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गौमूत्र और गोबर पर की गई टिप्पणी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ख़तरा कैसे हो गई?

मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम और राजनीतिक कार्यकर्ता एरेन्ड्रो लेचोम्बाम को ‘गाय के गोबर और गोमूत्र’ से जुड़ी उनकी एक फ़ेसबुक पोस्ट के लिए पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है। दोनों पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए लगा दिया गया है। इस गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर मणिपुर में प्रेस की आज़ादी को लेकर सवाल तेज़ हो गए हैं।
manipur journalist activist
Image Courtesy: Social Media

कोविड-19 के इलाज को लेकर बीते कई दिनों से गौमूत्र और गाय के गोबर पर चर्चा तेज़ है। एक ओर भारत के वैज्ञानिक और अन्य डॉक्टर इन उपचारों को गलत बता रहे हैं तो वहीं सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता और मंत्री इसे बढ़ावा देते नज़र आ रहे हैं। इसी सिलसिले में मणिपुर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया हैजहां पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम और राजनीतिक कार्यकर्ता एरेन्ड्रो लेचोम्बाम को गाय के गोबर और गोमूत्र’ जुड़ी उनकी एक फ़ेसबुक पोस्ट के लिए पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है। दोनों पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए लगा दिया गया है। राज्य में इस गिरफ्तारी को लेकर कई पत्रकार और मानवाधिकार संगठनों ने आलोचना की है। तो वहीं इस घटना को राज्य में सरकार द्वारा पत्रकारों के उत्पीड़न और दमन से जोड़ कर भी देखा जा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक बीते गुरुवार मणिपुर बीजेपी के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर एस टिकेंद्र सिंह का कोरोना संक्रमित होने के कारण निधन हो गया था और उसी दिन पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था, "गोबर और गोमूत्र काम नहीं आया। यह दलील निराधार है। कल मैं मछली खाऊंगा।"

वहीं राजनीतिक कार्यकर्ता एरेन्ड्रो ने अपनी फ़ेसबुक पोस्ट पर लिखा था, "गोबर और गोमूत्र से कोरोना का इलाज नहीं होता है। विज्ञान से ही इलाज संभव है और यह सामान्य ज्ञान की बात है। प्रोफेसर जी आरआईपी।"

इस फ़ेसबुक पोस्ट को कथित अपमान के तौर पर लेते हुए प्रदेश बीजेपी के प्रदेश महासचिव पी. प्रेमानंद मीतेई और प्रदेश उपाध्यक्ष उषाम देबेन सिंह ने दोनों के ख़िलाफ़ इम्फ़ाल पुलिस थाने में एक मामला (76 (5) 2021) दर्ज करवाया था।

इसके बाद मणिपुर पुलिस ने किशोरचंद्र और एरेन्ड्रो के ख़िलाफ़ ग़ैर-ज़मानती और संज्ञेय अपराध के तहत आईपीसी की धारा 153-A/505(b) (2) r/w 201/ /295-A/503/504/34 लगाते हुए गुरुवार को उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया था। इसके बाद मंगलवार, 18 मई को इम्फाल वेस्ट के ज़िला मजिस्ट्रेट किरणकुमार के एक आदेश के बाद दोनों को जेल भेज दिया गया है।

पहले आईपीसी के तहत मामला दर्ज हुआफिर ज़मानत मिली और फिर एनएसए लग गया!

किशोरचंद्र और एरेन्ड्रो के वकील चोंगथाम विक्टर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि दोनों को सोशल मीडिया की एक पोस्ट के लिए गिरफ़्तार किया गया है। दरअसल उन्होंने चिकित्सा विज्ञान के आधार पर गाय के गोबर और गोमूत्र के इस्तेमाल पर अपनी बात कही थी। उन लोगों ने अपनी पोस्ट में किसी भी व्यक्ति का नाम उल्लेख नहीं किया था। 

उन्होंने आगे कहा, "केवल अपने वाक्य के अंत में रेस्ट इन पीस लिखा था। यह किसी भी तरह सरकार की आलोचना नहीं थी। उन लोगों ने केवल चिकित्सा विज्ञान में भरोसा करने के तर्क पर अपनी बात कही थी। चूंकि दोनों पर एनएसए लगाया गया है इसलिए मैं एक बार फिर से संबंधित प्राधिकारी के समक्ष अपनी प्रस्तुति रखूँगाबाक़ी मामले को ख़त्म करना या नहीं करना उन पर निर्भर करेगा।"

वकील चोंगथाम के अनुसार पुलिस ने आईपीसी की धारा के तहत जो मामला दर्ज किया थाउसमें दोनों की ज़मानत हो गई थी लेकिन इसके बाद एनएसए लगा दिया गया। उन्होंने मामले में मणिपुर हाईकोर्ट जाने के भी संकेत दिए हैं। चोंगथम ने आरोप लगाया कि गिरफ्तारी के दौरान उनके क्लाइंट पत्रकार किशोरचंद्र पर पुलिस ने हमला किया जबकि लिचोम्बम की मां को धक्का दिया। पत्रकार वांगखेम की पत्नी ने भी उनके पति के साथ मारपीट का आरोप लगाया है। 

