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बात बोलेगी: मध्य प्रदेश में क्यों शिवराज को OUT कर मोदी ने संभाली कमान

मध्य प्रदेश की राजनीति से 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की रणनीति पर पड़ेगा क्या असर, महंगाई-बेरोज़गारी है राम मंदिर से बड़ा मुद्दा।
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देश के पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए जो चुनाव हो रहे हैं, उनमें से मध्य प्रदेश के घटनाक्रम उसे बहुत खास बना रहे हैं। मिजोरम में भाजपा की नहीं लेकिन भाजपा के साथ सहयोग वाली पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) की सरकार थी, बाकी छत्तीसगढ़, राजस्थान में तो कांग्रेस और तेलंगाना में भी गैर भाजपा सरकार है। यानी अकेले मध्य प्रदेश में डबल इंजन की सरकार और वह भी ऐसी जो एक ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चार पारी खेल चुकी। लेकिन हैरानी की बात है कि भारतीय जनता पार्टी इस बार अपनी इस उपलब्धि पर नहीं खेल रही है। इस चुनाव में भाजपा के प्रचार तंत्र के लिए शिवराज एक नकारात्मक फैक्टर बने रहे। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल हो, इंदौर, उज्जैन, रायसेन –हर जगह भाजपा का प्रचार सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर है। उसने नारा ही दिया—एमपी के दिल में है मोदी, मोदी की गारंटी, मोदी देगा नौकरी, पढ़ाई....आदि जैसे बैनर पोस्टर से शहर अंटे पड़े हैं।

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इस तरह से 2023 के इन चुनावों का नतीजा कुछ भी हो, फिलहाल मध्य प्रदेश की राजनीति पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कब्जा हुआ और शिवराज सिंह चौहान हुए आउट। शिवराज के साथ-साथ एक और नेता के राजनीतिक कद के खत्म होने की कहानी ये चुनाव लिख रहा है और वह है ज्योतिरादित्य सिंधिया। इस समय मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री का पद संभाल रहे

ज्योतिरादित्य सिंधिया 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में दमखम के साथ कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शामिल थे और कमलनाथ को चुनौती देते हुए खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के बने हुए थे। इसके बाद उन्होंने पलटी मारी। सिंधिया ने जनादेश में सेंध लगाते हुए मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को जोड़-तोड़ से गिराने व भाजपा की शिवराज सिंह को गद्दी दिलाने का काम किया। और विडंबना देखिये कि 2023 के विधानसभा चुनावों में सिंधिया का कोई नामलेवा नहीं रहा। न तो वह स्टार कैंपेनर रहे और न ही जिन कांग्रेसी विधायकों को तोड़कर भाजपा की सरकार बनवाई थी, उनका व्यारा-न्यारा हुआ। इसे ही कहते हैं, राजनीति की पटखनी और मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने इसे देशभर में नये नॉर्मल के तौर पर स्थापित किया है। महाराष्ट्र से लेकर गोवा, कर्नाटक में इस तरह की राजनीतिक पटखनी से पस्त नेताओं की लंबी लिस्ट है।

फिलहाल, चुनावी परिणामों से पहले ही मध्य प्रदेश की राजनीति में ये दो बड़े परिणाम सामने आ गये। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंझे हुए खिलाड़ी है, लिहाजा वह अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जरूरी बने हुए हैं और बने रहेंगे क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में उनके जैसे नेता की जरूरत पड़ेगी। इस मामले में शिवराज सिंह चौहान ने बहुत सुरक्षित पिच पर बैटिंग करते हुए राज्य की राजनीति में अपने प्रतिद्वंद्वी को घेर के रखा है। ऐन चुनाव प्रचार और मतदान से कुछ ही दिन पहले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह के कथित भ्रष्टाचार-कमीशन से जुड़े वीडियो वायरल होते हैं और उनके भविष्य की योजनाओं पर पानी फिर जाता है। इन वीडियो को जारी करने वाला शख्स भी सामने आता है और वह भी कथित तौर पर दावा करता है कि यह पूरा मामला 10 हजार करोड़ रुपये के लेन-देन से जुड़ा है। यह तो हम सब जानते ही हैं और 2014 के बाद की राजनीति में यह अघोषित नियम है कि ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियां सिर्फ और सिर्फ विपक्षी नेताओं की ‘सेवा’ में रहती हैं। इसलिए किसी भी तरफ से इतने विस्फोटक खुलासे का किसी ने संज्ञान नहीं लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 दिन से अधिक समय मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार करते रहे, लेकिन क्या मजाल की इन सबका जिक्र भी आ जाए। लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में अभी तक भ्रष्टाचार चुनाव को प्रभावित करने वाला मुद्दा नहीं बन पाया है। चाहे वह भीषण तबाही वाला व्यापमं घोटाला रहा हो, जिसने मेडिकल तंत्र को कुंद किया, डंपर घोटाला रहा हो जिसमें सीधे-सीधे शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह का नाम आया, या फिर अभी चुनाव से पहले नर्सिंग कॉलेज घोटाला—ये सब बड़े राजनीतिक मुद्दे नहीं बने। हालांकि नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे पर लगे आरोपों के बाद राज्य की कमान संभालने की उनकी योजना खटाई में पड़ गई। साथ ही भाजपा के दूसरे बड़े महत्वाकांक्षी नेता कैलाश विजयवर्गीय पर भी विवादों की मार रही है कि उनके लिए कुछ भी बड़ा दांव चल पाना मुश्किल है।

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हालांकि ये तमाम कयास तभी किसी काम के होंगे जब भाजपा सरकार बनाने तक पहुंचती है। ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर मोदी-शाह का नेतृत्व यहां भी हरियाणा की तरह किसी खट्टर सरीखे नेता पर दांव चलने की कूवत रखता है।

फिलहाल, मध्य प्रदेश में माहौल बदलाव का है। इस बदलाव को समझने की कोशिश करते हैं अलग-अलग पेशों से जुड़े लोगों की जुबानी--

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— मैं किसान हूं और इस बार मोदीजी के खिलाफ वोट दूंगा। अभी तक हमने उन्हें वोट दिया था, लेकिन उन्होंने हमें बर्बाद कर दिया। इतनी महंगाई कर दी है और चुनाव से पहले लालच देने के लिए पैसा बांटते हैं। ये किसान सम्मान निधि नहीं है, जो चुनावों से पहले वे हमारे खातों में डालते हैं—ये अपमान निधि है। हम अपनी फसल का सही दाम मांगते हैं और वे हमें 6 हजार रुपये पकड़ा कर चुप कराने की कोशिश करते हैं। सही दाम मिले तो हम हजारों रुपये अपनी मेहनत का पा सकते हैं न। रसोई गैस 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100-1,200 रुपये कर दी और लाडली में पैसे पकड़ा दिये—ये सब छलावा है। अपने राज्य में शिवराज और देश में मोदी को हटाना जरूरी है। हमारे यहां आजतक सिर्फ दो बार कांग्रेस जीती है, लेकिन इस बार भाजपा का सफाया है। ये अंदाजा लगाओ, जब यहां इतना विरोध है, तो बाकी राज्य में क्या हाल होगा।

— मानसिंह मीणा, किसान (धान, गेहूं और चना उगाते हैं) इनसे मुलाकात हुई भोपाल शहर के बाहर रायसेन के रास्ते में एक पेट्रोल पंप पर)

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— जीना बहुत ही मुश्किल हो गया है। महंगाई इतनी है कि बच्चे पालना, उन्हें अच्छा खाना खिलाना मुश्किल है। हम घरों में बर्तन-झाडू करती हैं, कमाई मुश्किल से 50-100 रुपये बढ़ती है, लेकिन रसोई गैस, तेल, सब्जी, कपड़ा सब महंगा ही होता जाता है। कैसे हम जिएंगे। चुनाव आते हैं तो हमें 1250 रुपये देने आते हैं शिवराज जी, बाकी समय कहां रहते हैं। ये गरीबों के खिलाफ हैं, इनका जाना जरूरी है। झूठ बहुत बोलते हैं—शिवराज जी से लेकर मोदी जी भी। हमने तो अब तक इन्हें ही वोट दिया, पर अब नहीं। हमारा मानना है कि बदलाव जरूरी है। आदमी पीता है, तो मुझे घर चलाना है, ऐसे में महंगाई से बहुत मुश्किल है।

—उषा नारवाड़े, मीरा नगर, 12 नंबर गड्ढा, भोपाल (घरेलू कामगार)

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— दलितों-आदिवासियों के लिए ये सरकार कुछ नहीं करती। सबकुछ ऊंची जाति के लिए। कोई नौकरी नहीं खोली हमारे लिए, कोई कामकाज नहीं। इनका मन करता है कि हम गंदगी में ही पड़े रहें। झाड़ू ही हमारी किस्मत में रहे। हमने पिछली तीन बार से कमल पर मुहर मारी (भाजपा को वोट दिया) लेकिन उससे क्या। अब बोलते हैं कि राम मंदिर घुमाएंगे, हमने कहा, अपने पास रखो मंदिर, हमें रोजगार चाहिए, पक्का वाला। मेरा पति मर गया, आठ लोगों का पेट भरना है, सुबह से 2 बजे तक खटती हूं तो पांच हजार मिलते हैं, ये है विकास। इसलिए इस बार बदलाव लाना होगा।

—रेखा (प्राइवेट सफाई का काम, भोपाल)

ये तमाम वे आवाजें हैं जो अक्सर चुनावी प्रचार के शोर में गुम सी हो जाती हैं। मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी का बहुत पुराना और बेहद मजबूत नेटवर्क है। इनकी पहुंच गली-मोहल्लों तक है। इसके जरिए बहुत तेजी से नये प्रचार को नीचे तक पहुंचा दिया जाता है। मिसाल के तौर पर बड़ी संख्या में भाजपा समर्थक यह कहते हुए नजर आए, कि आएगी तो भाजपा ही लेकिन शिवराज नहीं मोदीजी आएंगे। और फिर वह किसी नए को गद्दी पर बैठाएंगे। लाडली के तहत पिछले छह महीनों से महिलाओं के बैंक खातों में पहले एक हजार और अगस्त में (राखी के बाद से) 1250  रुपये जमा करने का दांव चला है, जिसने कुछ हद तक एंटी इनकमबेंसी पर लगाम लगाई है। और इसके साथ ही एक प्रचार जोरों पर फैलाया गया कि अगर भाजपा सरकार जाती है तो जिन योजनाओं का फायदा लोगों को मिल रहा है, वह सब बंद हो जाएगा।

ये सारे प्रचार कितने कारगर होंगे, यह तो 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम सामने आने पर ही पता चलेगा, लेकिन यहां राम मंदिर एक बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया। कोशिश बहुत रही भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, लेकिन फिर भी इसने बड़ी संख्या में मतदाताओं को आकर्षित नहीं किया। शायद यही वजह रही कि बैनर, पोस्टर और बाकी प्रचार के केंद्र में यह नहीं आ पाया। एक बड़ा सवाल है कि राम मंदिर के कपाट खुलने पर बड़ी चुनावी तैयारी कर रही भाजपा क्या मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस मुद्दे पर लोगों के ठंडे रिस्पॉन्स से क्या 2024 की अपनी रणनीति में फेर-बदल करेगी?

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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