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महाराष्ट्र: राज्य की ‘लालपरी’ गई घाटे में, संपत्ति गिरवी रख सरकार बांटेगी वेतन

महाराष्ट्र की जीवन रेखा कही जाने वाली एसटी बसों (लालपरी) को चलाने के लिए कॉर्पोरेशन, डिपो और स्टेशनों को गिरवी रखकर दो हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेगा। दूसरी तरफ, कोरोना लॉकडाउन में राज्य का खजाना खाली हो गया है। इसलिए, सरकार कर्मचारियों को दिवाली से पहले पिछले दो महीने का वेतन देने का आश्वासन दे रही है। 
लालपरी
महाराष्ट्र के राज्य सड़क परिवहन का जाल सघन है। यही वजह है कि एसटी बसों को राज्य की लालपरी या जीवनरेखा जैसे नाम दिए गए हैं। फोटो साभार: सोशल मीडिया

पुणे: महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (एमएसआरटीसी) वेतन और अन्य खर्चों की भरपाई के लिए करीब दो हजार करोड़ रुपये का ऋण लेने जा रहा है। इसके लिए कॉर्पोरशन अपने कुछ डिपो और बस स्टेशनों को गिरवी रखेगा। मौजूदा संकट में कॉर्पोरेशन को अपनी माली हालत से उबरने का यही इकलौता जरिया नजर आ रहा है। फिलहाल कॉर्पोरेशन राज्य सरकार से विशेष निधि हासिल करके या बैंक से ऋण लेकर वित्तीय विपत्ति से बाहर निकलने की कोशिश करेगा। इस बात की पुष्टि खुद राज्य के परिवहन मंत्री और कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष अनिल परब ने की है।

दरअसल, कोरोना वायरस को काबू करने के लिये लगाए गए सख्त लॉकडाउन के दौरान बसें नहीं चलने से स्टेट ट्रांसपोर्ट की आमदनी कई महीनों तक बंद रही है। इससे कॉर्पोरेशन की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती गई। इसलिए अब हालत यह है कि कॉर्पोरेशन के लिए कर्मचारियों के वेतन के साथ दैनिक खर्चों का बोझ उठाना भी मुश्किल हो रहा है। लॉकडाउन से पहले राज्य भर में एसटी की बसें हर दिन औसतन 65 लाख यात्रियों को ढोती थीं। इससे उसे हर दिन करीब 22 करोड़ रुपये की आमदनी होती थी। हालांकि, पिछले दिनों जब कुछ शर्तो के साथ राज्य में एसटी सर्विस फिर बहाल कर दी गई तो परिवहन व्यवस्था के सुचारु ढंग से चलने की उम्मीद जगी। लेकिन, बता दें कि अब एसटी बसों में बैठने वाले यात्रियों की संख्या 65 लाख से 10 लाख पर आ चुकी है। जाहिर है इससे आमदनी पर भी फर्क पड़ा है। अब कॉर्पोरेशन की आमदनी 22 करोड़ रुपये से पांच करोड़ रुपये पहुंच गई है। इससे कॉर्पोरेशन को लॉकडाउन के दौरान यात्रियों से होने वाली आमदनी में 3,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

दो महीने से बिना वेतन कर्मचारी

इसका असर कॉर्पोरेशन में काम करने वाले लाखों एसटी कर्मचारियों पर पड़ा है। नतीजा यह कि पिछली जुलाई से कर्मचारियों के वेतन का मुद्दा अधिक गंभीर हो गया है। हालत इस हद तक खराब हो चुकी है कि इन कर्मचारियों को जुलाई का वेतन अक्टूबर के पहले सप्ताह में मिला। जबकि, अगस्त और सितंबर का वेतन उन्हें अभी तक नहीं मिला है। इस बीच, कॉर्पोरेशन ने राज्य सरकार से धन लेना शुरू कर दिया। वजह यह है कि कॉर्पोरेशन को डीजल, टायर और रखरखाव सहित अन्य कई छोटे खर्च उठाने होते हैं। यहां तक कि कॉरपोरेशन के कर्मचारियों को जुलाई महीने तक का वेतन भी राज्य सरकार के खजाने से ही दिया गया।

घाटे की भरपाई जल्द संभव नहीं

अनिल परब के मुताबिक कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों के लिए अगस्त और सितंबर का वेतन देना और अन्य खर्चों के लिए धन जुटाना एक गंभीर चुनौती है। वे बताते हैं कि इस मुद्दे पर उनकी राज्य सरकार के साथ चर्चा चल रही है। उन्हें यह उम्मीद भी जताई है कि दिवाली से पहले कॉर्पोरेशन सभी कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने में सफल हो जाएगा।

दूसरी तरफ, घाटे की भरपाई अगले कुछ महीनों तक संभव नहीं लग रही है। इस बारे में अनिल परब बताते हैं कि वे आगे सभी कर्मचारियों को हर महीने का वेतन जुटाने और अन्य तमाम खर्चों के लिए वे कर्ज लेने पर विचार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि एसटी कॉर्पोरेशन का नेटवर्क पूरे राज्य में फैला हुआ है और उसका बुनियादी खर्च उठाने के लिए उन्हें कई हजार करोड़ रुपये चाहिए। मौजूदा संकट से उभरने के लिए कम-से-कम दो हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता बताई जा रही है। लेकिन, इतना अधिक कर्ज लेने के लिए कॉर्पोरेशन को अपनी कुछ संपत्ति गिरवी रखनी पड़ेगी। वहीं, इस मुद्दे पर राज्य सरकार के साथ कई स्तरों पर चर्चा चल रही है। उम्मीद की जा रही है कि इस संबंध में जल्दी ही कोई हल निकाल लिया जाए।

