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महाराष्ट्र: नोटबंदी और जीएसटी के कारण 500 से ज्यादा छोटी कंपनियां बंद होने के कगार पर 

पांच सौ से ज्यादा छोटे उद्यमियों ने पिंपरी स्थित कंपनी पंजीकरण कार्यालय में अपनी कंपनियों को बंद करने के लिए आवेदन दिए हैं। इनमें पुणे सहित पश्चिम महाराष्ट्र और कोकण के छोटे उद्यमी शामिल हैं।
छोटी कंपनियां बंद होने के कगार पर 
नोटबंदी और जीएसटी के कारण छोटे उद्यमियों की बढ़ीं मुसीबतें। प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: सोशल मीडिया

महाराष्ट्र में पांच सौ से ज्यादा छोटे उद्यमियों ने पिंपरी स्थित कंपनी पंजीकरण कार्यालय में अपनी-अपनी कंपनियों को बंद करने के लिए आवेदन दिए हैं। इनमें पुणे सहित पश्चिम महाराष्ट्र और कोकण के छोटे उद्यमी शामिल हैं।

इन कंपनियों को बंद करने के निर्णय के बारे में बात करते हुए कई छोटे उद्यमी इसके लिए केंद्र की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं। इन उद्यमियों का कहना है कि खास तौर से नोटबंदी और वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) का उनकी औद्योगिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था। कुछ वर्षों से लगातार आर्थिक नुकसान उठाते रहने के कारण यह स्थिति आई है। इसलिए, अब आर्थिक मंदी के दौर में इन उद्यमियों के लिए उद्योग चलाना मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा इनमें कई युवा भी शामिल हैं जो अपनी कंपनी का पंजीयन कराने के बाद काम ही शुरू नहीं कर सके हैं।

वहीं, कई कंपनियां पिछले दो वर्षों से निष्क्रिय बताई जा रही हैं। लिहाजा, सैकड़ों की संख्या में छोटे उद्यमियों ने अपनी-अपनी कंपनियों को बंद करने का मन बना लिया है और इसके लिए इन्होंने शासन के कंपनी पंजीकरण कार्यालय में आवेदन दिए हैं।

दरअसल, कंपनी पंजीकरण अधिनियम के तहत कंपनी पंजीकरण कार्यालय को किसी कंपनी के निष्क्रिय होने पर उसका पंजीयन रद्द करने का अधिकार है। अधिनियम के प्रावधान के मुताबिक कोई कंपनी यदि पंजीयन कराने के बाद एक साल के भीतर परिचालन नहीं करती है या किसी कंपनी की स्थिति निष्क्रिय दिखाई देती है तो ऐसी हालत में उसका पंजीयन रद्द हो सकता है। लिहाजा, कंपनी अधिनियम के इसी प्रावधान का पालन नहीं करने के इस श्रेणी में आने वाली पांच सौ से अधिक लघु स्तर की औद्योगिक कंपनियों ने अपने पंजीयन निरस्त कराने के लिए आवेदन दिए हैं।

बता दें कि पिंपरी स्थित कंपनी पंजीकरण कार्यालय में राज्य के पुणे, पिंपरी, चिंचवड, सतारा, सांगली, कोल्हापुर, सिंधुदुर्ग और रत्नागिरी जिले की कंपनियों का पंजीयन किया जाता है। साथ ही, इस क्षेत्र की सभी कंपनियों से संबंधित कामकाज इसी कार्यालय के अंतर्गत आते हैं।

इस कंपनी पंजीकरण कार्यालय द्वारा प्राप्त आवेदनों में से करीब 175 कंपनियों के पंजीकरण को विचाराधीन रखा गया है और इस बारे में कंपनियों के उद्यमियों को उनकी आपत्तियां जमा करने के लिए सूचित किया गया है। इसके लिए उद्यमियों को तीस दिनों का समय दिया गया है। इसके बाद उद्यमियों को संबंधित आपत्तियों पर सुनवाई के लिए कार्यालय बुलाया जाएगा। यह प्रक्रिया पूरी होते ही आगे के लिए आदेश जारी किए जाएंगे।

