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मध्य प्रदेश चुनाव : होशंगाबाद में दो भाई बने प्रतिद्वंद्वी, बताया 'वैचारिक लड़ाई' 

राजनीतिक रूप से शक्तिशाली परिवार से ताल्लुक रखने वाले दोनों भाई कांग्रेस और भाजपा से एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

भोपाल: मध्य प्रदेश की होशंगाबाद विधानसभा सीट पर, दो भाई अपने शक्तिशाली परिवार के तीन दशकों तक इस सीट पर सत्ता में रहने के बाद आगामी चुनावों में प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के रूप में आमने-सामने की लड़ाई में हैं। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के टिकट पर एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। 

दो भाई जिनकी उम्र सत्तर के आस-पास है - गिरिजा शंकर शर्मा, कांग्रेस उम्मीदवार और भाजपा के दो बार विधायक रहे, और उनके छोटे भाई सीतासरण शर्मा, जो मौजूदा भाजपा विधायक हैं - होशंगाबाद विधानसभा सीट से आमने-सामने चुनाव मैदान में हैं। वे होशंगाबाद के एक प्रभावशाली शर्मा परिवार से हैं, और उनके बड़े भाई, केएस शर्मा, राज्य के मुख्य सचिव रह चुके हैं।

चूँकि परिवार के पास नौकरशाही और राजनीतिक शक्ति के साथ सैकड़ों एकड़ पैतृक भूमि है, इसलिए पिछले कुछ वर्षों में परिवार का प्रभाव बढ़ता गया है। 1990 से यह परिवार इस सीट को बरकरार रखने में सफल रहा है।

इलाके का जातीय समीकरण भी शर्मा परिवार के पक्ष में रहा है। होशंगाबाद विधानसभा सीट, जिसमें 2.15 लाख से अधिक मतदाता हैं, इसमें ब्राह्मणों का प्रभुत्व है, इसके बाद इसमें करीब 45,000 कुर्मी मतदाता हैं। दोनों समुदाय बीजेपी के कट्टर समर्थक हैं। एससी/एसटी और अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या 60,000 से अधिक है, लेकिन यह समुदाय शर्मा परिवार पर कोई असर नहीं डाल पाए हैं।

होशंगाबाद से दो बार भाजपा विधायक रहे गिरिजा शंकर ने अपना आखिरी चुनाव 2008 में करीब 25000 वोटों के अंतर से जीता था। फिर भी, भाजपा ने अगले चुनाव में उनकी जगह उनके छोटे भाई डॉ. सीताशरण शर्मा को मैदान में उतारा था, जिन्होंने 49,296 वोटों से जीत हासिल की थी - जो उनके भाई के मुक़ाबले दोगुना का अंतर था। उन्हें 2013-20018 के बीच सदन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

एक दशक से अधिक समय तक भाजपा के जिला अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाले, गिरिजा शंकर को बिना किसी स्पष्टीकरण के हटा दिया गया, फिर भी, वे पार्टी के प्रति वफादार रहे।

2018 में, भाजपा ने होशंगाबाद से सीताशरण को फिर से टिकट देने के बाद दोनों भाइयों के बीच दरार पैदा हो गई। नाराज गिरिजा शंकर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, लेकिन बाद में सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका का आश्वासन देने के साथ वे पार्टी में लौट आए थे। हालाँकि, पार्टी चुनाव हार गई, जिससे गिरिजा शंकर मुश्किल में पड़ गए।

2020 में, जब भाजपा ने 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार को गिराकर सत्ता हासिल की, तो पार्टी ने गिरिजा शंकर की तरफ कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, जिससे वे मुश्किल में पड़ गए।

जब इस साल जून में भाजपा को पार्टी नेताओं के पार्टी से पलायन का सामना करना पड़ा, तो होशंगाबाद में एक अफवाह फैल गई कि पार्टी शर्मा परिवार को टिकट नहीं देगी क्योंकि दो युवा दावेदार टिकट की मांग कर रहे थे। "ऐसी अफवाहें जोरों पर थीं कि शर्मा परिवार से किसी को भी टिकट नहीं दिया जाएगा क्योंकि उनकी उम्र 70 साल से अधिक है और इस बार कुछ नए चेहरों को मौका दिया जाना चाहिए। परिवार के करीबी वरिष्ठ पत्रकार शकील ने बताया कि, पार्टी भाजपा नेता भगवती चौरे के नाम पर भी चर्चा कर रही है।" जो कुर्मी समुदाय से हैं – जो सीट का दावेदार दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है।'' लेकिन गिरिजा शंकर के कदम ने पासा पलट दिया।"