मालशेज घाट पर लालपरी। फोटो: शिरीष खरे 

72 साल में पहली बार यह हालत

बता दें कि इस वर्ष 1 जून, 2020 को ग्रामीण महाराष्ट्र की जीवन रेखा कही जाने वाली राज्य परिवहन की लाल बसों के संचालन के 72 साल पूरे हो गए हैं। सार्वजनिक परिवहन सेवा के मामले में महाराष्ट्र देश के अन्य राज्यों के लिए मिसाल है। वहीं, राज्य भर में एसटी की संपत्ति की बात करें तो फिलहाल कॉर्पोरेशन के पास 250 डिपो, 609 बस स्टेशन और 18,600 बसें हैं। इसकी वास्तविक कीमत कुछ हजार करोड़ रुपये आंकी गई है। कहा यह जा रहा है कि इसमें से 2,300 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति की सूची एसटी कॉर्पोरेशन ने बनाई है। इसी सूची के आधार पर कॉर्पोरेशन कर्ज जुटाने के लिए कोशिश करेगा। इसमें एसटी के कई डिपो और बस स्टेशन शामिल हैं।

इस दिवाली किराया बढ़ोतरी नहीं

परिवहन मंत्री और एसटी कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष अनिल परब ने आश्वासन दिया है कि सरकारी बसों से हर दिन लाखों की संख्या में यात्रा करने वाली सवारियों पर इस घाटे का बोझ नहीं डाला जाएगा। उन्होंने बताया है कि हर साल दिवाली पर की जाने वाली किराया बढ़ोतरी भी इस साल नहीं होगी।

वहीं, कॉर्पोरेशन ने कर्मचारियों के वेतन और एसटी के दैनिक खर्च के लिए राज्य सरकार से कुल 3,600 करोड़ रुपये की मांग की। मगर, सरकार के राजस्व में गिरावट के कारण कॉर्पोरेशन सिर्फ सरकार पर निर्भर नहीं है, बल्कि अन्य विकल्पों भी खोज कर रहा है।

दरअसल, कर्मचारियों को वेतन देना कॉर्पोरेशन की पहली प्राथमिकता है। इसके लिए कॉर्पोरेशन को हर महीने 292 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। लेकिन, एसटी की रोजाना होने वाली 22 करोड़ रुपये की आमदनी लॉकआउट के दौरान नहीं होने ने हालात पूरी तरह बदल गए हैं। 

अब ऐसे करेगा कमाई

इस संकट में निगम अपना खजाना भरने के लिए एसटी पेट्रोल पंपों से माल ढुलाई, टायर रिमोल्डिंग, अन्य प्राइवेट वाहनों के लिए डीजल बिक्री आदि उपायों से आय बढ़ाएगा।

दूसरी तरफ, दिवाली नजदीक आते देख वेतन के मुद्दे पर एसटी कर्मचारी संगठन आक्रमक होते जा रहे हैं। इस बारे में सोलापुर एसटी कामगार संगठन के अध्यक्ष संतोष जोशी बताते हैं कि पहले वे विधायक, सांसद और अन्य जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन देकर समस्या का समाधान निकालने की मांग करेंगे। यदि उनकी मांगों को अनसुना किया गया तो 9 नवंबर से एसटी कर्मचारी पूरे परिवार के साथ आंदोलन करेंगे। दरअसल, एसटी कर्मचारियों का कहना है कि सख्त लॉकडाउन के बावजूद उन्होंने आवश्यक वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए युद्ध स्तर पर काम किया और अधिकारियों के निर्देश पर बड़ी संख्या में यात्रियों को एक जिले से दूसरे जिले तक सुरक्षित पहुंचाया। ऐसे में सरकार से उन्हें प्रशंसा मिलनी थी, लेकिन उन्हें डर है कि उलटा उनका हक न छिन जाए।

पांच लाख प्रवासियों को पहुंचाया था घर

महाराष्ट्र में सरकारी राज्य परिवहन की बसों ने मार्च में लॉकडाउन की घोषणा के बाद 44 हजार 106 फेरियां कीं और उत्तर भारतीय राज्यों के करीब पांच लाख प्रवासियों को घर पहुंचाने में मदद की थी। इस दौरान सरकारी बसों ने 153 लाख किलोमीटर की दूरी तय की थी। इस तरह, सार्वजनिक यातायात प्रणाली पर आम जनता का भरोसा मजबूत हुआ था।

विभिन्न राज्यों के लोग अपने-अपने गांवों में सुरक्षित पहुंचें, इसके लिए महाराष्ट्र राज्य परिवहन निगम ने विशेष व्यवस्था की थी। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से 105 करोड़ रुपये भी खर्च किए गए थे। तब औरंगाबाद, मुंबई, पुणे, नागपुर, नासिक और अमरावती बस डिपो से प्रवासियों को उनकी राज्यों के लिए पहुंचाने के लिए राज्य सरकार ने विशेष बसे उपलब्ध कराई थीं।

(शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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