Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

एमपी: किसानों के बच्चों को उचित मुआवाज़ा न मिलने पर कोर्ट सख़्त, सुनाना पड़ा यह फैसला!

कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह ओंकारेश्वर बांध प्रभावित किसानों के वयस्क बच्चों को भूमिहीन प्रभावितों के समकक्ष विशेष पैकेज दिए जाने के संबंध में जल्द से जल्द फ़ैसला ले।
high court

"सरकार ने मेरे साथ जो भेदभाव किया आज उसकी सजा मेरे बच्चे भुगत रहे हैं। इस भेदभाव ने मुझे और मेरे परिवार को इतना पीछे धकेल दिया है कि हम अच्छा जीवनयापन कर ही नहीं सकते। बस किसी तरह जीवन कट रहा है, उसमें खुशियां तो है ही नहीं, केवल संघर्ष ही है। एक तरह से मैं और मेरा परिवार मुख्यधारा से अलग कर दिए गए हैं। यह संघर्ष अकेले मैं और मेरा परिवार ही नहीं कर रहा है, बल्कि मुझ जैसे 2000 लोग कर रहे हैं। हां, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले से मन में थोड़ी उम्मीद जरूर जग गई है लेकिन वह भी सरकार कब तक पूरी करेगी, इसका ठिकाना नहीं है।" ये शब्द पीड़ित किसान देवेंद्र पुरी के हैं।

देवेंद्र पुरी खंडवा जिले की पुनासा तहसील के घोघांवा पंचायत के इनपुन पुर्नवास में इस समय अपने परिवार के साथ अभावों में जीवन गुजार रहे हैं। यह वही पुर्नवास है, जहां सरकार ने ओंकारेश्वर बांध के विस्थापितों को बसाया है और देवेंद्र पुरी भी उन्हीं विस्थापितों में से एक हैं।

ओंकारेश्वर बांध और देवेंद्रपुरी की तरह खंडवा समेत आसपास जिले के ये 2000 लोग अभी इसलिए चर्चा में है क्योंकि हाईकोर्ट ने इनको लेकर बीते 10 जुलाई को एक बड़ा आदेश दिया है, जिसके बाद चुनावी मोड वाली मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के कान खड़े हो गए हैं।

प्रभावित दिवंगत किसान नारायण पुरी के बेट देवेंद्र पुरी अपने खेत में फसलों की निराई करते हुए। फोटो— पूजा यादव

बात ऐसी है कि प्रदेश में नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध के प्रभावित किसानों के वयस्क बच्चों के साथ भेदभाव हुआ था। यह बात प्रभावित किसान और उनके बच्चे तो कहते ही रहते थे, अब मध्य प्रदेश के हाईकोर्ट ने भी मान ली है। उसकी भरपाई करने के लिए सरकार को उचित फैसला लेने का एक आदेश दिया है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले आए इस फैसले ने देवेंद्र पुरी की तरह उन 2000 किसानों के बच्चों के मन में भी उम्मीद जगा दी है जो कहते हैं कि वर्ष 2006-07 में सरकार ने उनके पिता की जमीन अधिग्रहित करते समय बड़ा भेदभाव किया था जिसकी सजा वे खुद तो भुगत ही रहे हैं, बल्कि उनके बच्चे भी परेशान हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ और न्यायाधीश विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह ओंकारेश्वर बांध प्रभावित किसानों के वयस्क बच्चों को भूमिहीन प्रभावितों के समकक्ष विशेष पैकेज दिए जाने के संबंध में जल्द से जल्द फैसला ले।

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वाली खंडपीठ को यह आदेश इसलिए देना पड़ा क्योंकि बांध के लिए सरकार ने करीब 6000 किसानों से जमीन तो ले ली लेकिन ऐसे किसानों और उनके 2000 व्यस्क बच्चों की अनदेखी कर दी।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के आलोक अग्रवाल बताते हैं कि बांध के प्रभावितों के लंबे जल सत्याग्रह के बाद राज्य सरकार द्वारा 7 जून 2013 को प्रभावितों के लिए एक विशेष पैकेज देने का आदेश दिया था। इस आदेश द्वारा भूमिहीन परिवारों व उनके बच्चों को 2.5 लाख रुपये का अतिरिक्त पैकेज दिया गया था। बाद में राज्य सरकार द्वारा 31 जुलाई 2019 के आदेश द्वारा इस पैकेज पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए आलोक अग्रवाल कहते हैं कि "बांध प्रभावित किसानों के बच्चों को भी भूमिहीनों को दिए जाने वाले सभी लाभ दिए जाने थे जो कि बार-बार मांगे जाने पर भी नहीं दिए गए। उस समय केवल किसान के प्रत्येक बच्चे को 9350 रुपये और एक प्लॉट ही दिया था जो कि पर्याप्त नहीं था। शेष लाभ की प्राप्ति के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी।"

नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक अग्रवाल के साथ प्रभावित किसानों के बेटे जो अपने साथ हुए भेदभाव के बाद आए हाईकोर्ट के फैसले पर चर्चा कर रहे हैं। फोटो — नर्मदा बचाओ आंदोलन

उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा था कि बांध प्रभावित किसानों के वयस्क पुत्रों को भूमिहीन मानकर लाभ दिए जाएं। अर्थात जो लाभ बांध प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले भूमिहीनों के वयस्क पुत्रों को दिए जाते हैं, वहीं लाभ प्रभावित किसानों के वयस्क पुत्रों को दिए जाएं, इसमें कोई भेदभाव न किया जाए। लेकिन ओंकारेश्वर बांध के मामले में सरकार ने ऐसा नहीं किया है।

आलोक अग्रवाल कहते हैं "हाईकोर्ट के आदेश के संबंध में मध्य प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव एसएन मिश्रा से 17 जुलाई को एक प्रतिनिधिमंडल मिला था। जिन्हें फैसले की प्रति दे दी गई है और मांग की है कि भूमिहीन के वयस्क पुत्र को पुनर्वास अनुदान के 18,700 रुपये, रोजगार मूलक संपत्ति के लिए 49300 रुपये, विशेष पैकेज के रूप में 2.5 लाख और उस पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिया जा रहा है, जबकि प्रभावित किसानों के वयस्क पुत्रों को 9350 रुपये का अनुदान दिया जा रहा है, जो कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप नहीं है।"

लगभग 1 घंटे चली बैठक में अपर मुख्य सचिव ने प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्यों के प्रत्येक बातों को समझा और कहा कि इस पर शीघ्र निर्णय लिया जाए।

2000 प्रभावित किसानों के भूमिहीन पुत्रों के संघर्ष की कहानी

इस संघर्ष के बारे में बताते हुए देवेंद्र पुरी कुछ समय के लिए मायूस् हो जाते हैंं, फिर कहते हैं कि "जिस पुर्नवास में मुझ जैसे 600 परिवार रहते हैं, वे पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, क्योंकि पानी महीने में गिने-चुने दिन ही आता है। सड़कें हैं, लेकिन खस्ताहाल हो रही हैं। नाली नहीं है, गंदगी फैल रही है। मच्छरों की भरमार है।" इस हालत के लिए वे सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनसे इसका कारण पूछने पर वे अपने जवाब में वह कहते हैं, "मेरे पिता नारायणपुरी अब इस दुनिया में नहीं है। उनके पास पैतृक गांव कामनखेड़ा में 16 एकड़ जमीन थी जो कि ओंकारेश्वर बांध के जलभराव में डूब चुका है। 16 एकड़ जमीन हमारे लिए पर्याप्त थी। इसमें अनाज होता था। फल-सब्जी ले लेते थे, बेचने के बाद नगद राशि मिल जाती थी। कोई कमी नहीं थी, सब ठीक चल रहा था कि 2006-07 में सरकार ने पूरी जमीन बांध के लिए अधिग्रहित कर ली। पिता को मुआवजा दिया सिर्फ 11 लाख रुपये। यह राशि बहुत कम थी। इतनी कम थी कि इतनी राशि में दूसरी जमीन खरीद ही नहीं सके।

इसी समय पिता को, मुझे और मेरे भाई राकेश पुरी को तीन प्लॉट दिए जो कि मेरे कामनखेड़ा गांव से 100 किलोमीटर दूध धार जिले के धामनुद में दिए गए। मुझे और मेरे भाई को उस समय वयस्क किसान पुत्र के रूप में 9350 रुपये दिए गए। पिता की जमीन के रूप में भी और हम दो भाईयों के लिए यह राशि और प्लॉट बहुत कम राहत थी। ऐसा हम लोगों के साथ ही नहीं हुआ, बल्कि बांध प्रभावित करीब 6000 किसानों और उन किसानों के 2000 वयस्क पुत्रों के साथ हुआ था।

सभी ने मिलकर जल सत्याग्रह किया तो सरकार ने 2012-13 में प्रति एकड़ दो लाख रुपये के हिसाब से 10 एकड़ के 20 लाख रुपये दिए। लेकिन तब भी किसानों के वयस्क पुत्रों के लिए कुछ नहीं दिया। इधर, तब तक जमीन और महंगी हो चुकी थी और पिता मेरे लिए और मेरे भाई राकेशपुरी के लिए अलग से जमीन नहीं खरीद सके क्योंकि मुआवजा की जो राशि मिल रही थी, उसी से जीवनयापन भी हो रहा था।

देवेंद्र पुरी के 4 बच्चे हैं। इनमें तीन बेटी और एक बेटा है। इनमें से दो बेटी, एक बेटा का विवाह हो चुका है। एक बेटी का विवाह होना बाकी है। वह कहती है, पिता की जमीन जिस दिन से डूब में गई, उस दिन से किस्मत भी डूब सी गई है।

किसी तरह दो बेटियों व बेटे का विवाह किया है। कहते हैं, सरकार ने जमीन लेकर किसानों के बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। जमीन एक आजीविका का साधन थी, तब उपयोगी कम थी लेकिन आज के समय में बहुत अधिक उपयोगी है। बच्चों के लिए दूर-दूर तक रोजगार नहीं हैं, पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी रोजगार नहीं मिलने से अपनी जमीन की ओर लौट रहे हैं, लेकिन हमारे पास तो पैतृक जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं है, किसी तरह पेट काटकर पांच एकड़ जमीन ली थी, उसी में गुजर बसर हो रहा है लेकिन वह भी सामान्य जरुरतों को पूरा नहीं कर पा रही है। वह कहते हैं कि हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया है, सरकार उसे माने और जल्द राहत मय ब्याज के दे तो कुछ काम बनेगा। वे कहते हैं कि केवल उम्मीद ही की जा सकती है, क्योंकि सरकार तो सरकार है…।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest