लॉकडाउन से परेशान आम उत्पादक अब मौसम की मार झेल रहे हैं!
“कोरोना के चक्कर में पहले ही फसलों का नाश हो गया है, अब रही-सही उम्मीद आम पर टिकी थी, वो भी आंधी और बारिश में टूट गई। इस साल हम क्या खाएंगे और क्या बचाएंगे?”
ये मायूसी भरी बातें लखनऊ के मलिहाबाद फलपट्टी के बागवान काशीनाथ की हैं। काशीनाथ अपने आमों को जमीन पर जहां-तहां गिरा देख निराश हैं। उनका कहना है कि लॉकडाउन के चलते सब्जियों की खेती तो पहले ही बर्बाद हो गई है। अब बीते 10 दिनों में तीसरी बार आई आंधी-बारिश ने आम का भी बुरा हाल कर दिया है। उनके अनुसार अभी तक लगभग 50 फीसदी आम की फसल बर्बाद हो चुकी है।
लॉकडाउन के चलते किसान पहले ही परेशान हैं। ऐसे में रविवार, 10 मई को उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आई आंधी-बारिश ने बागवानों की मुसीबत भी बढ़ा दी है। कई जगह कच्ची अंबियां पेड़ों से टूट कर बिखर गई हैं तो वहीं कई इलाकों में आंधी से पेड़ ही गिर गए हैं।
बागवानों की चिंता है कि लॉकडाउन और खराब मौसम के कारण पहले ही आम के पैदावार में कमी देखने को मिल रही है। ऐसे में अगर आने वाले दिनों में जल्द ही हालात नहीं सुधरे, पैकेजिंग व ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिली तो विदेश तो दूर देश के अन्य राज्यों में भी शायद आम नहीं पहुंच पाएगा। जिसका सीधा असर उनकी कमाई पर पड़ेगा।
रहीमाबाद फलपट्टी के बागवान कासिफ बताते हैं, “इस साल बौर तो अच्छा आया था लेकिन लॉकडाउन के कारण समय से मजदूर ही नहीं मिले, जिसके चलते सही समय पर बागों में कीटनाशक का छिड़काव नहीं हो सका। आधी फसल कीड़ों ने बर्बाद कर दी और फिर रही सही कसर मौसम की खराबी ने पूरी कर दी। तेज आंधी और बारिश के चलते हमारी आधे से ज़्यादा फसल बर्बाद हो चुकी है।”
एक अन्य बाग मालिक रविकांत कहते हैं, “हमारी फसल का तो बीमा भी नहीं है। अब हम क्या करेंगे? सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए। शुरुआत में जब कीटनाशक की जरूरत थी तब लॉकडाउन में दुकाने बंद हो गईं, जिसके चलते छिड़काव नहीं हो पाया और बाद में जब सरकार ने कीटनाशक और बीज खरीदने के लिए छूट दी, तब तक काफी देर हो चुकी थी। अब इसमें हमारी क्या गलती है?”
बता दें कि पूरे देश में सालाना लगभग 2. 2 करोड टन आम का उत्पादन होता है। जिसमें से 23 फीसदी आम का उत्पादन उत्तर प्रदेश की 15 मैंगों बेल्ट में होता है। इस बेल्ट में लखनऊ का मलिहाबाद, बाराबंकी, प्रतापगढ़, उन्नाव का हसनगंज, हरदोई का शाहाबाद,सहारनपुर, मेरठ तथा बुलंदशहर शामिल हैं।
राजधानी लखनऊ के पास स्थित मलिहाबाद के दशहरी आम की कई देशों में काफी मांग रहती है। लखनवी दशहरी आम, अमेरिका, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, बहरीन, सिंगापुर, ब्रिटेन,बांग्लादेश, नेपाल तथा पश्चिम एशिया के लगभग सभी देशों में निर्यात होता है। पिछले साल करीब 45 हजार मीट्रिक टन आम निर्यात हुआ था। आम उत्पादकों का संगठन मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन आफ इंडिया का कहना है कि अगर लॉकडाउन लम्बा खिंचा तो आम मंडियों तक नहीं पहुंच पाएगा। तब या तो वह डाल पर ही सड़ जाएगा, या फिर कौड़ियों के भाव बिकेगा।
मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष इंसराम अली ने लॉकडाउन के कारण उपजी स्थितियों पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए सरकार से मांग की कि वह गेहूं और धान की तरह आम का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर उसे खरीदे ताकि आम के उत्पादकों को बरबाद होने से बचाया जा सके।
उन्होंने बताया कि बिजली की कमी और लॉकडाउन के कारण मजदूर न मिलने की वजह से आम की सिंचाई नहीं हो पायी। पूर्ण बंदी की वजह से आम को सुरक्षित रखने के लिये पेटियां बनाने वाली फैक्ट्रियां भी बंद हैं। ऐसे में जब एक जिले से दूसरे जिले तक में आम पहुंचाना मुमकिन नहीं है, तो दूसरे देशों में उसका निर्यात करना दूर की बात है।
जहां लखनऊ में दशहरी के बुरे हाल हैं तो वहीं कोंकण में 'आमों का राजा' कहे जाने वाले अलफांसो पर भी मुसीबत कम नहीं है। लॉकडाउन की वजह से अलफांसो आम के दाम लगभग 25 से 30 फ़ीसदी गिर गए हैं। बाज़ार और रास्ते बंद पड़े हैं, ग़रीब किसान अपने आमों की मार्केटिंग नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा उन्हें, जो रेट मिल रहा है उसी पर बेच रहे हैं।
कोंकण के आम किसान राजू साल्वे कहते हैं, “बेमौसम बारिश के चलते पहले ही अलफांसो का सीजन लेट हो गया है। अब जब आम से पेड़ लदे हुए हैं तो लॉकडाउन लागू है। हमें डर है कि ये खेप कहीं ऐसे ही सड़ न जाए। हम चाहते हैं कि सरकार हमारी मदद के कुछ नियमों में छूट दे। क्योंकि इस वक्त बड़े शहरों के सभी बाज़ार बंद हैं या थोड़ा-बहुत खुल रहे हैं। ऐसे में रेगुलर डिलीवरी सिस्टम के ज़रिये इन बाजारों में आम नहीं पहुंचाए जा सकते। हम लोकल मार्केट में ही आधे-पौने दामों मपर बेचने को मज़बूर हैं।
महाराष्ट्र किसान मैंगो कल्टीवेटर्स यूनियन ने मांग की है कि इस बार राज्य परिवहन निगम (स्टेट बसों) की बसों से आम ढोने की इजाज़त दी जाए। इन बसों को अलग-अलग बाज़ारों में भेजा जाए ताकि किसान अपने आम बेच सकें।
यूनियन के अध्यक्ष चंद्रकांत मोकाल कहते हैं, " लॉकडाउन की वजह से आम किसान बहुत परेशान हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है, आम की इस ज़बरदस्त पैदावार को लेकर जाएं तो जाएं कहां? इसलिए हमने स्टेट बसों से आम ढुलाई की मांग की है। इसी तरीके से किसानों के आम बिक पाएंगे और उन्हें पैसा मिल पाएगा।"
आम उत्पादकों के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती डिस्ट्रीब्यूशन की है। जिसे हल करने के महाराष्ट्र स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन भी आम ख़रीदने के लिए किसानों से सीधे संपर्क साध रहा है। ई-मेल, वॉट्सऐप और ऑनलाइन ऑर्डर लिए जा रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन की वजह से यह सभी तरीके ज्यादा कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं।
मालूम हो कि कोंकण इलाके में हर साल आम की 2.75 लाख टन पैदावार होती है। इनमें से छह हज़ार टन आम निर्यात कर दिए जाते हैं। भारत से आम के निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 13 से 15 फ़ीसदी तक है।
गौरतलब है कि कोरोना लॉकडाउन के चलते दुनियाभर में आर्थिक मंदी का दौर जारी है। लगभग सभी सेक्टर में काम करने वाले लोगों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ऐसे में बीमारी के संक्रमण के चलते तमाम देशों में व्यापार और एक्सपोर्ट का कार्यक्रम लगभग रुक सा गया है। अब इसकी चपेट में मौसमी फल आम भी आ गया है। तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार जहां बीमारी से पार पाने में लाचार नज़र आ रही है तो वहीं मौसम की मार झेल रहे आम उत्पादक सरकार की ओर मदद की आस लगाए बैठे हैं।
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