Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

महाराष्ट्र किसान पैदल-मार्च: दूसरे दिन सरकार बैकफुट पर, बातचीत शुरू...अडिग है किसानों का हौसला!

“...अपने हक़ के लिए हम इस भीषण गर्मी में क्या...आग के अंगारों पर भी चलने को तैयार हैं।” किसान अभी भी सड़कों पर डटे हुए हैं।
kisan

महाराष्ट्र में किसान तीन-दिवसीय पैदल मार्च कर रहे हैं। बता दें कि दूसरे दिन यानी 27 अप्रैल को ये मार्च फ़िलहाल स्थगित हो गया है जिसकी वजह यह है कि आज मार्च के दूसरे दिन सरकार का प्रतिनिधि मंडल किसानों से मिलने और बातचीत करने आ रहा है। किसानों ने अपने पहले पड़ाव रामेश्वरम मंदिर, धांडरफल, पर ही डेरा डाल दिया है। हालांकि प्रशासन की धमकी के आरोप के बीच, पुलिसिया नोटिस और बेरहम मौसम भी किसानों के हौसले और हिम्मत को नहीं रोक पाया था। हज़ारों किसानों के पहले दिन की यात्रा 26 अप्रैल, बुधवार, दोपहर क़रीब 4 बजे शुरु हुई, पहले दिन के इस मार्च ने अकोले बाज़ार से रामेश्वरम मंदिर, धांडरफल, तहसील संगमनेर तक क़रीब 12 किलोमीटर का सफ़र तय किया और वहीं खुले आसमान के नीचे रात्री विश्राम किया। रात्री विश्राम के बाद एक बार फिर, किसान, अगली सुबह 27 अप्रैल को सुबह 7 बजे, रामेश्वरम मंदिर से खतोड़े लॉन तक क़रीब 10 किलोमीटर के पैदल मार्च पर निकले थे लेकिन इस बीच किसानों की भारी संख्या देख सरकार के हाथ-पांव फूल गए और उन्होंने किसानों से आगे मार्च नहीं करने की अपील की। सरकार ने किसान प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू कर दी है जिसके बाद किसानों ने अपने नेताओं के अगले आदेश तक मार्च रोक दिया है। बता दें कि किसान, मज़दूर और खेत मज़दूर के 32 नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल सरकार के मंत्रियों से बातचीत कर रहा है। हालांकि किसान अभी भी सड़कों पर डटे हुए हैं।

इसे भी पढ़ें : महाराष्ट्र: “ये हमारा अधिकार मार्च है..हमारी विजय होगी”, एक बार फिर किसानों का पैदल मार्च!

बता दें कि पहले दिन की इस लंबी यात्रा के बाद भी किसानों के हौसले में कोई कमी नहीं थी बल्कि विश्राम स्थल पर बेहद खुशनुमा माहौल था। सभी किसान सड़क के दोनों किनारों पर मौजूद खेतों में मिट्टी पर बैठकर बातचीत कर रहे थे क्योंकि रात दस बजे के बाद भी सड़क गर्मी से बिल्कुल तप रही थी और उस तपन से बचने के लिए किसान खेत की मिट्टी में समूह बनाकर बैठे थे।

दूसरे दिन सुबह क़रीब दस बजे अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई। इस बारिश में किसानों ने कहीं पेड़, तो कही मंदिर और उसके सभागार में जगह ली जबकि बाक़ी किसान अपनी गाडियों की तरफ़ दौड़े। हालांकि कुछ समय की बारिश के बाद एकबार फिर सूरज निकला और अपनी गर्मी का भीषण प्रकोप दिखाने लगा।

किसानों के कई समूहों ने अपने आस-पास किसान सभा के लाल झंडे लगाकर एक घेरा सा बना लिया था। जहां एक तरफ़ हम और हमारे जैसे पत्रकार इस यात्रा में कुछ किलोमीटर चलने के बाद ही अपनी ए.सी. गाड़ियों की तरफ़ भागने लगे थे वहीं दूसरी तरफ़ किसान पूरे जोश से अपनी मांगों को लेकर नारेबाज़ी करते हुए लाल झंडे, बैनर और पोस्टर लिए घुमावदार रास्ते से क़रीब 52 किलोमीटर दूर लोनी तक जाते हुए लगभग दस किलोमीटर का सफर तय कर लिया। जबकि किसानों का कहना है कि उनके नेता कहें तो वे एक दिन में ही 40 किलोमीटर की बची हुई यात्रा पूरी कर लेंगे।

इस दौरान किसान पूरी तैयारी के साथ दिखे। अकोले से रवाना होने से पहले प्रदर्शनकारी किसानों ने लकड़ियां जलाकर अस्थाई चूल्हा बनाया और खाना पकाया। हालांकि किसानों के कई समूह अपने साथ गैस-चूल्हा लाए थे। इसी तरह रात में भी अलग-अलग गांव स्तर और ताल्लुका स्तर के समूह बनाए गए और भोजन तैयार किया गया। बुधवार को रात्रि विश्राम की जगह पर कोल्हापुर से आए ऐसे ही एक समूह के संभजी, जो अपने लिए भोजन की तैयारी कर रहे थे, ने बताया कि खाने में दाल, चावल और आलू की सब्जी बनाने का विचार है। बता दें कि इसी स्थान पर सुबह का हल्का नाश्ता करने के बाद किसान एकसाथ बैठे और लोनी की ओर कूच करने के आदेश का इंतजार करने लगे।

संभजी ने बताया कि वो और उनकी तरह बाक़ी किसान अपने साथ राशन और ईंधन का समान लाए हैं। सभी अपना भोजन खुद बनाते और खाते हैं। ये सब पूरे अनुशासन के साथ शांतिपूर्ण ढंग से होता है। हालांकि महाराष्ट्र के इन आदिवासी किसानों के लिए ये इस तरह का कोई पहला मार्च नहीं है वो इससे पहले भी इस तरह के तीन मार्च निकाल चुके हैं। इसलिए वे सभी इस प्रकार के कामों को लेकर अभ्यस्त दिख रहे थे। हर बार सरकार को इनकी मांगों के आगे झुकना पड़ा है। हालांकि किसानों की माने तो सरकार हर बार सड़क पर संघर्ष के दौरान तो इनकी मांग मान लेती है लेकिन कागज़ी कारवाई के समय पर किसानों के साथ छल करती है।

प्रशासन नहीं डिगा सका किसानों का हौसला, पूरी तैयारी से आगे बढ़ते किसान

अहमदनगर ज़िले के अकोले से लोनी तक इस लंबे मार्च को लेकर पुलिस ने धारा-149 का नोटिस जारी कर प्रदर्शनकारियों को अनुमति देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, किसानों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

हाल ही में, महाराष्ट्र भूषण समारोह के दौरान लू लगने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इसे देखते हुए पुलिस ने एहतियात के तौर पर इस मार्च की इजाज़त देने से मना कर दिया था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस और प्रशासन के भारी के दबाव के बाद भी किसान इस भीषण गर्मी में पैदल चलने को आख़िर क्यों तैयार हैं?

इस सवाल पर किसान सभा के राज्य महासचिव अजीत नवले ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, "पुलिस किसानों की दुश्मन नहीं है। वो अपना काम कर रही है। आज सरकार को उन किसानों की चिंता नहीं है जिनकी ज़िंदगी धूप में काम करते निकल जाती है लेकिन उन्हें उनकी फसलों का दाम नहीं मिलता है। गर्मी में किसानों के पसीने की आज कोई कीमत नहीं है। लेकिन हमें उनकी भी चिंता है। इसलिए अपना संघर्ष दिन-रात जारी रखेंगे। अफसरों और मंत्रियों की बैठकों में कोई गंभीरता नहीं है। इसलिए हम सर्वसम्मति से यह मार्च निकाल रहे हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि, "बढ़ते तापमान से उत्पन्न होने वाली चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, आयोजकों ने पीने के पानी, छाया, केवल सुबह-शाम के समय चलने आदि की उपयुक्त व्यवस्था की है।"

इस मार्च में महिलाएं और पुरुष शामिल हैं और लगभग सभी अपने ज़रूरी सामन की पोटली या थैले अपने सिर या कांधे पर रखकर चल रहे हैं।

पत्रकार-कार्यकर्ता पी. साईनाथ ने मार्च करने वाले 15,000 से अधिक किसानों के बीच अकोले में शुरुआती भाषण दिया। इसके बाद दोपहर में डॉ. अशोक धवले, डॉ. अजीत नवले, माकपा के राज्य सचिव उदय नारकर और एआईकेएस के अन्य शीर्ष नेता मार्च में शामिल हुए।

मार्च में किसानों के साथ मज़दूर और महिला संगठन भी आए साथ

किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धवले ने कहा, "ये मार्च सिर्फ़ किसान और किसानी से नहीं जुड़ा बल्कि ग्रामीण समाज में काम करने वाले सभी मेहनतकश लोगों की एकता है। इस मार्च में आंगनवाड़ी , मिड-डे मील कर्मी, आशा वर्कर्स और निर्माण मज़दूर शामिल हैं। क्योंकि ये सभी हमारे भाई-बहन हैं और हमारे लिए काम करते हैं। इसलिए इनकी समस्या भी हमारी समस्या है।

इस मार्च में शामिल होने आई संगीता जो अपने गांव के अन्य सहयोगियों के साथ एक आम के पेड़ के नीचे बैठ कर मार्च चलने का इंतजार रही थीं, उन्होंने बताया, "हमें 6 से 8 घंटे काम करने के बाद केवल 1400 रूपये मासिक मानदेय मिलता है जो एक दिन का 50 रूपये भी नहीं हुआ। इसमें हम अपना घर कैसे चला पाएंगे? 50 रूपये से कम में तो एक किलो चीनी और चायपत्ती भी नहीं मिलती और सरकार हमें इसमें घर चलाने को कह रही है।"

संगीता के साथ आईं अन्य सभी मिड-डे मील कर्मी भी न्यूनतम 15 हज़ार वेतन की मांग को लेकर इस मार्च में शामिल हुईं हैं। मिड-डे मील के इस काम में अधिकांश गरीब, भूमिहीन और अकेली महिलाएं हैं जिनपर परिवार चलाने की ज़िम्मेदारी है। ऐसे में ये गंभीर सवाल है कि इतने कम मानदेय में वो कैसे अपना गुज़ारा करेंगी?

किसान क्यों हैं आंदोलनरत?

नवले ने कहा, "हम किसानों और खेत मज़दूरों को वन भूमि को निहित करने और मालिकाना हक़ देने की बात करते हैं। इसके अलावा हम कपास, दूध, सोयाबीन, अरहर, चना और अन्य उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य की भी मांग करते हैं।”

विदर्भ से आए कई किसानों ने बताया कि उनके यहां की मुख्य फसल में से एक, कपास, के दाम पिछले साल की तुलना में आधे हो गए हैं। बता दें कि आमोल जो पांच एकड़ ज़मीन के एक किसान हैं, उन्होंने इसमें कपास की खेती की थी जोकि सात-आठ महीने में तैयार हुई और क़रीब 10 क्विंटल कपास उगा। इसका बाज़ार भाव 70 हज़ार है जबकि एक एकड़ में फसल की लागत ही 12 हज़ार आ रही है जोकि 5 एकड़ के हिसाब से कुल 60 हज़ार होती है। इसमें उनके और उनके परिवार के तीन अन्य सदस्यों के महीने का मेहनताना शामिल नहीं है। उन्होंने दावा किया कि वे अपनी ज़मीन से साल में केवल एक ही फसल, कपास, ले पाते हैं। वो सवाल करते हुए पूछते हैं, "आप ही बताओ साल की 15 हज़ार की आमदनी में परिवार का गुज़ारा कैसे होगा?

