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मध्य प्रदेश: 22% आबादी वाले आदिवासी बार-बार विस्थापित होने को क्यों हैं मजबूर

मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या में से 22 फीसदी आबादी आदिवासियों की है, 230 विधानसभा सीटों में से 84 सीटों पर इनका प्रभाव है, बावजूद इसके वे बार-बार विस्थापित होने को अभिशप्त हैं। प्रदेश में 11 नए अभ्यारण्यों के प्रस्ताव के बाद से आदिवासी एक बार फिर डर के साए में हैं।
Mandla
(फाइल फोटो)

मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या में से 22 फीसदी आदिवासियों की आबादी है और 230 विधानसभा सीटों में से 84 सीटों पर इन जनजातियों का असर रहता है। लेकिन राजनेता हर बार इन बहुत सहज और सरल जीवन जीने वाली जनजातियों के साथ छलावा करते हैं। वर्षों तक इन्हें कांग्रेस पार्टी ने छला और अब भाजपा इन्हें ठग रही है। जबकि वर्ष 2018 के चुनाव में इन जनजातियों ने साबित भी कर दिया कि वह एक मुश्त जिधर जाएंगे, सरकार उसी पार्टी की बनेगी। ऐसा हुआ भी, लेकिन उसके बाद जो हुआ वह सबने देखा।

बहरहाल मध्यप्रदेश में अभी विधानसभा चुनाव में 2 साल का समय बाकी है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस ने मिशन 2023 के लिए जमीनीं तैयारियां शुरू कर दी हैं। आदिवासियों को 2023 के चुनाव के लिए लुभाने की कोशिशें इन दोनों पार्टियों की ओर से चल रही हैं। भाजपा को गोंडवाना के राजा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह की याद इसलिए आ रही है, क्योंकि प्रदेश में में 43 समूहों वाले आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है।

वहीं कांग्रेस बार-बार इनके ऊपर हो रहे अत्याचारों को उठाकर इनकी हितैषी होने का दिखावा कर रही है। बीते दिनों पार्टी के राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने प्रशासन से इनकी मदद करने की गुहार लगाई हैं। बुधनी विधानसभा के अन्तर्गत आने वाले गांव मछवाई में बैतूल जिले के एक आदिवासी युवक की संदिग्ध मौत के मामले की जांच के लिए उन्होंने मध्य प्रदेश के डीजीपी विवेक जौहरी को बहुत ही मार्मिक पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि इस मामले में आदिवासी वर्ग की नाबालिग लड़कियों ने दुष्कृत्य किये जाने की शिकायत की है।

पीड़ितों द्वारा की गई शिकायत के बाद भी विगत 2 माह में  पुलिस एफ.आई.आर. दर्ज नहीं कर सकी है। बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक ब्रह्मा भलावी सहित आदिवासी युवा परिषद और जयेश संगठन के युवाओं ने ‘‘मछवाई कांड’’ पर आरोपियों के विरूद्ध एफ.आई.आर. दर्ज कराने की मांग की है।

पांच आदिवासी बच्चियों के साथ यौन शोषण का कथित मामला

दिग्विजय ने कहा कि संजू सिंह चौहान, बैतूल निवासी आदिवासी युवक विनोद उइके और उसके गांव की 5 लड़कियों को जुलाई 2021 में धान के खेतों पर काम करने के लिये अपने मछवाई ग्राम आया था।

बच्चियों ने पुलिस को बयान दिये हैं कि उनके साथ यौन दुर्व्यवहार किया गया है। घटना के गवाह विनोद उईके को मारा-पीटा गया, घातक चोंटे लगने से उसकी मौत हो गई। बाद में आरोपियों ने सांप के काटने से मृत्यु होना बता दिया। पोस्टमार्टम भी बिना परिजनों की उपस्थिति के किया गया। बैतूल पुलिस ने अंतिम संस्कार के पूर्व शव के फोटो भी नहीं लेने दिए।

हालांकि प्रदेश में लगातार आदिवासी वर्ग पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं। नीमच, नेमावर, देवास, रीवा, मुरैना, बालाघाट आदि जिले में आदिवासी वर्ग के साथ हो रही घटनाएं प्रदेश को शर्मसार करने वाली और वीभत्स हैं। खरगोन जिले में भी बिस्टान में आदिवासी पर पुलिस प्रताड़ना से एक और मौत की चीख-पुकार फिर सुनाई दी, आदिवासी बिसन को पुलिस कस्टडी में पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री का प्रयोग कर उसे प्रताड़ित कर मार दिया गया। इस घटना से पूरे जिले में आदिवासी वर्ग के लोगों में भय और आक्रोश का माहौल बना हुआ है।

आदिवासियों के ख़िलाफ़ प्रदेश में सबसे ज़्यादा अपराध

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2020 की रिपोर्ट भी बताती है कि प्रदेश में साल 2020 में जनजातियों के उत्पीड़न के 2401 प्रकरण दर्ज हुए हैं, जो वर्ष 2019 में दर्ज हुए 1922 प्रकरणों की तुलना में 20 फीसदी अधिक हैं। इस वर्ग के 59 लोगों की हत्या हुई है और महिलाओं पर हुए हमले के 297 प्रकरण दर्ज हुए हैं। बच्चों के मामले में भी प्रदेश सुरक्षित नहीं है। यहां रोज लगभग 46 बच्चों का अपहरण, दुष्कर्म और हत्या दर्ज की गई है। इस तरह कानून व्यवस्था के मामले में मध्य प्रदेश की शर्मनाक तस्वीर सामने आई है। इस वर्ग के खिलाफ हुए अपराध में मध्य प्रदेश पहले नंबर पर है।

11 नए अभ्यारण्य से भयभीत आदिवासी

सवाल सिर्फ इनके विरूद्ध हो रहे अपराधों का ही नहीं है, बल्कि इन्हें कीड़े-मकोड़ों की तरह यहां-वहां भगाने में भी प्रदेश सरकार पीछे नहीं है। ताजा मामला सरकार द्वारा 11 नए अभ्यारण्य का प्रस्ताव है। ऐसे में इन आदिवासियों का क्या होगा! वे तो इन जंगलों पर निर्भर रहकर ही जीवन जीते हैं। अब क्या वन विभाग वन और वन निवासियों के सहजीवन की अहमियत समझ कर उन्हें जंगलों में रहने देगा। इसी बात को लेकर इनकी चिंता है। वे आपस में चर्चा कर रहे हैं, जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंप रहे हैं। मध्यप्रदेश के वन विभाग ने 11 नए अभ्यारण्य और रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेज दिया है। राज्य में फिलहाल नौ राष्ट्रीय उद्यान और 25 अभ्यारण्य हैं । जो 11893 वर्ग किलोमीटर अर्थात 11 लाख 90 हजार 300 हेक्टेयर में फैले हुए हैं। 11 नए अभ्यारण्य बनने से 2163 वर्ग किलोमीटर अर्थात 2 लाख 16 हजार 300 हेक्टेयर संरक्षित क्षेत्र इसमें शामिल हो जाएगा।

इससे पहले राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों से 94 गांवों के 5460 परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है। इनका आजतक कोई पुनर्वास नहीं हुआ है। साल 2016 में श्योपुर जिले के कूनो-पालपुर अभयारण्य को राष्ट्रीय उद्यान में बदल दिया गया था। उस समय उसकी धारण क्षमता 345 वर्ग किलोमीटर थी, जिसे बढ़ाकर 749 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया। नतीजे में 24 गांवों के 1545 परिवार विस्थापित हुए। विगत कुछ वर्षों से कोर एरिया बढ़ाने के नाम पर 109 गांवों के 10,438 परिवारों को हटाए जाने की कार्यवाही जारी है। वन विभाग की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2017 से 2020 तक 28 गांवों को पूर्णतः और 8 गांवों को आंशिक रूप से अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और बफर जोन से विस्थापित किया जा चुका है।

