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एमपी: कोविड-19 कुप्रबंधन, दलित उत्पीड़न की ‘रिपोर्टिंग’ के लिए 6 पत्रकारों पर मामला दर्ज 

पत्रकारों पर विभिन्न अपराधों के तहत मामला दर्ज किया गया है, लेकिन उनका दावा था कि सरकार उनकी आवाज दबाने की कोशिश कर रही है क्योंकि वे महामारी की स्थितियों को बेनकाब कर रहे थे।
एमपी: कोविड-19 कुप्रबंधन, दलित उत्पीड़न की ‘रिपोर्टिंग’ के लिए 6 पत्रकारों पर मामला दर्ज 

भोपाल: भले ही 3 जून को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिमाचल प्रदेश में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह का मामला ख़ारिज कर दिया गया है, इसके बावजूद पिछले दो महीनों में मध्य प्रदेश में कई मामलों की रिपोर्टिंग के लिए छह अन्य पत्रकारों पर मामला दर्ज किया गया है। 

दुआ के खिलाफ एक भाजपा नेता ने शिमला में मामला तब दर्ज कराया था, जब उन्होंने प्रधानमंत्री पर वोट के खातिर “मौतों और आतंकी हमलों” का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। हालाँकि, शीर्षस्थ न्यायालय ने मामले को ख़ारिज करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि सरकार की आलोचना करना, संविधान प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकारों के तहत आता है। 

लेकिन एमपी में छह पत्रकारों के लिए यह पीएम की आलोचना करने के लिए नहीं, वरना यहाँ पर सिर्फ स्थानीय प्रशासन के कामकाज में खामियों को उजागर करना या भाजपा के एक मौजूदा मंत्री की आलोचना करना था, जिसने उन्हें संकट में डाल दिया है।

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच में खंडवा जिले के जिलाधिकारी अनय द्विवेदी ने कथित तौर पर 19 अप्रैल को हिंदी दैनिक, दैनिक भास्कर  के संपादक के नाम एक क़ानूनी नोटिस भेजा था। यह नोटिस उसी दिन प्रकाशित एक रिपोर्ट पर भेजा गया था, जिसमें क्षेत्र में बेड और ऑक्सीजन की कमी का जिक्र किया गया था, जिसे जिलाधिकारी द्वारा फर्जी और भ्रामक करार दिया गया था।

इसके महज 10 दिन बाद, 29 अप्रैल को दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गई थी- एक गुना में इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविन्द तिवारी के खिलाफ। उनके साप्ताहिक टीवी शो के दौरान भाजपा मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया की आलोचना करने के लिये, जबकि दूसरी प्राथमिकी अशोक नगर में नेटवर्क 18 के एक पत्रकार समीर द्विवेदी के खिलाफ जिन पर जिला अस्पताल के सिविल सर्जन की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था।

मध्य प्रदेश के राजगढ़ से तनवीर वारसी, छत्तरपुर से राजेश चौरसिया, शहडोल से महफूज़ खान और सागर से शुभम श्रीवास्तव पर जिला प्रशासनों के प्रति आलोचनात्मक रुख के लिए मई में मामला दर्ज किया गया था।

इन पत्रकारों पर कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिनमें कथित तौर पर अनधिकृत अतिक्रमण, गैर इरादतन हत्या की कोशिश, लोक सेवक द्वारा जारी विधिवत आदेश की अवज्ञा और आपदा प्रबंधन अधिनियम के उल्लंघन सहित अन्य आरोप लगाये गए हैं।

न सिर्फ पत्रकारों पर, बल्कि  विपक्ष के नेता एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, कमल नाथ के खिलाफ, जिन्होंने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार कोविड-19 मौतों के आंकड़ों को कम करके बता रही है और एक प्रेस वार्ता के दौरान वायरस के लिए ‘इंडियन वैरिएंट’ शब्द का इस्तेमाल करने पर उनके खिलाफ 23 मई को लोक सेवक विधिवत प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा (188) और आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 की धारा 54 के तहत अफवाह फैलाने और दहशत का माहौल पैदा करने के लिए मामला दर्ज किया गया है।

