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मणिपुर के मुसलमान राज्य की सलामती चाहते हैं लेकिन तबाही के लिए जवाबदेही की भी मांग करते हैं

यूनाइटेड मैतेई-पंगल समिति ने कहा है कि वे राज्य में शांति और अखंडता की रक्षा चाहते हैं और साथ ही उन्होंने असामाजिक तत्वों के ख़ात्मे पर ज़ोर दिया है।
Manipur-Muslims
प्रतीकात्मक तस्वीर। Freepik

कोलकाता: संघर्षग्रस्त मणिपुर के मुसलमान अपनी अखंडता को हर कीमत पर संरक्षित और सुरक्षित रखना चाहते हैं। मुस्लिम संगठनों ने नरेंद्र मोदी और एन बीरेन सिंह सरकारों को दिए गए ज्ञापन में जल्द से जल्द सामान्य स्थिति बहाल करने पर जोर दिया गया है।

वहीं, मणिपुर के मुसलमानों, जिन्हें स्थानीय तौर पर मैतेई-पंगल के नाम से जाना जाता है, ने लंबे समय से चले आ रहे जातीय संघर्ष के कारण हुई तबाही के लिए जवाबदेही की भी मांग की है।

समुदाय के नेता, जो "बिगड़े हालात, असामान्य परिस्थितियों का शिकार रहे हैं और उन्हे हालात को असहाय दर्शकों की तरह सहना पड़ा है। 

उन्होंने इस रिपोर्टर को बताया कि उन्होंने युद्धरत मेइतेई और कुकियों को शत्रुता समाप्त करने और जल्द से जल्द सामान्य स्थिति में लौटने के लिए संदेश देने के लिए "उनके पास उपलब्ध संचार के हर चैनल का इस्तेमाल किया है"।

मणिपुर में जातीय हिंसा के दो महीने बाद, यूनाइटेड मैतेई-पंगल कमेटी (यूएमपीसी) मणिपुर के बैनर तले मुस्लिम नागरिक समाज संगठनों ने 1 जुलाई को तीन उद्देश्यों की घोषणा की: शांति वापस लाना, मणिपुर की अखंडता की रक्षा करना और असामाजिक तत्वों को खत्म करना। 

समिति स्थिति का जायजा लेने और कार्य योजनाएं तैयार करने के लिए नियमित रूप से बैठक कर रही है। समिति के प्रवक्ता मोहम्मद रईस अहमद के अनुसार, अपने नवीनतम आकलन में, यूएमपीसी ने पाया कि हिंसा में कुछ हद तक कमी आई है।

खुद को “जिम्मेदार और जवाबदेह नागरिक” बताते हुए अहमद ने कहा कि मुसलमान 400 से अधिक वर्षों से मणिपुर के देशज समुदाय से हैं।

“2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम जनसंख्या 2.4 लाख के करीब थी जो मणिपुर की जनसंख्या का लगभग 8.5 प्रतिशत है। थौबल जिले में मुस्लिमों की संख्या सबसे अधिक है और यह समुदाय इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, बिष्णुपुर, काकचिंग, तेंगनौपाल और चुराचांदपुर में फैला हुआ है।''

कामकाजी उम्र का वर्ग ज्यादातर खेती में लगा हुआ है, मुख्य रूप से धान की खेती करते हैं। वहाँ ज़मीन के मालिक किसान हैं और कुछ लोग बटाईदार के रूप में काम करते हैं और अन्य के पास छोटे व्यवसाय हैं।

लगभग दो सप्ताह पहले मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राज्य सरकारों को सौंपे गए एक ज्ञापन में, यूएमपीसी के संयोजक मौलाना मुहीउद्दीन ने बताया कि जातीयता को धुरी बनाकर सांप्रदायिक राजनीति पिछले 20-30 वर्षों में मणिपुर में जोर पकड़ रही है। और इसका प्रतिकूल प्रभाव 'आर्थिक प्रबंधन' पर भी हुआ है। इससे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को खतरा है। 