बीजेपी सरकार और किशोरचंद्र और लिचोम्बम की तकरार

बता दें कि मणिपुर की बीजेपी सरकार से पत्रकार किशोरचंद्र और लिचोम्बम की तकरार कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी दोनों को फेसबुक के कथित आपत्तिजनक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया जा चुका है। किशोरचंद्र को तो मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

उन्होंने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की आलोचना करते हुए उनको केंद्र की कठपुतली करार दिया था। वांगखेम ने मुख्यमंत्री से पूछा था कि क्या झांसी की रानी ने मणिपुर के उत्थान में कोई भूमिका निभाई थीउस समय तो मणिपुर भारत का हिस्सा भी नहीं था। वांगखेम ने अपनी पोस्ट में कहा था कि वे मुख्यमंत्री को यह याद दिलाना चाहते हैं कि रानी का मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं था, "अगर आप उनकी जयंती मना रहे हैंतो आप केंद्र के निर्देश पर ऐसा कर रहे हैं।"

इसके बाद उनको देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तब उनको लगभग छह महीने जेल में रहना पड़ा और मणिपुर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद वे अप्रैल 2019 में जेल से रिहा हो सके। इसके बाद उन्हें फेसबुक की एक पोस्ट की वजह से बीते साल 29 सितंबर को ही दोबारा गिरफ्तार किया गया था।

लिचोम्बम वर्ल्ड बैंक और यूनाइटेड नेशंस डेवलेपमेंट प्रोग्राम में काम कर चुके हैं और पिछले साल जुलाई में उन्हें भी फेसबुक पोस्ट की वजह से गिरफ्तार होना पड़ा थाफिर जमानत पर वह छूट भी गए थे। उन्होंने कुछ साल पहले ही पीपुल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस एलायंस नामक एक राजनीतिक दल का गठन किया था। मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने भी इसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था।

एरेन्ड्रो अपने फ़ेसबुक पर देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर को लेकर लगातार आलोचनात्मक तरीक़े से अपनी बात कहते आ रहें है। वह बीजेपी सरकार के कामकाज को लेकर भी आलोचना करते रहे हैं।

पत्रकार किशोरचंद्र और राजनीतिक कार्यकर्ता एरेन्ड्रो की गिरफ़्तारी और उन पर लगाए गए एनएसए के मामले पर स्थानीय पत्रकारों के संगठन और ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन इन गिरफ्तारियों के खिलाफ देश के कई अन्य मानवाधिकार और पत्रकार संगठनों ने आवाज उठाई है। कई संगठनों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है। मुंबई प्रेस क्लब ने रविवार को अपने एक ट्वीट में इन गिरफ्तारियों की कड़ी निंदा करते हुए उन दोनों को शीघ्र रिहा करने की मांग की है।

मणिपुर में प्रेस की आज़ादी सवालों के घेरे में?

गौरतलब है कि मणिपुर में प्रेस की आज़ादी को लेकर पहले भी कई बार बीजेपी की एन बीरेन सिंह सरकार पर सवाल उठ चुके हैं। स्थानीय पक्षकारों के मुताबिक साल 2017 में बीजेपी सरकार आने के बाद से यहाँ के पत्रकारों पर काफ़ी दबाव हैप्रेस की आज़ादी बहुत कम हुई है। सरकार को ऐसा कोई पत्रकार पसंद नहीं है जो सोशल मीडिया के जरिए भी उस पर अंगुली उठा रहा हो या सरकार से सवाल पूछ रहा हो।

 इसी साल फरवरी में एक मीडिया हाउस पर बम से हमले के विरोध में संपादकों और पत्रकारों के धरने पर होने की वजह से कई दिनों तक राज्य में न तो कोई अखबार छपा और न ही टीवी चैनलों पर खबरों का प्रसारण हुआ। वैसे,मणिपुर में पत्रकारों और अखबारों पर हमले की घटनाएं नई नहीं हैं। पहले भी इंफाल में कई अखबारों के दफ्तरों पर हमले हो चुके हैं और उनके खिलाफ संपादक व पत्रकार कई सप्ताह तक धरना भी दे चुके हैं। राजधानी से 32 अखबारों का प्रकाशन होता है जिनमें से ज्यादातर स्थानीय भाषा के हैं। इसके अलावा केबल टीवी के कई चैनलों का भी प्रसारण किया जाता है।

इससे पहले बीते साल एक उग्रवादी संगठन की धमकी की वजह से राज्य में दो दिनों तक न तो कोई अखबार छपा और न ही टीवी चैनलों का प्रसारण हुआ। 25 और 26 नवंबर 2020 को कोई अखबार नहीं छपा। पत्रकारों ने इसके विरोध में मणिपुर प्रेस क्लब के सामने धरना भी दिया. वर्ष 2013 में जब कुछ संगठनों ने अपने बयानों को बिना किसी काट-छांट के छापने की धमकी दी थीतो चार दिनों तक अखबारों का प्रकाशन बंद रहा था। उससे पहले 2010 में भी दस दिनों तक अखबार नहीं छपे थे।

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