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कोरोना काल में भी जारी है मैनुअल स्केवेंजिंग, सीटू ने जताया विरोध, आंदोलन की चेतावनी

"हाथ से मैला साफ करने पर कानूनी रोक के बावजूद दिल्ली में हाथ से नालों-सीवरों की सफाई धड़ल्ले से जारी है। हर साल अनेकों श्रमिक बिना किसी सुरक्षा उपकरण के नालों-सीवरों की जहरीले गैसों के बीच उतरने के चलते अपनी जानें गँवा रहे हैं और यह गलत व प्रतिबंधित तरीके कोरोना बीमारी के दौर में भी जारी हैं।"
Manual scavenging

हर थोड़े दिन में ख़बर मिलती है कि आज शहर में टैंक, नाले या फिर सीवर की सफाई करते हुए सफाई कर्मियों की मौत हो गई। इसको रोकने के लिए लगतार सरकारे योजना भी बनाती है लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी सफाई कर्मचारी बिना किसी सुरक्षा के काम करने को मज़बूर हैं। देश भर में सीवर-सेप्टिक टैंक साफ़ करने वाले मैनुअल स्केवेंजरों की संख्या कितनी है, सरकार के पास अभी तक इसका कोई सही आंकड़ा नहीं है। यहाँ तक देश की राजधानी दिल्ली में भी लगातर मैनुअल स्केवेंजिंग जारी हैं। इसी को लेकर मज़दूर संगठन सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियनस (सीटू) ने एक ज्ञापन दिल्ली के मुख्यमंत्री ,उप राजयपाल और नगर निगम को भेजा हैं।  
 
आपको बता दें कि दिल्ली में मुख्यतः साफ सफाई का काम नगर निगम का है।  सीटू का कहना है कि दिल्ली देश की राजधानी में कोरोना महामारी के वक़्त भी नगर निगम के अधिकारियों और ठेकेदारों द्वारा मज़दूरों को गैर-कानूनी तरीके से मैनहोल में उतारकर सफाई का काम करवाना जारी हैं। इसपर तुरंत रोक लगनी चाहिए और सफाई कर्मियों को ससम्मान रोज़गार मुहैया कराना चाहिए।

कई जानकारों का कहना है कि मैनुअल स्केवेंजिंग यानी हाथ से सफाई या मैला ढोना और सफाई कर्मचारियों की इन मौतों के दो प्रमुख कारण हैं–1. सफाई के लिए आधुनिक मशीनों की सुविधा न होना  2. ज्यादातर जगहों पर ठेकेदारी प्रथा होना।

ठेका प्रथा के कारण सरकारें मैनुअल स्केवेंजरों के हितों पर उचित ध्यान नहीं देतीं।  सफाई कर्मचारी लंबे समय से ठेकेदारी प्रथा को ख़त्म करने की मांग करते रहे हैं।

आज पूरा देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है और इस लड़ाई में सबसे अगली कतारों में स्वास्थ्य कर्मियों के अलावा सफाई कर्मचारी और अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने वाले श्रमिक शामिल हैं। आज पूरी दुनिया कोरोना जैसे माहमारी के दौर से गुजर रहा है, जिसमें साफ सफाई सबसे अधिक जरूरी है, इस दौर में भी देश की राजधानी में सफाई कर्मचारी बिना किसी सुरक्षा के हाथों से गंदगी साफ करने को मज़बूर है।  अभी तक इस माहमारी में 9 सफाई कर्मचारी अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें से अधिकतर ठेका मज़दूर थे इसलिए उन्हें न दिल्ली सरकार से एक करोड़ की सम्मान राशि और न केंद्र सरकार के 50 लाख के बीमा का लाभ मिला।

संक्रमण को देखते हुए और उनके साथ हो रहे भेदभावों को लेकर सफाई कर्मचारी एक्शन कमेटी ने सामाजिक न्याय मंत्रलाय को भी एक पत्र लिखा था। लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। आज भी दिल्ली में सफाई कर्मचारी बदतर हालत में काम करने की लिए मजबूर है।  

दिल्ली सीटू ने पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री, श्रम मंत्री, एलजी, पूर्वी दिल्ली नगर निगम की मेयर तथा कमिश्नर को तुरंत कार्रवाई करने की माँग उठाई है। इस पत्र में उन्होंने 12 जून की घटना का जिक्र किया है जहाँ पूर्वी दिल्ली नगर निगम के कृष्णा नगर विधानसभा के घोंडली वार्ड में कुछ सफाई कर्मचारी बिना किसी सुरक्षा के एक नाले में उतरकर सफाई करते हुए दिख रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हाथ से मैला साफ करने पर कानूनी रोक के बावजूद दिल्ली में हाथ से नालों-सीवरों की सफाई धड़ल्ले से जारी है। हर साल अनेकों श्रमिक बिना किसी सुरक्षा उपकरण के नालों-सीवरों के जहरीले गैसों के बीच उतरने के चलते अपनी जानें गँवा रहे हैं और यह गलत व प्रतिबंधित तरीके कोरोना बीमारी के दौर में भी जारी हैं।
 
इसके साथ ही सीटू ने आरोप लगया कि नालों-सीवरों की सफाई के लिए मशीन उपलब्ध तो कराए गए हैं पर अधिकांश जगहों पर उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है। नाले व सीवरों की सफाई का काम नगर निगमों तथा दिल्ली जल बोर्ड जैसी संस्थाओं द्वारा ठेके पर दिया जा रहा है। ठेकेदार गमबूट, ग्लव्स, मास्क आदि सुरक्षा सुविधाएं मुहैया नहीं कराते हैं।

आगे उन्होंने कहा क़ि 2018 में जब चंद महीनों के भीतर ही 10 से अधिक मजदूर सीवर में अपनी जान गंवा बैठे थे तब हमारे प्रदर्शन के बाद दिल्ली सरकार ने सीवर की सफाई के लिए मशीनों के इस्तेमाल की बात कही थी पर आज भी स्थिति जस की तस है।

आपको बता दें कि देश में 1993 में मैनुअल स्केवेंजिग पर रोक लगा दी गई है और 2013 में कानून में संशोधन कर सीवर और सैप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई पर रोक को भी इसमें जोड़ दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद मैनुअल स्केवेंजिग पर लगाम नहीं लगाई जा सकी है। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के ही एक आंकड़े के मुताबिक जनवरी 2017 से पूरे देश में सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हर पांच दिन में औसतन एक आदमी की मौत हुई है।  

सरकार हमेशा मैनुअल स्केवेंजरों की संख्या कम आंकने की कोशिश करती है। अगर सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान दम घुटने से मरने वालों की संख्या की बात की जाये तो सफाई कर्मचारी आंदोलन के एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार अब तक मरने वालों की संख्या दो हजार के आसपास है। दूरदराज के इलाकों में होने वाली मौतों के बहुत सारे मामले रिपोर्ट ही नहीं किए जाते। पर राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग इसे केवल 814  बताता है। आयोग के आंकड़ों के अनुसार ही पिछले तीन वर्षों में (2017-2019) में सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान मरने वालों की संख्या 271 है। इनमें से 110 मौतें सिर्फ 2019 में हुई हैं।  2018 में 68 और 2017 में 93 मौतें हुईं।

आपको बता दें कि सीवर सफाई के दौरान मरने वाले कर्मचारियों के परिवार को 10 लाख रुपये की सहायता राशि दिए जाने का प्रावधान है लेकिन मुआवजा देने के मामले में ज्यादातर राज्यों का रिकॉर्ड बहुत खराब है।

इतना ही नहीं पिछले हफ्ते लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने बताया कि पिछले तीन सालों में 88 सफाई कर्मचारियों की मौत सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई करते हुए हो गई है, जबकि देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगा हुआ है।

सीटू के दिल्ली राज्य महसचिव अनुराग सक्सेना और अध्यक्ष वीरेंद्र गौड़ ने कहा कि कोरोना महामारी ने दिल्ली जैसे महानगरों को चलाने में सफाई में लगे श्रमिकों की महत्त्व को सामने लाकर रख दिया है। चाहे कोरोना के खिलाफ लड़ाई हो या फिर दिल्ली को सही तरह से चलाने की बात हो हजारों सफाई कर्मियों को बुनियादी सुविधाएं दिए बिना यह संभव नहीं है। इस दिशा में त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है जिससे गंदे, जहरीले नाले-सीवरों में उतरने जैसे अमानवीय कृत्य पर रोक लग सके और साथ-साथ इन सफाई कर्मियों को ससम्मान रोजगार भी मिलता रहे।

सीटू ने सरकार से निम्नलिखित मांग की हैं:-

1. दिनांक 12.06.2020 की घटना की जांच कर दोषी अधिकारी, ठेका कम्पनी पर नियमानुसार कठोर कार्रवाई कर दण्डित किया जाए। भविष्य में इस प्रकार की घटना की न हो, इसे सुनिश्चित किया जाए।
2. नालों-सीवर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल बाध्यकारी बनाया जाए।
3. मैनहोल में उतरकर सफाई करने वाले श्रमिकों को उचित ट्रैनिंग मुहैया कराई जाए। जिससे वो इन मशीनों का परिचालन कर सकें और उनका रोजगार भी बच सके।
4. जब तक यह नहीं होता है तब तक दिल्ली सरकार और निगम सुनिश्चित करे कि सभी श्रमिकों को उचित सुरक्षा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।

अंत में सीटू ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार व एजेंसियां कार्रवाई नहीं करती हैं तो सीटू आने वाले दिनों में इस सवाल पर आंदोलन का रुख़ करेगी।

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