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गुजरात में रहने वाले सिख किसान मोदी और भाजपा से ख़फ़ा क्यों?

गुजरात के सिख किसानों की मुसीबत उस नीति के कारण है जिसके चलते उनके ऊपर ज़मीन का अधिकार खो देने का ख़तरा मंडरा रहा है।
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कच्छ के किसान। तस्वीर: साभार सोशल मीडिया

गुजरात में चुनाव प्रचार का पहला दौर खत्म हो चुका है। दोबारा सत्ता में आकर अपने 27 साल के शासन की आयु लंबी करने के लिए भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के लोगों से तरह-तरह के लोक लुभावन वायदे कर रहे हैं, वहीं गुजरात के कच्छ इलाके में बसने वाले सिख किसान मोदी और भाजपा से पूरी तरह नाराज़ नज़र आ रहे हैं। इस इलाके में पहले दौर में पहली दिसंबर को वोट डाले जाएंगे।  

गुजरात के सिख किसानों की मुसीबत उस नीति के कारण है जिसके चलते उनके ऊपर ज़मीन का अधिकार खो देने का खतरा मंडरा रहा है। इन किसानों ने खुल कर अपनी तकलीफें सामने रखी हैं। इनका कहना है कि मोदी ने न सिर्फ उन्हें बर्बाद किया है बल्कि बीजेपी के स्थानीय नेता उनके घरों पर हमले करवाते रहे हैं और यहां से चले जाने की धमकियां देते रहे हैं।

ज्ञात रहे कि सन 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सरहदी क्षेत्र को बसाने व सुरक्षित बनाने के लिए दूसरे राज्यों से किसानों को बुला कर उन्हें कच्छ-भुज के इलाके में बंजर जमीनें बहुत सस्ते दामों पर अलॉट की थीं। इनमें से बड़ी संख्या पंजाबी सिख किसानों की थी। कच्छ में दूसरे राज्यों के 550 किसानों को ज़मीन अलॉट की गई जिनमें से 390 सिख किसान थे। इन किसानों ने अपनी मेहनत से बंजर जमीनों को उपजाऊ बनाया, यहां ट्यूबवेल लगाए और फिर अमेरिकी कपास की बढ़िया फसल होने लगी। इसके बाद यहां फैक्टरियां भी लगाई गईं। 1973 में कांग्रेस सरकार ने 1958 के बॉम्बे अभिधृति और कृषि भूमि (विदर्भ क्षेत्र और कच्छ क्षेत्र) अधिनियम (जो कि गैर-काश्तकारों को जमीन खरीदने से रोकता है) के आधार पर एक सर्कुलर जारी कर नियम बना दिया कि गुजरात के बाहर के लोग गुजरात में जमीन के मालिक नहीं बन सकते।

सन 2010 में गुजरात की मोदी सरकार ने इस सर्कुलर की आड़ में यह फरमान जारी किया कि कच्छ में बसे सिख किसान जमीन के मालिक नहीं हो सकते। अक्टूबर 2010 में कच्छ के कलेक्टर ने इसी सर्कुलर का हवाला दे कर 700 से अधिक पंजाबी किसानों को नोटिस भेज कर कहा कि उनकी जमीनें फ्रीज कर दी गईं। अब न तो ये किसान जमीन बेच सकते हैं, न खरीद सकते हैं और न इन जमीनों पर कोई लोन ले सकते। इन किसानों को चिंता है कि अगर कल इनकी जमीन का अधिग्रहण भी होता है, तो उन्हें इसका मुआवजा नहीं मिलेगा।

2011 में किसानों ने गुजरात उच्च अदालत में याचिका डाली और किसान केस जीत गए। इस फैसले के खिलाफ मोदी सरकार ने अदालत से स्टे मांगा पर कोर्ट ने स्टे लगाने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट का फैसला लागू करने की बजाय मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी स्टे नहीं दिया और मामला मार्च 2015 से ऑन आर्डर लंबित है।

कच्छ के सिख किसानों ने इस रिपोर्टर को बताया कि कोर्ट में मामला लंबित होने का बहाना बनाकर अधिकारी हमारी जमीनों का इंतकाल (भूमि रिकार्ड में मालिक का नाम दर्ज करना) भी नहीं कर रहे।

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जमीनें छीने जाने के डर से बहुत से सिख किसानों ने कच्छ छोड़कर पंजाब में बसना शुरू कर दिया है। किसान राज सिंह भी उनमें से एक हैं। वह बताते हैं कि कच्छ जिला में उनके और उनके भाइयों के नाम 150 एकड़ जमीन थी जिसमें से 40 एकड़ फ्रीज हो गई। उन्हें आर्थिक तौर पर काफी नुकसान हुआ जिस कारण वे पंजाब के डबवाली आकर बस गए। एक और किसान बिक्कर सिंह बताते हैं, “मोदी के मुख्यमंत्री होते साल 2012 में बड़े स्तर पर पंजाबी किसानों की जमीनें फ्रीज की गईं। अहमदाबाद से भेजे गए अधिकारियों द्वारा तैयार की गई सूचियों में “सिंह” व “कौर” के नामों वाले व्यक्तियों की सूची बहुत लंबी थी जिन्हें गैर-प्रांतीय कहकर अपनी ही जमीन से बेगाना कर दिया गया। पिछले कुछ सालों से बड़ी संख्या में यहां बसे किसानों ने पंजाब की ओर पलायन शुरू किया है”

पंजाब से 2010 में कच्छ गए किसान हरजिंदर सिंह का कहना है, “मैं नरेंद्र मोदी साहब की वाइब्रेंट गुजरात स्कीम से प्रभावित होकर गुजरात गया था लेकिन मेरी हालत यह हो गई थी कि मुझे ट्यूबवेल कनेक्शन का बिल देना मुश्किल हो गया। जब 2010 में मैं वहां पहुंचा तो मुझे सबसे बड़ा धक्का तब लगा जब मेरी जमीन की रजिस्ट्री तो हो गई लेकिन इंतकाल करने से मना कर दिया गया। मुझे कहा गया कि आप बाहरी राज्य से हो। वहां डीजल और पेट्रोल बहुत महंगा है। वहां पंजाब की तरह कोई मंडी सिस्टम नहीं है। गेहूं का मूल्य पंजाब के मुकाबले बहुत कम मिलता है। लगातार नुकसान होता देख मुझे पंजाब लौटना पड़ा।”

कच्छ के सिख किसानों के नेता सुरिंदर सिंह भुल्लर कहते हैं कि “मोदी ने किसान आंदोलन के समय गुजरात के सिख किसानों के हमदर्द होने का नाटक किया था, अगर वह हमारे हमदर्द होते तो मामला सुप्रीम कोर्ट में लेकर ही न जाते।” एक और गुजराती सिख किसान पिरथी सिंह कहते हैं, “इस इलाके में औद्योगिक विकास व बंदरगाह की नजदीकी ने कॉरपोरेट और रियल एस्टेट में जमीन हासिल करने का लालच बढ़ा दिया है। मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते पहले ही जमीन का बड़ा हिस्सा अडानी-अंबानी जैसे बड़े पूंजीपतियों को दे दिया है, अब हमारी जमीनों पर भी उसकी आंख है।”

मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते बीजेपी के स्थानीय नेताओं द्वारा सिख किसानों को डराने-धमकियां देने और हमले करने के मामले भी सामने आए हैं। 2013 में कच्छ जिला की भुज तहसील के लोरिया गांव के जसविंदर सिंह नाम के किसान पर हमला हुआ था। जसविंदर सिंह के परिवार को 1965 में 22 एकड़ जमीन अलॉट हुई थी पर बीजेपी के स्थानीय नेता हठूबा भाई जडेजा और उसके रिश्तेदारों ने 2011 में धोखे से उनकी जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली। 8 अक्टूबर 2013 को 50 के करीब हथियारबंद लोगों ने जसविंदर सिंह व उसके भाई पर हमला कर दिया। इस मामले में पुलिस ने 12 लोगों को हिरासत में लिया लेकिन बाद में बीजेपी सरकार के मंत्री वासनवाई के दबाव में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

14 नवंबर 2013 को फिर जसविंदर सिंह के भाई अमन सिंह को एक मामले में हवालात में बंद कर दिया गया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष अजैब सिंह के दखल पर अमन सिंह रिहा हुए। अमन सिंह का मानना है कि यह सब बीजेपी के एक रसूखदार नेता के इशारे पर हुआ था। एक और सिख किसान कश्मीर सिंह का कहना है बीजेपी के नेता सिखों को यहां से डरा धमका कर निकालना चाहते हैं ताकि वे उनकी जमीनों पर कब्जा कर लें। 2013 में ही लछमन सिंह नामक किसान जब पंजाब अपने रिश्तेदारों के पास आया हुआ था तो उसकी चार एकड़ जमीन पर एक रसूखदार के कब्जा कर लिया था।

किसान हरनाम सिंह के साथ इससे भी बुरा हुआ। जब वह पंजाब आए हुए थे तो बीजेपी के एक स्थानीय नेता ने उनके नाम वाले एक अन्य व्यक्ति को खड़ा करके उनकी जमीन अपने नाम करवा ली। उसके बाद बीजेपी के नेताओं द्वारा हरनाम के परिवार पर लगातार हमले किए गए।

कच्छ के किसान नेता लछमन सिंह बराड़ का कहना है, “एक तरफ तो मोदी कश्मीर से धारा 370 खत्म करके कहते हैं कि अब देश का नागरिक कहीं भी अपनी जमीन खरीद सकता है और कश्मीर का भारत के साथ रिश्ता और मजबूत हो गया है पर मैं मोदी साहब को पूछना चाहता हूं कि कच्छ के पंजाबी किसानों पर लगाई गई धारा 370 कब खत्म की जाएगी?”

इस साल जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष कच्छ पहुंचे तो उन्होंने गुजरात के सिखों को उनका मसला हल करने का भरोसा दिया था। इस चुनाव में भी भाजपा नेता चुनाव के बाद सिख किसानों का मसला हल करने का भरोसा दे रहे हैं पर सिख किसानों को उनके दिए आश्वासन पर यकीन नहीं है क्योंकि भाजपा सरकार ने उनका भरोसा कई बार तोड़ा है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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