हालांकि अभी वन विभाग इन गांवों को विस्थापित नहीं करने की बात कर रहा है, परंतु बफर जोन में अनेक तरह के प्रतिबंधों के कारण आवागमन, निस्तार, लघु वनोपज संग्रहण, मवेशी चराई तथा खेती पर भारी संकट के कारण आदिवासी पलायन के लिए मजबूर हो जाते हैं। कानूनी पहलू यह है कि कोर एरिया अथवा संरक्षित वन क्षेत्र से पहले वन अधिकार कानून 2006 की धारा 4 -2- के अनुसार राज्य सरकार राज्य स्तरीय समिति का गठन करेगी, जिसमें ग्रामसभा के लोग भी होंगे। यह समिति अध्ययन करेगी कि क्या ग्रामीणों का वन्य प्राणी पर प्रभाव अपरिवर्तनीय नुकसान के लिए पर्याप्त है और उक्त प्रजाति के अस्तित्व और उनके निवास के लिए खतरा है। अध्ययन में यह बात साबित होने के बाद ही विस्थापन की कार्यवाही नियमानुसार किए जाने का प्रावधान है।

वन विभाग ने ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाते हुए सीधे ग्राम वासियों को हटाने का नोटिस जारी किया। अपने संसाधनों से उजड़कर आदिवासी समुदाय शहरों की झुग्गी बस्तियों में रहने को मजबूर हैं। मंडला जिले में पहले से ही कान्हा राष्ट्रीय उद्यान 94000 हेक्टेयर और फेन अभयारण्य 11074 हेक्टेयर बनाया जा चुका है। नए प्रस्ताव में राजा दलपत शाह अभ्यारण्य 13349 हेक्टेयर मंडला जिले के कालपी रेंज में प्रस्तावित किया गया है।

MANDLA
 (फाइल फोटो )

इस अभयारण्य का प्रस्ताव आने पर 2019 में स्थानीय विधायक डॉक्टर अशोक मर्सकोले और आदिवासियों के सामाजिक संगठनों ने तीखा विरोध किया। उस समय की कमलनाथ सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। सागर जिले में प्रस्तावित डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अभ्यारण्य को राज्य वन्य प्राणी बोर्ड ने सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान कर दी है। 25,864 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य के 7 किलोमीटर की परिधि में 88 गांव आते हैं जिनकी निस्तार व्यवस्था वनों पर आश्रित है वन्यप्राणियो के लिए इतनी सारी व्यवस्था के बावजूद वन विभाग की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2017 से 2020 तक वन्य जीव, 140 जनहानि, 3539 घायल और 26,205 पशुओं की हानि कर चुके हैं।

संरक्षित वन ऐसे स्थानीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन हैं जो जंगलों में बसे हैं। जंगलों का इस्तेमाल आदिवासी समुदाय निस्तार जरूरतों के लिए करते हैं। इन संरक्षित वनों में लोगों के अधिकारों का दस्तावेजीकरण किया जाता है और तब तक उनका अधिग्रहण  नहीं किया जाना है। वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न जिलों में 6520 वनखण्डों में प्रस्तावित लगभग 30 लाख 4 हजार 624 हेक्टेयर भूमि के संबंध में वन व्यवस्थापन की कार्यवाही वर्ष 1988 से लंबित है।

भारतीय वन अधिनियम 1927 के प्रावधानों के तहत वन व्यवस्थापन अधिकारियों को धारा-5 से 19 तक कार्यवाही कर धारा-20 में आरक्षित वन बनाने की प्रारूप अधिसूचना प्रस्तुत करनी थी, परंतु इसमें कोई प्रगति नहीं हुई है।

वन विभाग द्वारा 22 वन मंडलों के वर्किंग प्लान में लगभग 27039 हेक्टेयर निजी भूमि शामिल कर ली गई है। भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के अंतर्गत उक्त भूमि वन विभाग के पास निराकरण के लिए प्रतिवेदित है। दूसरी तरफ राज्य सरकार द्वारा अधिनियम-1927 की धारा 34 ए के तहत जारी अधिसूचना के अनुसार राजस्व और वन विभाग के अभिलेख को अपडेट नहीं किया गया है। इसे लेकर भूमि की सही कानूनी स्थिति को दर्शाने के लिए राजस्व और वन अभिलेखों को दुरुस्त किया जाना आवश्यक है। उपरोक्त मामले के निराकरण किए बिना दो लाख 16 हजार 300 हेक्टेयर  भूमि को अभ्यारण्य में शामिल करना क्या उचित होगा!

(भोपाल स्थित रूबी सरकार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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