मध्य प्रदेश असेंबलीः कल और आज
इस वर्ष जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, मध्य प्रदेश भी उनमें से एक है। इसके मद्देनजर मध्य प्रदेश में चुनावी चर्चाएं शुरु भी हो चुकी हैं। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश की जिस असेंबली के लिए चुनाव होने हैं, उस असेंबली की भी एक कहानी है, लोकतंत्र का एक इतिहास है। तो क्या है मध्य प्रदेश असेंबली की कहानी? किन उतार-चढ़ावों से गुजर कर मध्य प्रदेश असेंबली वर्तमान स्वरूप तक पहुंची? क्या है वोटिंग पैटर्न और क्या था पिछली विधानसभा का हाइवोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामा, रिसोर्ट पॉलिटिक्स? आइये, जानते हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा का इतिहास
मध्य प्रदेश विधानमंडल का इतिहास 1913 से शुरु होता है जब सेंट्रल लेजिस्लेटिव प्रोविंस काउंसिल का गठन किया गया था। बाद में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 लागू हुआ और इसे निर्वाचित सेंट्रल प्रोविंस लेजिसलेटिव का दर्जा दे दिया गया। 1947 में हमें आजादी मिली उसके बाद और पहले, इस विधानसभा का रूप बदलता रहा, गठन- पुनर्गठन चलता रहा। 1 नंबर 1956 को मध्य प्रदेश विधानसभा का पुनर्गठन किया गया। इस पुनर्गठित मध्य प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव 1957 में हुए। उस समय विधानसभा सीटों की कुल संख्या 288 थी जिसे बाद में बढ़ाकर 321 कर दिया गया।
उसके बाद वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश विधानसभा के स्वरूप में बड़ा बदलाव आया और 1 नंबर 2000 को छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग करके अलग राज्य का दर्जा दे दिया गया। परिणामस्वरूप विधानसभा की सीटों की संख्या भी कम हो गई। फिलहाल मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं और एक मनोनीत सदस्य है।
एमपी विधानसभा का लेखा-जोखा
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में 5,04,95,251 मतदाता हैं। जिनमें से 2,63,62,394 पुरुष तथा 2,41,32,857 महिलाएं हैं। महिला-पुरुष मतदाताओं के अनुपात में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, लेकिन 41 जिले ऐसे हैं जहां महिला वोटर की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। मध्य प्रदेश में 5 लाख दिव्यांग वोटर हैं और 1432 ट्रांस जेंडर मतदाता हैं। वर्ष 2023 में मध्य प्रदेश में मतदाता सूची में लगभग 13 लाख नए नाम शामिल हुए हैं। जिनमें से लगभग 12 लाख फर्स्ट टाइम वोटर हैं यानी जिनकी उम्र 18-19 वर्ष है।
पिछली विधानसभा के लिए चुनाव आयोग ने 2 नंबर 2018 को चुनाव की घोषणा की थी। 28 नवंबर को मतदान हुआ था और 11 दिसंबर को वोटों की गिनती की गई थी। वर्ष 2018 में 230 सीटों पर 3,948 उम्मीदवारों ने नामांकन भरा था। कुछ के नामांकन रिजेक्ट हुए और कुछ ने नामांकन वापस ले लिया तो फाइनली मैदान में 2,899 उम्मीदवार थे। जिनमें से महिला उम्मीदवारों की संख्या 255 थी। यानी मात्र 8.8%।
मध्य प्रदेश विधानसभा इलेक्शन बाइपोलर रहता हैं। क्योंकि सिर्फ दो पार्टियों यानी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही कांटे का मुकाबला होता है। अन्य पार्टियां और आजाद उम्मीदवार या तो इक्का-दुक्का सीटों पर सिमट जाते हैं या फिर जमानत जब्त हो जाती है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का प्रदर्शन
मध्य प्रदेश में कुल 230 सीटें हैं यानी बहुमत के लिए 116 सीटों की दरकार होती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी थी। कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस बहुमत से मात्र दो सीट पीछे थी। भारतीय जनता पार्टी को 109 सीटें, बीएसपी को 2 और समाजवादी पार्टी को 1 सीट मिली थी। 4 सीटों पर आजाद उम्मीदवार जीते थे।
2003 से लेकर अब तक ये भाजपा का सबसे खराब प्रदर्शन था। भाजपा 2003 में 173 सीटों से, 2018 में 109 पर पहुंच गई थी। कांग्रेस ने 2003 के बाद से बेहतर प्रदर्शन किया और कांग्रेस 2003 में 38 सीटों से 2018 में 114 सीटों पर पहुंची गई थी।
कैसे बनी, गिरी और फिर से बनी सरकार?
तो वर्ष 2018 में आजाद उम्मीदवार, सपा और बीएसपी के समर्थन से कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सरकार बनाई थी। उस वक्त मुख्यमंत्री पद को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच टकराव रही। लेकिन फाइनली कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया।
कांग्रेस की सरकार बन तो गई लेकिन टिक नहीं पाई। कुछ ही समय बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया बागी हो गए और कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए। उसके बाद कांग्रेस में विधायकों के इस्तीफे की बाढ़ आ गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी 19 और विधायक भी कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए। इनमें कई कैबिनेट मंत्री भी शामिल थे। लगभग पंद्रह महीने के अंदर ही कांग्रेस सरकार के गिरने की नौबत आ गई और फिर शुरु हुआ हाई वोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामा।
हाई वोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामा
विधायकों को काबू में रखने के लिए कांग्रेस और भाजपा में होड़ लग गई। भाजपा द्वारा कांग्रेस के बागी विधायकों को बेंगलुरु ले जाया गया और एक रिसोर्ट में शिफ्ट कर दिया। शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट में फ्लोर टेस्ट के लिए पिटिशन दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने कमलनाथ को नोटिस भेज दिया। 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट हुआ था और उससे ठीक एक दिन पहले 19 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू की घोषणा की थी।
20 मार्च को फ्लोर टेस्ट में कमलनाथ बहुमत साबित नहीं कर पाए। स्पीकर ने 22 बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार किया और कांग्रेस की सरकार गिर गई। वायस वोट से शिवराज चौहान ने फ्लोर टेस्ट में जीत हासिल की और फिर से लगातार चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।
आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में ये रिसोर्ट पालिटिक्स और हाई वोल्टेज ड्रामा उस वक्त चल रहा था जब पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था।
मध्य प्रदेश उप-चुनाव 2020
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में अपने साथ कांग्रेस के 19 एमएलए ले गए थे और कांग्रेस से 3 एमएलए भाजपा ने तोड़े थे। यानी कांग्रेस छोड़ भाजपा में कुल 22 विधायक शामिल हुए थे। इसके बाद 2020 में मध्य प्रदेश में उप-चुनाव हुए। एक तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह की जोड़ी थी तो दूसरी तरफ कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी। कुल 28 सीटों पर उपचुनाव हुए जिनमें से भाजपा ने 19 सीटें जीती। सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत करने वाले 19 विधायकों में से 13 जीते और 6 हार गए थे। इस उप-चुनाव के बाद अब मध्य प्रदेश में सत्ता समीकरण बदल गया था और भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत था। अब कांग्रेस के पास 96, भाजपा के पास 126 और बसपा, सपा और निर्दलीय की 7 सीटें थी।
तो ये थी मध्य प्रदेश असेंबली के कल और आज की एक संक्षिप्त कहानी। मध्य प्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तारीखों की घोषणा नहीं की है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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