Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मणिपुर: दिहाड़ी मज़दूर मुश्किल में, राहत और पुनर्वास का कोई इंतज़ाम नहीं

मुख्यमंत्री बीरेन सिंह तीन मई से बिल्कुल ख़ामोश हैं; कर्नाटक चुनाव के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी अभी तक राज्य में चल रही हिंसा से किनारा करते रहे हैं।
Manipur Daily Wage Workers

मणिपुर के हिंसा प्रभावित इलाके के लोग, असम के कछार जिले में स्थापित राहत शिविर कैंप में शरण लेते हुए। छवि सौजन्य: पीटीआई

नागरिक समाज के महत्वपूर्ण हिस्से और यूनियन से संघबद्ध वेतन भोगी मेहनतकश तबका इस बात से दुखी है कि मणिपुर में गहरे जातीय विभाजन तथा व्यापक हिंसा को चलते लगभग दो सप्ताह हो गए हैं, लेकिन अब तक राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने पीड़ितों के लिए व्यापक राहत और पुनर्वास पैकेज की घोषणा नहीं की है।

प्रशासन की ओर से केवल हल्के-फुल्के प्रयास किए गए हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह बेशक अधिकारियों और राजनीतिक दलों और ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर चुके हैं। फिर भी, आश्चर्य और पीड़ा की बात यह है कि, उन्होंने 3 मई से चुप्पी साध रखी है, यह वह दिन था जब हिंसा भड़की थी, तेजी से फैल गई थी, और अभी तक पूरी तरह से नियंत्रित नहीं की जा सकी है।

जैसा कि कई घट्नाक्रमों से पता चला है कि, अबी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर्नाटक में चुनाव प्रचार में व्यस्त थे। हालांकि, अमित शाह पश्चिम बंगाल में पार्टी मामलों पर भी ध्यान दे रहे थे; इसलिए, लगता दोनों ने मणिपुरियों से राज्य में शांति बहाल करने की अपील करने से परहेज किया है।

मोदी और शाह की चुप्पी ने नागरिक समाज के वर्गों, जिनमें सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं, को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या उन्होंने मुख्यमंत्री को ऐसा कुछ "निर्देश" दिया है कि वे सार्वजनिक रूप से कुछ भी न कहें और फिलहाल चुप रहें।

इस संदर्भ में, जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्य पाल मलिक के उस खुलासे की याद ताज़ा कर दी जिसमें उन्होने कहा था कि फरवरी 2019 में पुलवामा त्रासदी को कैसे टाला जा सकता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें चुप रहने की सलाह दी थी। केवल इस रविवार, 14 मई की शाम को, शाह ने मुख्यमंत्री को चार अन्य मंत्रियों के साथ सोमवार को जायजा लेने के लिए बैठक में नई दिल्ली आने के लिए कहा था।

पूर्व-नौकरशाहों ने स्थिति से निपटने में राज्य प्रशासन के तौर तरीकों को "घृणित और मनोबल गिराने वाला" कहा है, उनके मानना है कि, "गंभीर जातीय विभाजन के सबूत होने के बावजूद ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने में सरकारी तंत्र की विफलता का परिणाम है।"

एक वरिष्ठ पूर्व आईएएस अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जमीनी हकीकत ने 'विकास' के नाम पर राज्य को लाभ पहुंचाने के भाजपा के दावे का भंडाफोड़ कर दिया है, एक वरिष्ठ पूर्व आईएएस ने न्यूज़क्लिक को बताया कि व्यापक राहत और पुनर्वास पैकेज के बारे में किसी भी किस्म की घोषणा में देरी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। 

भारत की कम्युनिस्ट  पार्टी (मार्क्सवादी) की राज्य सचिव के॰ सांता, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने शुक्रवार, 12 मई को हुई मुख्यमंत्री की बैठक में सुझाव दिया था कि, बड़ी संख्या में लोगों को बचाने के लिए तुरंत एक अभियान चलाया जाना चाहिए, खासतौर पर "जिन्हे अपनी जान बचाने कि लिए छिपना पड़ रहा है, क्योंकि उनके घर जला दिए गए हैं और वे अब भूखे मर रहे हैं।"

यह पूछे जाने पर कि मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया क्या थी, सांता ने कहा कि, "उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, और वे चुप रहे।"

सांता ने शिविरों में राहत सामग्री के संगठित वितरण और "हर पीड़ित के लिए 6,000 रुपये की नकद सहायता की मांग की, खासकर उनके लिए जिनके पास अब कुछ भी नहीं बचा है"।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की मणिपुर इकाई के प्रमुख, एल सोनितकुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सेना की तैनाती के बावजूद, हुई मौतों और विनाश ने प्रशासन में लोगों के विश्वास को हिला दिया है।

सीबीएम जो एक प्रकार आर्थिक पैकेज है, उसकी घोषणा की जाए और नागरिक समाज, विपक्षी राजनीतिक दलों और गैर सरकारी संगठनों की मदद से इसे लागू किया जाए। 

सोनितकुमार ने कहा कि, "दुर्भाग्य से, प्रशासन ने विद्रोही आदिवासी संगठनों को एक मार्च निकालने की अनुमति दी, लेकिन हमें एक बैठक भी आयोजित करने की अनुमति नहीं दी गई, जिसके ज़रिए हमने शांति की अपील करने की योजना बनाई थी।"

