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महाराष्ट्र: किसानों की एकता के आगे एक बार फिर झुकी सरकार; मार्च ख़त्म, सरकार ने मानी सभी मांगें!

“हमने हर संघर्ष में अपनी एकता से जीत हासिल की और इससे हौसला लेकर भविष्य में और बड़ा आंदोलन किया है। इस मार्च की जीत ने भी हमें भविष्य में अन्य मुद्दों को लेकर एक बड़ा आंदोलन करने की प्रेरणा दी है।”
kisan andolan

महाराष्ट्र में एक बार फिर किसानों ने एकता और संघर्ष की मिसाल कायम की, एक बार फिर किसानों और मज़दूरों की एकता के आगे सरकार को झुकना पड़ा और किसानों ने एक बड़ी जीत हासिल की। आपको बता दें महाराष्ट्र के अलग-अलग ज़िलों से हज़ारों की संख्या में किसान अहमदनगर ज़िले के अकोले में जुटे जहां से इन किसानों ने लोनी तक (क़रीब 52 किलोमीटर) पैदल मार्च शुरू किया। ये मार्च तीन दिन का था। सरकार शुरू से ही बैकफुट पर थी। किसानों की ओर से ये आरोप भी लगाया गया कि सरकार ने शुरुआत से कोशिश की कि ये मार्च न निकले लेकिन वो इसमें नाकामयाब रहे। इस मार्च के दूसरे दिन जब किसान अपने तीन-दिवसीय पैदल मार्च का लगभग 12 किलोमीटर का सफ़र तय कर चुके थे तब सरकार ने किसान नेताओं से बात की और बातचीत के बाद पूरी तरह से उनकी सभी मांगों पर सहमति अपनी जताई। सरकार के मंत्री खुद किसानों के बीच आए और अपनी गलती मानी और मंच से कहा कि वो विनती कर रहे हैं, किसान अपना ये मार्च वापस लें, सरकार उनकी सभी मांगों को सही मानती है और उसे ज़मीन पर लागू करने की तैयारी कर रही है।

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अहमदनगर ज़िले के संगमनेर तालुका के एक सरकारी गेस्ट हाउस में महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल की अध्यक्षता में आज एक लंबी बैठक हुई जिसमें सरकार की तरफ से पाटिल के अलावा आदिवासी मामलों के मंत्री विजय कुमार गावित और श्रम मंत्री सुरेश खड़े शामिल थे। इसके अलावा सरकारी अधिकारियों का पूरा एक अमला साथ था। जबकि किसानों की तरफ से अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धवले और राज्य महासचिव अजीत नवले के साथ 32 लोगों का एक शिष्टमंडल सरकार से मिलने गया था। इसमें किसान संगठन के साथ-साथ मज़दूर और अन्य संगठनों के नेता भी शामिल थे। हालांकि वार्ता से पूर्व सौहार्दपूर्ण माहौल बना रहे इसके लिए अखिल भारतीय किसान सभा ने गुरुवार को, अकोले से मंत्री के गृहनगर लोनी तक 53 किलोमीटर की, अपनी पदयात्रा को रोक दिया था। मार्च, बुधवार को शुरू हुआ था और तय कार्यक्रम के अनुसार शुक्रवार को धरने के साथ समाप्त होने वाला था। हालांकि सरकार के द्वारा सभी मांगें माने जाने के ऐलान के बाद किसानों ने अपने मार्च को अपने पहले पड़ाव रामेंश्वरम मंदिर, धांडरफल पर ही विजय के साथ समाप्त किया। हालांकि किसान सभा के नेताओं ने एक बार फिर ज़ोर देकर कहा कि "अगर सरकार वादाखिलाफी करती है तो उसे याद रहना चाहिए कि हम फिर से सड़क पर आंदोलन करने के लिए तैयार हैं।”

अखिल भारतीय किसान सभा के नेता डॉ. अजीत नवले ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने मार्च वापस लेने का फैसला किया है क्योंकि राज्य सरकार, वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन और बेहतर मुआवज़े के संबंध में उनकी अधिकांश मांगों को पूरा करने पर सहमत हो गई है। इसके अलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए बेहतर पारिश्रमिक जैसी मांगों पर भी बातचीत काफ़ी सकारात्मक रही है।

हमने जब उनसे पूछा कि सरकार ने पहले भी उन्हें ऐसे आश्वासन दिए थे लेकिन क्या उनके सभी वादे पूरे हुए? इस पर नवले ने कहा, "कभी भी किसी आंदोलन में 100 फ़ीसदी मांगें पूरी नहीं होती हैं। इसमें भी शायद न हो लेकिन हमने हर संघर्ष में अपनी एकता से जीत हासिल की और इससे हौसला लेकर भविष्य में और बड़ा आंदोलन किया है। इस मार्च की जीत ने भी हमें भविष्य में अन्य मुद्दों को लेकर एक बड़ा आंदोलन करने की प्रेरणा दी है।”

बैठक में विखे पाटिल के अलावा राज्य के श्रम मंत्री सुरेश खाड़े और आदिवासी मामलों के मंत्री डॉ. विजयकुमार गावित भी मौजूद थे। इसके अलावा इन मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि मंत्री, मार्च करने वाले किसानों से मिलेंगे और औपचारिक रूप से फैसले की घोषणा करेंगे।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) नेताओं के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, "हमने (सरकार) कुछ फैसले लिए हैं और आश्वासन दिया है कि सभी फैसलों को समयबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।"

किसान सभा के नेता किशन गुर्जर जो सरकार से बातचीत करने वाले नेताओं में शामिल थे, उन्होंने कहा, “सभी मांगों को पूरा करने के लिए एक समयबद्ध कार्रवाई निर्धारित की गई है। यही वजह है कि हमने अपना मार्च वापस ले लिया।”

मार्च का आयोजन अखिल भारतीय किसान सभा और अन्य संगठनों द्वारा किया गया था। किसानों में, वन अधिकार अधिनियम को लागू न करने को लेकर गुस्सा था जिसकी ओर ध्यानाकर्षण के लिए वे अलग-अलग ज़िलों सेआए थे। बता दें कि ये कानून वन में रहने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता देता है। लेकिन आरोप है कि इसके बाद भी आदिवासी किसानों को वन भूमि में खेती करने से रोका जा रहा है और उनके साथ मारपीट की जाती है।

इस मार्च में किसान सभा ने वन भूमि अधिकार के अलावा भूमि अधिग्रहण के लिए पर्याप्त मुआवज़े समेत दूध, कपास और अन्य फसलों के लिए लाभकारी कीमतों की मांगों को लेकर 15,000 से अधिक किसानों ने साथ बुधवार को पैदल मार्च निकाला था। बता दें कि बड़ी संख्या में महिलाएं भी इस पैदल मार्च का हिस्सा थीं।

इसके अलावा दूध और डेयरी उत्पादों के आयात का विरोध कर रहे किसानों ने भी प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुए फसल नुकसान के लिए पर्याप्त मुआवज़े की मांग की। इसके अलावा किसानों, कृषि श्रमिकों और निराश्रितों के लिए पेंशन में वृद्धि व चिकित्सा बीमा और निर्माण श्रमिकों के लिए आवास की सुविधा व पारिश्रमिक में वृद्धि की मांग की गई।

आपको बता दें कि किसानों की ओर से पिछले महीने भी एक बड़ा लॉन्ग मार्च हुआ था। उस वक़्त भी किसानों की एकता के आगे सरकार को झुकाना पड़ा था जिसके बाद सरकार की तरफ से एक लिखित समझौता किया गया और उनकी मांगों को लेकर एक शासन आदेश भी दिया गया और इसकी जानकारी खुद मुख्यमंत्री ने सदन में दी थी।

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