ये सिर्फ़ एक आमोल की ही समस्या नहीं बल्कि इस पूरे क्षेत्र के कपास और सोयाबीन के किसान परेशान हैं।

इन्हीं के साथ इस मार्च में आदिवासी किसान शामिल हुए हैं जो अपने वन भूमि अधिकार के लिए कई दशकों से संघर्ष कर रहे हैं। ये सवाल पिछले कई किसान आंदोलनों के केंद्र में रहा है। हर बार सरकार ने किसानों से वादा किया कि वो उन्हें उनके वन ज़मीन पर अधिकार देगी लेकिन आरोप है कि आज तक कुछ नहीं हुआ है।

एक युवा किसान उमेश जिनका परिवार कई दशकों से वन भूमि पर खेती करता रहा है वो आरोप लगाते हैं कि उन्हें परेशान किया जा रहा है। वो कहते हैं, "सरकारी आदमी हमारी फसल को नष्ट कर देते हैं, हमें मारते भी हैं। इसे बचाने और अपने हक़ के लिए हम इस भीषण गर्मी में क्या...आग के अंगारों पर भी चलने को तैयार हैं।"

इस मार्च में शामिल एडवा की महासचिव मरियम धवले ने कहा, "किसानों के इस मार्च में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं और सबसे अधिक दमन का शिकार अगर कोई है तो वो महिलाएं ही हैं। चाहे वो वन भूमि का सवाल हो या फसल के दाम न मिलने का या फिर मनरेगा में काम नहीं मिलने का, ये सभी सवाल महिलाओं से भी जुड़े हैं। वन अधिकारी जबरन घरों में घुसकर महिलाओं के साथ बदसलूकी और मारपीट करते हैं। जबकि देश की संसद ने उन्हें वन भूमि पर अधिकार देने का कानून पास किया है लेकिन सरकार इसे लागू नहीं कर रही है।”

मांगें नहीं मानी तो अनिश्चितकालीन धरने के लिए तैयार : किसान

किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष उदय नाराकर ने कहा, "पिछले 28 मार्च को लॉन्ग मार्च के बाद सरकार ने हमारी मांग को स्वीकार किया था और इसे लागू करने के लिए एक समिति भी बनाई लेकिन उस समिति के अध्यक्ष राजस्व मंत्री विखे-पाटिल ने कुछ नहीं किया जोकि सरकार की मंशा दिखाता है। इसलिए हमें एकबार फिर संघर्ष का रास्ता अख्तियार करना पड़ा।”

वे आगे कहते हैं, "ये सिर्फ़ वन भूमि का मसला नहीं बल्कि देवस्थान भूमि, वारकस भूमि, गैरान भूमि, राजस्व भूमि, इनाम भूमि, अरिपद भूमि, बेनामी भूमि पर भी सालों से किसानों का कब्ज़ा रहा है लेकिन सरकार उन्हें मालिकाना हक़ देने को तैयार नहीं है। इसके अलावा आंदोलन में सरकार कहती है कि आपकी मांग सही है लेकिन बाद में उन पर हमला करती है और उनके साथ मारपीट की जाती है।”

किसान नेताओं ने ज़ोर देकर कहा कि अगर किसानों की मांगें नहीं मानी गईं, तो वे महाराष्ट्र के लोनी में मंत्री विखे-पाटिल के कार्यालय के पास अनिश्चितकालीन धरना देंगे।

बीते महीने मार्च में भी किसान सभा ने किसानों के मुद्दों को लेकर नासिक ज़िले से मुंबई की ओर एक लॉन्ग मार्च निकाला था। इसमें मुख्यतः प्याज उत्पादकों को सब्सिडी देने, आदिवासियों को उनकी ज़मीन का मालिकाना हक़ देने और कर्ज़माफ़ी करने समेत 14 प्रमुख मांगों को उठाया गया था।

अंदोलन के दबाव में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और वरिष्ठ अधिकारियों ने विधान भवन में किसान सभा के प्रतिनिधिमंडलों से चर्चा की जिसके बाद प्याज सब्सिडी 50 रुपये से बढ़ाकर 350 रुपये कर दी गई। उन्होंने वन भूमि के संबंध में मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों और भारतीय किसान सभा के नेताओं की एक संयुक्त समिति की नियुक्ति की भी घोषणा की। मुख्यमंत्री ने यह बयान विधान सभा में भी दिया। इसके बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया। लेकिन किसान सभा के नेताओं ने उस समय ही कहा था कि ये आंदोलन ख़त्म नहीं बल्कि स्थगित हुआ है अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी तो आंदोलन दोबारा होगा और वही होता दिख रहा है।

इसे भी पढ़ें : महाराष्ट्र: किसानों की बड़ी जीत, आंदोलन स्थगित लेकिन जीत नहीं थी आसान!

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest