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सुंदरबन में अवैध रिसॉर्ट के मालिक की पहचान नहीं कर पा रही ममता सरकार

पारिस्थितिक रूप से नाजुक सुंदरबन में कथित तौर पर केंद्र प्रायोजित मनरेगा योजना के धन का इस्तेमाल एक अवैध 'इको-टूरिज्म' रिसॉर्ट के निर्माण में किया गया है।
Sunderbans

नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा पारिस्थितिक रूप से नाजुक सुंदरबन क्षेत्र में बने एक अवैध रिसॉर्ट के खिलाफ कठोर कार्रवाई का आदेश देने के लगभग दो महीने बाद भी ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार इसके मालिक की अभी तक पहचान नहीं कर सकी है। दक्षिण 24 परगना जिला प्रशासन ​ने दावा किया कि रिसॉर्ट परियोजना पूरी तरह से केंद्र सरकार के फंड से शुरू की गई है, जबकि स्थानीय पुलिस ने कहा कि इसके मालिक की पहचान के लिए एक जांच चल रही है।

ऐसे में स्वाभाविक रूप से, यह सवाल उठता है कि क्या ममता सरकार इस मामले में किसी व्यक्ति को बचा रही है। 

भारत के समुद्र तट के साथ बुनियादी ढांचे की गतिविधियों को विनियमित करने वाले नियम, जो देश की समृद्ध समुद्री जैव विविधता और इन संसाधनों पर निर्भर स्थानीय समुदायों की आजीविका की रक्षा के लिए बनाए गए हैं, इस परियोजना के निर्माण में खुलेआम धराशायी कर दिए गए थे। दक्षिण 24 परगना जिले के गोसाबा ब्लॉक में ​अमलामेठी हिल रिज़ॉर्ट नामक इस परियोजना की शुरुआत बड़े पैमाने पर मैंग्रोव को साफ करने के बाद की गई थी,जबकि ये मैंग्रोव समुद्री जल के आबादी वाले हिस्से में प्रवेश को रोकने और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के खिलाफ प्राकृतिक अवरोधकों के रूप में कार्य करते हैं। 

कार्यकर्ताओं और स्थानीय राजनीतिक नेताओं ने आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन इस अवैध रिसॉर्ट के मालिक को बचाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि उनका सरकार के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध तो है ही, वे पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी तृणमूल कांग्रेस के एक मजबूत नेता हैं।​​ 

स्थानीय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता पलाश राणा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "​​हमने कई मौकों पर जिला प्रशासन को इस तथ्य से अवगत कराया कि यह परियोजना अवैध है और यह स्थानीय समुदायों के लिए तबाही मचाएगी। अब देखिए कि तटीय गांवों में अब समुद्री जल के फैलने से बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया है। ऐसे भी कई उदाहरण हैं, जहां बाघ मैंग्रोव एवं शिकारियों के प्राकृतिक आवास के बड़े पैमाने पर साफ किए जाने के बाद तटीय बस्तियों में भटक कर आ गए हैं। लेकिन प्रशासन ने उनकी बार-बार की शिकायतों पर न केवल चुप्पी साधे रहा, बल्कि इस परियोजना के निर्माण में भी शामिल था क्योंकि यह तृणमूल कांग्रेस के एक पदाधिकारी की परियोजना थी। 

ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर सरकारी अधिकारियों ने क्षेत्र निरीक्षण किया जिसमें रिसॉर्ट की भव्यता और उसमें विलासिता के सारे इंतजामात का खुलासा हुआ: उसमें कृत्रिम जल निकाय, लकड़ी के सुसज्जित कॉटेज, मानव निर्मित द्वीप और वॉचटावर सारा कुछ बनाया गया है। एक कॉटेज से दूसरे कॉटेज में पर्यटकों के जाने के लिए लकड़ी के 56 पुल भी बनाए गए हैं। चारों तरफ से पानी से घिरे किंतु ऊंचे इलाकों पर गुंबद के आकार के लकड़ी के 19 से अधिक कॉटेज का निर्माण विभिन्न चरणों में किया जा रहा है। पर्यटकों के लिए बिद्या नदी के शानदार दृश्य का आनंद लेने के लिए द्वीपों को कंक्रीट बेसमेंट पर लोहे के खंभे के साथ वॉच टावरों से सुसज्जित किया गया था। इस रिसोर्ट से नदी मुश्किल से 30 फीट की दूरी पर बहती है और यहां से सुंदरबन के मैंग्रोव ​महज 1,200​​ फुट की दूरी पर है। निरीक्षण दल को रिसॉर्ट में एक सक्रिय आरा मिल भी मिली, जिसका उपयोग लकड़ी के लट्ठों को काटने और उसे जरूरत के मुताबिक आकार देने के लिए किया जा रहा था। ये सभी निर्माण पूरी तरह से अवैध थे।

पश्चिम बंगाल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण, जो एक राज्य-स्तरीय शीर्ष निकाय है और जिसे तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा का काम सौंपा गया है,उसने ग्रीन ट्रिब्यूनल को बताया कि रिसॉर्ट तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ-IA) के अंतर्गत आता है,जिसमें मैंग्रोव और मैंग्रोव बफ़र्स और इंटर-ज्वारीय क्षेत्र (CRZ-IB) शामिल हैं। यह क्षेत्र गंभीर रूप से कमजोर तटीय क्षेत्र के दायरे में संवेदनशील तटवर्ती रेखा क्षेत्र में स्थित है और इसलिए यहां इस परियोजना का निर्माण अवैध है। ट्रिब्यूनल की ईस्टर्न जोन बेंच ने 23 दिसम्बर 2021 को जारी अपने एक आदेश में रिजॉर्ट में चल रहे सभी निर्माण कार्यों को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया है। 

​इस अवैध निर्माण के खिलाफ ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर करने वाले दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम के अध्यक्ष, प्रदीप चटर्जी ने कहा "​रिसॉर्ट बनाने के लिए सबसे पहले तो मैंग्रोव की एक बड़ी पट्टी को साफ कर दिया गया। फिर, सरकारी धन का उपयोग करके मड्सफ्लैट्स को ऊंचा किया गया। इसके बाद, उस पर निजी स्वामित्व वाले रिसॉर्ट के निर्माण की गतिविधि शुरू की गई। मत्स्यजीबी फोरम मछली-श्रमिकों की एक ट्रेड यूनियन है। 

यह आरोप लगाया गया था कि सुंदरबन आर्द्रभूमि क्षेत्र में अवैध निर्माण से मछली की तादाद में कमी आई है, जिससे स्थानीय मछली-श्रमिक समुदायों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 

मैंग्रोव को समुद्री जीवन की नर्सरी के रूप में माना जाता है क्योंकि वे न केवल किशोर मछलियों के लिए प्रचुर मात्रा में भोजन (प्लवक के रूप में) प्रदान करते हैं बल्कि बाद में बड़ी प्रजातियों की शिकारी मछलियों से भी उन्हें आश्रय प्रदान करते हैं। सुंदरबन अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्र भूमि पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन के तहत रामसर साइट है, जिसमें भारत भी एक हस्ताक्षरकर्ता है। हालांकि, सुंदरबन में रिसोर्ट के मालिक ने सक्षम अधिकारियों की अनुमति के बिना ही मैंग्रोव के काटने, मिट्टी की निकासी करने, भारी मशीनरी के उपयोग और बुनियादी ढांचे के निर्माण में लगा हुआ था। 

फिर भी, जिला प्रशासन का कहना है कि यह प्रोजेक्ट कोई टूरिज्म रिजॉर्ट नहीं बल्कि 'इको-टूरिज्म' से जुड़ा एक प्रोजेक्ट है। प्रशासन के अधिकारियों ने परियोजना के सामाजिक कल्याण पहलू पर जोर दिया, जिसे स्पष्ट रूप से गोसाबा ब्लॉक की बाली-I ग्राम पंचायत की मंजूरी दी गई है। यह सुनिश्चित किया गया था कि रिसोर्ट अपने तटबंध को मजबूत करके नदी के आसन्न बाढ़ के खतरे से सुरक्षित रहे। इस उद्देश्य के लिए केंद्र प्रायोजित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) अधिनियम 2005 के तहत 'नदी तटबंध संरक्षण' योजना के माध्यम से धन उपलब्ध कराया गया था। इस योजना को ​ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र की तात्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा इस कानून द्वारा अधिनियमित किया गया था। मछली-श्रमिकों की ट्रेड यूनियनों ने यह आरोप लगाया था कि गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए आजीविका उत्पन्न करने के लिए आवंटित धन का इस्तेमाल आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के लिए एक शानदार रिसॉर्ट बनाने के लिए किया गया था। 

लेकिन प्रशासन ने दावा किया कि इस परियोजना ने मनरेगा के तहत स्थानीय लोगों को न केवल ​1.26 लाख मानव दिवस रोजगार दिया था बल्कि उसमें आगे भी आजीविका सृजन की क्षमता थी। स्पष्ट रूप से, यह तर्क न्यायाधिकरण की पीठ के न्यायाधीशों को प्रभावित नहीं कर पाया। 

न्यायमूर्ति बी अमित स्टालेकर और विशेषज्ञ सदस्य सैबल दासगुप्ता की न्यायाधिकरण पीठ ने 23 दिसम्बर 2021 के आदेश में कहा, "​यह आश्चर्य की बात है कि उनकी नाक [दक्षिण 24 परगना जिला मजिस्ट्रेट] के नीचे इतने स्तर पर निर्माण कैसे होने दिया गया और तटीय मैंग्रोव पर्यावरण में क्षरण को कैसे होने दिया गया सिवाय इसके कि इसमें उनकी मौन सहमति है और कानून के उल्लंघनकर्ताओं के साथ उनकी मिलीभगत है। चौदह दिनों में भी [स्थल निरीक्षण की तारीख और ट्रिब्यूनल को रिपोर्ट जमा करने की तारीख के बीच की अवधि] जिला मजिस्ट्रेट ने यह नहीं बताया कि सीआरजेड विनियमों के उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ उनके द्वारा क्या कार्रवाई की गई है। यह स्थिति से निपटने में उनकी तत्परता और अक्षमता की कमी को दर्शाता है। 

पीठ ने आगे कहा, "हम यह भी निर्देश देते हैं कि श्री पी उलगनाथन, जिला मजिस्ट्रेट, दक्षिण 24 परगना के खिलाफ की गई (पीठ की) टिप्पणियां" को उनके सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए। 

16 जनवरी 2022 को जब मामले की सुनवाई के लिए लिया गया था तो जिला प्रशासन ने क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मैंग्रोव वृक्षारोपण अभियान के अलावा सभी निर्माणों को ध्वस्त करके परियोजना स्थल को उसके मूल रूप में बहाल करने सहित कई सुधारात्मक उपाय किए। यह भी आश्वासन दिया गया कि पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने पर बाली-1 ग्राम पंचायत से ट्रिब्यूनल के निर्णय के अनुसार जुर्माना वसूल किया जाएगा। 

इसके बाद क्षेत्र में पौधारोपण अभियान चलाने के लिए रु ​​17.33​​ लाख रुपये स्वीकृत किए गए थे। 

आश्चर्यजनक रूप से, प्रशासन ने रिसॉर्ट के मालिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का कोई उल्लेख नहीं किया, भले ही उसने बरुईपुर के पुलिस अधीक्षक (दक्षिण 24परगना के तहत तीन पुलिस जिलों में से एक) को मार्क करते हुए एक पत्र की प्रति पेश की, जिसमें उसको निर्देश दिया कि स्थल पर सभी निर्माण गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए। 

ट्रिब्यूनल ने 6 जनवरी को कहा,"हालांकि, हम पाते हैं कि इस पत्र में पुलिस अधीक्षक, बरुईपुर पुलिस स्टेशन को परियोजना प्रस्तावक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का कोई निर्देश नहीं है, जो कि खुद जिला मजिस्ट्रेट, दक्षिण 24 परगना की अपनी रिपोर्ट के अनुसार कहा गया है कि पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन कर अमलामेठी हिल रिज़ॉर्ट का निर्माण किया जा रहा था।

पीठ ने 6 जनवरी के अपने आदेश में, इस बात के संज्ञान के लिए कि जिला प्रशासन इस मामले में अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकता, उसने आगे धन शोधन निवारण अधिनियम-2002 के प्रावधानों को लागू कर दिया, जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप से या जानबूझकर पर्यावरण प्रदूषण फैलाने के काम में सहायता कर रहा है, तो वह भी उल्लंघनकर्ता को अवैध वित्तीय लाभ पहुंचाने के लिए उत्तरदायी होगा। ट्रिब्यूनल द्वारा क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षति का आकलन करने और उल्लंघनकर्ता द्वारा भुगतान की जाने वाली मुआवजे की राशि का निर्धारण करने के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल का गठन किया गया है। 

लेकिन मामले की अंतिम सुनवाई के एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उल्लंघन करने वाले का पता लगाया जाना बाकी है।

गोसाबा के खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) बिश्वनाथ चौधरी ने न्यूज़क्लिक को बताया ​"​​ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों का पालन करते हुए, परियोजना स्थल पर लगभग 90 फीसदी निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया है। यह एक पहाड़ी सैरगाह नहीं है, जैसा कि आम बोलचाल में बताया जा रहा है, बल्कि एक ईको-पर्यटन परियोजना है। बाली-I ग्राम पंचायत की सहमति से परियोजना में मनरेगा के तहत काम किए गए थे। इस पर लगभग रु ​​30​ करोड़​ रुपये खर्च किए गए हैं। परियोजना के लिए विभिन्न निर्माण कार्यों को करने के लिए एक निविदा प्रक्रिया के माध्यम से कई एजेंसियों का चयन किया गया था।” 

संपर्क करने पर, मनरेगा कानूनों के विशेषज्ञ निखिल डे ने बताया कि इस अधिनियम के तहत दर्ज 265 मान्य गतिविधियों में कोई एक होटल या रिसॉर्ट परियोजना बनाना शामिल नहीं है। उन्होंने कहा कि "​​ज्यादा से ज्यादा यह संभव है कि मनरेगा जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं के धन के कन्वर्जेंस से इस तरह की कोई एक परियोजना शुरू की जा सकती है। लेकिन कोई भी टिप्पणी करने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को देखने की जरूरत है।

बार-बार कॉल और टेक्स्ट मैसेज के बावजूद दक्षिण 24 परगना के जिलाधिकारी पी उलगनाथन और पुलिस अधीक्षक वैभव तिवारी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। 

​गोसाबा पुलिस स्टेशन के एसएचओ सोमेन बिस्वास ने कहा कि "​​रिसॉर्ट के परियोजना प्रस्तावक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसके मालिक की पहचान करने के लिए एक जांच चल रही है। 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/Mamata-Banerjee-Govt-Identifying-Owner-Illegal-Resort-Sunderbans

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