भोपाल के अनुभवी पत्रकार एलएस हर्दिनिया का इस पर कहना था “सरकार की तरफ़ से हर उस व्यक्ति के खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्यवाई की जा रही है, जो उनकी कमियों को उजागर करने का काम कर रहा है और उनकी आलोचना करता है, भल्ले ही वो विपक्ष के नेता हों या पत्रकार।”

पत्रकार द्वारा कोविड-19 आईसीयू की चू रही छत का वीडियो शूट किये जाने के कुछ दिनों के बाद एफआईआर दर्ज की गई 

कमल नाथ के खिलाफ एफआईआर से मात्र पांच दिन पहले, 18 मई को जब तुकेती चक्रवात मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले से टकराया था तो उसके बाद जिले के एक कोविड-19 आईसीयू वार्ड में छत लीक होने का एक वीडियो, जिसकी वजह से बाद में वार्ड पानी से लबालब भर गया था। यह विडिओ  सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गया था। इस वीडियो की वजह से जिला प्रशासन की काफी किरकिरी हो रही थी क्योंकि इस आईसीयू वार्ड को बने अभी मात्र एक साल ही हुए थे।

जिस व्यक्ति ने इस वीडियो को शूट किया वे तनवीर वारसी थे, जो एक वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ-साथ एनडीटीवी से जुड़े हैं और राजगढ़ जिले में एक स्थानीय हिंदी दैनिक ‘प्रभात संकेत’ भी चलाते हैं। इस वीडियो के जारी होने के महज तीन दिनों बाद 21 मई को वारसी के खिलाफ राजगढ़ पुलिस थाने में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 13 एवं 10 के तहत प्राथमिकी दर्ज कर दी गई थी।

प्राथमिकी के मुताबिक, वारसी एक नर्सिंग होम में साझीदार हैं, जहाँ पर उचित लाइसेंस के बगैर मरीजों का इलाज किया जा रहा था। इसके अलावा, नर्सिंग होम में पिछले 45 दिनों के भीतर राजगढ़ जिलाअधिकारी की स्टेनोग्राफर के बच्चे सहित पांच अजन्मे बच्चों की भी मौत हो गई थी।

राजगढ़ पुलिस अधीक्षक, प्रदीप शर्मा के अनुसार “बगैर लाइसेंस के नर्सिंग होम चलाने की शिकायत के आधार पर तनवीर हसन एवं 21 अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, जिस पर जिलाधिकारी ने मामले को देखने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम का गठन किया है।”

बहरहाल, वारसी ने एफआईआर में किये गए दावों को यह कहते हुए ख़ारिज किया है कि जिला प्रशासन उन्हें झूठे मामले में फंसा रहा है क्योंकि वे दूसरी लहर के दौरान उनके झूठ का पर्दाफाश कर रहे थे।

तनवीर को एक 3-मिनट लंबे वीडियो में यह कहते हुए सुना जा सकता है, जिसे पुलिस द्वारा उनके खिलाफ एफआईआर करने के दो दिन बाद फिल्माया गया था, “मैं जिलाधिकारी और एसपी की आँख का काँटा तभी से बन गया था, जब मैंने जिला पीआरओ कार्यालय के आधिकारिक हैंडल से पीएम केयर फंड से प्राप्त किये गए दो ख़राब पड़े वेंटीलेटरों को ठीक करने के उनके झूठ के बारे में न्यूज़ रिपोर्ट प्रकाशित कर इस मामले का पर्दाफाश किया था। इसके अलावा मैंने 2 मई को जिला अस्पताल के आईसीयू वार्ड फर्श पर पड़ी एक महिला की खबर प्रकाशित की थी, जिसकी देखभाल के लिए वहां पर कोई मौजूद नहीं था।”

वीडियो में उन्होंने दावा किया है कि आईसीयू वार्ड में टपकती छत का वीडियो शूट करना उनके लिए ताबूत में आखिरी कील ठोंकने जैसा साबित हुआ है, और इस घटना के तीन दिन बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई थी।

एफआईआर दर्ज किये जाने के दो दिन बाद फोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने स्पष्ट किया था कि कथित तौर पर गैर-लाइसेंसशुदा नर्सिंग होम से उनका कोई लेना-देना नहीं है, और इसे स्वतंत्र रूप से उनके एक रिश्तेदार और दोस्त द्वारा संचालित किया जाता है।

वारसी की तरह ही छत्तरपुर जिले से एक अन्य रिपोर्टर, राजेश चौरसिया हैं, जो न्यूज़ 24 सहित अन्य मीडिया संस्थानों के लिए रिपोर्ट करते हैं। उनके उपर एक दलित महिला का वीडियो सर्कुलेट करने के लिए मामला दर्ज किया गया है, जिसके साथ ऊँची जाति के लोगों द्वारा मारपीट और कथित तौर पर छेड़छाड़ की गई थी। उस महिला की पिटाई इसलिए की गई थी क्यूँकि उसके पति ने उनके लिए काम करने से इंकार कर दिया था। छत्तरपुर पुलिस ने दावा किया कि उस महिला का नाम इस वीडियो में जाहिर किया गया है और उसके चेहरे को धुंधला नहीं किया गया था।

शुक्रवार को जिले के राज नगर पुलिस थाने में चौरसिया एवं 10 अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 228 (ए) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। छत्तरपुर जिला पुलिस अधीक्षक, सचिन शर्मा के अनुसार “छेड़छाड़ की पीड़िता की पहचान उजागर करना एक अपराध है और चौरसिया ने न सिर्फ उसका वीडियो शूट किया, बल्कि उसकी पहचान भी उजागर की थी और इसे वायरल कर दिया।”

हालाँकि चौरसिया ने दावा किया है कि उनके खिलाफ मामला दर्ज किये जाने के बारे में वे अनभिज्ञ हैं और उनका कहना था कि उन्हें इस मामले में फंसाया जा रहा है क्योंकि उन्होंने दलित उत्पीड़न के एक जघन्य मामले को प्रकाश में लाने का काम किया था।

इसके अलावा, शहडोल से महफूज खान और सागर से सुभम श्रीवास्तव के खिलाफ कथित तौर पर अपने-अपने जिलों में कोविड-19 के लिए समर्पित अस्पतालों में पाई गई अनियमितताओं की रिपोर्टिंग करने के कारण दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। 

महफूज के मामले में मेडिकल कॉलेज के डीन द्वारा दायर की गई शिकायत में शहडोल मेडिकल कॉलेज में लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश का उल्लंघन कर अनधिकृत सीमा में प्रवेश और और अवज्ञा के आरोप में मामला दर्ज किया गया था, जबकि बाद वाले मामले में सत्ताधारी पार्टी से जुड़े एक वकील के द्वारा कोविड-19 वार्ड पर रिपोर्टिंग करने के लिए आईपीसी की धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

महफूज एक साप्ताहिक समाचार पत्र चलाते हैं जबकि शुभम अपने जिले से एक ऑनलाइन वेब पोर्टल चलाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और मध्य प्रदेश से राज्य सभा सांसद, विवेक तन्खा का इस बारे में कहना था “भाजपा शासित राज्यों में ‘संदेशवाहक को ही गोली मार देने’ का चलन कोई नया नहीं है, और मध्य प्रदेश कोई इसका अपवाद नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा “मध्य प्रदेश की असहिष्णु सरकार को आलोचना पसंद नहीं है और एफआईआर दर्ज करके सरकार के साथ-साथ जिला प्रशासन उन पत्रकारों की आवाज को कुचलने की कोशिश में है जो लोगों की पीड़ा को आवाज दे रहे हैं। यह विनोद दुआ के केस में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई हालिया टिप्पणी के खिलाफ है।”

उन्होंने आगे कहा, “न्याय के लिए उन्हें उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए।”

दुआ के खिलाफ दर्ज एफआईआर को ख़ारिज करते हुए, न्यायमूर्ति यूयू ललित एवं विनीत सरन की पीठ ने कहा था, “प्रत्येक पत्रकार को केदार नाथ सिंह फैसले (आईपीसी में राजद्रोह के अपराध की गुंजाईश और दायरे पर 1962 का प्रसिद्ध फैसला) के तहत अपने बचाव का हक़ है। वरिष्ठ पत्रकार एलएस हर्दिनिया के मुताबिक, “हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि पत्रकारों के बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी पर दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और टिप्पणियां शायद राज्य के साथ-साथ उसके अधिकारियों के गले नहीं उतरी है।” 

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

MP: 6 Journalists Booked for ‘Reporting’ COVID-19 Mismanagement, Dalit Oppression in 2 Months

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