मदरसा शिक्षकों को 50 महीनों से नहीं मिला मानदेय, भुगतान में देरी को लेकर भेदभाव का आरोप
“मैं सुबह 5 बजे घर से निकलता हूँ, 8 बजे तक मदरसा पहुंच जाता हूँ। कक्षाएँ खत्म होने पर 2 बजे घर के लिए निकलता हूँ और शाम 5 बजे तक पहुँचता हूँ। गोरखपुर के मिर्जापुर से नौतनवां के मधुबनवा स्थित मदरसे तक की दूरी तय करने के लिए 90-95 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। मदरसा आने-जाने में मुझे प्रति महीने करीब 3 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। 1 अप्रैल 2016 के बाद से हमें मानदेय नहीं मिला है, लिहाजा यह खर्च भी जेब से ही करना पड़ रहा है। रोजगार के बेहतर साधन के अभाव में पढ़ा रहा हूँ, उम्मीद है भविष्य में कुछ बेहतर ही होगा।”
यह कहना है गोरखपुर के मदरसा शिक्षक नुरूल हुदा का। कहने के लिए नुरूल के पास रोजगार है लेकिन केवल उन्हें व्यस्त रखने के लिए। दिन के 12 घंटे खटने के बाद भी वह अपना जीवन चलाने के लिए परिवार पर ही निर्भर हैं। बिना मानदेय भुगतान के नौकरी करने कारण पूछने पर वह बताते हैं “हम मदरसा शिक्षकों के लिए अच्छे दिनों का इंतजार काफी लंबा हो गया है। फिर भी उम्मीद है इस रात की सुबह होगी।”
नुरूल हुदा की तरह ही उत्तर प्रदेश में मदरसा आधुनिकीकरण योजना से जुड़े 25,500 शिक्षक हैं। देश में मौजूद कुल 25,000 में से 19,213 मान्यता प्राप्त मदरसे केवल उत्तर प्रदेश में हैं। जिनमें 8,584 मदरसों में करीब 10 लाख बच्चों को यह शिक्षक पढ़ाते हैं। मानदेय नहीं मिलने के कारण यह शिक्षक लंबे समय से गंभीर आर्थिक समस्यों का सामना कर रहे हैं। पिछले 4 वर्षों से भी अधिक समय से लगातार धरना-प्रदर्शन करने के बाद भी सरकार इनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही है। मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति के अनुसार सरकार की इस उदासीनता के कारण 50 से अधिक शिक्षकों की ह्रदय गति रुकने या इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है।
क्या है मदरसा आधुनिकीकरण योजना
स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसा को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मदरसों के शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए लागू किया था। इसके तहत मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को गणित़, विज्ञान, अंग्रेजी, कंप्यूटर और सामाजिक विज्ञान विषयों को पढ़ाये जाने की सिफारिश की गई थी। मदरसा बोर्ड के बच्चों को विषयवार एनसीईआरटी की किताबें पाठ्यक्रम में शामिल करने और उर्दू के साथ ही हिन्दी तथा अंग्रेजी की भी पढ़ाई करवाने का प्रस्ताव भेजा गया था। इन विषयों के पढ़ाने के लिए नियुक्त शिक्षकों को केन्द्र व राज्य सरकार के कोष से मानदेय देने का फैसला किया गया था।
योजना के तहत केन्द्र सरकार स्नातक शिक्षकों को 6,000 और परास्नातक तथा बीएड शिक्षकों को 12,000 देने का दावा करती है। इस रकम में 60 फीसदी हिस्सा केन्द्र सरकार का और 40 फीसदी राज्य सरकार का है। इसके अलावा राज्य सरकार अपनी ओर से स्नातक शिक्षकों को 2,000 और परास्नातक व बीएड शिक्षकों को 3,000 का अलग से भुगतान करती है। ये अतिरिक्त भुगतान तो हो रहा है, लेकिन केंद्र की ओर से तय मानदेय जारी नहीं हो रहा है। राज्य ने भी 40 फीसदी का भुगतान केन्द्रांश के साथ भुगतान करने का आश्वासन देकर रोका हुआ है।
बकाया मानदेय के भुगतान को लेकर मदरसा शिक्षक लगातार प्रदर्शन करने के साथ ही फाइलों का पुलिंदा लेकर लखनऊ से दिल्ली तक की दौड़ लगा रहे हैं। लखनऊ और दिल्ली के अधिकारी एक-दूसरे के पाले में गेंद डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। जिसके कारण भुगतान की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है।
इस्लामिक मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज अहमद बताते हैं “1993 में लागू इस योजना का बजट 375 करोड़ तय किया गया था। सरकार ने 2017 में इसे घटाकर 120 करोड़ कर दिया था। मौजूदा सत्र में इसके बजट में 100 करोड़ की वृद्धि कर दी गई है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण भुगतान की प्रक्रिया रूकी हुई है।” वह आगे कहते हैं “मानदेय के अभाव में हमारे 30 शिक्षक आत्महत्या कर चुके हैं और सौ से अधिक की पैसे नहीं होने से इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है। 16 अक्टूबर को भी हम लोगों ने गृहमंत्रालय में ज्ञापन सौंपा था, वहाँ से भी आश्वासन ही मिला है।”
कई बार कर चुके हैं प्रदर्शन
देश 16 राज्यों में मौजूद मदरसा शिक्षकों के हक की लड़ाई लड़ने वाले 4 संगठन हैं जो अपनी मांगों को लेकर समय-समय पर प्रदर्शन करते रहते हैं। इस्लामिक मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ ऑफ इंडिया, मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति, मॉडर्न मदरसा टीचर्स व मदरसा आधुनिकी शिक्षक। सभी संगठन मिलकर लखनऊ से दिल्ली तक सैकड़ों प्रदर्शन, अनिश्चितकालीन हड़ताल यहाँ तक की भूख हड़ताल भी कर चुके हैं।
मदरसा आधुनिक शिक्षक एकता समिति उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष अशरफ अली उर्फ सिकंदर बाबा बताते हैं “हम जब प्रदर्शन करते हैं तब ही मानदेय के भुगतान की गतिविधियां शुरू होती हैं, वह भी कभी पूरा नहीं मिला। 2018 में संगठन के गठन के बाद से 10 मई 2018 लखनऊ के ईकोगार्डन में तीन दिवसीय भूख हड़ताल, 23जुलाई 2018 को कई संगठनों का ईकोगार्डन में संयुक्त प्रदर्शन, 8 जनवरी से 9 मार्च 2019 तक 61 दिनों तक ईकोगार्डन में लगातार प्रदर्शन, 10 जून 2019 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन, 7 अगस्त 2019 को लखनऊ के जीपीओ पार्क पर धरना-प्रदर्शन, 25 नवंबर 2019 को ईकोगार्डन में प्रदर्शन, 17 फरवरी 2019 को ईकोगार्डन में प्रदर्शन, 6 अक्टूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन।”
मदरसा शिक्षकों को मानदेय भुगतान एक साथ न करके लाट के अनुसार किया जाता था। लाट संख्या 273 के अंतर्गत जितने भी शिक्षक हैं जिन्हें 78 महीनों से मानदेय नहीं मिला है। इसके अलावा लाट संख्या के तहत 456 मदरसों का 69 महीनों, 672 व 1506 मदरसों का 51 महीनों, 1446 मदरसों का 54 महीनों, 2108, 849 और 1891 मदरसों का 51 महीनों का मानदेय बकाया है। कुल मिलाकर राज्यांश का 321.23 करोड़ और केन्द्रांश 977.34 करोड़ रुपये बकाया है।
शुरुआत में शिक्षकों का मानदेय रोकने का कारण मदरसों में कथित तौर पर हो रहे फर्जीवाड़े को बताया और जांच के बाद मानदेय देने की बात कही गई। आशंका व्यक्त की गई थी कि फर्जी अभिलेखों के आधार पर मदरसों का संचालन करके केन्द्र व राज्य से अनुचित लाभ लिया जा रहा है। जांच में मदरसों का भौतिक सत्यापन किया गया, शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की जांच की गई। सरकार को अपनी ही एक बार की जांच में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला। शिक्षकों का मानदेय इसके बाद भी जारी नहीं किया गया और अभी तक चार बार जांच किया जा चुका है। जांच में कथित तौर पर फर्जीवाड़े की बात गलत साबित हुई फिर भी भुगतान रुका हुआ है।
मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति के गोरखपुर के जिलाध्यक्ष इरफान खान बताते हैं “सरकार हमारे साथ भेदभाव कर रही है, जबकि मदरसा शिक्षकों में 20 प्रतिशत से अधिक हिन्दू शिक्षक हैं। सरकार चाहे तो एक दिन में भुगतान हो सकता है। यदि सरकार योजना नहीं चलाना चाहती है तो हमारा भुगतान करने के बाद इसे बंद कर दे। कम से कम हमें यह तो स्पष्ट हो जाएगा कि दूसरे रोजगार की तलाश करनी है।”
जिला अल्पसंख्य कल्याण अधिकारी गोरखपुर आशुतोष पांडेय बताते हैं “इस योजना के तहत केन्द्र सरकार अपने हिस्से का भुगतान नहीं कर रही है, अगस्त 2020 तक का राज्यांश वितरित किया जा चुका है। भुगतान को लेकर राज्य व केन्द्र सरकार के बीच बातचीत हो रही है, मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।”
(सत्येन्द्र सार्थक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।