोई इलाज कराने नहीं जाता।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो डॉक्टरों की पोस्टिंग गांवों में होने के बाद से ही वे पारिवारिक कारणों जैसे पति-पत्नी की दूर-दराज पोस्टिंग, परिजनों की गंभीर बीमारी, बुजुर्ग माता-पिता के कारणों का हवाला देकर अपने गृह क्षेत्र या बड़े शहरों में तैनाती कराने में जुट जाते हैं। विधायकों, मंत्रियों और अधिकारियों की सिफारिश से कई डॉक्टर पोस्टिंग बदलवाने में कामयाब हो जाते हैं। इसके चलते गांवों के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी का संकट बरकरार है।

मंत्रियों, विधायकों के गांव के अस्पतालों में ही डॉक्टर नहीं

स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार के शाजापुर जिले में स्थित गृहग्राम पोचानेर के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में में डॉक्टर नहीं हैं। पूर्व मंत्री और सीधी जिले की सिंहावल से कांग्रेस विधायक कमलेश्वर पटेल के गांव सुपेला की पीएचसी में डॉक्टर नहीं हैं। छतरपुर जिले के पूर्व मंत्री मानवेन्द्र सिंह के गांव अलीपुरा के पीएचसी में डॉक्टर नहीं हैं।

446 पीएचसी में एक भी डॉक्टर नहीं

स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 446 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) डॉक्टर विहीन हैं। छिंदवाड़ा जिले में सबसे ज्यादा 39 पीएचसी ऐसे हैं जो डॉक्टर विहीन हैं। वही सतना, मंदसौर, बालाघाट के 25 पीएचसी में डॉक्टर नहीं हैं, बैतूल में 20, सीधी में 17, डिंडौरी, सिवनी में 15, खरगोन में 14, छतरपुर में 13, भिंड, टीकमगढ़, शहडोल, खंडवा,राजगढ़, मंडला में 11, कटनी, पन्ना, सागर, सिंगरौली, उमरिया में 10, रीवा में 9, जबलपुर, नरसिंहपुर, नीमच, रतलाम, उज्जैन में 8, बुरहानपुर, अनूपपुर में 7, देवास, रायसेन, विदिशा में 6, धार में 5, अलीराजपुर में 4, गुना, अशोक नगर, होशंगाबाद, शिवपुरी में 3, मुरैना, दमोह, दतिया, बड़वानी, इंदौर, शाजापुर में 2-2 और ग्वालियर, आगर मालवा, हरदा, सीहोर, श्योपुर में 1-1 पीएचसी डॉक्टर विहीन है।

44 सीएचसी डॉक्टर विहीन

जिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नहीं है उनमें अलीराजपुर जिले की सोंडवा, अनूपपुर की करपा, अशोकनगर की ईसागढ़, बालाघाट की किरणापुर, परसवाड़ा, बड़वानी की सिलावद, भिंड की अटेर और फूप, बुरहानपुर की खकनार, नेपानगर, शाहपुर, छतरपुर जिले की (गौरिहार) बारीगढ़, घुवारा, किशनगढ़, छिंदवाड़ा की धनोरा, हर्रई, जमाई (जुन्नारदेव), दमोह जिले की पथरिया, दतिया की बरौनी, डिंडोरी की मेंहदवानी, गुना की कुंभराज, कटनी की बहोरीबंद, खरगोन की गोगावा, मंडला की मवई, मंदसौर की नारायणगढ़, नीमच की सिंगोली, रायसेन की उदयपुरा, राजगढ़ की सुठालिया, रतलाम की पिपलोदा, सैलाना, सागर की देवरी, राहतगढ़, सतना में देवराजनगर, शहडोल में बनसकुली, झिकबिजुरी, शाजापुर की मोमन बडोदिया, सीधी की कुसमी, मझौली,सेमरिया सिंगरौली में बैढ़न, देवसर, टीकमगढ़ में खरगापुर, उमरिया में मानपुर, विदिशा जिले के त्योंदा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं है।

भारत में डॉक्टर की स्थिति

फिलहाल भारत में प्रति 1404 लोगों पर 1 डॉक्टर है। जबकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मानक के मुताबिक प्रति 1100 लोगों पर 1 डॉक्टर होना चाहिए। एक तरफ तो देश में डॉक्टरों की घोर कमी है उसके बावजूद जो भी डॉक्टर हैं उनमें भी ज्यादातर डॉक्टर शहरी इलाकों में ही हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों का संकट कायम है जिससे गांवों के लोगों को समय पर उचित इलाज नहीं मिल पाता है। देश भर में इस तरह की कई घटनाएं सामने आईं हैं जहां देखा गया है कि इलाज के अभाव में मरिजों को लेकर परिजन दर-दर भटकते हैं। कभी कभी मरीज जिंदगी और मौत से जूझते हुए दम तोड़ देते हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 11.59 लाख एलोपैथी के डॉक्टर पंजीकृत हैं लेकिन इनमें से 9.27 लाख डॉक्टर ही हर दिन अस्पताल या क्लीनिक में मरीज का इलाज कर रहे हैं।

उक्त रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर-मरीज के बीच अनुपात को लेकर अगर पूरे देश की स्थिति पर गौर किया जाए तो सबसे बदतर हालात मिजोरम और नागालैंड के रहे। यहां क्रमश: 20,343 और 23,396 की आबादी पर एक एलोपैथी डॉक्टर थे। छत्तीसगढ़ में 4045, झारखंड में 7,895, मध्यप्रदेश में 2,691, तेलंगना में 9,477 और त्रिपुरा में 2,934 लोगों पर एक एलोपैथी डॉक्टर थे।

उत्तर भारत में सबसे बुरे हालात हरियाणा के थे। यहां एक एलोपैथी डॉक्टर पर 6,287 लोगों की जिम्मेदारी थी। जबकि उत्तर प्रदेश में 3,692, उत्तराखंड में 1,631, पंजाब में 778, हिमाचल प्रदेश में 3,015, जम्मू कश्मीर में 1,143 और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 1,252 लोगों के लिए एक एलोपैथी डॉक्टर पंजीकृत थें।

देश भर में इलाज के अभाव में होती रही मौत

ऐसी कई घटनाएं मध्य प्रदेश समेत देश के अन्य राज्यों में सामने आई हैं जब इलाज के अभाव मरीजों ने दम तोड़ दिया। इसी तरह की घटना पिछले साल अप्रैल महीने में मध्यप्रदेश के शिवपुरी में सामने आई थी जब एक युवक की सड़क पर तड़प-तड़प कर मौत हो गई थी। परिजन करीब दो घंटे तक इलाज के लिए जिला अस्पताल में भटकते रहे लेकिन डॉक्टरों ने उसे देखा तक नहीं था।

इसी साल फरवरी महीने में यूपी की राजधानी लखनऊ में सड़क हादसे में गंभीर रुप से घायल एक युवक की इलाज के अभाव में मौत हो गई थी। हादसे में युवक गंभीर रूप से जख्मी हो गया था जिसके इलाज के लिए परिवारवाले उसे एंबुलेंस में लेकर करीब 5 घंटे कई अस्पतालों के चक्कर काटते रहे लेकिन इसके बाद भी मरीज को इलाज नहीं मिल सका और इस दौरान युवक एंबुलेंस में ही तड़प कर मर गया।

मई 2021 में मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती न होने के चलते एक महिला ने इलाज के अभाव में ई-रिक्शा पर ही दम तोड़ दिया था। महिला का बेटा और बेटी दो घंटे तक इमरजेंसी में भर्ती कराने के लिए भटकते रहे थे लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की थी।

बीते साल बिहार के बेतिया के एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर के गायब रहने के कारण एक महिला को किसी ने नहीं देखा और इलाज के अभाव में उसने स्ट्रेचर पर ही तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया था। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से मिले रेफर के पुर्जे के साथ महिला का पति इधर उधर डॉक्टरों के लिए चक्कर लगाता रहा था लेकिन उसकी पत्नी का इलाज नहीं पाया जिससे उसकी मौत हो गई थी।

पिछले वर्ष ही बिहार में ही शर्मसार करने वाली घटना सामने आई थी। राज्य के बेगूसराय के सदर अस्पताल में एक घायल महिला को स्ट्रेचर नहीं मिला था जिसके चलते उसकी मौत युवक के कंधे पर हो गई थी।

साल 2020 में रांची में 55 वर्षीय एक मरीज की मौत इलाज के अभाव में हो गई थी। परिजनों का कहना था कि वे 24 घंटे तक अस्पताल से अस्पताल भटकते रहे थे। परिजनों के अनुसार वे पांच अस्पतालों में मरीज को लेकर पहुंचे लेकिन किसी ने भर्ती नहीं किया था। परिजनों का कहना था कि अगर समय रहते मरीज को भर्ती कर लिया जाता तो वो बच गया होता।

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