इस बारे में श्रमिक नेता अजीत अभ्यंकर बताते हैं कि नोटबंदी के कारण छोटे उद्यमियों के लिए हालात पहले ही मुश्किल हो गए थे लेकिन जीएसटी अधिनियम लागू होने के बाद स्थिति बदतर होती चली गई। इस तरह, केंद्र सरकार के फैसलों और उससे पैदा हुई आर्थिक मंदी ने न सिर्फ उद्यमियों को धक्का पहुंचाया बल्कि खास तौर से लघु उद्योगों के अनुकूल माहौल नहीं बनने दिया। जिन कंपनियों ने अपने पंजीकरण रद्द कराने के लिए आवेदन दिए हैं, उनमें से ज्यादातर के बारे में यह कहा जा रहा है कि वे आर्थिक मंदी के गर्त में चली गई हैं और उनमें पिछले दो वर्षों से कामकाज पूरी तरह से बंद हो चुका है।

अजीत अभ्यंकर बताते हैं कि यदि कंपनी की संपत्ति कम है और उसकी तुलना में देनदारियां अधिक हैं तो कंपनी को एक वित्तीय प्रक्रिया से गुजरना होता है, जिसे परिसमापन कहा जाता है। इसमें यह देखा जाता है कि क्या किसी उद्यमी द्वारा बैंकों को धोखा देने के लिए कंपनी को बंद करने की प्रक्रिया तो शुरू नहीं की गई है। लेकिन, तथ्य यह है कि पांच सौ से ज्यादा कंपनियां अपना पंजीकरण रद्द कराना चाहती हैं। यह संख्या अपने आप में इस बात की पुष्टि करती है कि आर्थिक मंदी की स्थिति कितनी गंभीर है और जिसे लेकर खुद छोटे उद्यमी नोटबंदी तथा जीएसटी को जिम्मेदार मान रहे हैं।

दूसरी तरफ, फोरम ऑफ स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, पिंपरी के अध्यक्ष अभय भोर कहते हैं कि नोटबंदी और वित्तीय कठिनाइयों के कारण यह नौबत आई। कई छोटे उद्यमियों ने अपनी कंपनी का पंजीकरण रद्द करने के लिए दिए आवेदन में यह बात कही है। इनमें वे बताते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी ने किस तरह उनकी कंपनी को चलाए रखना मुश्किल कर दिया।

इसी तरह, फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ पिंपरी के कार्यकारी अध्यक्ष गोविंद पानसरे बताते हैं कि नोटबंदी के बाद जीएसटी छोटे उद्यमियों पर दोहरी मार साबित हुई। जो किसी तरह नोटबंदी से उभरे उन्हें जीएसटी ने दबोच लिया। हालांकि, कई उद्यमियों ने सालों तक इन आर्थिक दुष्चक्र से निकलने की कोशिश की। इसके बावजूद बहुत सारे उद्यमी टूट गए हैं। वहीं, दूसरे कई उद्यमियों को आज भी आर्थिक मंदी से उपजी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

भले ही केंद्र सरकार नोटबंदी और जीएसटी को अर्थव्यवस्था में गति देने के लिए सही बताती रही हो, लेकिन हकीकत में परिणाम केंद्र सरकार के दावे से उलट हासिल हुए हैं। वर्ष 2018 में आई भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट को ही मानें तो नवंबर 2016 में की गई नोटबंदी के बाद से छोटे उद्योगों का लोन डिफॉल्ट दो गुना हो गया। वहीं, नोटबंदी के कारण उस दौरान महाराष्ट्र के कई प्रमुख शहरों के लघु और परंपरागत उद्योगों की कमर टूट गई थी। उदाहरण के लिए, तब भिंवडी का पावरलूम कारखाना अस्सी प्रतिशत तक प्रभावित हो गया था और उनमें काम करने वाले मजदूरों को बड़ी संख्या में उनके गांव लौटना पड़ा था। इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई जीएसटी छोटे उद्यमियों के लिए बड़ी मुसीबत साबित हुई। यह भी एक प्रमुख वजह है कि महाराष्ट्र में बड़ी संख्या तक छोटी कंपनियां बंद होने की कगार तक पहुंच गई हैं। 

(शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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