तभी गिरिजा शंकर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और दो महीने बाद कांग्रेस में शामिल हो गए तथा पार्टी नेतृत्व के सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि अगर बीजेपी ने उनके भाई सीताशरण शर्मा को टिकट दिया तो गिरिजा शंकर न तो उनके खिलाफ चुनाव लड़ेंगे और न ही जिले में कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगे।

पार्टी उनकी शर्तों पर सहमत हो गई क्योंकि उसके पास गिरिजा शंकर जैसा मजबूत उम्मीदवार नहीं था।

20 अक्टूबर को कांग्रेस ने गिरिजा शंकर को इस सीट से अपना उम्मीदवार घोषित किया। ठीक दो दिन बाद, भाजपा ने सीट पर सीताशरण की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी।

एक स्थानीय भाजपा नेता ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "भाजपा को एहसास हुआ कि गिरिजा शंकर को हराने के लिए सीताशरण ही सबसे अच्छा विकल्प है।"

टिकट के बाद जब मीडिया ने गिरिजा शंकर से उनकी पिछली स्थिति के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा, 'हालांकि मैंने कहा था कि अगर बीजेपी सीताशरण को मैदान में उतारती है तो मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा, क्योंकि मेरी उम्मीदवारी उनसे पहले घोषित की गई थी, इसलिए मैं कांग्रेस के विश्वास के साथ विश्वासघात नहीं करूंगा, और में उनके खिलाफ चुनाव लड़ूँगा।"

एक-दूसरे के खिलाफ टिप्पणी करने से बचते हुए, उन्हें सार्वजनिक सभाओं में यह कहते हुए सुना गया कि यह "विचारधाराओं का टकराव है, भाइयों का नहीं।"

एक तरफ, गिरिजा शंकर अपने भाई को घेरने के लिए जिले में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, स्कूलों की खराब स्थिति और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के मुद्दों पर भाजपा पर हमला कर रहे हैं। वहीं सीताशरण धर्म, राम मंदिर और मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य बनाने को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हैं।

पिछले हफ्ते, जब गिरिजा शंकर ने जिले के कांग्रेस नेता और शर्मा परिवार के आलोचकों में से एक रमेश बामने से मुलाकात की, तो इससे इलाके में हलचल मच गई। पार्टी के एक अंदरूनी सूत्र ने बताया कि, "जब रमेश ने शर्मा परिवार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की, तो उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए थे।" "इस प्रकार, जब गिरिजा शंकर उनसे मिलने गए, तो इससे शहर में बहुत हलचल मच गई थी।"

जब मीडिया ने कांग्रेस उम्मीदवार गिरिजा शंकर से उक्त मुलाकात के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा, "मैं कांग्रेस का उम्मीदवार हूं। मुझे अपनी पार्टी के लोगों से क्यों नहीं मिलना चाहिए?"

वहीं सीताशरण अपने बड़े भाई से जुड़े सवालों को मीडिया में खूब तूल दे रहे हैं। सवाल पूछे जाने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि, ''मैं चुनाव तक व्यक्तिगत या रमेश के साथ उनकी मुलाकात के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।''

होशंगाबाद में चुनाव अन्य चुनावों की तरह ही होगा। दोनों उम्मीदवार इसे व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता के बजाय वैचारिक लड़ाई बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

शर्मा भाईयों के अलावा, जिले के वरिष्ठ, बागी भाजपा नेता और कुर्मी मतदाताओं से संबंधित भगवती चौरे भी चुनाव मैदान में हैं, जो दोनों भाइयों को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। चौरे उन 35 भाजपा नेताओं में शामिल हैं जिन्हें अनुशासन समिति ने पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए निलंबित कर दिया था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

MP Polls: Brothers Turn Opponents in Hoshangabad, Term it 'Ideological Fight'

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