कोविड-19 महामारी, जो 2020 की पहली तिमाही से लेकर दो वर्षों तक चली, ने आबादी के बड़े हिस्से को बुरी तरह प्रभावित किया है। उन्होंने कहा, इससे पहले कि वे सामान्य जीवन शुरू कर पाते, जातीय संघर्ष ने उन्हें हिंसा के चरम रूपों से समझौता करने पर मजबूर कर दिया।

ज्ञापन में आग्रह किया गया है कि, “कृपया, प्रभावी ढंग से हस्तक्षेप करें ताकि हमारा मणिपुर वापस सामान्य स्थिति में आ जाए। हालाँकि, तबाही के लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए”।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने लगभग दो सप्ताह पहले अपने महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल राज्य में भेजा था। “प्रतिनिधिमंडल ने पाया कि बिष्णुपुर जिले में मुस्लिम-बहुल क्वाक्टा गांव बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिससे ग्रामीणों को अस्थायी शिविरों में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा है। जमीयत की मणिपुर इकाई के अध्यक्ष मौलाना सईद अहमद ने कहा, क्वाक्टा के वार्ड 8 में लगभग 35 घर और एक मस्जिद को हमलों का खामियाजा भुगतना पड़ा है।

अहमद ने कहा कि, “गंभीर रूप से घायल 16 वर्षीय छात्र अरबाज को एम्स नई दिल्ली में स्थानांतरित करना पड़ा। प्रतिनिधिमंडल ने राहत सामग्री वितरित करने की व्यवस्था की है।” 

अहमद का यह भी मानना है कि पिछले सप्ताह स्थिति में सुधार हुआ है, "लेकिन ऐसी शांति जो लोगों में विश्वास पैदा कर सके, अभी नज़र नहीं आ रही है"।

कुकी की अलग प्रशासन की मांग के बारे में पूछे जाने पर अहमद ने कहा, ''हमने उनसे अपना रुख नरम करने, बातचीत में शामिल होने और मणिपुर की अखंडता को बनाए रखने के तरीके तलाशने का आग्रह किया है। अपील मौखिक रूप से और अन्य माध्यमों से की गई है।

क्या इसका मतलब यह है कि मुसलमान अलग कुकी प्रशासन की मांग के ख़िलाफ़ हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि, “मैंने आपसे कहा था कि हम चाहते हैं कि मणिपुर बरकरार रहे; कोई अस्पष्टता नहीं है”।

उन्होंने बताया कि स्थानीय जमीयत इकाई अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी को नियमित रिपोर्ट भेजकर मुख्यालय को अवगत करा रही है।

जातीय संघर्ष के बावजूद, कुकी और मैतेई शिक्षाविद् ने पिछले सप्ताह गुवाहाटी में मंच साझा किया और शांति की जोरदार अपील की।

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, टी टॉम्बिंग (कुकी), नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी एंड ज्यूडिशियल एकेडमी, असम में पढ़ाते हैं और येंगखोम जिलंगंबा (मेइतेई) टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, गुवाहाटी परिसर में पढ़ाते हैं।

टॉम्बिंग ने तर्क दिया कि केवल शांति से ही सुलह हो सकती है। “शांति पहला कदम होना चाहिए। दूसरे, दोनों पक्षों के पीड़ितों की चिंताओं का समाधान किया जाना चाहिए”।

जिलंगम्बा ने कहा कि “नागरिक समाज समूह, विशेष रूप से इलाके के अन्य हिस्सों में, रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं। वे यह संदेश दे सकते हैं कि पड़ोस के लोग भी मणिपुर में शांति लाने के लिए समान रूप से चिंतित हैं।'' उन्होंने कहा कि मीडिया भी शांति बहाल करने में अहम भूमिका निभा सकता है।

यह कार्यक्रम मणिपुर में शांति की अपील करने के लिए विभिन्न इलाकों के प्रतिष्ठित लोगों को शामिल करने के लिए एक्सोम नागाटिक समाज द्वारा आयोजित किया गया था। स्कॉलर हिरेन गोहेन का मानना था कि दोनों समुदायों के लोगों को एक साथ आना चाहिए और शत्रुता के माहौल को नजरअंदाज कर एक-दूसरे से बातचीत करते रहना चाहिए।

(लेखक कोलकाता स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Manipur Muslims want State Intact, Demand Accountability for Devastation

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