ऑल-मणिपुर एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष एस॰ नीलकमल के अनुसार, कृषि श्रम के लिए, पिछले पांच साल काफी कठिन रहे हैं। 

2017 में, खेतिहर मजदूर व्यापक बाढ़ से पीड़ित हुए थे, और इससे पहले कि वे आर्थिक रूप से सर उठा पाते कोविड-19 ने लंबे समय तक उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाया।"

नीलकमल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "नाबार्ड की पुनर्वित्त योजना के तहत अपने किसान क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करके सहकारी बैंकों से हासिल ऋण पर ब्याज भुगतान से छूट देने का हमारा बार-बार अनुरोध अनसुना कर दिया गया है। सहकारिता विभाग इस मामले में लाचारी की दलील देता है।"

ऑल मणिपुर पंचायती राज वर्कर्स यूनियन के महासचिव, ख ब्रोजेंड्रो ने बताया कि 100-दिवसीय नौकरी योजना के तहत मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है और "उन्हे पूरा संदेह है कि इस उद्देश्य के लिए नई दिल्ली से प्राप्त धन को अन्य योजनाओं में डायवर्ट किया गया है।"

ब्रॉजेंड्रो ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कर्फ्यू की लंबी अवधि - दोपहर 12 बजे से अगले दिन सुबह 5 बजे तक - ने मज़दूरी करने वालों को कड़ी चोट दी है।

उपरोक्त से सहमति जताते हुए इंटक की राज्य इकाई के प्रमुख वाई राणा प्रताप ने कहा कि, "इतने सारे लोगों के चेहरे पर दुख और निराशा साफ झलक रही है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि अधिकारी हिंसा के पैमाने से हैरान थे।"

प्रताप के मुताबिक, भाजपा की आंतरिक टकराव हालात को और बिगाड़ दिया है। 

सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और तीन समाचार पत्रों में स्तंभकार, राज कुमार निमाई ने "आंतरिक रूप से विस्थापित" को तत्काल राहत देने की गुहार लगाई है।

उनके मुताबिक विस्थापित लोगों की संख्या आसानी 50,000 के आसपास हो सकती है। उनके विचार में, प्राथमिकता जरूरत "उन पीड़ित लोगों के लिए एक पुनर्वास पैकेज देना जरूरी है, जिन्होंने आगजनी में अपना सब कुछ खो दिया है जो दिनों तक अनियंत्रित रही।"

17 घंटे के कर्फ्यू के कारण कई लोगों के लिए कमाई का दायरा सिकुड़ गया है और सरकार को इस वास्तविकता को पहचानना चाहिए।

पहले से ही, मनरेगा कार्ड धारकों को दो साल से वेतन नहीं मिला है। निमाई ने न्यूज़क्लिक को बताया कि प्रभावितों तक राहत पहुँचाने के काम में तेजी लाने के लिए प्रशासन को नागरिक समाज के सदस्यों और गैर-सरकारी संगठनों को शामिल करना चाहिए, जहाँ भी संभव हो, कार्य में भागीदारी को व्यापक बनाना चाहिए।

मोरेह की स्थिति

भारत और म्यांमार के बीच इस एकीकृत चेक पोस्ट के माध्यम से आधिकारिक व्यापार फरवरी 2021 की शुरुआत में म्यांमार में सैन्य दाखल और इससे पहले अंतरराष्ट्रीय सीमा और आसपास के क्षेत्रों इलाकों विनाशकारी कोविड-19 के कारण कम हो गया था। 

यदि आधिकारिक व्यापार वास्तव में 'शून्य' है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि कोई गतिविधि नहीं है। भारतीय अधिकारियों द्वारा निगरानी के बावजूद, 'अनौपचारिक' व्यापार यानि दवाओं, नशीले पदार्थों और 'अन्य वस्तुओं' में चल रहा है। जानकार लोगों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह सब भारतीय अधिकारियों की जानकारी में है।

मोरेह में तमिल संगम और बॉर्डर ट्रेड एंड चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष वी शेखर के अनुसार, 300 परिवारों के करीब 3,000 तमिल भाषी लोग हैं, जो 'बर्मा' से आते हैं और खुद को व्यापारिक गतिविधियों में व्यस्त रखते हैं।

तमिलनाडु के कई छात्र मणिपुर और राजधानी इंफाल सहित विभिन्न स्थानों पर मेडिकल का अध्ययन कर रहे हैं। शेखर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि लगभग 50 प्रशिक्षित तमिल भाषी डॉक्टर अलग-अलग अस्पतालों में सेवा दे रहे हैं। उनका इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस है। वे  नियमित अंतराल पर चेन्नई का दौरा करते हैं।

उन्होंने कहा कि, "तमिल संगम के अध्यक्ष के रूप में मुझे तमिल समुदाय के हितों का ध्यान रखना है।"

दूसरी पीढ़ी के तमिल भाषी क्षेत्र के निवासी थॉमस माइकल ने भी मोरेह आईसीपी के माध्यम से आधिकारिक व्यापार में गतिरोध की पुष्टि की है। माइकल तेंग्नौपाल, जिले की बाल कल्याण समिति के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुए है, जिसका मोरेह शहर एक हिस्सा है।

(लेखक कोलकाता स्थित वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest