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मज़दूर-किसान अधिकार महाधिवेशन : मेहनतकश वर्ग की एकता के संकल्प के साथ मज़दूर संघर्ष रैली 2.0 का ऐलान

केंद्र की मोदी सरकार की “जनविरोधी” नीतियों के खिलाफ मज़दूर-किसान और खेत मज़दूर यूनियन एक साथ आए और एक संयुक्त राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया। इस अधिवेशन को ‘मजदूर-किसान अधिकार महाधिवेशन’ का नाम दिया गया है, जिसमें मज़दूरों, किसानों और खेत मज़दूरों के बीच एकता को मजबूत करने के मुद्दों पर चर्चा हुई और पिछले कुछ सालों में बनी एकता को और मजबूत करने पर चर्चा हुई।
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5 सितंबर, 2018 को आयोजित ऐतिहासिक 'मजदूर किसान संघर्ष रैली' की चौथी वर्षगांठ पर दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में मज़दूर संगठन सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन(सीटू), किसान संगठन अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस), और खेत मज़दूर संगठन अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन (एआईएडब्ल्यूयू) ने साझा रूप से इसका आयोजन किया। 

इस अधिवेशन को ‘मजदूर-किसान अधिकार महाधिवेशन’ का नाम दिया गया है जिसमें मज़दूरों, किसानों और खेत मज़दूरों के बीच एकता को मजबूत करने के मुद्दों पर चर्चा हुई और पिछले कुछ सालों में बनी एकता को और मजबूत करने पर चर्चा हुई।

इस अधिवेशन में देश के अलग-अलग कोनों से मेहनतकश जनता आई थी। इसमें देश के उत्पादन से जुड़ा हर वर्ग शामिल था, मध्यम वर्ग के कर्मचारी से लेकर खेत में काम करने वाला दिहाड़ी मज़दूर तथा गाँव के चौकीदार, सफाई कर्मचारी से लेकर शिक्षक और प्रोफेसर सभी शामिल हुए।

इस संयुक्त अधिवेशन ने संसद के बजट सत्र 2023 के दौरान 'मज़दूर संघर्ष रैली 2.0' में मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों की भारी लामबंदी करने का ऐलान किया है। महाधिवेशन ने जोर देकर कहा कि इस रैली के दिन राष्ट्रीय राजधानी स्वतंत्र भारत के इतिहास में मेहनतकश वर्गों की अब तक की सबसे बड़ी लामबंदी की गवाह बनेगी। इस संयुक्त अधिवेशन ने सर्वसम्मति से अक्टूबर 2022 से फरवरी 2023 तक व्यापक संयुक्त अभियान चलाने का फैसला किया ताकि मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों को नव उदारवादी नीति के हमलों के खिलाफ आक्रामक प्रत्यक्ष प्रतिरोध संघर्ष शुरू करने के लिए तैयार किया जा सके।

अधिवेशन की अध्यक्षता सीटू अध्यक्ष डा० के. हेमलता, किसान सभा अध्यक्ष डा० अशोक धवले, और खेत मजदूर यूनियन अध्यक्ष ए. विजयराघवन द्वारा सयुक्त रूप से की गई। सीटू महासचिव तपन सेन, किसान सभा महासचिव हन्नान मौल्ला और खेत मज़दूर यूनियन महासचिव बी. वेंकट ने इन तीनों संगठनों के संयुक्त घोषणा पत्र का समर्थन करते हुए संयुक्त सम्मेलन को संबोधित किया। इसके अलावा मज़दूर यूनियन एंव फेडरेशन और किसान एंव खेत मज़दूर नेताओं ने भी संबोधित किया। बैंक एम्प्लॉय फेडरेशन ऑफ इंडिया के देबाशीष बसु, BSNLकर्मचारी यूनियन के नेता अभिमन्यु, केंद्र सरकार के कर्मचारी संगठन CCGEW के के. पाराशर, और इसके आलावा एलआईसी राज्य सरकार के कर्मचारी संघों और अन्य किसानों और कृषक संगठनों के नेताओं ने भी अधिवेशन को संबोधित किया।

मेहनतकश ही लगाएंगे बेलगाम सत्ता पर लगाम!

तपन सेन ने कहा, "आज देश के पूंजीपति अटूट संपत्ति जमा कर रहे हैं जबकि दूसरी तरफ़ आम आदमी लगातार गरीब हो रहा है। सरकार आज़ादी का अमृतकाल मना रही हैं लेकिन दूसरी तरफ मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पिछले 75 वर्षों के दौरान जो कुछ भी हम लोगों ने अपने श्रम के माध्यम से थोड़ा-थोड़ा कर निर्माण किया है और अपने संघर्षों और बलिदानों के माध्यम से हासिल किया है, उसे नष्ट कर रही है।"

सेन ने कहा, "मजदूर किसान एक हो जाएगा तो कोई भी इन्हें हरा नहीं सकता है। यही देश का उत्पादक वर्ग है और ये एक हो जाए तो सरकार को इनकी बात माननी ही पड़ेगी। इसी एकता ने किसान कानूनों को वापस कराया है। इसी एकता के डर से लेबर कोड को नोटिफाई नही किया जा सका है जबकि लगातार निजीकरण पर सरकार को पीछे हटना पड़ा है।"

सभी ट्रेड यूनियनों के सदस्यों की मांग है कि मोदी सरकार तत्काल चार श्रम संहिताओं को वापस ले। ट्रेड यूनियनों ने केंद्र को चेतावनी दी है कि अगर सरकार संहिताओं के कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़ती है तो वे विरोध कार्रवाई का सहारा लेंगे। वे कृषि कानूनों को वापस लेने की तरह ही लेबर कोड को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

हनन मौल्ला ने कहा, "मोदी सरकार में न केवल मेहनतकश वर्गों पर हमला बढ़ा है बल्कि सांप्रदायिक उन्माद, नफरत और हिंसा अपने चरम पर है"

उन्होंने कहा कि आज का संघर्ष न केवल हमारी आजीविका, रहन-सहन और काम की परिस्थितियों से जुड़ी तात्कालिक मांगों के लिए है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए, हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक चरित्र को इस सांप्रदायिक और अधिनायकवादी भाजपा-आरएसएस शासन से बचाने के लिए भी है।

अधिवेशन में मौजूद नेताओं ने कहा कि यह अधिवेशन पूरे देश के मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों से आह्वान करता है कि वे भाजपा-आरएसएस के नव-उदार, सांप्रदायिक और अधिनायकवादी शासन की हार व न्यायसंगत मांगों के लिए एकजुट होकर लड़ने के लिए अथक प्रयास करें।

BSNL कर्मचारी यूनियन के नेता अभिमन्यु ने कहा कि ये सरकार बोल रही है कि उसने बीएसएनएल के पुनरुद्धार के लिए 35000 करोड़ रुपए दिए, ये सबसे बड़ा झूठ है। ये हमारा ही पैसा है और अभी भी बीएसएनएल का सरकार पर एक हजार करोड़ बकाया ही है। ये जानबूझकर इस संस्था को साजिश के तहत बर्बाद कर रहे हैं। आज सभी कंपनी 5G सेवा देने जा रही है इसके अलावा 4G को आए 12 साल हो गए लेकिन आजतक हमें 4G सेवा शुरू नहीं करने दिया जा रहा है।

खेत मज़दूर यूनियन के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव विक्रम सिंह ने अपने संबोधन में मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि आज देश में एक बेलगाम रथ चल रहा है जिसपर अंबानी अदानी बैठे हैं और इसे मोशा (मोदी-शाह) चला रहे हैं। ये रथ कहीं और नहीं बल्कि देश कि आम जनता की पीठ पर चल रहा है। लेकिन मज़दूर, किसान और खेत मज़दूर ये मेहनतकश लोग हर बेलगाम घोड़े को लगाम लगाना जानते हैं और हम इस बेलगाम सत्ता पर भी लगाम लगाएंगे।

विक्रम ने आगे कहा, "सरकार मनरेगा जैसी नीति को भी ठीक से लागू नहीं कर रही है, वो अभी 73 हज़ार करोड़ दे रही है जबकि जानकारों की मानें तो आज 2 लाख 33 हज़ार करोड़ की ज़रूरत है। सरकार एक तरफ तो फंड कम कर रही है वहीं मनरेगा में धर्म और जाति के नाम पर बँटवारा करना चाहती है लेकिन हम यह कहने आए हैं कि हम ये नहीं होने देंगे।"

आगे कहा कि ये मोदी सरकार के लिए चेतावनी है अगर वो हमारे हक के लिए काम नहीं करती है तो हम उन्हें हटाने के लिए तैयार हैं। अगली बार हम जब दिल्ली आएंगे तो गिनती भूल जाइए, लाखों की संख्या में किसान और मज़दूर एक साथ किसान मज़दूर संघर्ष रैली में आएंगे।

क्या है मांग?

अधिवेशन ने देश के मेहनतकश लोगों की बुनियादी मांगों को दोहराया, जैसे कि न्यूनतम मज़दूरी 26,000 रूपये प्रति माह और पेंशन 10,000 रूपये प्रतिमाह सुनिश्चित करें, कानूनी रूप से गारंटीकृत खरीद, सभी कृषि उत्पादों के लिए C2 + 50% पर आधारित एमएसपी सुनिश्चित करें। चार श्रम संहिताएं और बिजली संशोधन विधेयक 2020 को निरस्त करें, मनरेगा के तहत 600 रूपये मजदूरी कर 200 दिन काम प्रदान करें। मनरेगा का शहरी क्षेत्रों में विस्तार किया जाए। गरीब तथा मध्यम किसानों एवं खेत मजदूरों की एकमुश्त कर्जा माफी। इसके अलावा संयुक्त सम्मेलन ने सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को रोकने, नई शिक्षा नीति को वापस लेने, अग्निपथ को बंद करने, मूल्य वृद्धि को रोकने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करने जैसी मांगे सामने रखीं। इसके अलावा सभी श्रमिकों के लिए सार्वभौमिक 10,000 रूपये प्रतिमाह पेंशन और धनाढ्य वर्ग पर कर लगाने जैसी मांगे भी दोहराईं।

भविष्य के कार्यक्रम

अधिवेशन के प्रस्ताव के अनुसार इन मांगों को देशभर के मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों तक पहुँचाने के लिए यह अधिवेशन तीनों संगठनों की सभी इकाइयों से अक्टूबर 2022 से फरवरी 2023 तक एक गहन और व्यापक अभियान चलाएंगे। अगले चार महीनों के दौरान स्थानीय मांगों सहित मुद्दों और मांगों पर पर्चा, पोस्टर वितरण, दीवार लेखन, बैठकों, जत्थे, जुलूस आदि के माध्यम से, राज्य और जिला संयुक्त बैठके कर तथा योजना बनाकर बहुमत लोगो तक पहुंचने का लक्ष्य है।

यह संयुक्त अधिवेशन हमारे देश के सभी प्रगतिशील, जनतांत्रिक और देशभक्त लोगों से राष्ट्र को बचाने और लोगों को बचाने के लिए इस राष्ट्रव्यापी अभियान और कार्यक्रमों को समर्थन देने और एकजुटता भी बनाए रखने की अपील करेगा। इन जत्थों द्वारा इस कन्वेंशन के संदेश को देश के कोने-कोने तक पहुँचाने का लक्ष्य है तथा 2023 में संसद के बजट सत्र के दौरान व्यापक मजदूर किसान संघर्ष रैली-2 का आयोजन किया जाना है।

सरकार के अमृतकाल के प्रचार की पोलखोल जारी है!

इस सांझे अभियान की शुरुआत आज़ादी के 75 वर्ष के अवसर पर हुई थी जब तीनों संगठनों के नेताओं ने सांझा प्रेस वार्ता कर 1 अगस्त से 15 दिनों का सांझा "संयुक्त देशव्यापी अभियान" शुरू किया था और इस अभियान का समापन 14 अगस्त की शाम को जिला मुख्यालयों पर व्यापक संयुक्त लामबंदी और विरोध कार्यक्रमों तथा स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ हुआ था।

इसके अलावा तीनों संगठनों ने 8 अगस्त, 2022 को 'भारत छोड़ो' दिवस के उपलक्ष्य में लोगों को लामबंद किया और जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन भी किया था। इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए सीटू, एआईकेएस, और एआईएडब्ल्यूयू ने 5 सितंबर को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक संयुक्त राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जिसमें भविष्य के अभियान और कार्रवाई एवं कार्यक्रमों को चाक-चौबंद किए जानें पर चर्चा हुई।

ये संयुक्त आंदोलन मोदी सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान को देखते हुए शुरू किया गया जिसमें केंद्र सरकार ने देश कि आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी के अमृत महोत्सव के नारे के साथ एक अभियान चलाया, जिसमें वो अपनी उपलब्धियों को बता रही है। जबकि किसान- मज़दूर संगठनों का कहना है कि ये सरकार मज़दूरों और लोगों द्वारा स्वाधीनता आंदोलन में कुर्बानी देकर हासिल किए गए अधिकारों को कुचल रही है। हम इस अभियान के तहत इसका पर्दाफाश कर रहे हैं।

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